डॉ॰ मुखर्जी सच्चे अर्थों में मानवता के उपासक और सिद्धान्तवादी थे-जोगेश्वर गर्ग - JALORE NEWS
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डॉ.श्यामा प्रसाद मुखर्जी जयंती की जयंती पर किये पुष्प अर्पित - Flowers were offered on the occasion of Dr. Shyama Prasad Mukherjee's birth anniversary
जालोर ( 6 जुलाई 2024 ) JALORE NEWS भाजपा प्रदेश नेतृत्व के निर्देशानुसार आज भाजपा नगर मंडल जालोर द्वारा जिला मुख्यालय पर गुरुकुल क्लाचेज में जनसंघ के संस्थापक स्व.डॉ.श्यामा प्रसाद मुखर्जी की जयंती के उपलक्ष पर पुष्पांजलि व संगोष्ठी कार्यक्रम का आयोजन किया गया।
कार्यक्रम संयोजक व नगर उपाध्यक्ष राजकुमार चौहान ने बताया कि जनसंघ के संस्थापक स्व.डॉ.श्यामा प्रसाद मुखर्जी की जयंती के उपलक्ष पर पुष्पांजलि व संगोष्ठी कार्यक्रम का आयोजन
मुख्य सचेतक विधानसभा राजस्थान जोगेश्वर गर्ग के मुख्य आतिथ्य में किया गया।अध्यक्षता भाजपा नगर अध्यक्ष एड़वोकेट सुरेश सोलंकी ने की।विशिष्ठ अथिति के नाते भाजयुमो जिलाध्यक्ष गजेन्द्रसिंह सिसोदिया, विधानसभा संयोजक दीपसिंह धनाणी, पूर्व नगर अध्यक्ष छगन दास रामावत,नगर महामंत्री व पार्षद दिनेश महावर उपस्थित थे।
अतिथियों द्वारा डॉक्टर श्यामा प्रसाद मुखर्जी की तस्वीर के समक्ष पुष्पांजलि अर्पित की गई।
कार्यक्रम का संचालन जिलाकार्यालय मंत्री डिम्पलसिंह ने किया।
कार्यक्रम में नगर उपाध्यक्ष मेथी देवी,पार्षद हीराराम देवासी,रणजीतसिंह राजपुरोहित,नारायणलाल भट्ट,ओम प्रकाश चौधरी,धीरज सुंदेशा,ललित सुंदेशा,राजू माली,सुरेश घांची, दलपत,कमलेश सहित कहि पदाधिकारी जनप्रतिनिधि कार्यकर्ता स्टॉप गण व छात्र छात्राएं उपस्थित थे।
कार्यक्रम में कैबिनेट मंत्री जोगेश्वर गर्ग ने कहा कि 6 जुलाई 1901 को कलकत्ता के अत्यन्त प्रतिष्ठित परिवार में डॉ॰ श्यामाप्रसाद मुखर्जी जी का जन्म हुआ। उनके पिता सर आशुतोष मुखर्जी बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे एवं शिक्षाविद् के रूप में विख्यात थे। डॉ॰ मुखर्जी ने 1917 में मैट्रिक किया तथा 1921 में बी०ए० की उपाधि प्राप्त की। 1923 में लॉ की उपाधि अर्जित करने के पश्चात् वे विदेश चले गये और 1926 में इंग्लैण्ड से बैरिस्टर बनकर स्वदेश लौटे। अपने पिता का अनुसरण करते हुए उन्होंने भी अल्पायु में ही विद्याध्ययन के क्षेत्र में उल्लेखनीय सफलताएँ अर्जित कर ली थीं। 33 वर्ष की अल्पायु में वे कलकत्ता विश्वविद्यालय के कुलपति बने। इस पद पर नियुक्ति पाने वाले वे सबसे कम आयु के कुलपति थे। एक विचारक तथा प्रखर शिक्षाविद् के रूप में उनकी उपलब्धि तथा ख्याति निरन्तर आगे बढ़ती गयी।डॉ॰ श्यामाप्रसाद मुखर्जी ने स्वेच्छा से अलख जगाने के उद्देश्य से राजनीति में प्रवेश किया। डॉ॰ मुखर्जी सच्चे अर्थों में मानवता के उपासक और सिद्धान्तवादी थे। उन्होने बहुत से गैर कांग्रेसी हिन्दुओं की मदद से कृषक प्रजा पार्टी से मिलकर प्रगतिशील गठबन्धन का निर्माण किया। इस सरकार में वे वित्तमन्त्री बने। इसी समय वे सावरकर के राष्ट्रवाद के प्रति आकर्षित हुए और हिन्दू महासभा में सम्मिलित हुए।मुस्लिम लीग की राजनीति से बंगाल का वातावरण दूषित हो रहा था। वहाँ साम्प्रदायिक विभाजन की नौबत आ रही थी। साम्प्रदायिक लोगों को ब्रिटिश सरकार प्रोत्साहित कर रही थी। ऐसी विषम परिस्थितियों में उन्होंने यह सुनिश्चित करने का बीड़ा उठाया कि बंगाल के हिन्दुओं की उपेक्षा न हो। अपनी विशिष्ट रणनीति से उन्होंने बंगाल के विभाजन के मुस्लिम लीग के प्रयासों को पूरी तरह से नाकाम कर दिया। 1942 में ब्रिटिश सरकार ने विभिन्न राजनैतिक दलों के छोटे-बड़े सभी नेताओं को जेलों में डाल दिया।डॉ॰ मुखर्जी इस धारणा के प्रबल समर्थक थे कि सांस्कृतिक दृष्टि से हम सब एक हैं। इसलिए धर्म के आधार पर वे विभाजन के कट्टर विरोधी थे। वे मानते थे कि विभाजन सम्बन्धी उत्पन्न हुई परिस्थिति ऐतिहासिक और सामाजिक कारणों से थी। वे मानते थे कि आधारभूत सत्य यह है कि हम सब एक हैं। हममें कोई अन्तर नहीं है। हम सब एक ही रक्त के हैं। एक ही भाषा, एक ही संस्कृति और एक ही हमारी विरासत है। परन्तु उनके इन विचारों को अन्य राजनैतिक दल के तत्कालीन नेताओं ने अन्यथा रूप से प्रचारित-प्रसारित किया। बावजूद इसके लोगों के दिलों में उनके प्रति अथाह प्यार और समर्थन बढ़ता गया।
अगस्त, 1946 में मुस्लिम लीग ने जंग की राह पकड़ ली और कलकत्ता में भयंकर बर्बरतापूर्वक अमानवीय मारकाट हुई। उस समय कांग्रेस का नेतृत्व सामूहिक रूप से आतंकित था।ब्रिटिश सरकार की भारत विभाजन की गुप्त योजना और षड्यन्त्र को एक कांग्रेस के नेताओं ने अखण्ड भारत सम्बन्धी अपने वादों को ताक पर रखकर स्वीकार कर लिया। उस समय डॉ॰ मुखर्जी ने बंगाल और पंजाब के विभाजन की माँग उठाकर प्रस्तावित पाकिस्तान का विभाजन कराया और आधा बंगाल और आधा पंजाब खण्डित भारत के लिए बचा लिया। गान्धी जी और सरदार पटेल के अनुरोध पर वे भारत के पहले मन्त्रिमण्डल में शामिल हुए।
उन्हें उद्योग जैसे महत्वपूर्ण विभाग की जिम्मेदारी सौंपी गयी। संविधान सभा और प्रान्तीय संसद के सदस्य और केन्द्रीय मन्त्री के नाते उन्होंने शीघ्र ही अपना विशिष्ट स्थान बना लिया। किन्तु उनके राष्ट्रवादी चिन्तन के चलते अन्य नेताओं से मतभेद बराबर बने रहे। फलत: राष्ट्रीय हितों की प्रतिबद्धता को अपनी सर्वोच्च प्राथमिकता मानने के कारण उन्होंने मन्त्रिमण्डल से त्यागपत्र दे दिया। उन्होंने एक नई पार्टी बनायी जो उस समय विरोधी पक्ष के रूप में सबसे बड़ा दल था। अक्टूबर, 1951 में भारतीय जनसंघ का उद्भव हुआ।
कार्यक्रम में ओर भी कही वक्ताओं ने सम्बोधित किया।
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