गुरु गोविंद सिंह जयंती पर किये पुष्प अर्पित - JALORE NEWS
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गुरु गोविंद सिंह जयंती पर किये पुष्प अर्पित - JALORE NEWS
जालोर ( 6 जनवरी 2025 ) JALORE NEWS हिन्दू युवा संगठन संस्था के तत्वाधान में गुरु गोविंद सिंह जयंती पर पुष्पांजलि व संगोष्टि कार्यक्रम का आयोजन किया गया।
संस्था नगर अध्यक्ष हेमेंद्रसिंह बगेड़िया ने बताया कि निजी कार्यालय में गुरु गोविंद सिंह की जयंती पर पुष्पांजलि व संगोष्टि कार्यक्रम का आयोजन किया गया।कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के नाते मुख्य सचेतक विधानसभा व जालोर विधायक जोगेश्वर गर्ग उपस्थित थे।वही अध्यक्षता संस्थापक अध्यक्ष एड़वोकेट सुरेश सोलंकी ने की।विशिष्ट अतिथि के नाते समाजसेवी गणपतसिंह बगेड़िया,दिनेश महावर,संस्था महामंत्री अर्जुनसिंह पंवार, अमन मेहता,संजय बोराणा,योगेश दवे उपस्थित थे।
कार्यक्रम में मयंक देवड़ा,सोम शर्मा,पारस बारूपाल,खेताराम सहित कहि कार्यकर्ता उपस्थित थे।
मुख्य सचेतक जोगेश्वर गर्ग ने कहा कि गुरु गोबिंद सिंह जी सिखों के दसवें गुरु थे।गुरु गोबिंद सिंह जी ने सिख धर्म को मजबूत किया था और अपने अनुयायियों को वे सच्चाई, न्याय और धर्म के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित किया करते थे।गुरु गोबिन्द सिंह ने पवित्र (ग्रन्थ) गुरु ग्रंथ साहिब को पूरा किया तथा उन्हें गुरु रूप में प्रतिष्ठित किया। बचित्तर नाटक उनकी आत्मकथा है। यही उनके जीवन के विषय में जानकारी का सबसे महत्वपूर्ण स्रोत है। यह दसम ग्रन्थ का एक भाग है। दसम ग्रन्थ (ग्रन्थ), गुरु गोबिन्द सिंह की कृतियों के संकलन का नाम है।
संस्थापक अध्यक्ष एड़वोकेट सुरेश सोलंकी ने कहा कि गुरु गोबिन्द सिंह अन्याय, अत्याचार और पापों को खत्म करने के लिए और धर्म की रक्षा के लिए मुगलों के साथ 14 युद्ध लड़े। धर्म की रक्षा के लिए समस्त परिवार का बलिदान किया, जिसके लिए उन्हें 'सरबंसदानी' (पूरे परिवार का दानी ) भी कहा जाता है। इसके अतिरिक्त जनसाधारण में वे कलगीधर, दशमेश, बाजांवाले, आदि कई नाम, उपनाम व उपाधियों से भी जाने जाते हैं।
दिनेश महावर ने कहा कि गुरु गोबिन्द सिंह विश्व की बलिदानी परम्परा में अद्वितीय होने के साथ साथ एक महान लेखक, मौलिक चिन्तक तथा संस्कृत सहित कई भाषाओं के ज्ञाता भी थे। उन्होंने स्वयं कई ग्रन्थों की रचना की। वे विद्वानों के संरक्षक थे।52 कवि और साहित्य-मर्मज्ञ उनके दरबार की शोभा बढ़ाते थे। वे भक्ति तथा शक्ति के अद्वितीय संगम थे। इसीलिए उन्हें 'संत सिपाही' भी कहा जाता है।
अमन मेहता ने कहा कि गुरु गोबिन्द सिंह ने सदा प्रेम, सदाचार और भाईचारे का सन्देश दिया। किसी ने गुरुजी का अहित करने की कोशिश भी की तो उन्होंने अपनी सहनशीलता, मधुरता, सौम्यता से उसे परास्त कर दिया। गुरुजी की मान्यता थी कि मनुष्य को किसी को डराना भी नहीं चाहिए और न किसी से डरना चाहिए। वे अपनी वाणी में उपदेश देते हैं भै काहू को देत नहि, नहि भय मानत आन। वे बाल्यकाल से ही सरल, सहज, भक्ति-भाव वाले कर्मयोगी थे।
गणपतसिंह बगेड़िया ने कहा कि गुरु गोबिन्द सिंह की वाणी में मधुरता, सादगी, सौजन्यता एवं वैराग्य की भावना कूट-कूटकर भरी थी। उनके जीवन का प्रथम दर्शन ही था कि "धर्म का मार्ग सत्य का मार्ग है और सत्य की सदैव विजय होती है"।
संस्थापक महामंत्री अर्जुनसिंह पवार ने आभार धन्यवाद ज्ञापित किया।
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