modern Temple of aashapura mata ka history मन की आशा पूरी करती है माता इसलिए मोदरा की माता ‘आशापुरी’
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modern Temple of aashapura mata ka history मन की आशा पूरी करती है माता इसलिए मोदरा की माता ‘आशापुरी
दरान ( 17 अप्रेल 2024 ) जालोर से करीब 40 किमी दूरी पर स्थित मोदरा स्थित आशापुरी माता मंदिर जन जन की आस्था का केंद्र है। सडक़ और रेल मार्ग यहां तक पहुंचने के बेहतर विकल्प है। यहां प्रतिवर्ष बढ़ी संख्या में यात्री देश के विभिन्न क्षेत्रों से आशापुरी माताजी के दर्शन करने आते हैं। श्री आशापुरा माताजी के दर्शन करने आने वाले यात्री माताजी से अपनी आशाओं की पूर्ति के साथ जीवन में सुख एवं समृद्धि की मनोकामना करते हुए प्रसादी चढ़ाकर अपने आपको भाग्यशाली समझते हैं। मोदरा की आशापुरी माताजी की कई नामों से पहचान है। मोदरा में इनका मंदिर होने के कारण वर्तमान में इसे मोदरा माताजी के नाम से भी जानते हैं। प्राचीन समय में महोदरा वर्तमान मोदरा के नाम से पहचाना जाता है।
मेले और नवरात्रि में विशेष प्रबंध
मोदरा आशापुरी माताजी के मंदिर आदि की सम्पूर्ण देखभाल करने के लिए श्री आशापुरी माताजी ट्रस्ट कमेटी मोदरा का गठन किया हुआ है। इसके अन्तर्गत श्री आशापुरी माताजी तीर्थ पेढ़ी (कार्यालय) व्यवस्थित रूप से कार्यरत है। यह पेढ़ी कार्यालय मंदिर के नीचे आधुनिक साधन सुविधाओं से परिपूर्ण है।
माताजी का गांव मतलब मोदरा
आशापुरी माताजी को मोदरा माता, महोदरी माता के नाम से पहचान है वहां माताजी के देवी चमत्कारों से अब मोदरा को माताजी का गांव से ही लोग आसानी से पहचान जाते हैं। माताजी का गांव का उच्चारण करते ही लोग समझ जाते हैं कि यह मोदरा ही है जहां ऊंचे शिखर वाला श्री आशापुरी माताजी का भव्य मंदिर बना हुआ है
जालोर के बारे में
राजस्थान के दक्षिण पश्चिम में स्थित जालोर जिला अपने इतिहास और गौरव के कारण इतिहास में विशिष्ठ स्थान रखता है। महर्षि जाबाली की तपोस्थली इस इलाके का नाम पहले जाबालीपुर था। जाल वृक्षों की अधिकता के कारण यह क्षेत्र अब जालोर कहलाता है। इतिहासकारों के अनुसार महाराज मनु के नौ पुत्रों में एक ने वैदिक युग में अपना राज्य यहां स्थापित किया था। इसके अलावा भी इतिहास की बहुत सी विशिष्ठ और चैतनरू विशेषताओं को अपने में समेटे यह जिला विलक्षण है। ऐसी ही एक विशेषता है यहां स्थित मोदरा माताजी का मंदिर। जिला मुख्यालय से 35 किलोमीटर दूर यह मंदिर चौहान वंश और भंडारी समाज की कुलदेवी मां आशापुरी का है। मां की मोहक प्रतिमा अपने पुत्रों को सदा आशीर्वाद देती है और उनकी आशाएं पूर्ण करती है। इसलिए इनका नाम आशापुरी है। देश-विदेश से प्रतिवर्ष हजारों भक्त यहां आतें है और मां के दर्शन कर कतार्थ होते है
माताजी का गांव मतलब मोदरा
आशापुरी माताजी को मोदरा माता, महोदरी माता के नाम से पहचान है वहां माताजी के देवी चमत्कारों से अब मोदरा को माताजी का गांव से ही लोग आसानी से पहचान जाते हैं। माताजी का गांव का उच्चारण करते ही लोग समझ जाते हैं कि यह मोदरा ही है जहां ऊंचे शिखर वाला श्री आशापुरी माताजी का भव्य मंदिर बना हुआ है।
जमीन तल से करीब 30-35 फीट की ऊंचाई पर स्थित मोदरा का आशापुरी माता मंदिर श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र है। मोदरा माताजी या आशापुरी माता के नाम से इस शक्तिपीठ को जाना जाता है।
प्रचलित कथा के अनुसार सौराष्ट्र के जूनागढ़ के राजा खंगार सुडासमा की पटरानी महारानी जेठवी मानती थी।
नवमास का समय व्यतीत होने के बाद भी उसे प्रसव नहीं हुआ। नौ मास तो क्या नौ वर्ष बीत गए। इसे लेकर राजा-रानी एवं प्रजा दुःखी थे। कई धार्मिक अनुष्ठान हुए। सलाह अनुसार रानी अपने लवाजमे के साथ गंगाजी की यात्रा के लिए रवाना हुए। रानी ने महोदरा वर्तमान में मोदरा में माताजी के दर्शन करने के लिए पड़ाव डाला। जूनागढ़ पटरानी ने दैनिक कार्यों से निवृत्त होकर श्रद्धामयी होकर मोदरा माता के दर्शन किए। मां के समक्ष अपनी व्यथा सुनाई। अपने पड़ाव में रात्रि विश्राम के दौरान रानी को मां ने साक्षात दर्शन दिए और कहा कि तुम्हारे राजमहल में अमुक स्थान पर पूतला गढ़ा हुआ है। उसको निकालने पर तुम्हें पुत्र रत्न की प्राप्त होगी। यह संदेश जूनागढ़ पहुंचा दिया गया। माता ने रानी को इस बात का विश्वास दिलाने के लिए कहा कि इस समय तुमने मेरी ओरण सीमा में रात्रि में विश्राम किया है। उस स्थान पर जहां तुमने घोड़े बांधने के लिए जितनी लकडिय़ों के खूंटू रोपे है, वे सभी दिल उगने तक हरे भरे कदम के वृक्ष बन जायेंगे। यदि ऐसा हो तो तुम मेरा दिया हुआ वचन सच्चा समझना। इतना कहकर महोदरी देवी अदृश्य हो गई।
बात की सत्यता परखने के लिए रानी ने अपनी सेविकाओं के साथ तालाब के किनारे गाड़े सूखी लकड़ी की खुटियों को देखा तो वह आश्चर्यचकित रह गई। वहां विशाल हरे-भरे कदम के वृक्ष दिखाई दिए। देवी चमत्कार को देखने के लिए जन समुदाय मंदिर के पिछवाड़े वाले तालाब पर उमड़ पड़ा। जूनागढ़ में उक्त समाचार भिजवाया गया। राजा प्रसन्न हुए। पूतले वाला बात पर तय जगह को खुदवाया गया और पूतला निकालवाया तो राजा को पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। राजा अपने पुत्र को देखने के लिए तत्काल मोदरा रवाना हो गए। उन्होंने यहां माता के दर्शन कर मंदिर का जीर्णोद्वार करवाया। राजा ने अपने पुत्र का नाम नवगण रोनेधण रखा जो जूनागढ़ का महाप्रतापी राजा हुआ। राजा की आस पुरी होने के बाद श्री महोदरी माता के उसी दिन से आशापुरी माताजी के नाम से जाने लगा।
आज भी कई श्रद्धालु पुत्र की आशा लिए यहां आते है। कदम नाडी में खडे कदम पेड़ों की पूजा भी की जाती है। यहां कदम पेड़ों की संख्या 23 है और दो अलग से खड़े है। ये सभी वृक्ष हमेशा हरे ही रहते है। कदम के वृक्ष रेतीले भू भाग एवं उसके नजदीक कहीं भी देखने को नहीं मिलते, यह तो चमत्कार ही है। मार्कण्डेय पुराण के दुर्गा सप्तशती नामक भाग में भगवती दुर्गा का महोदरी अर्थात बड़े पेट वाली नाम वर्णित है। यहां स्थापित मूर्ति करीब एक हजार वर्ष पुरानी है। विक्रम संवत 1532 के शिलालेख के अनुसर इस मंदिर का प्राचीन नाम आशापुरी मंदिर था। जालोर के सोनगरा चौहानों की शाखा नाड़ोल से उठकर जालोर आई थी। आशापुरी देवी ने राव लाखण को स्वप्र में दर्शन देकर नाडोल का राज दिया था। इस बात की चर्चा मूथा नैणसी ने अपने ख्यात में की है। सरकारी रिकॉर्ड के अनुसार श्री महोदरी माताजी के मंदिर के लिए 1275 बीघा जमीन का ओरण भी है।
मंदिर प्रांगण में लगे शिलालेख के अनुसार विक्रम संवत 1991 में श्री आशापुरी मंदिर परिसर में वर्षों से चली पशु बलि प्रथा का अंत आम ग्रामवासियों एवं पूर्व जागीरदार श्री धोकलसिंह व भीमसिंह द्वारा श्री तीर्थेन्द्र सूरीश्वरजी म.सा. की प्रेरणा से विक्रम संवत 1991 में आपस में आम सहमति से पशुवध, मदिरा चढ़ाने की प्रथा को पूर्ण रुप से बंद कर दिया गया। यहां प्रतिवर्ष होली के तीसरे दिन विशाल वार्षिक मेले का आयोजन भी किया जाता है। इस मेले में लाखों की संख्या में देश्भर के श्रद्धालु एकत्रित होते है। यात्रियों के भव्य धर्मशाला भी निर्मित है।
JALORE NEWS
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