Devshayani Ekadashi 2024: देवशयनी एकादशी कल, जानिए महत्व और पूजाविधि
जयपुर ( 16 जुलाई 2024 ) Devshayani Ekadashi 2024: देवशयनी एकादशी हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण व्रत है, जिसे आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाया जाता है। इसे हरिशयनी एकादशी, पद्मा एकादशी या तुरी एकादशी भी कहते हैं। इस बार देवशयनी एकादशी का व्रत 17 जुलाई, बुधवार को रखा जाएगा और इसी दिन से चातुर्मास भी शुरू हो जाएगा। आषाढ़ शुक्ल की एकादशी तिथि का आरंभ 16 जुलाई रात 08:33 से शुरू होगा और इसका समापन 17 जुलाई 2024 रात 09:02 पर होगा। उदयातिथि के अनुसार देवशयनी एकादशी का व्रत 17 जुलाई को रखा जाएगा। इस दिन भगवान विष्णु के शयन में जाने की कथा प्रचलित है, जिसके अनुसार चार महीनों तक भगवान विष्णु क्षीरसागर में शयन करते हैं और कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को जागते हैं। यह चार महीने 'चातुर्मास' कहलाते हैं, जिनमें विवाह, गृहप्रवेश आदि शुभ कार्य वर्जित माने जाते हैं।
भगवान शिव संभालते हैं कार्यभार
सृष्टि के संचालक और पालनहार भगवान श्रीहरि विष्णु हैं। ऐसे में देवशयनी एकादशी के बाद भगवान पूरे चार महीने के लिए योग निद्रा में चले जाते हैं। इस अवधि को भगवान का भी शयनकाल कहा जाता है। मान्यता है कि भगवान विष्णु के शयनकाल में जाने के बाद सृष्टि के संचालन का कार्यभार भगवान शिव संभालते हैं, इसलिए चातुर्मास के चार महीनों में विशेषरूप से शिवजी की उपासना फलदाई है।
देवशयनी एकादशी का महत्व
देवशयनी एकादशी का व्रत रखने से व्यक्ति को धन, स्वास्थ्य और समृद्धि की प्राप्ति होती है। इस दिन व्रत और पूजा करने से समस्त पापों का नाश होता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस एकादशी के व्रत से विशेष रूप से शनि ग्रह के दुष्प्रभावों से मुक्ति मिलती है और जीवन में सुख, शांति और समृद्धि आती है। ऐसा माना जाता है कि इस व्रत के प्रभाव से भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है और सारे कष्ट दूर हो जाते हैं।
पूजा विधि
स्नान और संकल्प- व्रत करने वाले व्यक्ति को ब्रह्म मुहूर्त में स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करने चाहिए। इसके बाद, भगवान विष्णु की पूजा का संकल्प लें।
मंदिर की सजावट- घर के मंदिर को स्वच्छ करें और भगवान विष्णु की मूर्ति या तस्वीर को गंगाजल से स्नान कराएं। उन्हें पीले वस्त्र पहनाएं और सुंदर फूलों से सजाएं।
पूजा सामग्री- पूजा के लिए चंदन, तुलसी पत्र, अक्षत, धूप, दीप, नैवेद्य, पंचामृत, फल, और पीले फूलों का उपयोग करें।
पूजा विधान- भगवान विष्णु की मूर्ति के समक्ष दीप प्रज्वलित करें और धूप, दीप, चंदन, पुष्प आदि अर्पित करें। भगवान विष्णु को पंचामृत और फल का नैवेद्य अर्पित करें। विष्णु सहस्रनाम या विष्णु स्तोत्र का पाठ करें।
Devshayani Ekadashi 2024: देवशयनी एकादशी पर घर ले आएं ये 3 चीजें, चंद दिनों में आर्थिक तंगी हो जाएगी दूर
दक्षिणावर्ती शंख
अगर आप वास्तु दोष से निजात पाना चाहते हैं, तो देवशयनी एकादशी (Things To Buy On Devshayani) पर दक्षिणावर्ती शंख घर लाएं। इसके बाद विधि विधान से दक्षिणावर्ती शंख की पूजा करें। साथ ही दक्षिणावर्ती शंख में जल या दूध में केसर मिलाकर भगवान विष्णु का अभिषेक करें। पूजा के दौरान शंख में गंगाजल भरकर रखें। पूजा समाप्त होने के बाद गंगाजल का छिड़काव पूरे घर में करें। इस उपाय को करने से वास्तु दोष दूर होता है। साथ ही धन संबंधी परेशानी भी दूर होती है।
एकाक्षी नारियल
एकाक्षी नारियल को भगवान विष्णु एवं मां लक्ष्मी का प्रतीक माना जाता है। अतः देवशयनी एकादशी पर एकाक्षी नारियल घर जरूर लाएं। अब विधि विधान से एकाक्षी नारियल की पूजा करें। पूजा समाप्त होने के बाद पीले रंग के वस्त्र में नारियल को बांधकर तिजोरी में रख दें। इस उपाय को करने से आय और सौभाग्य में वृद्धि होती है। साथ ही आर्थिक तंगी दूर होती है।
बांसुरी
अगर आप वास्तु दोष के चलते जीवन में विषम परिस्थिति से गुजर रहे हैं, तो देवशयनी एकादशी पर बांसुरी जरूर घर ले आएं। पूजा करते समय भगवान विष्णु को बांसुरी अर्पित करें। पूजा समाप्त होने के बाद भगवान श्रीकृष्ण को प्रणाम कर कुछ पल के लिए बांसुरी बजाएं। इस उपाय को करने से घर में सकारात्मक शक्ति का संचार होता है।
देवशयनी एकादशी 2024 तिथि
आषाढ़ शुक्ल एकादशी की तिथि आरंभ- 16 जुलाई रात 8 बजकर 33 मिनट से
आषाढ़ शुक्ल एकादशी की तिथि समाप्त- 17 जुलाई रात 9 बजकर 2 मिनट पर
उदया तिथि के आधार पर देवशयनी एकादशी 17 जुलाई 2024, बुधवार को है।
देवशयनी एकादशी 2024 पर शुभ योग (Devshayani Ekadashi 2024 Shubh Yog)
हिंदू पंचांग के अनुसार, इस बार देवशयनी एकादशी पर अनुराधा नक्षत्र के साथ सर्वार्थ सिद्धि योग, अमृत सिद्धि योग, शुभ योग और शुक्ल योग जैसे योगों का निर्माण हो रहा है। जहां शुभ योग सुबह 7 बजकर 4 मिनट तक रहेगा। इसके बाद शुक्ल योग आरंभ हो जाएगा। इसके साथ ही सुबह 5 बजकर 55 मिनट से सर्वार्थ सिद्धि और अमृत सिद्धि योग भी आरंभ हो जाएगा, जो पूरे दिन रहने वाला है।
देवशयनी एकादशी की पूजा विधि
इस दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर सभी कामों से निवृत्त होकर स्नान कर लें। इसके बाद साफ-सुथरे वस्त्र धारण कर लें। एक तांबे के लोटे में जल, सिंदूर, लाल फूल डालकर सूर्यदेव को अर्घ्य दें। सबसे पहले व्रत का संकल्प लें। इसके बाद विष्णु जी की पूजा आरंभ करें। सबसे पहले एक लकड़ी की चौकी में पीले रंग का वस्त्र बिछाकर श्री विष्णु की मूर्ति या तस्वीर रखें। सबसे पहले जल से आचमन करें। इसके बाद विष्णु जी को पीला चंदन, फूल, माला, अक्षत आदि लगाने के साथ भोग में तुलसी का दल के साथ रखें। इसके बाद जल अर्पित करें। फिर घी का दीपक और धूप जलाकर एकादशी व्रत कथा, विष्णु चालीसा, विष्णु मंत्र के बाद श्री विष्णु आरती कर लें। अंत में भूल चूक के लिए माफी मांग लें और दिनभर व्रत रखें। दूसरे दिन तय समय पर पूजा पाठ करने के बाद व्रत का पारण कर लें।
देवशयनी एकादशी संकल्प मंत्र
सत्यस्थ: सत्यसंकल्प: सत्यवित् सत्यदस्तथा।
धर्मो धर्मी च कर्मी च सर्वकर्मविवर्जित:।।
कर्मकर्ता च कर्मैव क्रिया कार्यं तथैव च।
श्रीपतिर्नृपति: श्रीमान् सर्वस्यपतिरूर्जित:।।
देवशयनी एकादशी विष्णु क्षमा मंत्र
भक्तस्तुतो भक्तपर: कीर्तिद: कीर्तिवर्धन:।
कीर्तिर्दीप्ति: क्षमाकान्तिर्भक्तश्चैव दया परा।।
भगवान जगदीश्वर की आरती
ॐ जय जगदीश हरे, स्वामी! जय जगदीश हरे।
भक्तजनों के संकट क्षण में दूर करे॥
जो ध्यावै फल पावै, दुख बिनसे मन का।
सुख-संपत्ति घर आवै, कष्ट मिटे तन का॥ ॐ जय…॥
मात-पिता तुम मेरे, शरण गहूं किसकी।
तुम बिनु और न दूजा, आस करूं जिसकी॥ ॐ जय…॥
तुम पूरन परमात्मा, तुम अंतरयामी॥
पारब्रह्म परेमश्वर, तुम सबके स्वामी॥ ॐ जय…॥
तुम करुणा के सागर तुम पालनकर्ता।
मैं मूरख खल कामी, कृपा करो भर्ता॥ ॐ जय…॥
तुम हो एक अगोचर, सबके प्राणपति।
किस विधि मिलूं दयामय! तुमको मैं कुमति॥ ॐ जय…॥
दीनबंधु दुखहर्ता, तुम ठाकुर मेरे।
अपने हाथ उठाओ, द्वार पड़ा तेरे॥ ॐ जय…॥
विषय विकार मिटाओ, पाप हरो देवा।
श्रद्धा-भक्ति बढ़ाओ, संतन की सेवा॥ ॐ जय…॥
तन-मन-धन और संपत्ति, सब कुछ है तेरा।
तेरा तुझको अर्पण क्या लागे मेरा॥ ॐ जय…॥
जगदीश्वरजी की आरती जो कोई नर गावे।
कहत शिवानंद स्वामी, मनवांछित फल पावे॥ ॐ जय…॥
JALORE NEWS
खबर और विज्ञापन के लिए सम्पर्क करें
एक टिप्पणी भेजें