JALORE NEWS तीर्थ स्पर्शना जीवन को निर्मल करती- आचार्य
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JALORE NEWS तीर्थ स्पर्शना जीवन को निर्मल करती- आचार्य
जालौर ( 5 सितम्बर 2023 ) JALORE NEWS श्री नंदीश्वर द्वीप जैन तीर्थ में चल रहे आध्यात्मिक चातुर्मास के तहत मंगलवार को धर्म सभा को संबोधित करते हुए आचार्य श्री हार्दिक रत्न सुरीश्वर जी ने कहा कि मनुष्य का मूल स्वभाव खुश रहना है। हमें हर हाल में प्रसन्न रहना चाहिए।
आध्यात्मिक चातुर्मास के मीडिया संयोजक हीराचंद भंडारी के मुताबिक आचार्य श्री ने कहा कि हमें यह मनुष्य का दुर्लभ जीवन मिला है। इसलिए इस जीवन को खुशी और प्रसन्नता से जीना होगा। हमें जीवन में खुश और प्रसन्न रहना है। हर हाल में मस्त रहना है। जीवन में सुख और दुख का आगमन एक सामान्य स्थिति है। दुख से घबराना नहीं है। जब हम इस संसार से अपेक्षाएं रखना छोड़ देते हैं। जब हमारी इच्छाएं सीमित होती है। तब हमारा मन शांत और प्रफुल्लित हो जाता है। जब हम कहीं घूमने जाते हैं तो हम सारी परेशानियों से मुक्त होते हैं। हमारे पास काम का बोझ और जिम्मेदारी नहीं होती। उस
समय हम स्वयं को खुश महसूस करते हैं। ठीक इसी तरह से यदि हम अपने दैनिक जीवन में भी अपने मन को फालतू बातों और परेशानियों से मुक्त रखें,तो हमारा जीवन स्वर्ग बन सकता है। व्यर्थ की चिंताएं, अपेक्षाएं, झूठी आशाएं हमारे भीतर अशांति पैदा करती है। जीवन में त्याग और समर्पण की भावना हमें आनंद देती है। सब कुछ छीन लेने में कोई आनंद नहीं है। आसक्ति हमें दुख ही देती है। यदि हमें सुख की चाह है तो त्याग की भावना हृदय में होनी चाहिए। हर वर्ष सामुहिक बढे बुजूर्ग लोगों का अलग अलग तीर्थो कि संघ को यात्रा करानी चाहिए ।
आचार्य श्री ने कहा कि स्वयं परमात्मा अपनी वाणी में फरमाते हैं कि हमें वर्ष में एक बार तीर्थाटन अवश्य करना चाहिए। समाज में समय-समय प्रसंग यात्राओं का आयोजन होना चाहिए। इस हेतु समाज के प्रमुख लोगों को संघ आयोजन में आगे आकर पुण्य का अर्जन करना चाहिए। संघ यात्रा आयोजन करने से अनन्त पुण्य की प्राप्ति होती है । समाज के वरिष्ठ नागरिकों को हर साल दस से पन्द्रह दिन तीर्थ यात्रा अवश्य करनी चाहिए व गाँव के बढे़ बुजुर्ग लोगों को भी करानी चाहिए। तीर्थ की पावन स्पर्शना हमारे जीवन को निर्मल और चित्त को पावन बनाती है। तीर्थ यात्राएं हमारे जीवन में एक नया उल्लास और उमंग का संचार करती है। जीवन में सकारात्मक बदलाव लाती है।
धर्म सभा को संबोधित करते हुए मुनिराज श्री ज्ञान कलश विजय जी ने कहा कि हमें अपनी लक्ष्मी पर घमंड नहीं करना चाहिए। जीवन में पैसा ही सब कुछ नहीं होता। पैसे से पुण्य नहीं खरीदा जा सकता। पैसे से खुशियां नहीं खरीदी जा सकती। इसलिए सदैव देव, गुरु और धर्म पर अटूट आस्था और श्रद्धा रखनी चाहिये।
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