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उनके बाद यह परगना मारवाड़ के महाराजा जसवंत सिंह जी को मिला और राव रतनसिंह जी ने रतलाम राज्य में राज्य स्थापित किया ।
सिरी मंदिर का इतिहास और वास्तुकला:- सिरी मंदिर का इतिहास और वास्तुकला
JALORE NEWS जालोर का सबसे प्राचीन और बडा़ मंदिर नाथ सम्प्रदाय का गढ़ सिरे मंदिर
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जालोर-गढ़-का-सबसे-पुराना-और-बड़ा-मंदिर नाथ-सम्प्रदाय-का-मंदिर |
राव रतनसिंह जी राठौड़ !!
राव रतनसिंह राठौड़, मारवाड़ नरेश श्री गजसिंह जी प्रथम के चचेरे भाई तथा मारवाड़ नरेश श्री उदयसिंह जी के चतुर्थ पुत्र दलपत सिंह जी के पुत्र महेशदास जी के सुपुत्र थे, और वे वि.स.1704 में जालौर परगना के शाशक बने, उन्होंने वि.स. 1712 तक जालौर पर शाशन किया था ।
उनके बाद यह परगना मारवाड़ के महाराजा जसवंत सिंह जी को मिला और राव रतनसिंह जी ने रतलाम राज्य में राज्य स्थापित किया ।
राव रतनसिंह जी क्षत्रियत्व का निर्वाह करते हुए राज्य करते थे, और वे श्री जलन्धर नाथजी के बड़े भक्त थे, नित्यप्तति प्रातः वेला में श्री जलन्धर नाथजी के चरणों का पूजन करते थे ।
एक दिन यह देखकर उन्हें अत्यंत आश्चर्य हुआ कि चन्दन-पुष्प अर्चित चरण-सेवा तो उनके पहले से ही सम्पन्न हो चुकी है !
दूसरे दिन भी उन्हें यही द्रश्य दिखलाई दिया, उस समय श्री जलन्धर नाथजी ने उन्हें आकाशवाणी से कहा कि मै स्वयम् ही अपनी सेवा कर लेता हूँ तुम्हें भयजनित संशय नही करना चाहिये इतना कह कर श्री जलन्धर नाथजी प्रकट हुए ।
नृप रतन ने स्वयं को अत्यंत कृतार्थ अनुभव किया आनंदातिरेक से उनकी वाणी मूक थी इस पर श्री जलन्धर नाथजी ने उनसे वर मांगने को कहा ।
नाथ-अनुग्रह से गदगद राव रतनसिंह जी ने कहा कि मुझे समस्त भू-मण्डल के दर्शन कराइये !में इस कलशाचल पर्वत पर आपके चरण स्थापित कर उस पर मन्दिर बनाऊंगा ।
इस पर श्री जलन्धर नाथजी ने कहा, " हमे मन्दिर-भवन जैसा आडंबर नही चाहिए क्योंकि हम यतीश्वर है, मन्दिर महल होने पर यात्री आयेंगे, जिनमेँ पात्र-कुपात्र होंगे उनके काम करने लगेंगे, तो ध्यान में बाधा पड़ेगी,ऐसा सुनकर नृप रतन ने कहा, " तो अभी छोटा-सा भवन ही बनाऊंगा, इस पर श्री जलन्धर नाथजी ने " तथास्तु " कहा, परन्तु भवन को खुला, कपाट- रहित रखने की आज्ञा दी ।
फिर यतिराज श्री जलन्धर नाथजी महाराज ने करुणा कर राव रतनसिंह जी को आसन पर बैठाया और योग-शक्ति से उन्हें गगन में गमन कर समस्त भूमण्डल दिखलाया ।
और श्री जलन्धर नाथ जी ने राव रतनसिंह को कहा कि भविष्य में यवनों और राठौडो में उज्जैन में भयंकर युद्ध होगा और तुम अपने सात सौ साथियों सहित उसमें जूझ कर मृत्यू का वरण करोगे और इस प्रकार संसार में तुम्हारी यश-कीर्ति विस्तरित होगी ।
तब राव रतनसिंह जी ने श्री जलन्धर नाथजी से विनती की, कि आप यहाँ मूर्ति पधारीइये !
इस पर वहाँ जो चरण थे, वे साकार मूर्ति में परिवर्तित हो गए, राव रतनसिंह जी ने शिव और नाथ को एकाकार देखा, श्री नाथ जी राजा से बोले कि जैसी तुम्हारी इच्छा थी, वह कर दिया, तब नृप ने प्रार्थना की कि यह सब तो आप जाने, पर दुनिया तो कोई नही जान पायेगी, इसलिए आप मूर्ति पधारने की मेरी विनती स्वीकार करें ।
भक्त की प्रार्थना सुनकर अन्तयार्मी श्रीनाथ जी ने कहा, तुम यहाँ एक कुआ खुदवाओ, और उसे " रतन कूप " नाम देना, उसमे एक शिवलिंग प्रगट होगा, उसे ही मेरी मूर्ति समझना और एक पार्वती की मूर्ति साथ में नन्दीश्वर भी निकलेंगे, उन्हें यहाँ मन्दिर में प्रतिष्ठित कर देना यह मेरी इच्छा है ,
यह कह कर श्री जलन्धर नाथ जी अंतर्ध्यान हो गये ।
राठौड़ राव रतनसिंह जी ने उनकी इच्छानुसार ही कार्य किया राजा ने " कूप " खुदवाया उसमे मधुर जल निकला तो उसे देखकर नृप रतन का ह्रदय-कमल जैसे खिल गया, पार्वती जी की मूर्ति निकलते समय खंडित अवश्य हो गई, तथापि यतीश्वर की यही आज्ञा हुई थी कि इसे भी प्रतिष्ठित करना, यह मेरी आज्ञा है ।
श्री जलन्धर नाथजी महाराज की इच्छानुसार ऐसा ही किया गया, और अब वहाँ शिवलिंग पार्वती जी सहित विराजमान है ।
नाथस्वरूप श्री जलंधर नाथ जी आदिनाथ शिवजी के निकट निवास करते हैं, श्री जलंधर नाथजी और आदिनाथ शिवजी एक रूप में ही सुशोभित हो रहे हैं, उन दोनों में कोई भेद नहीं है।
इसी प्रकार कलशाचल पर्वत जालौर पर श्री जलंधर नाथ जी अपने भक्त की प्रति करुणा को स्वमं करते हुए जाते हैं।
श्री रत्नेश्वर महादेव मंदिर
जालौर के स्वतंत्र स्थान - राजा राव रत्नसिंह जी द्वारा वि. एस. 1708 में आपके नाम पर स्थापित यह महादेवालय मंदिर पूर्वी भाग में एक वट वृक्ष के नीचे आया था।
अपनी वर्तमान स्थिति में क्रिएटिव फ़ाइक्स- झरोखों से लेकर बंगले और रंग-बिरंगे मार्बल की सुशोभा से संयुक्त यह शिवालय वास्तुकला का उत्कृष्ट मनमोहक उदाहरन है,
इसकी अंदरूनी दीवारों पर चित्रित चित्रात्मक श्रद्धालूओं की चित्रात्मकता और अभिवृद्धि भी है।
यह मंदिर उत्तराभिमुख है, और इस मंदिर के गर्भ-गृह द्वार के ठीक मध्य में रिद्धि-सिद्धि-प्रदायक श्रीगणेश की मूर्ति है।
गर्भ-गृह के मध्य दो शिलालेख हैं _एक प्राचीन और दूसरा नवीन! प्राचीन शिवलिंग राव रतनसिंह जी द्वारा स्थापित किया गया है, जिसे स्टील के बर्तन में मढ़कर अत्यंत सुरक्षित तरीके से बनाया गया है,
इन प्राचीन और नवीन मूर्तियों के समरूप दो नंदी हैं_एक प्राचीन और दूसरा नवीन! प्राचीन नंदी राव रत्न सिंह जी द्वारा स्थापित माना जाता है।
गर्भ-गृह में प्रवेश के लिए ही देखें, पूर्वी कोने में श्री जलंधर नाथजी की श्वेत मोती की मूर्ति है, नीनी के निर्मल यश-गाथा के संग्रहालय हैं,
श्री जलंधर नाथजी महाराज मध्य में मंदिर हैं, तथा सिद्ध कनेरीपाव और तलिनाथ (गोदेगा मनोहर) चंवर ढुलान रहे हैं, यह मूर्ति वि.स.1860 में महाराजा मानसिंह जी ने बनवाई थी।
पास ही श्री गोरक्ष नाथजी महाराज की मूर्ति है, जिसकी स्थापना वि.सं.2050 में श्री श्री 1008 श्री शांतिनाथजी महाराज ने की थी, इसके ठीक सामने ही पार्वती जी एवं गणेश जी की मूर्तियाँ हैं, रिद्धि सिद्धि दोनों ओर पवित्र मुद्रा में चाँवर धूला रही हैं तथा भगवान में महाराज मानसिंह जी की मूर्तियाँ अंकित हैं।
और मंदिर के गर्भ-गृह में अखंड ज्योति कलश है, मंदिर-शिखर काफी ऊंचा है, जो स्वर्ण-कलश और ध्वज-दंड से सुशोभित है।
इस शिवालय पर छोटे-छोटे कुल 81 कलश हैं, यह कलश-समूह कलश स्थित है, इस रत्नेश्वर महादेवालय की सुन्दर छवि से समलंकार होता है।
श्री राव रत्नसिंह द्वारा निर्मित इस रत्नेश्वर महादेव मंदिर का मीनू श्री जलंधर नाथजी पीरिल मंदिर के पीठाधीश्वर श्री श्री 1008 श्री शांतिनाथजी महाराज ने विक्रम सवंत 2053 को धारण किया था।
जालोर में नारियल मंदिर - जालोर में सिरे मंदिर
तीर्थयात्री मंदिर एक हिंदू मंदिर है जो भगवान शिव को समर्पित है (जलेंद्र नाथ के रूप में)। जालोर किले के पास कलाशक्ल शिखर स्थित है, जालोर भारत के राजस्थान राज्य में स्थित है। पूजा स्थल कलशकल शिखर पर 646 मीटर की दूरी पर स्थित है। श्री जलंधर नाथजी महाराज मध्य में मंदिर हैं, तथा सिद्ध कनेरीपाव और तलीनाथ (गोगादे मनोहर) चाँवर धूलन रहे हैं, यह मूर्ति वि.स.1860 में महाराजा मानसिंह जी नेवाई बनवाई थीं।
पास ही श्री गोरक्ष नाथजी महाराज की मूर्ति है, जिसकी स्थापना वि.सं.2050 में श्री श्री 1008 श्री शांतिनाथजी महाराज ने की थी, इसके ठीक सामने ही पार्वती जी एवं गणेश जी की मूर्तियाँ हैं, रिद्धि सिद्धि दोनों ओर पवित्र मुद्रा में चाँवर धूला रही हैं तथा भगवान में महाराज मानसिंह जी की मूर्तियाँ अंकित हैं।
और मंदिर के गर्भ-गृह में अखंड ज्योति कलश है, मंदिर-शिखर काफी ऊंचा है, जो स्वर्ण-कलश और ध्वज-दंड से सुशोभित है।
इस शिवालय पर छोटे-छोटे कुल 81 कलश हैं, यह कलश-समूह कलश स्थित है, इस रत्नेश्वर महादेवालय की सुन्दर छवि से समलंकार होता है।
श्री राव रत्नसिंह द्वारा निर्मित इस रत्नेश्वर महादेव मंदिर का नाम श्री जलंधर नाथजी पादरियों के मंदिर के पीठाधीश्वर श्री श्री 1008 श्री शांतिनाथजी महाराज ने विक्रम सवंत 2053 को धारण किया था। सिरे मंदिर राजा रतन सिंह द्वारा निर्मित भगवान शंकर का घर है जिसे रत्नेश्वर मंदिर के नाम से जाना जाता है और इसकी विशालता के लिए जाना जाता है। [उत्कृष्ट दस्तावेज़] एक जनजातीय गुफा में स्थापित है।
इसका मुख्य कारण यहाँ है कि
ऋषि जाबालि की पवित्र गुफा के कारण अनेक संत यहाँ आये और ध्यान किया। पाण्डवों ने अपना कुछ समय यहाँ पर रखा और राजा भृत्य के पथप्रदर्शक सुननाथ और उनके शिष्यों ने इसे अपना घर बनाया। यहां शिव और शक्ति के कई मंदिर मौजूद हैं, जिनमें से एक है लक्ष्मी मंदिर जो अपने प्राकृतिक वातावरण, आस्था और तपस्या के लिए प्रसिद्ध है। यहां एक झालारा, एक बड़ा मानसरोवर, नॉन स्टॉप 'धुन्ना', भोजन कक्ष, राजा मानसिंह का महल, दो उद्यान और विभिन्न विश्राम स्थल हैं।
सिरे मंदिर का स्थान:- सिरे मंदिर का स्थान
यह मंदिर राजस्थान के जालौर जिले के जालौर शहर से 3 किलोमीटर पश्चिम में समुद्र तल से लगभग 646 मीटर ऊपर कालाशाचल पर्वत पर स्थित है।
यहां से निकलता है रास्ता - सड़क गुजरती है
जालोर के पश्चिम में कलशचल मंदिर 646 मीटर की इमारत पर स्थित है। होटल गीतको के सामने वाली सड़क सीधी कलशाचल पर्वत की ओर जाती है। शहर से यहाँ केवल 3 किलोमीटर है। हम पर्वत पर चढ़ते समय योगीराज जालंधर नाथ जी (एक महान योगी) के अवशेषों के निशान पाए जाते हैं। यहां एक मंदिर और एक बड़ी जल कुटिया स्थित है। पहाड़ पर चढ़ते समय बीच में भगवान हनुमान और भगवान गणेश का मंदिर है।
भगवान शिव को समर्पित रत्नेश्वर मंदिर के नाम से जानें जाने वाला एक मंदिर यहां भी स्थित है। इसे राजा रत्न सिंह ने स्थापित किया था और इसकी एक ज्वालामुखी गुफा में शिव लिंग की एक मूर्ति स्थापित की गई है। इस मंदिर के सामने एक बड़ा हाथी स्थित है। और एक बड़ा जल कुटिया के पास में सोसायटी के लिए रेस्टॉरेंट स्थल बनाया गया है। जहां पर यहां पर गाड़ियां चलाई जा सकती हैं।
पहाड़ की घाटी से मंदिर तक केवल तीन किमी (1.9 मील) की दूरी है जहां सुरक्षित दर्शन के लिए सीढ़ियां बनाई गई हैं। बीच में बना है हनुमान और भगवान गणेश का मंदिर।
सिरी मंदिर का इतिहास और वास्तुकला:- सिरी मंदिर का इतिहास और वास्तुकला
इस स्थान पर महान ऋषि महर्षि जाबालि ध्यान करते थे और कई संत यहां आए और ध्यान करते थे। महाभारत काल में पांडवों ने यहां कुछ समय का समय बिताया था। योगी सुननाथ और उनके शिष्यों ने भी इसे अपना घर बनाया। ये देवनाथ, भवानीनाथ, भैरूनाथ, फूलनाथ, केसरनाथ और भोलेनाथ की पवित्र नाली भी है। ऐसा कहा जाता है कि जोधपुर के महाराजा मान सिंह ने अपना राज्य वापस पाने के लिए यहां प्रार्थना की थी।
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