
राजस्थान की सियासत में हलचल तेज हो गई है। मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा की लगातार दिल्ली यात्राओं और बीजेपी आलाकमान से उनकी मुलाकातों के बाद मंत्रिमंडल विस्तार लगभग तय माना जा रहा है। सूत्रों का कहना है कि पार्टी हाईकमान ने मंत्रिमंडल विस्तार को हरी झंडी दे दी है और जल्द ही इसका ऐलान हो सकता है।
20 महीने बाद बड़ा बदलाव तय
राजस्थान में बीजेपी सरकार को बने हुए करीब 20 महीने हो चुके हैं। अब मंत्रिमंडल विस्तार और फेरबदल की चर्चाएँ ज़ोर पकड़ रही हैं। बताया जा रहा है कि पिछले 24 दिनों में मुख्यमंत्री शर्मा तीन बार दिल्ली गए और वहाँ उन्होंने राष्ट्रीय संगठन महासचिव बीएल संतोष समेत पार्टी के शीर्ष नेताओं से मुलाकात की।
इन्हीं बैठकों में मंत्रिमंडल विस्तार और फेरबदल को लेकर अहम बातचीत हुई है। सूत्रों के मुताबिक विधानसभा के आगामी मानसून सत्र से पहले या उपराष्ट्रपति चुनाव से पहले यह फैसला सामने आ सकता है।
छत्तीसगढ़ मॉडल पर नजर
हाल ही में छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने अपने मंत्रिमंडल का विस्तार किया था। उन्होंने तीन नए विधायकों को मंत्री बनाकर 15% मंत्रिमंडल कोटे को पूरा किया। दिलचस्प बात ये रही कि वहाँ किसी भी मौजूदा मंत्री को हटाया नहीं गया।
राजस्थान में भी इसी फॉर्मूले को अपनाए जाने की संभावना जताई जा रही है। यानी नए चेहरों को मौका मिलेगा, खासकर पहली बार और दूसरी बार के विधायक, जिन्हें अब तक मंत्री बनने का मौका नहीं मिला है। हालांकि, सूत्रों का कहना है कि राजस्थान में कुछ मंत्रियों की परफॉर्मेंस खराब रही है, ऐसे में उनकी छुट्टी भी हो सकती है।
6 नए मंत्रियों की एंट्री संभव
राजस्थान विधानसभा में कुल 200 सीटें हैं। संवैधानिक नियमों के तहत अधिकतम 15% यानी 30 मंत्री बनाए जा सकते हैं। वर्तमान में मुख्यमंत्री सहित 24 मंत्री हैं। इसका मतलब साफ है कि 6 नए चेहरों की एंट्री तय है।
बीजेपी प्रदेशाध्यक्ष मदन राठौड़ पहले ही संकेत दे चुके हैं कि कुछ मौजूदा मंत्रियों को संगठन की जिम्मेदारी दी जा सकती है। लेकिन राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि कुछ को हटाकर नए नेताओं को मौका दिया जाएगा।
सभी गुटों को मिलेगा प्रतिनिधित्व
बीजेपी इस बार गुटबाजी से बचने की रणनीति पर काम कर रही है। पार्टी चाहती है कि विस्तार में सभी गुटों—राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) और पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे गुट—को संतुलित प्रतिनिधित्व मिले।
हाल ही में हुई राजनीतिक नियुक्तियों में भी यह संतुलन साफ नजर आया। उदाहरण के तौर पर, संघ समर्थक माने जाने वाले पूर्व प्रदेशाध्यक्ष अरुण चतुर्वेदी को राज्य वित्त आयोग का चेयरमैन बनाया गया। वहीं वसुंधरा राजे खेमे के वरिष्ठ नेता अशोक परनामी को तिरंगा यात्रा और विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस जैसे कार्यक्रमों की जिम्मेदारी दी गई।
सियासी सक्रियता से बढ़ीं अटकलें
पिछले कुछ महीनों में राजस्थान बीजेपी नेताओं की बढ़ती दिल्ली यात्राओं ने सियासी हलचल और तेज कर दी है। मुख्यमंत्री शर्मा की लगातार दिल्ली मीटिंग्स, वसुंधरा राजे की पीएम मोदी से मुलाकात और अन्य वरिष्ठ नेताओं की सक्रियता ने अटकलों को और हवा दी है।
गौरतलब है कि बीजेपी को 2023 विधानसभा चुनाव में राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़—तीनों जगह पूर्ण बहुमत मिला था। अब जबकि छत्तीसगढ़ सबसे पहले मंत्रिमंडल विस्तार कर चुका है, राजस्थान का नंबर अगला माना जा रहा है।
सामाजिक और क्षेत्रीय संतुलन पर फोकस
सूत्रों का कहना है कि नए मंत्रियों के चयन में क्षेत्रीय और सामाजिक संतुलन पर विशेष ध्यान दिया जाएगा। बीजेपी नेतृत्व यह सुनिश्चित करना चाहता है कि अलग-अलग जातियों, समुदायों और क्षेत्रों से जुड़े नेताओं को मंत्रिमंडल में जगह मिले।
इस बार पार्टी उन विधायकों को भी मौका दे सकती है जिन्होंने संगठन में लंबे समय तक काम किया है या अपने क्षेत्र में मजबूत पकड़ रखते हैं। साथ ही, युवाओं और अनुभवी नेताओं के बीच भी संतुलन बनाने की कोशिश होगी।
आगे क्या?
अब सबकी निगाहें मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा के अगले दिल्ली दौरे पर टिकी हैं। माना जा रहा है कि इसी दौरे में नए मंत्रियों के नाम पर अंतिम मुहर लगेगी।
कुल मिलाकर, राजस्थान में मंत्रिमंडल विस्तार अब “काउंटडाउन मोड” में है। नए चेहरे कौन होंगे और किनकी छुट्टी होगी—इसका जवाब आने वाले कुछ दिनों में मिल सकता है।

श्रवण कुमार ओड़ जालोर जिले के सक्रिय पत्रकार और सामाजिक विषयों पर लिखने वाले लेखक हैं। वे “जालोर न्यूज़” के माध्यम से जनहित, संस्कृति और स्थानीय मुद्दों को उजागर करते हैं। उनकी पत्रकारिता का उद्देश्य है—सच दिखाना और समाज की आवाज़ बनना।