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मुख्यपृष्ठ History लोहियाणा गढ़ ( जसवंतपुरा ) जिला जालोर राजस्थान क्यों पडा नाम जाने इतिहास
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लोहियाणा गढ़ ( जसवंतपुरा ) जिला जालोर राजस्थान क्यों पडा नाम जाने इतिहास

History of Jaswantpura Lohangarh जालोर ज़िले का आख़री गाँव जसवंतपुरा स्थित अरावली पहाड़ियां हरियाली से आच्छादित होने के साथ ऐतिहासिक धरोहर को सहेजे हु
Shravan Kumar
Shravan Kumar
06 अग॰, 2023 0 0
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History of Jaswantpura Lohangarh
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लोहियाणा गढ़ ( जसवंतपुरा ) जिला जालोर राजस्थान क्यों पडा नाम जाने इतिहास

 जसवंतपुरा ( 7 अगस्त 2023 ) History of Jaswantpura Lohangarh जालोर ज़िले का आख़री गाँव जसवंतपुरा स्थित अरावली पहाड़ियां हरियाली से आच्छादित होने के साथ ऐतिहासिक धरोहर को सहेजे हुए हैं। 

इतिहास के अनुसार रियासतकाल में इन पहाडिय़ों में विभिन्न प्रजाति के वन्यजीव काफी संख्या में विचरण करते थे। जिससे राजा महाराजा यहां आखेट के लिए आते थे, पहाड़ी में बने दुर्ग में उन दिनों जोधपुर मारवाड़ रियासत नरेश श्री जसवंतसिह जी इसे मिनी कश्मीर के साथ मिनी माउंट की संज्ञा दी थी। इसके बाद पहाड़ी के विकास को लेकर जोधपुर के पूर्व नरेश जसवंतसिह ने पहाड़ों तक जाने के लिए उस जमाने में सड़क का निर्माण भी करवाया था, जो आज भी मौजुद हैं। मगर रख रखाव नहीं होने से सड़क बिखर रही हैं।  

पूर्वराजघराने से आने वाले राजा महाराजाओं ने पहाडिय़ों में ड्राइंगरूम, अस्पताल, रानी महल बनाने के साथ खतरनाक अपराधियों को सजा देने के लिए कालकोठरी भी बनवाई थी। इतिहास के अनुसार गर्मियों के दिनों में यहां मारवाड़, गुजरात आसपास बसे राज्यों से भी राजा महाराजा सपरिवार महीनों यहीं रहते थे गर्मियों के दिनों में पहाड़ी हरियाली से घिरी होने के साथ बरसात में यहां गिरने वाले झरने विभिन्न प्रजाति के पक्षियों की कलवर से मन प्रसन्न हो जाता था। प्राचीन दुर्ग की देखरेख के अभाव में खण्डहर हो गये हैं। 

 मौजूदा समय में दुर्ग देखने के लिए जिले के आसपास के गांवो से देसी पर्यटक तो आ रहे हैं मगर इस क्षेत्र का पर्यटन के मानचित्र पर उपस्थिति नहीं होने से अन्य राज्यों तथा विदेशी पर्यटकों को इस जगह का आभास ही नहीं हैं। इस दुर्ग पर जाने के लिए 17 किमी की दूरी तय करनी पड़ती हैं, पूर्व में इस रास्ते से वाहन ऊपर तक जाते थे। मगर पिछले वर्ष हुई भारी बरसात से सड़क कई जगह पर पूरी तरह टूट चुकी हैं जिससे वर्तमान में वाहन से ऊपर तक जाना संभव नहीं हैं। 

पहाड़ी पर बने हैं दो बड़े तालाब : 




पहाड़ीपर दो बड़े तालाब भी बनें हैं जिसमें से एक तालाब जो माजीबा के नाम से जाना जाता हैं जिसमें आज भी पानी भरा हैं। 

स्थानीय क्षेत्र के बुजुर्गों का कहना है कि इस तालाब में 12 माह तक पानी रहता हैं। जिससे पहाड़ों में विचरण करने वाले वन्यजीव अपनी प्यास बुझाते हैं,वहीं आश्चर्यजनक बात तो यह हैं कि यहां मीठे पानी के कुएं भी है, जिससे पहाड़ी पर आने वाले पर्यटक कुओं के मीठे पानी से प्यास बुझाते हैं कुओं में भी बारह महीनों पानी रहता हैं। वहीं पहाड़ी पर कोठी के पास बनें दूसरे तालाब में पानी लीकेज होने से तालाब का पानी व्यर्थ बह रहा हैं। 

बरसात के दिनों में बहते झरने ओर भी खुबसुरती बढ़ाते रहते है,पहाड़ी के आस पास स्थित श्री खोडेश्वर, श्री देवेश्वर महादेव मंदिर व सुंधा माताजी मंदीर आदी ऐतिहासिक दर्शनीय स्थल देखने के लिए वर्ष भर यात्री आते रहते है ।

 इस पहाड़ पर पगडंडियों का भी निर्माण करवाया गया था। वहीं बरसात के दिनों में पहाडिय़ों से गिरने वाले झरने तथा चारों ओर हरी भरी वादियां देखने स्थानीय लोग तो आज भी बरसात के दिनों में यहां जरूर आते हैं। 

शेखावत सरकार के समय हुई थी कवायद

जसवंतपुरा क़स्बे की पहाडिय़ों के संरक्षण और पहाड़ी पर पर्यटकों को लाने के लिए पूर्व मुख्यमंत्री श्री भैरुसिंह शेखावत की सरकार ने दुर्ग के प्राचीन रास्ते को पर्यटकों को जानकारी देने को लेकर योजना बनाई थी। इसके साथ ही इस क्षेत्र को अंतरराष्ट्रीय टूरिस्ट मेप से जोड़ने की संभावनाओं को लेकर पर्यटन विभाग के अधिकारियों ने पहाड़ी का निरीक्षण भी किया था। मगर उसके बाद से लेकर अब तक कितनी ही सरकारें बदली मगर किसी की ओर से प्रयास ही नहीं किया गया।

जसवंतपुरा के लोहानगढ़ का इतिहास




 


 जसवन्तपुरा ( लोहियाना के रूप में जाना जाता था) भारत के राजस्थान राज्य के जालौर ज़िले में स्थित एक गाँव है।

राजा मान प्रतिहार जालोर में भीनमाल शासन कर रहे थे जब परमार सम्राट वाक्पति मुंज (९-२- ९९ ० ९ ०) ने इस क्षेत्र पर आक्रमण किया - इस विजय के बाद इन विजित प्रदेशों को अपने परमार राजकुमारों में विभाजित किया - उनके पुत्र अरण्यराज परमार को अबू क्षेत्र, उनके पुत्र और उनके भतीजे चंदन परमार को, धारनिवराह परमार को जालोर क्षेत्र दिया गया। इससे भीनमाल पर प्रतिहार शासन लगभग 250 वर्ष का हो गया। [3] राजा मान प्रतिहार का पुत्र देवलसिंह प्रतिहार अबू के राजा महिपाल परमार (1000-1014 ईस्वी) का समकालीन था। राजा देवलसिम्हा ने अपने देश को मुक्त करने के लिए या भीनमाल पर प्रतिहार पकड़ को फिर से स्थापित करने के लिए कई प्रयास किए, लेकिन व्यर्थ में। वह चार पहाड़ियों - डोडासा, नदवाना, काला-पहाड और सुंधा से युक्त, भीनमाल के दक्षिण पश्चिम में प्रदेशों के लिए बस गए। उन्होंने लोहियाना (वर्तमान जसवंतपुरा) को अपनी राजधानी बनाया। इसलिए यह उपकुल देवल प्रतिहार बन गया। [4] धीरे-धीरे उनके जागीर में आधुनिक जालोर जिले और उसके आसपास के 52 गाँव शामिल थे। जसवंतपुरा का पुराना नाम लोयानागढ़ था। लोयानागढ़ देवाल राजपूतों के 52 गाँवों (कलपुरा से करड़ा) की एक थिकाना की राजधानी थी।

देवल प्रतिहार राजपूतो ने जालोर के चौहान कान्हाददेव के अलाउद्दीन खिलजी के प्रतिरोध में भाग लिया। महाराणा प्रताप ने मुगल बादशाह अकबर के खिलाफ अपने संघर्ष के दौरान कुछ समय के लिए लोयानागढ़ में रुके थे





लोहियाणा के ठाकुर धवलसिंह देवल ने महाराणा प्रताप को जनशक्ति की आपूर्ति की और उनकी बेटी की शादी महाराणा से की, बदले में महाराणा ने उन्हें "राणा" की उपाधि दी, जो इस दिन तक उनके साथ रहे। 

1883 तक सीमावर्ती जिले बहुत अशांत अवस्था में थे, और शांति और कानूनविहीन ठाकुरों और अपराधी भीलों को शंट कर्ने व बहाल करने के लिए सक्रिय उपाय आवश्यक थे। लोयाना गाँव, जो पीढ़ियों के लिए अधिकार का विरोध करता था और शिकारी भीलों का मुख्य सहारा था, उस से सांत करके वो अप्रिल भील ठाकुरो को साजा देके गांव का नाम बदल कर जसवंतपुरा रक्खा।

जोधपुर और लोयना के महाराजा के बीच कुछ गलतफहमी थी. लोयनगर के सरदारों ने जोधपुर के तत्कालीन महाराजा जसवंत सिंह के खिलाफ विद्रोह कर दिया। महाराजा ने विद्रोह को शांत किया, दो असफल प्रयासों के बाद, उन्होंने लोयनगर को जीत लिया और इसका नाम बदलकर जसवंतपुरा कर दिया।

जसवंतपुरा के लोहानगढ़ का

पहले इस स्थान पर लैपटॉपाना नामक गांव था जिस पर राणा सालजी देवल का शासन था, यहां एक किला था। लेकिन आर्थिक स्थिति में देरी के कारण राजा डाकू बन गया और हे मारिआ क्षेत्र को लूटना शुरू कर दिया गया। वर्ष 1883 ई. जोधपुर के महाराजा जसवन्त सिंह ने इस क्षेत्र पर आक्रमण कर किले को पूरी तरह से नष्ट कर दिया। इसलिए गांव का नाम मखौलिया जसवन्तपुरा रखा गया। महाराजा ने वर्तमान ग्रीष्मकालीन रिसॉर्ट्स के रूप में उपयोग करने के लिए पहाड़ों में एक विश्राम गृह का उपयोग किया जो अब जोधपुर के महाराजा की निजी संपत्ति है।

बसंतपुरा के लोहानगढ़ के आकर्षण:

यह अपनी प्राकृतिक प्राकृतिक प्रकृति के लिए प्रसिद्ध है और यहां समुद्र तट के दौरान आसपास के क्षेत्र की तुलना में तापमान अल्पावधि कम रहता है। यह क्षेत्र वन्य जीवों से समृद्ध है और यहां सूअर, भालू, बंदर और बाघ देखे जा सकते हैं।

 JALORE NEWS

आपके पास में भी अगर कोई इतिहास से जुड़ी जानकारी है तो हमें भेजा सकता है इस नंबर पर 

 wa.me/918239224440

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