JALORE NEWS अपनी आवश्यकता से अधिक संग्रह न करना सच्चा श्रावक धर्म - आचार्य
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JALORE NEWS अपनी आवश्यकता से अधिक संग्रह न करना सच्चा श्रावक धर्म - आचार्य
जालोर ( 30 सितम्बर 2023 ) JALORE NEWS श्री नंदीश्वर द्वीप जैन तीर्थ में चम्पालाल भंडारी परिवार की ओर से आयोजित आध्यात्मिक चातुर्मास के तहत शनिवार को धर्म सभा को संबोधित करते हुए आचार्य श्री हार्दिक रत्न सुरीश्वर जी ने कहा कि परमात्मा प्रभु महावीर ने दो प्रकार के धर्म बताये।श्रावक धर्म और साधु धर्म।
चातुर्मास के मीडिया संयोजक हीराचंद भंडारी के मुताबिक आचार्य श्री ने कहा कि साधु धर्म के अंतर्गत जीवन में जितने भी कर्म बंधन हुए हैं उनको खत्म करना। अपना संसार सीमित करना । अपने मन और विचारों को वश में करना। अपनी पांचो इंद्रियों को वश में करते हुए अपने साधना मार्ग पर आगे बढ़ते जाना साधु धर्म बताया गया। वही श्रावक धर्म के अंतर्गत एक मनुष्य को अपना जीवन जीने के लिए जितनी आवश्यकता हो उतनी ही क्रियाएं और वस्तुएं संग्रह करना। मनुष्य जीवन जीने के लिए जो अनिवार्य ना हो ऐसे कार्य करने से बचना। अनावश्यक संग्रह करने से बचना। आवश्यकता से अधिक धन एवं वस्तु को औरों में बांट देना प्रभु महावीर ने सच्चा श्रावक धर्म बताया। सामान्य तौर पर सब मनुष्यों की मूलभूत आवश्यकता एक जैसी होती है। लोभ और लालच की अपनी कोई सीमा नहीं है। लोभ एवं लालच से बचना चाहिए। आवश्यकता से अधिक संग्रह हमारे अहंकार को बढ़ाने वाला होता है। ऐसे अहंकार से दूर रहें।
आचार्य श्री ने कहा कि प्रभु की पूजा -अर्चना से पुण्य में बढ़ोतरी होती हैं। जैन धर्म में फूल पूजा का अत्यंत महत्व है। सफेद फूलों से पूजा करने पर घर में सुख ,शांति और समृद्धि का वातावरण सृजित होता है। यदि आप सही हैं और बार-बार कोर्ट कचहरी के चक्कर लगाने पड़ रहे हैं तो लाल फूलों से पूजा करने पर आपके जीवन में शांति आती है।
धर्म सभा को संबोधित करते हुए मुनिराज श्री शुभ मंगल विजय जी ने कहा कि परमात्मा महावीर ने अनेक उपसर्ग सहन करने के पश्चात प्राप्त ज्ञान को जगत के जीवों के कल्याण के लिए सबको बांट दिया। यह ज्ञान बांटते समय प्रभु महावीर ने किसी प्रकार का कोई भेद नहीं किया। सबको सम दृष्टि से कल्याणकारी ज्ञान दिया। समग्र विश्व में जैन धर्म ही एकमात्र ऐसा है जो हर व्यक्ति को परमात्मा की सेवा पूजा अर्चना करने का अधिकार देता है। कोई भी सच्चे मन और भाव से परमात्मा की स्पर्शना कर सकता है। तप और त्याग के माध्यम से मोक्ष को का सकता है।
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