वीर दुर्गादास राठौड़ कौन है जाने पीछे का इतिहास
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वीर दुर्गादास राठौड़ कौन है जाने पीछे का इतिहास
दुर्गादास राठौड़ (Durgadas Rathore) को आज की नई पीढ़ी मात्र इतना ही जानती है कि वे वीर थे, स्वामिभक्त थे, औरंगजेब का बड़ा से बड़ा लालच भी उन्हें अपने पथ से नहीं डिगा सका| ज्यादातर इतिहासकार भी दुर्गादास पर लिखते समय इन्हीं बिन्दुओं के आगे पीछे घूमते रहे, लेकिन दुर्गादास ने उस काल में राजनैतिक व कूटनीतिक तौर जो महान कार्य किया उस पर चर्चा आपको बहुत ही कम देखने को मिलेगी| उस काल जब भारत छोटे छोटे राज्यों में बंटा था| औरंगजेब जैसा धर्मांध शासक दिल्ली की गद्दी पर बैठा था| इस्लाम को तलवार व कुटनीति के जरीय फैलाने का इरादा रखता था| सभी शासक येनकेन प्रकारेण अपना अपना राज्य बचाने को संघर्षरत थे|
उसी वक्त जोधपुर के शिशु महाराज
(Maharaja Ajeet Singh, Jodhpur)को औरंगजेब के चुंगल से निकाला| उनका यथोचित लालन पालन करने की व्यवस्था की|
मारवाड़ (Jodhpur State) मैं चर्चा करना चाहता हूँ दुर्गादास की कुटनीति, राजनैतिक समझ पर जिसे कुछ थोड़े से इतिहासकारों को छोड़कर बाकियों द्वारा आजतक विचार ही नहीं किया गया|
दुर्गादास राठौड़ का बचपन अभावों में, कृषि कार्य करते बीता| ऐसी हालत में उन्हें शिक्षा मिलने का तो प्रश्न ही नहीं था| दरअसल दुर्गादास की माँ एक वीर नारी थी| उनकी वीरता के चर्चे सुनकर ही जोधपुर के आसकरण ने उनसे शादी की| लेकिन दुर्गादास की वीर माता अपने पति से सामंजस्य नहीं बिठा सकी| इस कारण आसकरण ने दुर्गादास व उनकी माता को गुजर बसर के लिए कुछ भूमि देकर अपने से दूर कर लिया| जहाँ माता-पुत्र अपना जीवन चला रहे थे| एक दिन दुर्गादास के खेतों में जोधपुर सेना के ऊंटों द्वारा फसल उजाड़ने को लेकर चरवाहों से मतभेद हो गया और दुर्गादास ने राज्य के चरवाहे की गर्दन काट दी| फलस्वरूप जोधपुर सैनिकों द्वारा दुर्गादास को महाराजा जसवंतसिंह के सामने पेश किया गया| दरबार में बैठे उसके पिता ने तो उस वक्त उसे अपना पुत्र मानने से भी इनकार कर दिया था| लेकिन महाराजा जसवंत सिंह ने बालक दुर्गादास की नीडरता, निर्भीकता देख उनहे क्षमा ही नहीं किया वरन अपने सुरक्षा दस्ते में भी शामिल कर लिया| दुर्गादास के लिए यही टर्निंग पॉइंट साबित हुआ| उनहे महाराज के पास रहने से राजनीति, कूटनीति के साथ ही साहित्य का भी व्यवहारिक ज्ञान मिला | दुर्गादास राठौड़ के पास ऐसा कोई पद नहीं था न ही वो मारवाड़ राज्य के बड़े सामंत थे फिर भी उस वक्त मारवाड़ में उनकी भूमिका और अहमियत सबसे बढ़कर थी|
जब सब राज्य अपने अपने मामलों में उलझे थे, दुर्गादास जी ने औरंगजेब के खिलाफ राजस्थान के जयपुर, जोधपुर, उदयपुर के राजपूतों को एक करने का कार्य किया| यही नहीं दुर्गादास जी ने राजपूतों व मराठों को भी एक साथ लाने का भरसक प्रयास किया और इसमें वे काफी हद तक सफल रहे| मेरी नजर में राणा सांगा के बाद दुर्गादास जी ही एकमात्र एसे व्यक्ति थे जिनहोने मुगलों के खिलाफ संघर्ष ही नहीं किया, बल्कि देश के अन्य राजाओं को भी एक मंच पर लाने की कोशिश की| और दुर्गादास जैसे साधारण राजपूत की बात मानकर उदयपुर, जयपुर, जोधपुर के राजपूत और मराठा संभाजी औरंगजेब के खिलाफ लामबंद हुये, इस बात से दुर्गादास की राजनीतिक समझ और उनकी अहमियत समझी का सकती है|
औरंगजेब के एक बेटे अकबर को औरंगजेब के खिलाफ भड़काकर उससे विद्रोह कराना और शहजादे अकबर के विद्रोह को मराठा सहयोग के लिए संभाजी के पास तक ले जाना, दुर्गादास की कुटनीति व देश में उसके राजनैतिक संबंधों के दायरे का परिचय कराता है| इस तरह की कूटनीति मुगलों ने खूब चली लेकिन हिन्दू शासकों द्वारा इस तरह की चाल का प्रयोग कहीं नहीं पढ़ा| लेकिन दुर्गादास ने यह चाल चलकर साथ ही अकबर की पुत्री व पुत्र को अपने कब्जे में रखकर औरंगजेब को हमेशा संतापित रखा| महाराष्ट्र से शहजादा अकबर को औरंगजेब के खिलाफ यथोचित सहायता नहीं मिलने पर दुर्गादास ने अकबर को ईरान के बादशाह से सहायता लेने जल मार्ग से ईरान भेजा| जो दर्शाता है कि दुर्गादास का कार्य सिर्फ मारवाड़ तक ही सीमित नहीं था|
एक बार संभाजी की हत्या कर उनके सौतेले भाई को आरूढ़ करने की चाल चली गई| उस चाल में संभाजी के राज्य में रह रहे शहजादे अकबर को भी शामिल होने का प्रस्ताव मिला| अकबर को प्रस्ताव ठीक भी लगा क्योंकि संभाजी उसे उसके मनमाफिक सहायता नहीं कर रहे थे| लेकिन अचानक अकबर ने इस मामले में दुर्गादास से सलाह लेना मुनासिब समझा| तब दुर्गादास ने उसे सलाह दी कि इस षड्यंत्र से दूर रहे, बल्कि इस षड्यंत्र की पोल संभाजी के आगे भी खोल दें, हो सकता है संभाजी ने ही तुम्हारी निष्ठा जांचने के लिए पत्र भिजवाया हो| और अकबर ने वैसा ही किया| संभाजी की हत्या का षड्यंत्र विफल हुआ।
इस उदाहरण से साफ़ है कि दुर्गादास षड्यंत्रों से निपटने के लिये कितना सक्षम थे| उन्होंने एक ही ध्येय रखा कभी निष्ठा मत बदलो| जो व्यक्ति बार बार निष्ठा बदलता है वही लालच में आकर षड्यंत्रों में फंस अपना नुकसान खुद करता है| राजपूती शौर्य परम्परा और भारतीय संस्कृति में निहित मूलभूत मानदंडों के प्रति दुर्गादास पूरी तरह सजग थे। यही कारण था कि उनके निष्ठावान तथा वीर योद्धाओं के दल में सभी जातियों और मतों के लोग शामिल थे| उनकी धार्मिक सहिष्णुता तथा गैर-हिन्दुओं के धार्मिक विश्वासों और आचरणों के प्रति उनके वास्तविक आदर-भाव का परिचय शहजादे अकबर की बेटी को इस्लामी शिक्षा दिलाने की व्यवस्था करना था| जिसकी जानकारी होने पर खुद औरंगजेब भी चकित हो गया था और उसके बाद औरंग ने दुर्गादास के प्रति असीम आदरभाव प्रकट किये थे|
दुर्गादासजी के जीवन का अध्ययन करने के बाद कर्नल टॉड ने लिखा – राजपूती गौरव में जो निहित तत्व है, दुर्गादास उनका एक शानदार उदाहरण है|शौर्य, स्वामिभक्ति, सत्य निष्ठा के साथ साथ तमाम कठिनाइयों में उचित विवेक का पालन, किसी भी प्रलोभन के आगे ना डिगने वाले गुण देख कहा जा सकता है कि वह अनमोल थे|
इतिहासकार यदुनाथ सरकार लिखते है – “उनके पच्चीस साल के अथक परिश्रम तथा उसकी बुद्धिमत्तापूर्ण युक्तियों के बिना अजीतसिंह अपने पिता का सिंहासन प्राप्त नहीं कर पाता| जब चारों और से और विपत्तियों से पहाड़ टूट रहे थे, सब तरफ दुश्मनों के दल थे, जब उनके साथियों का धीरज डगमगा जाता था और उनमें जब अविश्वास की भावना घर कर बैठती, तब भी उनहोने अपने स्वामी के पक्ष को सबल तथा विजयी बनाये रखा| मुगलों की समृद्धि ने उनहे कभी नहीं ललचाया, उनकी शक्ति देखकर भी वह कभी हतोत्साहित नहीं हुये| अटूट धैर्य और अद्वितीय उत्साह के साथ ही उनमें अनोखी कूटनीतिक कुशलता और अपूर्व संगठन शक्ति पाई जाती थी|”
मारवाड़ के महानायक देशभक्त वीर दुर्गादास राठौड़ का जन्म विक्रम संवत 1695 श्रावण शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी 13अगस्त 1638 को हुआ था
श्रावण शुक्ला चतुर्दशी 2/8/2020 को तिथि अनुसार वेब जयंती तारीख अनुसार 13अगस्त है
“यह दुर्गादास राठौड़ की प्रतिभा थी, जिसके फलस्वरूप औरंगजेब को राजपूतों के संगठित शक्ती के विरोध का सामना करना पड़ा.
JALORE NEWS
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