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स्वतंत्रता दिवस सम्मान सूची में देरी: क्या राजनीतिक दबाव पर झुका प्रशासन?

By Shravan Kumar Oad

Published on:

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जालोर – स्वतंत्रता दिवस 2025 पर जिला स्तरीय सम्मानित होने वालों की सूची तय समय पर जारी न होने से प्रशासनिक पारदर्शिता पर सवाल उठ गए हैं। इस देरी ने न केवल जनता में नाराज़गी बढ़ाई है, बल्कि मेरिट बनाम सिफ़ारिश की बहस को भी हवा दे दी है।

देरी से बढ़े संदेह

सूत्रों के अनुसार, सूची में देरी के पीछे राजनीतिक हस्तक्षेप, सिफ़ारिशी दबाव, या प्रशासनिक सुस्ती जैसे कारण हो सकते हैं। चर्चा यह भी है कि कुछ नेताओं की सिफ़ारिशों के चलते योग्य उम्मीदवार पीछे और सिफ़ारिशी नाम आगे हो सकते हैं।

विशेषज्ञों की राय

प्रशासनिक मामलों के जानकारों का कहना है:

“जब प्रशासनिक अधिकारी राजनीतिक दबाव के आगे झुकते हैं, तो मेरिट पीछे छूट जाती है। इससे कार्यप्रणाली में पक्षपात बढ़ता है और कई योग्य लोग सम्मान से वंचित रह जाते हैं।”

स्थानीय नागरिकों का आरोप

स्थानीय लोगों का कहना है कि,

“अब मेरिट से ज्यादा जरूरी यह हो गया है कि किसको खुश रखना है।”

यह स्थिति न केवल लोकतांत्रिक मूल्यों के खिलाफ है, बल्कि प्रशासनिक साख पर भी धब्बा है।

भरोसे पर चोट

यदि इस प्रक्रिया में सुधार नहीं हुआ, तो हर साल सम्मान सूची विवादों में घिर सकती है। इस बार भी कुछ योग्य नाम केवल राजनीतिक सिफ़ारिश की कमी के कारण बाहर रह गए हैं, जिससे लोगों का भरोसा डगमगाने लगा है।

सोशल मीडिया पर चर्चा का बना केंद्र

स्वतंत्रता दिवस के मौके पर जिला स्तरीय सम्मानित होने वालों की सूची तय समय पर जारी नहीं होने से शुक्रवार को पूरे जिले में हलचल मच गई। यह मामला सुबह से लेकर देर शाम तक सोशल मीडिया और शहर के चौक-चौराहों पर चर्चा का केंद्र बना रहा। लोगों ने सवाल उठाए कि आखिर ऐसी क्या वजह थी, जो सूची समय पर जारी नहीं हो पाई।

सूत्रों के अनुसार, देरी के पीछे जनप्रतिनिधियों की सिफ़ारिशों और राजनीतिक दबाव की चर्चा सबसे अधिक रही। यदि यह सच है, तो यह संकेत है कि प्रशासन जनहित से अधिक राजनीतिक दबाव के आगे झुक रहा है। इससे न केवल पारदर्शिता पर चोट पहुंचती है, बल्कि प्रशासनिक कार्यप्रणाली की साख भी दांव पर लगती है।

स्थानीय नागरिकों और सामाजिक संगठनों ने कहा कि सम्मान सूची में मेरिट और समयबद्ध प्रक्रिया की बजाय “किसको खुश रखना है” जैसी मानसिकता को प्राथमिकता देना लोकतांत्रिक मूल्यों के खिलाफ है। उनका कहना है कि इस तरह की देरी योग्य लोगों के सम्मान में अड़चन डाल सकती है और यह संदेश देती है कि प्रशासन निष्पक्षता से समझौता कर रहा है।

दिनभर इस मुद्दे को लेकर चर्चाओं का दौर चलता रहा। कई लोगों ने इसे पारदर्शिता और सुशासन पर सवालिया निशान बताया और मांग की कि जिला प्रशासन इस देरी के कारणों को स्पष्ट करे, ताकि जनता का विश्वास बहाल हो सके।

जानकारों का कहना है कि यदि सूची जारी करने में देरी का कारण राजनीतिक दबाव या सिफ़ारिशें हैं, तो यह संकेत देता है कि प्रशासन जनहित के बजाय राजनीतिक प्रभाव के आगे झुक रहा है। यह न केवल लोकतांत्रिक मूल्यों के लिए चुनौती है, बल्कि प्रशासनिक कार्यप्रणाली की साख पर भी सवाल खड़े करता है।

स्थानीय नागरिकों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने इसे मेरिट और समयबद्ध प्रक्रिया की अनदेखी कर “किसको खुश रखना है” जैसी मानसिकता का परिणाम बताया। उनका कहना है कि ऐसे हालात में योग्य व्यक्तियों के सम्मान की बजाय सिफ़ारिश वालों को प्राथमिकता मिलने का डर बना रहता है, जो लोकतांत्रिक और प्रशासनिक दृष्टि से सही संदेश नहीं है।

दिनभर सोशल मीडिया से लेकर चौक-चौराहों तक इस मामले पर चर्चाओं का दौर चलता रहा और लोग प्रशासन से पारदर्शिता बनाए रखने की मांग करते नज़र आए।

जनता की मांग: पारदर्शी जवाब

जालोर में इस विवाद पर गहरा असंतोष है। लोग प्रशासन से पारदर्शी स्पष्टीकरण की मांग कर रहे हैं। अब सबकी निगाहें इस बात पर हैं कि प्रशासन कब और क्या जवाब देता है—क्योंकि हर बीतते दिन के साथ सवाल और भी तेज़ होते जा रहे हैं।

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