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बारसासूत्र का वाचन और क्षमा याचना संग मनाया संवत्सरी महापर्व

By Shravan Kumar Oad

Published on:

भीनमाल | ( माणकमल भंडारी )

Jain community celebrating Samvatsari Mahaparv with Barasasootra recitation and forgiveness rituals at Mahavir Swami Jain Temple in Bhinmal

भीनमाल स्थित महावीर स्वामी जैन मंदिर के आराधना भवन जैन धर्मशाला प्रांगण में चल रहे चातुर्मास के दौरान जैन समाज ने पर्वाधिराज पर्युषण का समापन धूमधाम से किया। आठवें और अंतिम दिन संवत्सरी महापर्व को क्षमा याचना के साथ मनाया गया।

साध्वी नयन प्रभा म.सा. ने कराया बारसासूत्र का श्रवण

इस अवसर पर जैन साध्वी नयन प्रभा म.सा. ने अपने प्रवचन में श्रद्धालुओं को बारसासूत्र का श्रवण कराया और चौबीस तीर्थंकरों की जीवनी का विस्तार से उल्लेख किया।
सुबह आराधना भवन में लाभार्थियों ने सर्वप्रथम साध्वीजी को बारसासूत्र व्यौहराया। पूजा के लाभार्थियों ने मंदिर में पूजा का लाभ लिया, वहीं दरियादेवी लब्धिराज भंडारी परिवार ने बारसासूत्र वाचन के दौरान सकल संघ को दर्शन कराने का सौभाग्य पाया।

भंवरलाल कानूगों का योगदान

इस अवसर पर भंवरलाल कानूगों ने भावपूर्ण तरीके से चढ़ावे बोलकर देव दृव्य और साधारण खाते में अभिवृद्धि करने में अहम भूमिका निभाई।

सामूहिक प्रतिक्रमण और क्षमा याचना

चातुर्मास के प्रवक्ता माणकमल भंडारी ने बताया कि पुरुषों और महिलाओं ने धर्मशाला परिसर में संवत्सरी प्रतिक्रमण किया। वहीं महिलाओं और बालिकाओं ने भी सामूहिक रूप से प्रतिक्रमण में हिस्सा लिया।
प्रतिक्रमण के बाद समाजजनों ने घर-घर जाकर एक-दूसरे से क्षमा याचना की। पर्युषण पर्व के दौरान तपस्या करने वाले आराधकों ने विधिपूर्वक पारणा भी किया।

क्यों खास है संवत्सरी का दिन?

जैन धर्मावलंबियों के लिए क्षमा याचना का विशेष महत्व है। संवत्सरी प्रतिक्रमण करते समय सभी प्राणियों से क्षमा मांगी जाती है।
क्षमा का अर्थ है – भूल के लिए माफी मांगना और दूसरों की गलती को माफ करना। यह दोनों ही साहस का कार्य माने जाते हैं।
जैन धर्म ग्रंथों के अनुसार भूल होने पर तुरंत क्षमा मांगना चाहिए, लेकिन यदि उस समय संभव न हो तो पखवाड़िक, चातुर्मासिक या संवत्सरी पर्व पर वर्ष में एक बार जरूर क्षमा मांग लेनी चाहिए।
विशेषज्ञों के अनुसार क्षमा याचना से मन हल्का हो जाता है और आत्मा शुद्ध होती है।

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