मकर संक्रांति पर दान का महत्व अनन्त गुणा बढ़ जाता है : प्रवीण त्रिवेदी - BHINMAL NEWS
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मकर संक्रांति पर दान का महत्व अनन्त गुणा बढ़ जाता है : प्रवीण त्रिवेदी - BHINMAL NEWS
पत्रकार माणकमल भंडारी भीनमाल
भीनमाल ( 14 जनवरी 2024 ) BHINMAL NEWS श्री दर्शन पंचांग कर्ता शास्त्री प्रवीण त्रिवेदी ने बताया कि इस वर्ष मकर संक्रांति पुण्यकाल 15 जनवरी को होगा। मकर संक्रांति अश्व पर सवार होकर 14 जनवरी रविवार को अर्धरात्रि 02.44 पर आयेगी।
रविवार रात्रि में रवि संक्रमण होने से उसका पुण्य काल 15 जनवरी सोमवार को सूर्योदय से सूर्यास्त तक होगा। संक्रांति का उप वाहन सिंह है। मकर संक्रांति, कृष्णवस्त्र, गुंजा भूषण, नील कंचुकी, मार्जामद लेपन, विप्रजाति और दुर्वापुष्प की माला धारण कर आयेगी। हाथ में कुंतायुध व पत्रपात्र लेकर चित्रान्न भक्षण करती हुई वृद्धावस्था युक्त होगी। संक्रांति का दक्षिण दिशा में गमन है, परन्तु दृष्टि नैर्ऋत्य कोण की ओर है।
सूर्य 15 जनवरी को 02.44 बजे मकर राशि में प्रवेश करेगा। इस हेतु मकर संक्रांति का पुण्य काल 15 जनवरी को होगा। सूर्य सिद्धान्त के अनुसार पृथ्वी की गति प्रति वर्ष 50 विकला पीछे रह जाती है, वहीं सूर्य संक्रमण आगे बढ़ता जाता है। हालांकि लीप में यह स्थिति पुनः लगभग बराबर की ओर बढ़ती है फिर भी चार वर्ष में 22 से 24 मिनट का अन्तर बनता जाता है। यह अन्तर 70 से 80 वर्ष में एक दिन हो जाता है।
शताब्दी के अनुसार मकर संक्रांति मनाने का क्रम
16 व 17 वीं शताब्दी में 9 व 10 जनवरी
17 व 18 वीं शताब्दी में 11 व 12 जनवरी
18 व 19 वीं शताब्दी में 13 व 14 जनवरी
19 व 20 वीं शताब्दी में 14 व 15 जनवरी
21 व 22 वीं शताब्दी में 14,15 व 16 जनवरी
दान का महत्व
त्रिवेदी ने बताया कि मकर राशि का स्वामी शनि देव है। शनि का आधिपत्य काली वस्तु पर होने से मकर में सूर्य प्रवेश के समय तिल, गुड़, कम्बल आदि के दान का महत्व अनन्त गुणा बढ़ जाता है। संक्रांति के पुण्य काल में तिल मिश्रित जल से स्नान करें, तिल का अभ्यंग शरीर पर लेप करें, तिल का होम, तिल मिश्रित जल पान, तिल का भोजन एवं दान, इस तरह छः प्रकार से तिल का उपयोग करें।
मकर संक्रांति प्राकृतिक पर्व है। इस दिन सूर्य अपनी दक्षिणायन की यात्रा का त्याग कर उत्तरायण की यात्रा में प्रवेश करते है। इसे खगोलिय दृष्टि से देखा जाय तो विषुवत रेखा जो पृथ्वी को उत्तरी व दक्षिणी गोलार्ध दो भागों में बांटती है। इसी दिन सूर्य उत्तरी गोलार्ध की ओर बढ़ने लगता है। वर्तमान में अयनांश लगभग 24 अंश के करीब चल रहा है। चूंकि सूर्य प्रतिदिन एक अंश चलता है। इसलिए सायन सूर्य व निरयन सूर्य के राशि प्रवेश में 24 दिन का अन्तर हो जाता है। जैसे सायन गणित में 21 दिसम्बर को सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता हैं तथा इसी दिन पूरे विश्व में मकर संक्रांति मानी जाती है। परन्तु भारत में निरयन गणित के कारण यह स्थिति 14 जनवरी को मकर संक्रांति मनायी जाती है। लगभग 24 अंश के अन्तराल को अयनांश कहा जाता है।
यह अयनांश ईस्वी सन् 285 में शून्य था। लगभग 70 वर्षों में एक अंश के हिसाब से बढ़ते हुए यह 24 अंश हो चुका है। दोनों गणित का यह अन्तर भविष्य में बढ़ता ही जायेगा। लगभग 700 वर्षों में बाद 34 अंश का अन्तर आ जायेगा । जिससे 14 जनवरी के स्थान पर 24 जनवरी को मकर संक्रांति मनायी जायेगी। वर्तमान में मनायी जाने वाली मकर संक्रांति भी पिछले 70 वर्ष से 14 जनवरी को मनाई जा रही है तथा लगभग 70 वर्ष में तीन पीढ़ीयां चली जाती है । जिससे आम व्यक्ति के दिमाग में यह बात स्थाई हो गई है कि मकर संक्रांति 14 जनवरी को ही आती है। परन्तु ऐसा नहीं है ।
मीडिया प्रभारी माणकमल भंडारी ने बताया कि गणित के अनुसार प्रतिदिन बढ़ते अन्तराल के कारण आगे आने वाले वर्षो में अब यह मकर संक्रांति 15 जनवरी को मनाई जायेगी। इस सदी के आरम्भ में 13 जनवरी को मकर संक्रांति आती थी तथा परन्तु वर्तमान में यह संक्रांति 15 जनवरी को मनाई जायेगी, जो लगभग 70 वर्ष तक यही स्थिति रहेगी। मकर संक्रांति को सूर्य अपने शत्रु शनि की राशि में प्रवेश करता है, अतः इस दिन शनि की वस्तुए अर्थात् काले रंग की वस्तुओं के दान का महत्व बताया गया है। जिसमें तिल, गुड़ की बनी वस्तुएं, कंबल आदि का दान विशेष महत्वपूर्ण है। आयुर्वेद के अनुसार भी इस मौसम में तिल व गुड़ का सेवन वसन्त ऋतु में कफ एवं वर्षा ऋतु में वात रोग से बचाव करता है। पूरे मकर के सूर्य में प्रातः सूर्योदय से पूर्व स्नान करना चाहिए तथा अपने चित्त को विषय विकारों से हटाकर परमात्मा का ध्यान, ज्ञान व प्राप्ति का उपाय करें।
यह संक्रांति छोटे व्यवसाय वालों के लिए फलदायी होगी। वस्तुओं की लागत सस्ती होगी। परंतु बारिश के अभाव में अगले वर्ष अकाल की संभावना बढ़ सकती है। पड़ौसी राष्ट्रों के बीच संघर्ष की संभावनाएं बढेगी।
माघे मासे महादेवः यो दास्यति घृतकंबलम्
स भुक्त्वा सकलान भोगान अंते मोक्षं प्राप्यति।
हिन्दु धर्म की मान्यताओं के अनुसार इस दिन भगवान जनार्दन ने असुरों को मारकर उनके सिरों को मंदार पर्वत के नीचे दबाकर युद्ध समाप्ति की घोषणा की थी। अतः इस दिन को बुराईयों और नकारात्मकता को समाप्त करने का दिन मानते है।
इस त्यौहार को तमिलनाडु में पोंगल, आंध्रप्रदेश, कर्नाटक और केरल में केवल संक्रांति तथा बिहार व उत्तर प्रदेश में खिचड़ी के नाम से जाना जाता है।
JALORE NEWS
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