रसिया बालम की अनोखी प्रेम कहानी आज़ से करीब 5 हजार साल पुरानी अधूरी अमर-प्रेम कहानी - JALORE NEWS
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रसिया बालम की अनोखी प्रेम कहानी आज़ से करीब 5 हजार साल पुरानी अधूरी अमर-प्रेम कहानी - JALORE NEWS
सिरोही ( 14 फरवरी 2024 ) JALORE NEWS वैलेंटाइन डे के मौके पर दुनियाभर की प्रेम कहानियों पढ़ने और सुनने को मिल रही हैं। राजस्थान के सिरोही के माउंट आबू में भी एक अमर प्रेम कहानी है, जो अधूरी रह गई थी। यह हकीकत है या सिर्फ फसाना। इसका जवाब किसी के पास नहीं, मगर दावा किया जा रहा है कि माउंट आबू में रसिया बालम और कुंवारी कन्या की अधूरी प्रेम पांच हजार साल से ज्यादा पुरानी है। इनकी प्रेम कहानी का सबूत माउंट आबू की वादियों में स्थित नक्की झील है।
माउंट आबू में आज भी करीब 5 हजार साल से अधिक पुरानी रसिया बालम और कुंवारी कन्या की अधूरी प्रेम कहानी यहां की वादियों में प्रचलित है। इनकी अधूरी प्रेम कहानी की एक मात्र निशानी नक्की झील है,
जिसके पीछे यह मान्यता है कि राजकुमारी को पाने के लिए रसिया बालम ने एक ही रात में इसे अपने नाखूनों से खोद दिया था। इतना ही नहीं यहां इनके मंदिर भी है, जहां यह मान्यता है कि प्रेमी जोड़ों की मनोकामनाएं पूरी होती हैं। साथ ही सुहागिन महिलाओं को भी अमर सुहाग का आशीर्वाद मिलता है।
रसिया बालम और कुंवारी कन्या की अधूरी प्रेम कहानी
इनकी प्रेम कहानी को लेकर यह मान्यता है कि रसिया बालम आबू पर्वत में मजदूरी करने आया था। कई उसे शिव का रूप भी मानते हैं और राजकुमारी को देवी का रूप। इसलिए इनकी यहां मंदिर भी है। राजकुमारी को उससे प्यार हो गया। राजा ने दोनों की शादी के लिए एक शर्त रखी कि यदि एक रात में बिना किसी औजारों के यदि कोई झील खोद देगा तो उसकी बेटी की शादी वह उससे करा देगा। इस पर रसिया बालम ने एक ही रात में नक्की झील को खोद डाला और राजा के पास जाने लगा। लेकिन, राजकुमारी की मां नहीं चाहती थी कि उसकी शादी उससे हो।
ऐसी मान्यता है कि राजकुमारी की मां ने रात में ही मुर्गे की आवाज निकाल दी और रसिया बालम को लगा कि वह शर्त हार गया है। जब वह अपने प्राण त्यागने लगा तो उसे राजकुमारी की मां के षड्यंत्र के बारे में पता चला और उन्होंने श्राप दे दिया। इसके बाद पहले राजकुमारी की मां और बाद में राजकुमारी दोनों पत्थर के बन गए।
नक्की झील प्रेम की निशानी
देलवाड़ा के कन्या कुंवारी रोड पर मंदिर और प्यार-समर्पण की निशानी नक्की झील, प्रेमी-जोड़ा व नव दंपती उनका आशीर्वाद लेने आते हैं। आज भी मंदिर में पूजा होती है और इसकी देखभाल मदन जी ठाकुर पुजारी द्वारा की जा रही है।
राजकुमारी की मां को प्रेमी जोड़े मारते हैं आज भी पत्थर
ऐसी मान्यता है कि राजकुमारी की मां की वजह से उनकी ये प्रेम कहानी अधूरी रही, इसलिए यहां आने वाले प्रेमी जोड़े राजकुमारी की मां को पत्थर मारते हैं और वहां पत्थरों का ढेर भी लगा है। ऐसा माना जाता है कि इन पत्थरों के ढेर के नीचे राजकुमारी के मां की प्रतिमा है।
4 युगों के बाद हुआ पत्थरों का मिलन
एक किंवदती यह भी है कि मंदिर में दो पेड़ है, जिसे रसिया बालम का तोरण कहा जाता है। इसके बीच हवन कुंड है। यह भी एक किंवदती है कि किसी संत महात्मा ने यह बताया था कि 4 युग बीतने के बाद इन दोनों का फिर से मिलन होगा।
महाराणा कुंभा ने करवाया था जीर्णोद्धार
सिरोही देवस्थान के अध्यक्ष व पूर्व नरेश रघुवीर सिंह देवड़ा बताते हैं कि यह मंदिर 5 हजार साल से भी अधिक पुराना है। 1453 से 1468 तक महाराणा कुंभा यहां रुके थे। इस दौरान उन्होंने इस मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था।
आज भी जिंदा है इनकी अमर गाथा
रसिया बालम की प्रेमकथा आज भी माउंट आबू पूरे मारवाड़-गोडवाड़ जिले में लोकगीतों में जिंदा है। रसिया बालम पर चरसियो आयो गढ़ आबू रे माय, देलवाड़ा आईने झाड़ो गाढ़ियो रे, वठे करियो कारीगरी रो काम, वठे बनाई मूरती शोभनी रे...स्थानीय भाषा में ये लोकगीत प्रसिद्ध है। इस लोकगीत में रसिया बालम के माउंट आबू पहुंचने और यहां देलवाड़ा के पास मूर्तिकला का काम करके प्रसिद्धि पाने से लेकर कुंवारी कन्या से शादी करने के लिए नक्की झील खोदने तक की पूरी गाथा है।
1200 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है यह झील
नक्की झील समुद्र तल से 1200 मीटर की ऊंचाई पर स्थित भारत की एकमात्र झील है। नक्की झील माउंट आबू का प्रमुख आकर्षण है। यह झील ढाई किलोमीटर के दायरे में फैली हुई है। झील के पास एक पार्क भी है, जहां पर स्थानीय निवासियों और सैलानियों की दिन भर भीड़ जमा रहती है। नक्की झील राजस्थान की सबसे ऊंची झील है। चारों तरफ पहाड़ों से घिरी यह झील राजस्थान के प्रमुख पर्यटन स्थलों में से एक है। अरावली पर्वत श्रृंखला के बीच में स्थापित माउंट आबू अपने नैसर्गिक ख़ूबसूरती के लिए जाना जाता है।
लोकगीतों में जिंदा है प्रेम कहानी
रसिया बालम की प्रेमकथा आज भी माउंट आबू पूरे मारवाड़-गोडवाड़ जिले में लोकगीतों में जिंदा है। रसिया बालम पर चरसियो आयो गढ़ आबू रे माय, देलवाड़ा आईने झाड़ो गाढ़ियो रे, वठे करियो कारीगरी रो काम, वठे बनाई मूरती शोभनी रे...ज् स्थानीय भाषा में ये लोकगीत प्रसिद्ध है। इस लोकगीत में रसिया बालम के माउंट आबू पहुंचने और यहां देलवाड़ा के पास मूर्तिकला का काम करके प्रसिद्धि पाने से लेकर कुंवारी कन्या से शादी करने के लिए नक्की झील खोदने तक की पूरी गाथा है।
राजकुमारी की मां पर बरसाते हैं पत्थर
देलवाड़ा के कन्या कुंवारी रोड पर मंदिर और प्यार-समर्पण की निशानी नक्की झील, प्रेमी-जोड़ा व नव दंपती उनका आशीर्वाद लेने आते हैं। आज भी मंदिर में पूजा होती है और देखभाल मदन जी ठाकुर पुजारी द्वारा की जा रही है। ऐसी मान्यता है कि राजकुमारी की मां की वजह से अधूरी रही प्रेम कहानी, इसलिए यहां आने वाले प्रेमी जोड़े राजकुमारी की मां को पत्थर मारते हैं और वहां पत्थरों का ढेर भी लगा है। ऐसा माना जाता है कि इन पत्थरों के ढेर के नीचे राजकुमारी के मां की प्रतिमा है।
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