Ganesh Utsav 2023: इस साल कब विराजेंगे भगवान गणेश, जानें 10 दिन के गणेश उत्सव की तिथि, शुभ मुहूर्त और महत्व
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Ganesh Utsav 2023: इस साल कब विराजेंगे भगवान गणेश, जानें 10 दिन के गणेश उत्सव की तिथि, शुभ मुहूर्त और महत्व
जालौर ( 31 अगस्त 2023 ) Ganesh Utsav 2023: हिंदू पंचांग के अनुसार, भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि के साथ गणेश उत्सव आरंभ हो जाता है, जो भाद्रपद माह में शुक्ल पक्ष के चतुर्दशी तिथि को समाप्त हो जाएगा। ऐसे में इस साल गणेश उत्सव का 19 सितंबर 2023 को आरंभ होगा। इसकी समाप्ति 28 सितंबर 2023 को अनंत चतुर्थी पर होगी। इस दिन बप्पा की मूर्ति का विसर्जन किया जाता है।
गणेश चतुर्थी 2023 शुभ मुहूर्त
भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी तिथि शुरू – 18 सितंबर 2023 को दोपहर 12 बजकर 39 मिनट तक
भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी तिथि समाप्त – 19 सितंबर 2023 को दोपहर 01 बजकर 43 मिनट तक
गणेश स्थापना समय – सुबह 11 बजकर 07 मिनट से 19 सितंबर को दोपहर 01 बजकर 34 मिनट तक
गणेश उत्सव का महत्व
पौराणिक कथाओं के अनुसार, गणेशजी का निर्माण देवी पार्वती ने चंदन के लेप से किया था, जिसका उपयोग वह अपने स्नान के लिए करती थीं। शक्ति की देवी होने के उन्होंने गणेश जी को इतनी शक्ति से जगाया कि बड़े से बड़े देवता भी युद्ध में उनका सामना नहीं कर सकते थे। ऐसे में एक बार शिव जी मां पार्वती से मिलने आए। लेकिन गणपति जी ने उन्हें अंदर जाने से मना कर दिया। ऐसे में भगवान शिव को बहुत ज्यादा क्रोध आया और उन्होंने गलती से गणेश का सिर काट दिया, जिससे मां पार्वती क्रोधित हो गईं। अपनी पत्नी को संतुष्ट करने के लिए भगवान शिव ने अन्य देवताओं के साथ मिलकर गणेश के धड़ पर एक हाथी के बच्चे का सिर लगा दिया। इसलिए हाथी के सिर वाले भगवान गणेश हो गए।
माना जाता है कि गणेश उत्सव में गणेश जी की विधिवत पूजा करने से वह व्यक्ति को हर संकट से छुटकारा दिलाते हैं। इसके साथ ही सुख-समृद्धि के साथ धन-संपदा का आशीर्वाद देते हैं।
10 दिन क्यों मनाते हैं गणेश उत्सव?
शास्त्रों के अनुसार, भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को भगवान गणेश का जन्म हुआ था। इस कारण गणेश उत्सव मनाते हैं। इसके अलावा दूसरी पौराणिक कथा के अनुसार, महर्षि वेदव्यास ने महाभारत की रचना के लिए गणेश जी का आह्वान किया था। जब भगवान गणेश ने अपने एक एक दांत को तोड़कर बिना रुके व्यास जी द्वारा बोले श्लोकों को लिपिबद्ध तरीके से लिखते रहे थे। लगातार 10 दिनों तक लिखने के कारण गणेश जी पर धूल मिट्टी की परत जम गई। 10 दिन बाद यानी अनंत चतुर्दशी पर बप्पा ने सरस्वती नदी में स्नान कर खुद को साफ किया था। इसी के कारण गणेश उत्सव 10 दिन तक मनाया जाता है।
गणेश चतुर्थी पर न करें चंद्र दर्शन
सनातन परंपरा में तमाम तरह के व्रत एवं पर्व पर पूजा से जुड़े कुछ नियम बनाए गये हैं. हिंदू मान्यता के अनुसार गणेश चतुर्थी के दिन चंद्रमा का दर्शन नहीं किया जाता है. ऐसा करना बहुत बड़ा दोष माना गया है, जिसके लगने पर भविष्य में तमाम तरह का कलंक लगने की रहता था.
Ganesh Visarjan 2023:- गणपति विसर्जन की विधि क्या है ?
अनंत चतुर्दशी के दिन शुभ मुहूर्त में गणेश जी की प्रतिमा का विसर्जन किया जाता है। परंतु विसर्जन से पहले बप्पा की विधि-विधान से पूजा की जाती है। इसके लिए सबसे पहले भगवान गणेश की रोली, चंदन, अक्षत, फूल, माला आदि अर्पित कर गणेश जी को मोदक समेत पसंदीदा चीजों का भोग लगाएं। साथ ही पूजन के बाद धूप-दीप जलाकर मंत्र जाप और आरती करें। फिर गणपति बप्पा से बीते 10 दिनों में पूजन के दौरान हुई भूल-चूक के लिए क्षमा मांगे। इसके बाद भगवान गणेश को अर्पित की हुई सभी चीजों को एक पोटली में बांध लें। फिर बप्पा की मूर्ति को गाजे-बाजे के साथ विसर्जन के लिए लेकर जाएं तथा किसी पवित्र नदी में विसर्जित कर दें। ध्यान रहे कि विसर्जन के दौरान गणेश जी की मूर्ति को एकदम से पानी में न छोड़ें बल्कि प्रतिमा को धीरे-धीरे विसर्जित करें। इसके बाद हाथ जोड़कर भगवान गणेश से कृपा प्राप्ति और अगले साल जल्दी आने की प्रार्थना करें।
अक्सर पूछे जाने वाले सवाल
कब से शुरू हो रहा गणेश उत्सव 2023?
इस साल गणेश उत्सव 19 सितंबर 2023 से शुरू हो रहा है।
गणेश उत्सव की शुरुआत किसने की?
माना जाता है कि गणेश उत्सव की शुरुआत शिवाजी महाराज के बाल्यकाल में उनकी मां जीजाबाई द्वारा की गई थी। आगे चलकर पेशवाओं ने इस उत्सव को बढ़ाया और लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने इसे राष्ट्रीय पहचान दिलाई।
कब मनाते हैं गणेश उत्सव?
क्यों मनाते हैं गणेश चतुर्थी का त्योहार
भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि के दिन हर साल गणेश चतुर्थी मनाई जाती है।
क्यों मनाते हैं गणेश उत्सव?
पौराणिक कथाओं के अनुसार गणेश चतुर्थी के दिन माता पार्वती के पुत्र गणेश जी का जन्म हुआ था।
गणेश चतुर्थी की शुरुआत कब हुई
गणेश चतुर्थी हिन्दुओं का एक प्रमुख त्योहार है। यह त्योहार भारत के विभिन्न भागों में मनाया जाता है किन्तु महाराष्ट्रकर्नाटका में बडी़ धूमधाम से मनाया जाता है। पुराणों के अनुसार इसी दिन गणेश का जन्म हुआ था।गणेश चतुर्थी पर हिन्दू भगवान गणेशजी की पूजा की जाती है। कई प्रमुख जगहों पर भगवान गणेश की बड़ी प्रतिमा स्थापित की जाती है। इस प्रतिमा का नौ दिनों तक पूजन किया जाता है। बड़ी संख्या में आस पास के लोग दर्शन करने पहुँचते है। नौ दिन बाद गानों और बाजों के साथ गणेश प्रतिमा को किसी तालाब, महासागर इत्यादि जल में विसर्जित किया जाता है। गणेशजी को लंबोदर के नाम से भी जाना जाता है ।
पुराणानुसार
शिवपुराण में भाद्रपद मास के कृष्णपक्ष की चतुर्थी को मंगलमूर्ति गणेश की अवतरण-तिथि बताया गया है जबकि गणेशपुराण के मत से यह गणेशावतार भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को हुआ था। गण + पति = गणपति। संस्कृतकोशानुसार ‘गण’ अर्थात पवित्रक। ‘पति’ अर्थात स्वामी, ‘गणपति’ अर्थात पवित्रकों के स्वामी।
शिवपुराण के अन्तर्गत रुद्रसंहिताके चतुर्थ (कुमार) खण्ड में यह वर्णन है कि माता पार्वती ने स्नान करने से पूर्व अपनी मैल से एक बालक को उत्पन्न करके उसे अपना द्वार पाल बना दिया। शिवजी ने जब प्रवेश करना चाहा तब बालक ने उन्हें रोक दिया। इस पर शिवगणोंने बालक से भयंकर युद्ध किया परंतु संग्राम में उसे कोई पराजित नहीं कर सका। अन्ततोगत्वा भगवान शंकर ने क्रोधित होकर अपने त्रिशूल से उस बालक का सिर काट दिया। इससे भगवती शिवा क्रुद्ध हो उठीं और उन्होंने प्रलय करने की ठान ली। भयभीत देवताओं ने देवर्षिनारद की सलाह पर जगदम्बा की स्तुति करके उन्हें शांत किया।
शिवजी के निर्देश पर विष्णुजीउत्तर दिशा में सबसे पहले मिले जीव (हाथी) का सिर काटकर ले आए। मृत्युंजय रुद्र ने गज के उस मस्तक को बालक के धड पर रखकर उसे पुनर्जीवित कर दिया। माता पार्वती ने हर्षातिरेक से उस गज मुख बालक को अपने हृदय से लगा लिया और देवताओं में अग्रणी होने का आशीर्वाद दिया। ब्रह्मा, विष्णु, महेश ने उस बालक को सर्वाध्यक्ष घोषित करके अग्रपूज्यहोने का वरदान दिया। भगवान शंकर ने बालक से कहा-गिरिजानन्दन! विघ्न नाश करने में तेरा नाम सर्वोपरि होगा। तू सबका पूज्य बनकर मेरे समस्त गणों का अध्यक्ष हो जा। गणेश्वर तू भाद्रपद मास के कृष्णपक्ष की चतुर्थी को चंद्रमा के उदित होने पर उत्पन्न हुआ है। इस तिथि में व्रत करने वाले के सभी विघ्नों का नाश हो जाएगा और उसे सब सिद्धियां प्राप्त होंगी। कृष्णपक्ष की चतुर्थी की रात्रि में चंद्रोदय के समय गणेश तुम्हारी पूजा करने के पश्चात् व्रती चंद्रमा को अर्घ्य देकर ब्राह्मण को मिष्ठान खिलाए। तदोपरांत स्वयं भी मीठा भोजन करे। वर्ष पर्यन्त श्रीगणेश चतुर्थी का व्रत करने वाले की मनोकामना अवश्य पूर्ण होती है।
दूसरी कथा
एक बार महादेवजी, पार्वती सहित नर्मदा के तट पर गए। वहाँ एक सुंदर स्थान पर पार्वती जी ने महादेवजी के साथ चौपड़ खेलने की इच्छा व्यक्त की। तब शिवजी ने कहा- हमारी हार-जीत का साक्षी कौन होगा? पार्वती ने तत्काल वहाँ की घास के तिनके बटोरकर एक पुतला बनाया और उसमें प्राण-प्रतिष्ठा करके उससे कहा- बेटा ! हम चौपड़ खेलना चाहते हैं, किन्तु यहाँ हार-जीत का साक्षी कोई नहीं है। अतः खेल के अन्त में तुम हमारी हार-जीत के साक्षी होकर बताना कि हममें से जीता, कौन हारा?
खेल आरंभ हुआ। दैवयोग से तीनों बार पार्वती जी ही जीतीं। जब अंत में बालक से हार-जीत का निर्णय कराया गया तो उसने महादेवजी को विजयी बताया। परिणामतः पार्वती जी ने क्रुद्ध होकर उसे एक पाँव से लंगड़ा होने और वहाँ के कीचड़ में पड़ा रहकर दुःख भोगने का श्राप दे दिया।[5] बालक ने विनम्रतापूर्वक कहा- माँ! मुझसे अज्ञानवश ऐसा हो गया है। मैंने किसी कुटिलता या द्वेष के कारण ऐसा नहीं किया। मुझे क्षमा करें तथा शाप से मुक्ति का उपाय बताएँ। तब ममतारूपी माँ को उस पर दया आ गई और वे बोलीं- यहाँ नाग-कन्याएँ गणेश-पूजन करने आएँगी। उनके उपदेश से तुम गणेश व्रत करके मुझे प्राप्त करोगे। इतना कहकर वे कैलाश पर्वत चली गईं।
एक वर्ष बाद वहाँ श्रावण में नाग-कन्याएँ गणेश पूजन के लिए आईं। नाग-कन्याओं ने गणेश व्रत करके उस बालक को भी व्रत की विधि बताई। तत्पश्चात बालक ने 12 दिन तक श्रीगणेशजी का व्रत किया। तब गणेशजी ने उसे दर्शन देकर कहा- मैं तुम्हारे व्रत से प्रसन्न हूँ। मनोवांछित वर माँगो। बालक बोला- भगवन! मेरे पाँव में इतनी शक्ति दे दो कि मैं कैलाश पर्वत पर अपने माता-पिता के पास पहुँच सकूं और वे मुझ पर प्रसन्न हो जाएँ। गणेशजी 'तथास्तु' कहकर अंतर्धान हो गए। बालक भगवान शिव के चरणों में पहुँच गया। शिवजी ने उससे वहाँ तक पहुँचने के साधन के बारे में पूछा। तब बालक ने सारी कथा शिवजी को सुना दी। उधर उसी दिन से अप्रसन्न होकर पार्वती शिवजी से भी विमुख हो गई थीं। तदुपरांत भगवान शंकर ने भी बालक की तरह २१ दिन पर्यन्त श्रीगणेश का व्रत किया, जिसके प्रभाव से पार्वती के मन में स्वयं महादेवजी से मिलने की इच्छा जाग्रत हुई।
वे शीघ्र ही कैलाश पर्वत पर आ पहुँची। वहाँ पहुँचकर पार्वतीजी ने शिवजी से पूछा- भगवन! आपने ऐसा कौन-सा उपाय किया जिसके फलस्वरूप मैं आपके पास भागी-भागी आ गई हूँ। शिवजी ने 'गणेश व्रत' का इतिहास उनसे कह दिया। तब पार्वतीजी ने अपने पुत्र कार्तिकेय से मिलने की इच्छा से 21 दिन पर्यन्त 21-21 की संख्या में दूर्वा, पुष्प तथा लड्डुओं से गणेशजी का पूजन किया। 21वें दिन कार्तिकेय स्वयं ही पार्वतीजी से आ मिले। उन्होंने भी माँ के मुख से इस व्रत का माहात्म्य सुनकर व्रत किया। कार्तिकेय ने यही व्रत विश्वामित्रजी को बताया। विश्वामित्रजी ने व्रत करके गणेशजी से जन्म से मुक्त होकर 'ब्रह्म-ऋषि' होने का वर माँगा। गणेशजी ने उनकी मनोकामना पूर्ण की। ऐसे हैं श्री गणेशजी, जो सबकी कामनाएँ पूर्ण करते हैं।
तीसरी कथा
एक बार महादेवजी स्नान करने के लिए भोगावती गए। उनके जाने के पश्चात पार्वती ने अपने तन के मैल से एक पुतला बनाया और उसका नाम 'गणेश' रखा। पार्वती ने उससे कहा- हे पुत्र! तुम एक मुगदल लेकर द्वार पर बैठ जाओ। मैं भीतर जाकर स्नान कर रही हूँ। जब तक मैं स्नान न कर लूं, तब तक तुम किसी भी पुरुष को भीतर मत आने देना।
भोगावती में स्नान करने के बाद जब भगवान शिवजी आए तो गणेश जी ने उन्हें द्वार पर रोक लिया। इसे शिवजी ने अपना अपमान समझा और क्रोधित होकर उनका सिर धड़ से अलग करके भीतर चले गए। पार्वती ने उन्हें नाराज देखकर समझा कि भोजन में विलंब होने के कारण महादेवजी नाराज हैं। इसलिए उन्होंने तत्काल दो थालियों में भोजन परोसकर शिवजी को बुलाया। तब दूसरा थाल देखकर तनिक आश्चर्यचकित होकर शिवजी ने पूछा- यह दूसरा थाल किसके लिए हैं? पार्वती जी बोलीं- पुत्र गणेश के लिए हैं, जो बाहर द्वार पर पहरा दे रहा है।
यह सुनकर शिवजी और अधिक आश्चर्यचकित हुए। तुम्हारा पुत्र पहरा दे रहा है? हाँ नाथ! क्या आपने उसे देखा नहीं? देखा तो था, किन्तु मैंने तो अपने रोके जाने पर उसे कोई उद्दण्ड बालक समझकर उसका सिर काट दिया। यह सुनकर पार्वती जी बहुत दुःखी हुईं। वे विलाप करने लगीं। तब पार्वती जी को प्रसन्न करने के लिए भगवान शिव ने एक हाथी के बच्चे का सिर काटकर बालक के धड़ से जोड़ दिया। पार्वती जी इस प्रकार पुत्र गणेश को पाकर बहुत प्रसन्न हुई। उन्होंने पति तथा पुत्र को प्रीतिपूर्वक भोजन कराकर बाद में स्वयं भोजन किया। यह घटना भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को हुई थी। इसीलिए यह तिथि पुण्य पर्व के रूप में मनाई जाती है।
गणेश जी का अर्थ
गणेश का अर्थ होता है गणों का ईश और आदि का अर्थ होता है सबसे पुराना यानी सनातनी
व्रत कब
भाद्रपद-कृष्ण-चतुर्थी से प्रारंभ करके प्रत्येक मास के कृष्णपक्ष की चंद्रोदयव्यापिनीचतुर्थी के दिन व्रत करने पर विघ्नेश्वरगणेश प्रसन्न होकर समस्त विघ्न और संकट दूर कर देते हैं।
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