श्राद्ध पक्ष 17 सितंबर से 02 अक्टूबर तक रहेगा : शास्त्री - BHINMAL NEWS
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श्राद्ध पक्ष 17 सितंबर से 02 अक्टूबर तक रहेगा : शास्त्री - BHINMAL NEWS
पत्रकार माणकमल भंडारी भीनमाल
भीनमाल ( 17 सितंबर 2024 ) BHINMAL NEWS श्रीदर्शन पंचांग के प्रधान संपादक शास्त्री प्रवीण त्रिवेदी ने बताया कि पितरों के उद्देश्य से विधिपूर्वक जो कर्म श्रद्धा से किया जाता है, उसे श्राद्ध कहते है ।
श्रद्धया पितृन् उद्दिष्य विधिना क्रियते यत्कर्म तत् श्राद्धम् ।
श्रद्धा से ही श्राद्ध की निष्पत्ति होती है । अपने मृत पितृगणों के उद्देश्य से श्रद्धापूर्वक किया जाने वाला कर्मविशेषं को श्राद्ध शब्द के नाम से जाना जाता है। इसे ही पितृयज्ञ भी कहते हैं । महर्षि पराशर के अनुसार देश काल तथा पात्र में हविष्यादि विधि द्वारा जो कर्म तिल और दर्भ तथा मन्त्रों से युक्त होकर श्रद्धापूर्वक किया जाए वही श्राद्ध है। त्रिवेदी ने बताया कि आश्विन कृष्ण पक्ष में प्राणी को पितृगण की संतुष्टि तथा अपने कल्याण के लिये भी महालय श्राद्ध करना चाहिये। इस संसार में श्राद्ध करने वाले के लिये श्राद्ध से श्रेष्ठ अन्य कोई कल्याणकारक उपाय नहीं है। इतना ही नहीं श्राद्ध अपने अनुष्ठाता की आयु बढ़ा देता है । पुत्र प्रदानकर कुल-परम्परा को अक्षुण्ण रखता है । धन-धान्य की वृद्धि करता है, शरीर में बल पौरुष की वृद्धि का संचार करता है । पुष्टि प्रदान करता है और यश का विस्तार करते हुए सभी प्रकार का सुख प्रदान करता हैं । श्राद्ध में दी गयी अन्न आदि सामग्रियां पितरों को नाम गोत्र के माध्यम से विश्वेदेव एवं अग्निश्वात्त आदि दिव्य पितर हव्य-कब्य को पितरों प्राप्त करा देते हैं। यदि पिता देवयोनि को प्राप्त हो गया तो दिया गया अन्न उसे वहां अमृत रूप होकर प्राप्त हो जाता है।मनुष्य योनि में अन्न रूप में तथा पशु योनि में तृण रूप में उसे उसकी प्राप्ति होती है।नागादि योनियों में वायु रूप से, यक्ष योनि में पान रूप से तथा अन्य योनियों में भी उसे श्राद्धीय वस्तु भोगजनक तृप्तिकर पदार्थो के रूप में प्राप्त होकर अवश्य तृप्त करती है । जिस प्रकार गोशाला में भूली माता को बछड़ा किसी न किसी प्रकार ढूढ ही लेता है । उसी प्रकार मन्त्र तत्तद् वस्तुजात को प्राणी के पास किसी न किसी प्रकार पहुंचा ही देता है।
सामान्यतः श्राद्ध की दो प्रकिया है । पिण्डदान और ब्राह्मण भोजन । मृत्यु के बाद जो लोग देवलोक या पितृलोक में पहुंचते हैं । वे मन्त्रों द्वारा बुलाये जाने पर उन उन लोको से तत्क्षण श्राद्ध देश मे आ जाते हैं और निमंत्रित ब्राह्मणों के माध्यम से भोजन कर लेते हैं। सूक्ष्मग्राही होने से भोजन के सूक्ष्मकणों के आघ्राण से उनका भोजन हो जाता है । वे तृप्त हो जाते हैं। मनु ने लिखा है कि ब्राह्मण के मुख से देवता हव्य को और पितर क़व्य को ग्रहण करते हैं। ये मनोजव होते हैं अर्थात इन पितरों की गति मन की गति की तरह होती है। ये स्मरण से ही श्राद्ध देश मे आ जाते हैं और ब्राह्मणों के साथ भोजन कर तृप्त हो जाते हैं। इनको सब लोग इसलिये नही देख पाते क्योकि इनका शरीर वायवीय होता है ।
भविष्य पुराण के अनुसार श्राद्ध 12 प्रकार के होते हैं, जो इस प्रकार हैं । नित्य, नैमित्तिक, काम्य, वृद्धि, सपिण्डन, पार्वण, गोष्ठी, शुद्धर्थ, कर्मांग, दैविक, यात्रार्थ । पुष्टयर्थ
श्राद्धकर्म में गाय का घी, दूध या दही काम में लेना चाहिए । श्राद्ध में चांदी के बर्तनों का उपयोग व दान पुण्यदायक है । श्राद्ध में ब्राह्मण को भोजन करवाते समय परोसने के बर्तन दोनों हाथों से पकड़ कर लाने चाहिए । एक हाथ से लाए अन्न पात्र से परोसा हुआ भोजन राक्षस छीन लेते हैं। ब्राह्मण को भोजन मौन रहकर एवं व्यंजनों की प्रशंसा किए बगैर करना चाहिए ।
श्राद्ध में ब्राह्मण को भोजन करवाना आवश्यक है, जो व्यक्ति बिना ब्राह्मण के श्राद्ध कर्म करता है, उसके घर में पितर भोजन नहीं करते, श्राप देकर लौट जाते हैं, ब्राह्मण हीन श्राद्ध से मनुष्य महापापी होता है।
श्राद्ध में जौ, कांगनी, मटरसरसों का उपयोग श्रेष्ठ रहता है, तिल की मात्रा अधिक होने पर श्राद्ध अक्षय हो जाता है, देवकार्य में ब्राह्मण का चयन करते समय न सोचे, लेकिन पितृ कार्य में योग्य ब्राह्मण का ही चयन करना चाहिए क्योंकि श्राद्ध में पितरों की तृप्ति ब्राह्मणों द्वारा ही होती है । धर्म ग्रंथों के अनुसार सायंकाल का समय राक्षसों के लिए होता है, यह समय सभी कार्यों के लिए निंदित है, अत: शाम के समय भी श्राद्धकर्म नहीं करना चाहिए। दोनों संध्याओं के समय भी श्राद्धकर्म नहीं करना चाहिए, दिन के आठवें मुहूर्त (कुतपकाल) में पितरों के लिए दिया गया दान अक्षय होता है।
चना, मसूर, उड़द, कुलथी, सत्तू, मूली, काला जीरा, कचनार, खीरा, काला उड़द, काला नमक, लौकी, बड़ी सरसों, काले सरसों की पत्ती और बासी, अपवित्र फल या अन्न श्राद्ध में निषेध हैं।
17 को पूर्णिमा
18 को प्रतिपदा श्राद्ध
19 को द्वितीया श्राद्ध
20 को तृतीया श्राद्ध
21 को चतुर्थी श्राद्ध
22 को पंचमी व षष्ठी श्राद्ध
23 को षष्ठी व सप्तमी श्राद्ध
24 को अष्टमी श्राद्ध
25 को मातृ नवमी श्राद्ध
26 को दशमी श्राद्ध
27 को एकादशी श्राद्ध
29 को द्वादशी श्राद्ध, संयासी श्राद्ध
30 को त्रयोदशी श्राद्ध
01 को चतुर्दशी श्राद्ध , दग्ध शस्त्रादिहत श्राद्ध
02 को सर्वपितृ अमावस्या श्राद्ध ।
JALORE NEWS
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