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मुख्यपृष्ठ INTERNATIONAL NEWS एक देश, एक चुनाव' लोकसभा में हुआ पास जाने कितने मिला वोट
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एक देश, एक चुनाव' लोकसभा में हुआ पास जाने कितने मिला वोट

One Nation One Election: संविधान (129वां) संशोधन बिल 2024, यानी कि एक देश-एक चुनाव विधेयक को लोकसभा में पेश किया जा चुका है और इसकी शुरुआत कब हुई जाने
Shravan Kumar
Shravan Kumar
17 दिस॰, 2024 0 0
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One Nation One Election
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एक देश, एक चुनाव' लोकसभा में हुआ पास जाने कितने मिला वोट 

One Nation One Election: संविधान (129वां) संशोधन बिल 2024, यानी कि एक देश-एक चुनाव विधेयक को लोकसभा में पेश किया जा चुका है और इसे पेश करते हुए सबसे बड़ी दलील ये दी गई कि जब 1952 से 1967 तक एक देश-एक चुनाव हो सकता तो ये अब क्यों नहीं हो सकता. अब सवाल ये है कि आखिर 1967 में ऐसा क्या हुआ था कि 1952 से चली आ रही एक देश-एक चुनाव की परंपरा ही खत्म हो गई. आखिर इंदिरा गांधी की वो कौन सी गलती थी, जिसका खामियाजा पूरे देश को उठाना पड़ा और लोकसभा-राज्यों की विधानसभा के चुनाव अलग होने लगे. आखिर क्या है 1967 की वो कहानी, जिसे खत्म कर नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार नया इतिहास बनाना चाहती है. 

आजादी के बाद देश में पहली बार आम चुनाव साल 1951-52 में हुए थे और तब देश में लोकसभा के साथ ही राज्यों की विधानसभाओं के भी चुनाव हुए थे. ये सिलसिला साल 1967 तक लगातार चलता रहा. यानी कि 1957, 1962 और 1967 में भी लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव एक साथ ही हुए थे. हालांकि, इस बीच एक अपवाद भी था और वो था केरल. इंदिरा गांधी ने साल 1959 में ही केरल की चुनी हुई सरकार को भंग कर दिया था. तब 1960 में केरल में अलग से विधानसभा के चुनाव हुए. 1962 में जब देश में आम चुनाव और दूसरे राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव हुए तब भी केरल में चुनाव नहीं करवाए गए क्योंकि तब उस विधानसभा को काम करते महज दो साल ही हो रहे थे.

केरल में लगा था राष्ट्रपति शासन 

इसके बाद 1964 में केरल में फिर से राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया. 1965 में फिर से चुनाव हुए, लेकिन सरकार का गठन नहीं हुआ बल्कि राष्ट्रपति शासन ही चलता रहा और जब 1967 में फिर से देश में लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव हुए तो केरल में भी साथ ही चुनाव हुए और पूरा देश-प्रदेश एक साथ एक चुनाव में आ गया, लेकिन चुनाव होने के एक साल के अंदर ही इंदिरा गांधी के एक फैसले से जो सिलसिला टूटा तो फिर उसे अब तक कोई भी सरकार कायम नहीं कर पाई है.

पंजाब और पश्चिम बंगाल में भी लगाया गया था राष्ट्रपति शासन 

1968 की शुरुआत में ही इंदिरा गांधी ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री चौधरी चरण सिंह को बर्खास्त कर दिया और प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लगा दिया. इसके बाद विधानसभा को भी भंग कर दिया गया. कुछ ऐसा ही हाल पंजाब का भी था, जहां सरकार भंग कर राष्ट्रपति शासन लगाया गया और फिर विधानसभा भी भंग कर दी गई. पश्चिम बंगाल में भी इंदिरा गांधी ने यही किया. कुछ और भी राज्यों में इंदिरा गांधी ने चुनी हुई सरकारों को भंग किया, जिसकी वजह से विधानसभा के चुनाव लोकसभा से अलग हो गए. रही सही कसर लोकसभा में भी इंदिरा गांधी ने पूरी कर दी और लोकसभा के जो चुनाव 1972 में होने चाहिए थे, उसे भी एक साल पहले 1971 में ही करवा दिया. कुल मिलाकर नेहरू के जमाने से जो सिलसिला चला आ रहा था लोकसभा और विधानसभाओं के एक साथ चुनाव का, उसे इंदिरा ने तोड़ दिया, लेकिन चुनाव आयोग ने एक और कोशिश की 1983 में कि रवायत को फिर से कायम किया जाए. 

1983 में चुनाव आयोग ने प्रकाशित की थी रिपोर्ट

चुनाव आयोग ने 1983 में जो अपनी वार्षिक रिपोर्ट प्रकाशित की थी, उसमें उसने कहा था कि लोकसभा और राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव एक साथ हो सकते हैं, लेकिन वो हो नहीं पाया और मामला ठंडे बस्ते में चला गया. इसके बाद 1999 में जस्टिस बीपी जीवन रेड्डी की अगुवाई में लॉ कमीशन ऑफ इंडिया ने अपनी 170वीं रिपोर्ट प्रकाशित की, जिसका नाम था रिफॉर्म्स ऑफ इलेक्टोरल लॉ. इस रिपोर्ट में विधि आयोग ने एक देश-एक चुनाव की सिफारिश की थी, लेकिन इसपर भी अमल नहीं हो पाया.

क्या लिखा था लॉ कमीशन की रिपोर्ट में 

साल 2015 में पार्लियामेंट्री स्टैंडिंग कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में एक देश-एक चुनाव का सुझाव दिया. 2017 में नीति आयोग ने कहा कि एक देश-एक चुनाव हो. 2018 की लॉ कमीशन की रिपोर्ट में भी कहा गया कि एक देश-एक चुनाव हो. जस्टिस बीएस चौहान की अगुवाई में बनी इस कमेटी ने तो एक देश-एक चुनाव पर कानूनी और संवैधानिक सवालों को भी जांचा-परखा था. 

अर्जुनराम मेघवाल ने लोकसभा में पेश किया

इसके बाद 2019 में पीएम मोदी ने लाल किले से अपने भाषण में ही बोल दिया कि एक देश-एक चुनाव हो और अब तो देश के पूर्व राष्ट्रपति रहे रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में बाकायदा एक कमेटी भी बना दी गई, जिसने एक देश-एक चुनाव की समीक्षा कर अपनी रिपोर्ट पेश कर दी और उस रिपोर्ट के आधार पर ही कैबिनेट ने एक देश-एक चुनाव के बिल को मंजूरी दे दी, जिसके बाद 17 दिसंबर को केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुनराम मेघवाल ने उसे लोकसभा में पेश कर दिया.

जेपीसी में होगी बिल की विस्तृत चर्चा

अब ये बिल जेपीसी के पास है और जेपीसी में इस बिल पर विस्तृत चर्चा होगी, लेकिन चर्चा के बाद भी ये बिल कानून बन ही जाएगा, इसकी कोई गारंटी नहीं है. क्योंकि ये बिल सामान्य बिल न होकर संविधान संशोधन विधेयक है, जिसके लिए सरकार को लोकसभा और राज्यसभा दोनों ही सदनों में दो तिहाई बहुमत की जरूरत होगी और ये नंबर फिलहाल बीजेपी के साथ नहीं है, तो आशंका इस बात की है कि इस बार भी एक देश-एक चुनाव की बात सिर्फ बात ही रह जाएगी और ये बिल भी ठंडे बस्ते में ही चला जाएगा. 

‘पारित करने के लिए 2/3 बहुमत की आवश्यकता होगी’

कांग्रेस सांसद मणिकम टैगोर के सहयोगी शशि थरूर ने भी संख्या में स्पष्ट अंतर की ओर ध्यान दिलाया। सदन की कार्यवाही कुछ देर के लिए स्थगित होने के बाद उन्होंने संवाददाताओं से कहा, “निस्संदेह सरकार के पास अधिक संख्या है, लेकिन इसे (संविधान संशोधन विधेयक को) पारित करने के लिए आपको 2/3 बहुमत की आवश्यकता होगी, जो स्पष्ट रूप से उनके पास नहीं है। इसलिए यह स्पष्ट है कि उन्हें इस पर अधिक समय तक अड़े नहीं रहना चाहिए।” नियमों के अनुसार, संविधान में इन संशोधनों को लोकसभा में पारित होने के लिए उपस्थित और मतदान करने वाले दो-तिहाई सदस्यों के समर्थन की आवश्यकता होगी। कांग्रेस ने आज के दिन का उदाहरण देते हुए बताया कि संविधान संशोधन विधेयक को पेश करने के लिए मतदान में 461 सदस्यों ने हिस्सा लिया। यदि विधेयक को पारित करने के लिए मतदान होता तो 461 में से 307 को इसके पक्ष में मतदान करना होता, लेकिन केवल 269 ने ही ऐसा किया, जिसके कारण कांग्रेस को कहना पड़ा कि, “इस विधेयक को समर्थन प्राप्त नहीं है। कई पार्टियों ने इसके खिलाफ बोला है।”

लोकसभा में स्वीकार हुआ एक देश एक चुनाव बिल, JPC में भेजे जाने की तैयारी

एक देश एक चुनाव बिल संसद में पेश कर दिया गया है। साथ ही इसे लोकसभा में स्वीकार भी कर लिया गया है। बिल के समर्थन में 269 वोट डाले गए। वहीं, इसके विरोध में 198 वोट पड़े। अब इस बिल को JPC यानी संयुक्त संसदीय समिति में भेजा जाएगा मंगलवार को ही कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने सदन में बिल को पेश किया। खास बात है कि संसद में पहली बार इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग के जरिए डिविजन हुआ

मेघवाल ने मंगलवार को देश में लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराने के प्रावधान वाले ‘संविधान (129वां संशोधन) विधेयक, 2024’ और उससे जुड़े ‘संघ राज्य क्षेत्र विधि (संशोधन) विधेयक, 2024’ को पुर:स्थापित करने के लिए संसद के निचले सदन में रखा। वन नेशन वन इलेक्शन पर चर्चा या पारित होने के लेकर मतदान की प्रक्रिया पूरी हो चुकी है। केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने सदन में पहले कहा था कि इस बिल को बहस के लिए संसदीय समिति के पास भी भेजा जा सकता है। उन्होंने कहा, 'जब कैबिनेट के पास एक देश एक चुनाव आया था, तब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि इसे संसद की संयुक्त समिति के पास भेजा जाना चाहिए। इसपर हर स्तर पर विस्तार से चर्चा की जानी चाहिए'

संयुक्त समिति का गठन

विभिन्न दलों के सांसदों की संख्या के मुताबिक आनुपातिक आधार पर किया जाएगा इस संबंध में एक पदाधिकारी ने सोमवार को कहा कि सबसे बड़ी पार्टी होने के नाते भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को समिति की अध्यक्षता मिलेगी और इसके कई सदस्य इसमें शामिल होंगे ।

269 पक्ष में और 196 ने विपक्ष में दिया वोट

लोकसभा अध्यक्ष ने आज यानी मंगलवार, 17 दिसंबर को सदन में विधेयक पेश करने पर हुए मतदान के नतीजे की घोषणा की। मतदान में 269 सदस्यों ने पक्ष में (हां में) और 196 ने विपक्ष में (नहीं में) वोट दिया। इसके बाद कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ पर संविधान (129वां संशोधन) विधेयक, 2024 को औपचारिक रूप से पेश किया। लोकसभा में बोलते हुए अमित शाह ने कहा, “जब एक राष्ट्र, एक चुनाव विधेयक को मंजूरी के लिए कैबिनेट में लाया गया था, तो पीएम मोदी ने कहा था कि इसे विस्तृत चर्चा के लिए JPC को भेजा जाना चाहिए। अगर कानून मंत्री इस विधेयक को जेपीसी को भेजने के लिए तैयार हैं, तो इसे पेश करने पर चर्चा समाप्त हो सकती है।”

कांग्रेस ने वोटों के अंतर पर उठाए सवाल

‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ विधेयक के आलोचकों ने इस अंतर पर सवाल उठाया। कांग्रेस सांसद मणिकम टैगोर ने ई-वोटिंग सिस्टम के स्क्रीनशॉट के साथ एक्स पर कहा, “कुल 461 वोटों में से दो-तिहाई बहुमत (यानी, 307) की आवश्यकता थी… लेकिन सरकार को केवल (269) वोट मिले, जबकि विपक्ष को 198 मिले। ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ प्रस्ताव दो-तिहाई समर्थन हासिल करने में विफल रहा।” इससे पता चलता है कि सरकार के पास इस चरण में भी विधेयकों को पारित करने के लिए समर्थन की कमी है।

यहां भी EVM पर आपत्ति

खबर है कि बिल पर 269 पक्ष और 198 विरोध में हैं। खास बात है कि सदन में भी इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग पर सदस्यों ने आपत्ति जाहिर की है, जिसपर गृहमंत्री शाह ने पर्ची देने की बात कही है। उन्होंने कहा है कि अगर मतदान पर आपत्ति है, तो पर्ची दे दी जाए। साथ ही बिरला ने भी कहा कि अगर किसी सदस्य को लगता है कि वोटिंग गलत हुई है, तो वह पर्ची के माध्यम से वोट संशोधित कर सकता है

चर्चा के लिए मिलेगा समय

शाह के अलावा बिरला ने भी बिल पर विस्तार से चर्चा की बात कही है। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, उन्होंने कहा कि मंत्री जी ने कहा है की जेपीसी के समय विस्तार से चर्चा होगी और सभी दलों के सदस्य होंगे उन्होंने यह भी साफ कर दिया है कि बिल आने पर चर्चा के लिए पूरा समय मिलेगा और सदस्य जितने दिन चाहेंगे, उतनी लंबी चर्चा होगी

किसी बिल के लिए पहली बार इलेक्ट्रॉनिक तरीके से वोटिंग

एक देश, एक चुनाव बिल दोबारा प्रतिस्थापित कराने के लिए पहली बार इलेक्ट्रॉनिक तरीके से वोटिंग हुई. इसमें पक्ष में 220, विपक्ष में 149 वोट पड़े. स्पीकर ने कहा कि जिन सदस्यों को वोट बदलना हो, वे पर्ची ले लें। इसके बाद हुई काउंटिंग में पक्ष में 269 और विपक्ष में 198 मत पड़े. कानून मंत्री मेघवाल ने दोबारा बिल पेश किया.

इस बीच, कांग्रेस सांसद मनीष तिवारी ने केंद्रीय मंत्री के कदम का विरोध करते हुए कहा, "संविधान की सातवीं अनुसूची से परे मूल संरचना सिद्धांत है, जो बताता है कि सदन की संशोधन शक्ति से परे संविधान की कुछ विशेषताएं हैं. आवश्यक विशेषताएं संघवाद और हमारे लोकतंत्र की संरचना हैं. इसलिए, कानून और न्याय मंत्री द्वारा पेश किए गए बिल संविधान की मूल संरचना पर पूर्ण हमला हैं और सदन की विधायी क्षमता से परे हैं."

सभी चुनावों के लिए एक समान मतदाता सूची की भी सिफारिश

सितंबर में, केंद्रीय मंत्रिमंडल ने पूर्व राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद की अध्यक्षता में एक साथ चुनाव पर एक उच्च-स्तरीय समिति की सिफारिशों को स्वीकार कर लिया. समिति की रिपोर्ट में दो चरणों में एक साथ चुनाव के कार्यान्वयन की रूपरेखा दी गई: पहले चरण में लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराना और आम चुनाव के 100 दिनों के भीतर स्थानीय निकाय चुनाव (पंचायत और नगर निगम चुनाव) कराना. पैनल ने सभी चुनावों के लिए एक समान मतदाता सूची की भी सिफारिश की.

हालाँकि, कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी-एससीपी) के सांसदों सहित कई विपक्षी नेताओं ने 'एक राष्ट्र, एक चुनाव' विधेयक पर अपना कड़ा विरोध व्यक्त किया.

जयराम रमेश ने बिल को असंवैधानिक बताते हुए खारिज किया

एएनआई से बात करते हुए कांग्रेस सांसद जयराम रमेश ने बिल को असंवैधानिक और लोकतंत्र के लिए खतरा बताते हुए खारिज कर दिया. उन्होंने कहा, "कांग्रेस पार्टी दृढ़ता से, पूरी तरह से, व्यापक रूप से एक राष्ट्र, एक चुनाव विधेयक को खारिज करती है. हम परिचय का विरोध करेंगे. हम इसे संयुक्त संसदीय समिति को सौंपने की मांग करेंगे."

समाजवादी पार्टी के सांसद राम गोपाल यादव ने भी विधेयक की आलोचना करते हुए कहा, "हमारी पार्टी इसका विरोध करेगी क्योंकि यह संविधान की सभी धाराओं के खिलाफ है."

इससे पहले दिन में, कांग्रेस सांसद तिवारी ने लोकसभा में संविधान (एक सौ उनतीसवां संशोधन) विधेयक, 2024 पेश करने का विरोध करने के लिए एक औपचारिक नोटिस प्रस्तुत किया. उन्होंने कहा, "प्रस्तावित विधेयक पर मेरी आपत्तियां संवैधानिकता और संवैधानिकता के संबंध में गंभीर चिंताओं पर आधारित हैं."

बहुमत से स्वीकार हुआ बिल

बिल को पेश किए जाने के पक्ष में 269 वोट, जबकि विरोध में 198 वोट पड़े. इसके बाद मेघवाल ने ध्वनिमत से मिली सदन की सहमति के बाद ‘संघ राज्य क्षेत्र विधि (संशोधन) बिल, 2024’ को भी पेश किया. दोनों बिलों को पुर:स्थापित किए जाने के बाद लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने अपराह्न करीब एक बजकर 55 मिनट पर सदन की कार्यवाही अपराह्न तीन बजे तक के लिए स्थगित कर दी.

नई संसद में पहली बार हुआ मत विभाजन

नए संसद भवन में पहली बार किसी बिल पर मत विभाजन हुआ और यह भी पहली बार था कि इलेक्ट्रॉनिक मत विभाजन हुआ. 

विपक्षी दलों ने किया बिल का विरोध

कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों ने बिल पेश किए जाने का विरोध करते हुए आरोप लगाया कि यह संविधान के मूल ढांचे पर हमला है तथा देश को ‘तानाशाही’ की तरफ ले जाने वाला कदम है. उन्होंने यह भी कहा कि बिल को संयुक्त संसदीय समिति के पास भेजा जाना चाहिए. कानून मंत्री मेघवाल ने कहा कि एक साथ चुनाव कराने से संबंधित प्रस्तावित बिल राज्यों की शक्तियों को छीनने वाला नहीं है, बल्कि यह बिल पूरी तरह संविधान सम्मत है.

'एक देश, एक चुनाव' के लिए मंगलवार को सरकार संसद में 'संविधान (129वां संशोधन) विधेयक 2024' और केंद्र शासित प्रदेश कानून (संशोधन) विधेयक 2024 लेकर आई. लोकसभा में कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने ये बिल पेश किए. लोकसभा में जोरदार हंगामे के बीच बात डिवीजन तक पहुंची और इसके बाद ये बिल सदन में पेश हो सका. एक देश, एक चुनाव पर राजनीतिक दलों के सुर अलग-अलग सुनाई दिए. कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने यह बिल सदन में पेश करने का प्रस्ताव किया. कांग्रेस से लेकर तमाम विरोधी पार्टियों ने इस बिल का विरोध किया. शिवसेना और तेलुगु देशम पार्टी (टीडीपी) जैसे एनडीए के घटक दल खुलकर बिल के पक्ष में खड़े नजर आए. यह बिल डिवीजन के बाद पेश हुआ और इसके बाद जेपीसी को भेज दिया गया लेकिन उससे पहले किस पार्टी का क्या स्टैंड रहा?

कांग्रेस ने किया विरोध

वन नेशन, वन इलेक्शन का प्रावधान करने के लिए लाए गए संविधान संशोधन विधेयक का कांग्रेस की ओर से मनीष तिवारी ने विरोध किया. मनीष तिवारी ने कहा कि संविधान (129वां संशोधन) बिल और केंद्र शासित प्रदेश कानून संशोधन विधेयक संविधान की सातवीं अनुसूची और उसके बेसिक स्ट्रक्चर के खिलाफ है. संविधान की कुछ विशेषताएं हैं जो संसद के संशोधन के अधिकार से भी परे हैं. उन्होंने संघवाद का जिक्र करते हुए विधेयक को संविधान की मूल संरचना पर आघात बताया.

लोकसभा में विपक्ष के उपनेता गौरव गोगोई ने कहा कि चुनाव आयोग को इतने ही अधिकार दिए गए हैं कि कैसे सुपरवाइज करना है, कैसे मतदाता सूची बनानी है. राष्ट्रपति कभी भी परामर्श लेते हैं तो वे कैबिनेट से परामर्श लेते हैं और कभी कभी गवर्नर से. इस बिल में चुनाव आयोग से परामर्श की बात है जो असंवैधानिक है. उन्होंने कहा कि पहली बार ये ऐसा कानून लेकर आए हैं कि राष्ट्रपति चुनाव आयोग से भी परामर्श लेंगे. इसका हम विरोध करते हैं.

गौरव गोगोई ने ये भी कहा कि इस बिल के जरिये राष्ट्रपति को ज्यादा शक्ति दी गई है. राष्ट्रपति अब 82 ए के जरिये विधानसभा को भंग कर सकते हैं. ये  एक्सेसिव पावर राष्ट्रपति के साथ चुनाव आयोग को भी दी गई है. उन्होंने नीति आयोग की रिपोर्ट के आधार पर यह कदम उठाए जाने की भी आलोचना की और कहा कि वह संवैधानिक बॉडी नहीं है. उसकी रिपोर्ट में न जाएं. 2014 के चुनाव में 3700 करोड़ खर्च हुआ, इसके लिए ये असंवैधानिक कानून लाए हैं. गौरव गोगोई ने कहा कि ये पूरे भारत के चुनाव को छीनेंगे तो हम ये नहीं होने देंगे. हम इसका विरोध करते हैं. इस बिल को जेपीसी में भेजा जाए.

सपा के धर्मेंद्र ने बीजेपी पर साधा निशाना

यूपी के आजमगढ़ से समाजवादी पार्टी (सपा) के सांसद धर्मेंद्र यादव ने दो दिन पहले संविधान पर चर्चा का जिक्र करते हुए सरकार पर जमकर निशाना साधा. धर्मेंद्र यादव ने कहा कि अभी दो दिन पहले इसी सदन में संविधान को बचाने की कसमें खाने में कोई कसर नहीं रखी गई लेकिन दो ही दिन में संविधान बदला जा रहा है. बाबा साहब से अधिक विद्वान इस सदन में भी कोई नहीं बैठा है. संविधान की मूल भावना के खिलाफ जाकर तानाशाही लाने के प्रयास किए जा रहे हैं. जो लोग मौसम देखकर तारीखें बदलते हैं, आठ सीट पर एक साथ चुनाव नहीं करा पाते, वो बात करते हैं एक देश एक चुनाव की. ये बीजेपी के लोग तानाशाही लाने के नए रास्ते खोज रहे हैं. एक प्रांत के अंदर सरकार गिरती है तो पूरे देश का चुनाव कराएंगे क्या.

शिवसेना (यूबीटी) और ओवैसी ने क्या कहा

शिवसेना (यूबीटी) के सांसद अनिल देसाई ने इस बिल का विरोध करते हुए कहा कि भारत गणराज्य राज्यों का यूनियन है. यह बिल फेडरलिज्म पर आघात है. एआईएमआईएम के असदुद्दीन ओवैसी ने इस बिल को संविधान का उल्लंघन बताते हुए कहा कि यह पार्लियामेंट्री डेमोक्रेसी का उल्लंघन है, फेडरलिज्म का भी उल्लंघन है. यह बिल सीधे प्रेसीडेंशियल स्टाइल डेमोक्रेसी के लिए लाया गया है. यह सबसे बड़े नेता के ईगो के तहत आया है. हम इसका विरोध करते हैं.

वहीं, राजस्थान के सीकर से लेफ्ट के सांसद अमराराम ने कहा कि यह बिल संविधान और लोकतंत्र को खत्म करके तानाशाही की ओर बढ़ने का प्रयास है. लोकल बॉडी स्टेट गवर्नमेंट का है, इसको भी आप लेना चाहते हैं. इसलिए क्योंकि एक आपका ही चलेगा. राज्यों की विधानसभा के अधिकार है, वो सब आप लेना चाहते हैं.    

टीआर बालू- कल्याण बनर्जी ने बिल पर उठाए सवाल

डीएमके सांसद टीआर बालू ने इस बिल को संविधान विरोधी बताते हुए इसे संसद में लाए जाने पर ही सवाल उठाया. उन्होंने कहा कि जब सरकार के पास दो तिहाई बहुमत नहीं है, तब उसे किस तरह से ये बिल लाने की अनुमति दी गई. इस पर स्पीकर ओम बिरला ने कहा कि मैंने अभी अनुमति नहीं दी है. इन्होंने प्रस्ताव रखा है. संसद एलाउ करती है, मैं नहीं. टीआर बालू ने इसके बाद कहा कि सरकार को ये बिल वापस ले लेना चाहिए, जेपीसी को भेज देना चाहिए. टीएमसी सांसद कल्याण बनर्जी ने बिल को संविधान पर आघात बताते हुए इसे अल्ट्रा वायरस बताया.

उन्होंने कहा कि ऑटोनॉमी देश की विधानसभाओं को दूर ले जाएगी, ये संविधान विरोधी है. यह इलेक्शन रिफॉर्म नहीं है, यह एक जेंटलमैन का डिजायर पूरा करने की कोशिश है. एनसीपी (एसपी) सांसद सुप्रिया सुले ने कहा कि यह बिल संविधान विरोधी है. आप चुनाव आयोग को विधानसभा भंग करने का अधिकार दे रहे हो चुनाव कराने के लिए. ये बिल या तो वापस ले लिया जाए या फिर जेपीसी को भेज दिया जाए. आरएसपी सांसद एनके प्रेमचंद्रन ने वन नेशन, वन इलेक्शन बिल का विरोध करते हुए कहा कि मनीष तिवारी ने जो सवाल उठाए, उनसे सहमत हूं. यह बिल राज्य विधानसभा के कार्यकाल को परिवर्तित करने का अधिकार देता है जो संघीय ढांचे के खिलाफ है. इंडियन मुस्लिम लीग के सांसद ईटी मोहम्मद बशीर ने बिल का विरोध किया.

शिवसेना-टीडीपी ने किया बिल का समर्थन

शिवसेना (शिंदे) और तेलुगु देशम पार्टी (टीडीपी) ने बिल का समर्थन किया. शिवसेना (शिंदे) के श्रीकांत शिंदे ने वन नेशन, वन इलेक्शन बिल का समर्थन करते हुए कहा कि कांग्रेस को रिफॉर्म शब्द से ही नफरत है. इस पर विपक्ष की ओर से जबरदस्त हंगामा शुरू हो गया. वहीं, टीडीपी की ओर से केंद्रीय मंत्री चंद्रशेखर पेम्मासानी ने बिना किसी शर्त के बिल का समर्थन करने की बात कही. उन्होंने कहा कि राजनीतिक दलों का चुनाव पर खर्च एक लाख करोड़ के पार पहुंच गया है. एक साथ चुनाव कराने से इसमें कमी आएगी.

पीएम ने खुद कहा जेपीसी को भेजें- अमित शाह

गृह मंत्री अमित शाह ने प्रस्ताव पर चर्चा के दौरान टीआर बालू की डिमांड का उल्लेख करते हुए कहा कि जब ये बिल कैबिनेट में आया था, तब खुद प्रधानमंत्री ने कहा था कि इसे जेपीसी को दे देना चाहिए और विस्तृत स्क्रूटनी होनी चाहिए. उन्होंने कहा कि ज्यादा समय जाया किए बगैर मंत्रीजी जेपीसी को भेजने के लिए तैयार हो जाते हैं तो यहीं ये चर्चा समाप्त हो जाएगी. जब जेपीसी की रिपोर्ट के साथ कैबिनेट इसे फिर से पारित करेगी, तब इस पर सदन में विस्तृत चर्चा होगी. कानून मंत्री ने कहा कि निश्चित रूप से जेपीसी को भेजने का प्रस्ताव करूंगा. इतनी जो चर्चा हुई है, इसका जवाब देकर जेपीसी के गठन की बात करूंगा.

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