महाशिवरात्रि पर विशेष प्रस्तुति जालौर का ऐतिहासिक विरासत उम्मेदाबाद गांव और शीलेश्वर महादेव मठ रहस्य
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महाशिवरात्रि पर विशेष प्रस्तुति जालौर का ऐतिहासिक विरासत उम्मेदाबाद गांव और शीलेश्वर महादेव मठ रहस्य
पत्रकार श्रवण कुमार ओड़ जालोर
जालौर ( 26 फरवरी 2025 ) नमस्कार साथियों! आज हम आपको जालौर जिले के इतिहास से जुड़े एक रोचक और महत्वपूर्ण किस्से से परिचित कराने जा रहे हैं। यदि आप जालौर के निवासी हैं या इतिहास में रुचि रखते हैं, तो यह जानकारी आपके लिए विशेष होगी।
उम्मेदाबाद गांव का ऐतिहासिक महत्व
जालौर मुख्यालय से लगभग 50 किलोमीटर दूर स्थित उम्मेदाबाद का इतिहास ग्यारहवीं शताब्दी तक जाता है। इस स्थान पर प्राचीनकाल में जवाई नदी के तट पर एक छोटी-सी ढाणी थी, जहाँ खाटाणा जाति के राईका समुदाय के लोग निवास करते थे।
समय के साथ इस ढाणी का विकास हुआ और इसे गोल नाम से जाना जाने लगा। इस गाँव की जागीरदारी समय-समय पर बदलती रही और अंतिम जागीरदार धर्मनारायण ठाकुर ने इसका नाम बदलकर उम्मेदाबाद रख दिया, जो आज भी इसी नाम से प्रसिद्ध है।
शीलेश्वर महादेव मठ और संत नागाजी महाराज की कथा
परम पूज्य नागाजी श्रीनारायण भारती महाराज खड़ी तपस्या में लीन रहते हुए विभिन्न स्थानों पर भ्रमण करते थे। एक दिन संध्या समय वे कत्तरोसन गाँव के तालाब पर संध्यावंदन कर रहे थे। उसी समय कुछ महिलाएँ पानी भरने आईं और उन्होंने अपने पतियों को इस बारे में बताया। गाँव के चौधरी ने संत के दर्शन किए और उन्हें अपने घर आने का निवेदन किया, लेकिन नागाजी महाराज तपस्या में लीन थे, इसलिए गाँव में प्रवेश नहीं किया।
गाँववासियों के विशेष आग्रह पर उन्होंने तालाब के किनारे रात्रि सत्संग किया। चौधरी और उनकी पत्नी ने संत के चरणों में नतमस्तक होकर अपनी संतान प्राप्ति की इच्छा व्यक्त की। संत ने उन्हें आशीर्वाद दिया कि भगवान शिव की कृपा से उनके घर दो पुत्र जन्म लेंगे। उन्होंने यह भी कहा कि पहला पुत्र भगवान शिव की सेवा के लिए होगा और दूसरा पुत्र वंश को आगे बढ़ाएगा।
समय बीता और चौधरी परिवार में दो पुत्रों का जन्म हुआ। जब संत नागाजी महाराज पुनः कत्तरोसन आए, तो चौधरी ने अपने छोटे पुत्र को संत के सामने प्रस्तुत कर दिया। लेकिन संत अंतर्यामी थे और उन्होंने चौधरी को अपनी भूल सुधारने का संकेत दिया। इसके बावजूद चौधरी अपने निर्णय पर अडिग रहे।
तभी नागाजी महाराज ने अपनी नागफणी बजानी शुरू की। नागफणी की ध्वनि सुनते ही खेत में काम कर रहा चौधरी का बड़ा बेटा सम्मोहित होकर संत के पास आ गया। संत ने उसे गुरू दीक्षा दी और उसका नाम दामोदर भारती रखा। दामोदर भारती ने कठोर तपस्या की और तब से शीलेश्वर महादेव मठ में गुरु-शिष्य परंपरा चल रही है।
वर्तमान में शीलेश्वर महादेव मंदिर का महत्व
आज भी यह मठ श्रद्धालुओं के लिए आस्था का केंद्र बना हुआ है। वर्तमान में महंत रावत भारती महाराज के सानिध्य में यहाँ भव्य शीलेश्वर महादेव मंदिर का निर्माण कराया गया है, जिसमें भगवान शिव के साथ अन्नपूर्णा माता मंदिर की भी प्रतिष्ठा की गई है।
परिणाम
उम्मेदाबाद गाँव और शीलेश्वर महादेव मठ का इतिहास हमें न केवल जालौर की समृद्ध विरासत की झलक दिखाता है, बल्कि हमें आध्यात्मिकता, गुरु-शिष्य परंपरा और श्रद्धा की भी सीख देता है। महाशिवरात्रि के इस पावन अवसर पर हम भगवान शिव से यही प्रार्थना करते हैं कि वे सभी भक्तों को सुख-समृद्धि प्रदान करें।
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