Ashadha Gupt Navratri 2024 : दो दिन होगी मां चंद्रघंटा की पूजा-अर्चना, जान लें घटस्थापना का सर्वश्रेष्ठ मुहूर्त और शुभ योग
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Ashadha Gupt Navratri 2024 : दो दिन होगी मां चंद्रघंटा की पूजा-अर्चना, जान लें घटस्थापना का सर्वश्रेष्ठ मुहूर्त और शुभ योग
Ashadha Gupt Navratri 2024: दो दिन होगी मां चंद्रघंटा की पूजा-अर्चना, जान लें घटस्थापना का सर्वश्रेष्ठ मुहूर्त औरशुभ योग तंत्र, मंत्र और साधना के लिए खास माने जाने वाले आषाढ़ मास के गुप्त नवरात्र की शुरुआत 6 जुलाई से होगी। अलसुबह विधि विधान से घट स्थापना के बाद भक्त मां दुर्गा के साथ ही दस महाविद्याओं की आराधना करेंगे। साथ ही सिद्धि प्राप्ति के लिए मां दुर्गा के दिव्य मंत्रों का जप करेंगे। गुप्त नवरात्र में 9 देवियों के साथ ही दस महाविद्याओं की विशेष पूजा की मान्यता है।
तृतीया तिथि की वृद्धि के कारण यह नवरात्र 10 दिन के होंगे। इस अवधि में खरीदारी के कई योग-संयोग रहेंगे। श्रद्धालु घर व देवी मंदिरों में अखंड दीप जला कर गुप्त जगह पर रहकर मां शक्ति की उपासना करेंगे। ज्योतिषाचार्य पं.दामोदर प्रसाद शर्मा के मुताबिक आठ और नौ जुलाई को तृतीया तिथि रहने से दोनों दिन मां चंद्रघंटा की पूजा अर्चना दो दिन होगी।
ज्योतिषाचार्य पं.पुरुषोत्तम गौड़ के मुताबिक दस महाविद्या में काली, तारा देवी, त्रिपुर सुंदरी, भुवनेश्वरी, माता छित्रमस्ता, त्रिपुरी भैरवी, मां धूमावती, मां बगलामुखी, मां कमला की आराधना होगी। इस बीच दान पुण्य का दौर, हवन भी जारी रहेगा।
जयपुर के इन मंदिरों में होंगे धार्मिक अनुष्ठान
जयपुर के दुर्गापुरा स्थित दुर्गामाता मंदिर, गलता गेट स्थित गीता गायत्री मंदिर, कमला नेहरू नगर, घाटगेट, दिल्ली रोड, बनीपार्क सहित अन्य जगहों पर स्थित प्राचीन मंदिरों में विभिन्न अनुष्ठान होंगे। कमला नेहरू नगर स्थित बगलामुखी मंदिर में बगलामुखी परिवार और हरिद्रा गणेश की यंत्र अर्चना करके मां भगवती की पूजा अर्चना की जा
एगी।दिन-3, मां त्रिपुर सुंदरी: देवी ललिता को ही मां त्रिपुर सुंदरी कहा जाता है. मां ललिता माहेश्वरी शक्ति की विग्रह शक्ति हैं. मां त्रिपुर सुंदरी 16 (षोडश) कलाओं से परिपूर्ण हैं, अतः माता को षोडशी के नाम से भी जाता है.
दिन-4, मां भुवनेश्वरी: मां दुर्गा के भुवनेश्वरी रूप का अर्थ है संसार भर के ऐश्वर्य की स्वामिनी। आदिशक्ति मां दुर्गा के दस महाविद्याओं का पंचम स्वरूप हैं,
दिन-5, माता छिन्नमस्ता: छिन्नमस्ता माता को मां दुर्गा का उग्र स्वरूप माना जाता है. माता छिन्नमस्ता की उपासना एवं पूजा से जीवन के सभी कष्ट और भय से मुक्ति मिलती है.
दिन- 6, मां त्रिपुर भैरवी: महाविद्या की छठी शक्ति हैं मां त्रिपुर भैरवी. त्रिपुर का अर्थ सृष्टि के तीनों लोकों से है और भैरवी का संबंध भगवान काल भैरव से है.
दिन-7, मां धूमावती: मां धूमावती देवी दुर्गा का विधवा स्वरूप हैं. मां धूमावती की पूजा सुहागन महिलाएं नहीं करती हैं. हिन्दू धर्म कथाओं के अनुसार मां धूमावती को देवी पार्वती का उग्र स्वभाव माना गया है.
दिन-8, माता बगलामुखी: मां बगलामुखी की उपासना करने से शत्रु भय से मुक्ति मिलती है. गुप्त नवरात्रि में मां दुर्गा की साधना और पूजा से हर क्षेत्र में सफलता मिलती है.
दिन-9, माता कमला देवी: माँ कमला 10 महाविद्या में दसवीं महाविद्या हैं. माँ कमला देवी की पूजा करने से साधक को सुख, समृद्धि और ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है.
कब से शुरू होगी नवरात्रि
वैदिक पंचांग के अनुसार, आषाढ़ माह के प्रतिपदा तिथि की शुरुआत 6 जुलाई को शुबह 4:30 मिनिट से प्रारंभ होगी और इसका समापन अगले दिन यानी 7 जुलाई को 4:20 मिनट पर होगी. उदया तिथि के अनुसार गुप्त नवरात्रि 6 जुलाई की मानी जा रही है.
घट स्थापना का
शुभ मुहूर्त6 जुलाई को घट स्थापना का शुभ मुहूर्त सुबह 5:15 मिनट से शुरू होगा, जो 7:20 मिनट तक रहेगा. इसके साथ ही अभिजीत मुहूर्त पर भी घटस्थापना कर सकते हैं, जो सुबह 11:00 बजे से लेकर 12:00 तक रहेगा. अभिजीत मुहूर्त में कलश स्थापना करना बेहद शुभ माना जाता है. इसलिए घट स्थापना अभिजीत मुहूर्त में कर सकते हैं.
आषाढ़ माह की गुप्त नवरात्रि का महत्व
मान्यता के अनुसार, गुप्त नवरात्रि में मां दुर्गा की साधना करने से व्यक्ति को उनका आशीर्वाद प्राप्त होता है. साथ ही व्यक्ति के जीवन में सुख समृद्धि का वास रहता है. सभी प्रकार के दुख संकट दूर होते हैं. इन दिनों में माता की गुप्त साधना की जाती है. मान्यता के अनुसार, माता की साधना के बारे में व्यक्ति अगर किसी दूसरे व्यक्ति को बताता है, तो मिलने वाला पूजा का फल नष्ट हो जाता है. इसलिए गुप्त नवरात्रि में माता की गुप्त तरीके से साधना की जाती है.
गुप्त नवरात्रि की तिथियां…
1. आषाढ़ माह की गुप्त नवरात्रि प्रतिपदा तिथि / 6 जुलाई है.2. आषाढ़ माह की गुप्त नवरात्रि द्वितीया तिथि / 7 जुलाई है.3. आषाढ़ माह की गुप्त नवरात्रि तृतीया तिथि/ 8 और 9 जुलाई है.4. आषाढ़ माह की गुप्त नवरात्रि चतुर्थी तिथि/ 10 जुलाई है.5. आषाढ़ माह की गुप्त नवरात्रि पंचमी तिथि/ 11 जुलाई है.6. आषाढ़ माह की गुप्त नवरात्रि षष्ठी तिथि/ 12 जुलाई है.7. आषाढ़ माह की गुप्त नवरात्रि सप्तमी तिथि/ 13 जुलाई है.8. आषाढ़ माह की गुप्त नवरात्रि अष्टमी तिथि/ 14 जुलाई है.9. आषाढ़ माह की गुप्त नवरात्रि नवमी तिथि/ 15 जुलाई है.
आषाढ़ गुप्त नवरात्रि 2024 घट स्थापना और पूजा की विधि (Ghat Sthapna Vidhi Ashadha Gupt Navratri 2024)
- घट स्थापना से पहले सभी जरूर चीजें एक स्थान पर इकट्ठा कर लें। ऊपर बताए गए शुभ मुहूर्त से पहले जिस स्थान पर आप घट स्थापना करना चाहते हैं, उसे गंगाजल या गौमूत्र छिड़कर पवित्र कर लें।
- इस स्थान पर लकड़ी का बाजोट यानी पटिया रखें। इसके ऊपर लाल कपड़ा बिछाएं। तांबे का कलश में शुद्ध जल भरकर पटिए पर रख दें, बाद में इसे अपने स्थान से बिल्कुल न हिलाएं।
- कलश पर स्वस्तिक का चिह्न बनाएं और पूजा का धागा बांधे। कलश में चंदन, रोली, हल्दी, फूल, दूर्वा आदि चीजें डालें। इसे नारियल से ढंक दें और ये मंत्र बोलकर कलश स्थापना करें- ऊं नमश्चण्डिकाये।
- कलश के पास ही देवी का एक चित्र या प्रतिमा भी स्थापित करें। वहीं पर शुद्ध घी का दीपक लगाएं और इच्छा अनुसार भोग लगाएं। नवरात्रि में रोज कलश और देवी प्रतिमा की विधि-विधान से पूजा करें।
- गुप्त नवरात्रि के समापन (15 जुलाई) पर इस कलश को किसी नदी या तालाब में प्रवाहित कर दें। साथ ही अन्य पूजन सामग्री भी। देवी की प्रतिमा को अपने पूजा स्थान पर रख सकते हैं।
मां दुर्गा की आरती (Devi Durga Ki Aarti)
जय अम्बे गौरी, मैया जय श्यामा गौरी।
तुमको निशिदिन ध्यावत हरि ब्रह्मा शिव री ॥1॥ जय अम्बे…
माँग सिंदुर विराजत टीको मृगमदको।
उज्ज्वल से दोउ नैना, चन्द्रवदन नीको ॥2॥ जय अम्बे.…
कनक समान कलेवर रक्ताम्बर राजै।
रक्त-पुष्प गल माला, कण्ठनपर साजै ॥3॥ जय अम्बे…
केहरी वाहन राजत, खड्ग खपर धारी।
सुर-नर-मुनि-जन सेवत, तिनके दुखहरी ॥4॥ जय अम्बे…
कानन कुण्डल शोभित, नासाग्रे मोती।
कोटिक चन्द्र दिवाकर, सम राजत ज्योती ॥5॥ जय अम्बे…
शुंभ निशुंभ विदारे, महिषासुर-धाती।
धूम्रविलोचन नैना निशिदिन मदमाती ॥6॥ जय अम्बे…
चण्ड मुण्ड संहारे, शोणितबीज हरे।
मधु कैटभ दोउ मारे, सुर भयहीन करे ॥7॥ जय अम्बे…
ब्रह्माणी, रूद्राणी तुम कमलारानी।
आगम-निगम-बखानी, तुम शिव पटरानी ॥8॥ जय अम्बे…
चौसठ योगिनि गावत, नृत्य करत भैरूँ।
बाजत ताल मृदंगा औ बाजत डमरू ॥9॥ जय अम्बे…
तुम ही जग की माता, तुम ही हो भरता।
भक्तन की दुख हरता सुख सम्पति करता ॥10॥ जय अम्बे…
भुजा चार अति शोभित, वर मुद्रा धारी।
मनवाञ्छित फल पावत, सेवत नर-नारी ॥11॥ जय अम्बे…
कंचन थाल विराजत, अगर कपूर बाती।
(श्री) मालकेतु में राजत कोटिरतन ज्योती ॥12॥ जय अम्बे…
(श्री) अम्बेजी की आरती जो कोई नर गावै।
कहत शिवानंद स्वामी, सुख सम्पति पावै ॥13॥ जय अम्बे...
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