सांस्कृतिक आतंकवाद पर मंथन के साथ हुई काव्यात्मक प्रस्तुति - JALORE NEWS
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सांस्कृतिक आतंकवाद पर मंथन के साथ हुई काव्यात्मक प्रस्तुति - JALORE NEWS
पत्रकार माणकमल भंडारी भीनमाल
भीनमाल ( 17 मई 2023 ) मंथन साहित्यिक परिवार द्वारा आयोजित काव्य संध्या में गणेश वंदना गिरीश पाण्डेय व सरस्वती वंदना कवयित्री सुमन बाला कांगड़ी हिमाचल द्वारा प्रस्तुत करने के साथ कार्यक्रम का शुभारम्भ किया गया l
भरत गहलोत प्रवक्ता एवं प्रशासनिक अधिकारी मंथन साहित्यिक परिवार मंच द्वारा आयोजित काव्य संध्या में सांस्कृतिक आतंकवाद इस शताब्दी की बड़ी चुनौती विषय पर गिरीश पाण्डेय काशी के शब्दों में भौतिक एवम् मानसिक उत्थान की परणिति है संस्कृति। हमारी सनातनी संस्कृति है । जिसे पहले आक्रांताओं द्वारा फिर विधर्मियों ने व्यक्ति या समूह द्वारा दबाब डालकरविकृत कर सांस्कृतिक विरासत को समूल नष्ट करने के कुत्सित प्रयास ही सांस्कृतिक आतंकवाद है जिसकी जड़ें सम्प्रदाय विशेष द्वारा पोषित हैं। कथनानुसार मजहब तलवार के बल पर बदला जा सकता है जिसे राजनैतिक व समुदाय विशेष का संरक्षण प्राप्त है परन्तु संस्कृति अदृष्य होने से इसे बलपूर्वक नष्ट नहीं किया जा सकता।वे यह भूल जाते हैं कि इस्लाम आर्य जैन बौद्ध ईसाई सिख सभी सनातनी संतानें हैं। प्रजातंत्र का मखौल उड़ाते हुए अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर रामचरितमानस जैसै सनातनी धर्मग्रंथों की प्रतियाँ संसद में बैठे हुए जैसे लोग जला ही नहीं रहे अपितु हिन्दुत्व की रक्षा अकबरकालीन समय में करने वाले प्रातः स्मरणीय महाकवि तुलसी को गालियाँ देने में नहीं चूकते। सनातनी प्रतीक चिन्हों को समाप्त करने का अथक प्रयास किया जा रहा है। युवा पीढ़ी का ब्रेन वाश करने के लिए पौराणिक मुख चपेटिका दयानंद छल कपट दर्शन जैसे गंदे साहित्य परोसे जा रहे हैं। यह है घोर सांस्कृतिक आतंकवाद
रामगोपाल निर्मलकर व राजेश शर्मा नागपुर ने अपनी समीक्षा में पाण्डेय जी से सहमत होते हुए जाकिर नायक द्वारा युवा वर्ग को सनातन धर्म के प्रति घृणाफैलाने वाले विस्फोट भाषणों से लटकाया जा रहा है। ऐसा ही ज्वलंत उदाहरण स्वामी प्रसाद मौर्य हैं जो जातिवाद के नाम पर वेद पुराण रामायण उपनिषदों की बुराई करने में नहीं चूकते।हम।सनातनी संतानों को सजग रहने की जरूरत है क्योंकि संस्कृति आतंकवाद का मीठा जहर लिए ये आस्तीन के सांप भारतीय संस्कृति को गिरवी रखने में भी नहीं चूकेंगे।
द्वितीय वक्ता महेन्द्रसिंहराज चंदौली काशी ने सांस्कृतिक आतंकवाद के पुरातन इतिहास पर प्रकाश डालते हुए शिक्षा व संचार का स्वहित में उपयोग करते हुए गुरुकुल शिक्षा व्यवस्था को तत्कालीन प्रशासकों ने नष्ट करने तथा तक्षशिला नालंदा आदि विश्वविद्यालय जलाए जाने का उल्लेख किया। मुख्य अतिथि के रूप में गजानन पाण्डेय हैदराबाद ने स्वस्थ समाज के लिए सकारात्मक सोच की जरूरत बतलाई।
काव्यपाठ के द्वितीय सत्र में मधुबाला शांडिल्य गोड्डा झारखंड ने दर्द को अल्फ़ाज़ों में बयाँ करना इतना आसान नहीं होता, रामगोपाल निर्मलकर ने मातृ शक्ति पर रचना पाठ-माँ जननी संसार की ईश्वर का है रूप प्रस्तुतियां पटल पर रखीं।
भरत गहलोत ने माँ के प्रति भाव प्रस्तुत करते हुए "मत भेज माँ को बृद्धाश्रम में" पढ़ी । महेन्द्रसिंहराज ने प्रेम की व्याख्या बताकर जीतना अभिमान को है रो रही कश्मीर घाटी रो रहा बंगाल भी है ।
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