
माणकमल भंडारी, भीनमाल
भीनमाल।
श्रीदर्शन पंचांग के प्रधान संपादक शास्त्री प्रवीण त्रिवेदी ने जानकारी दी कि इस साल श्राद्ध पक्ष 8 सितंबर से शुरू होकर 21 सितंबर 2025 तक रहेगा। इन दिनों को पितरों की संतुष्टि और आशीर्वाद पाने के लिए बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है।
श्राद्ध क्या है?
त्रिवेदी ने बताया कि श्रद्धा से किए गए कर्म को ही श्राद्ध कहा जाता है।
संस्कृत श्लोक के अनुसार –
“श्रद्धया पितृन् उद्दिश्य विधिना क्रियते यत्कर्म तत् श्राद्धम्”।
यानी अपने मृत पूर्वजों (पितरों) के लिए श्रद्धापूर्वक किए गए कर्म को श्राद्ध कहा जाता है। इसे ही पितृ यज्ञ भी कहते हैं।
धर्मग्रंथों में श्राद्ध का महत्व
- महर्षि पराशर के अनुसार, तिल और दर्भ के साथ मंत्रों से किए गए कर्म को श्राद्ध कहा जाता है।
- महर्षि बृहस्पति व पुलस्त्य के अनुसार, दूध, घी, मधु से बने उत्तम व्यंजन ब्राह्मणों को पितरों की नीयत से अर्पित करना ही श्राद्ध है।
- ब्रह्मपुराण बताता है कि देश-काल और पात्र के अनुसार ब्राह्मण को श्रद्धा से दिया गया अन्न ही असली श्राद्ध है।
श्राद्ध से मिलने वाले लाभ
शास्त्री त्रिवेदी के अनुसार, श्राद्ध केवल पितरों को ही नहीं, बल्कि जीवित परिजनों को भी आशीर्वाद देता है।
- आयु वृद्धि होती है।
- संतान और कुल परंपरा की रक्षा होती है।
- धन-धान्य की वृद्धि होती है।
- शरीर में बल और पौरुष बढ़ता है।
- यश और सुख-समृद्धि प्राप्त होती है।
उन्होंने कहा कि जैसे गाय अपना बछड़ा ढूंढ ही लेती है, वैसे ही श्राद्ध में दिया गया अन्न, मंत्रों के माध्यम से पितरों तक पहुंच जाता है – चाहे वे देव योनि, मनुष्य योनि या अन्य किसी योनि में हों।
श्राद्ध की प्रक्रिया
श्राद्ध में मुख्य रूप से दो विधियां होती हैं:
- पिण्डदान
- ब्राह्मण भोजन
पितर सूक्ष्म रूप से ब्राह्मणों के माध्यम से भोजन ग्रहण करते हैं और तृप्त होते हैं।
मत्स्यपुराण के अनुसार श्राद्ध तीन प्रकार का होता है – नित्य, नैमित्तिक और काम्य।
यम स्मृति के अनुसार यह पाँच प्रकार का है – नित्य, नैमित्तिक, काम्य, वृद्धि और पार्वण।
वहीं भविष्य पुराण में 12 प्रकार के श्राद्ध बताए गए हैं।
श्राद्ध में क्या करना चाहिए और क्या नहीं?
✅ श्राद्ध में गाय का घी, दूध, दही, तिल और सरसों का प्रयोग श्रेष्ठ माना गया है।
✅ चांदी के बर्तनों का उपयोग पुण्यकारी है।
✅ ब्राह्मण को भोजन परोसते समय दोनों हाथों से बर्तन पकड़ने चाहिए।
✅ मौन रहकर भोजन करवाना चाहिए।
❌ शाम और संध्याकाल में श्राद्ध नहीं करना चाहिए।
❌ चना, मसूर, उड़द, मूली, काला नमक, बासी फल-अनाज श्राद्ध में वर्जित हैं।
❌ ब्राह्मण के बिना किया गया श्राद्ध व्यर्थ माना जाता है।
श्राद्ध तिथियां (8 से 21 सितंबर 2025)
- 08 सितंबर – प्रतिपदा श्राद्ध
- 09 सितंबर – द्वितीया श्राद्ध
- 10 सितंबर – तृतीया व चतुर्थी श्राद्ध
- 11 सितंबर – पंचमी श्राद्ध
- 12 सितंबर – षष्ठी श्राद्ध
- 13 सितंबर – सप्तमी श्राद्ध
- 14 सितंबर – अष्टमी श्राद्ध
- 15 सितंबर – मातृ नवमी श्राद्ध
- 16 सितंबर – दशमी श्राद्ध
- 17 सितंबर – एकादशी श्राद्ध
- 18 सितंबर – द्वादशी और संन्यासी श्राद्ध
- 19 सितंबर – त्रयोदशी श्राद्ध
- 20 सितंबर – चतुर्दशी श्राद्ध व दग्ध शस्त्रादिहत श्राद्ध
- 21 सितंबर – सर्वपितृ अमावस्या एवं पूर्णिमा श्राद्ध

श्रवण कुमार ओड़ जालोर जिले के सक्रिय पत्रकार और सामाजिक विषयों पर लिखने वाले लेखक हैं। वे “जालोर न्यूज़” के माध्यम से जनहित, संस्कृति और स्थानीय मुद्दों को उजागर करते हैं। उनकी पत्रकारिता का उद्देश्य है—सच दिखाना और समाज की आवाज़ बनना।