माघ जयंती पर विशेष : माघ पूर्णिमा के अवसर पर, 12 फरवरी को - BHINMAL NEWS
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माघ जयंती पर विशेष : माघ पूर्णिमा के अवसर पर, 12 फरवरी को - BHINMAL NEWS
भीनमाल ( 10 फरवरी 2025 ) BHINMAL NEWS श्रीदर्शन पंचांग कर्ता शास्त्री प्रवीण त्रिवेदी ने बताया कि संस्कृत के श्रेष्ठ कवियों में माघ की गणना की जाती है।
उनका समय लगभग 675 ई. निर्धारित किया गया है। उनकी प्रसिद्ध रचना ‘शिशुपालवध’ नामक महाकाव्य है। इसकी कथा भी महाभारत से ली गई है। इस ग्रंथ में युधिष्ठिर के राजसूर्य यज्ञ के अवसर पर चेदि नरेश शिशुपाल को कृष्ण द्वारा वध करने की कथा का काव्यात्मक चित्रण किया गया है। माघ वैष्णव मतानुयायी थे। इनकी ईच्छा अपने वैष्णव काव्य के माध्यम से शैव मतानुयायी भारवि से आगे बढ़ने की थी। उन्होंने अपने ग्रंथ की रचना किरातार्जुनीयम् की पद्धति पर की। किरात की भांति शिशुपालवध का प्रारंभ भी ‘श्री’ शब्द से होता है।
माघ अलंकृत काव्य शैली के आचार्य है तथा उन्होंने अलंकारों से सुसज्जित पदों का प्रयोग कुशलता से किया है। प्रकृति दृश्यों का वर्णन करने में भी वे दक्ष थे। भारतीय आलोचक उनमें कालिदास जैसी उपमा, भारवि जैसा अर्थ गौरव तथा दण्डी जैसा पदलालित्य इन तीनों गुणों को देखते है। माघ व्याकरण, दर्शन, राजनीति, काव्यशास्त्र, संगीत आदि के प्रकाण्ड पण्डित थे । माघ के विषय में उक्ति प्रसिद्ध है कि शिशुपालवध का नवां सर्ग समाप्त होने पर कोई नया शब्द शेष नहीं बचता है। कविवर माघ का जन्म राजस्थान की पुण्य धरा भीनमाल में राजा वर्मलात के मंत्री सुप्रसिद्ध ब्राह्मण सुप्रभदेव के पुत्र कुमुदपण्डित (दत्तक) की धर्म पत्नी वराही के गर्भ से माघ की पूर्णिमा को हुआ था। माघ का काल प्रायः 8 वीं और 9 वीं शताब्दियों के बीच स्थिर होता है। इसमें संदेह नहीं किया जा सकता। भोज प्रबंध के अनुसार माघ भोज के समकालीन थे । क्योंकि भोज प्रबंध में माघ के संबंध में यह क्विदंती प्रचलित है कि एक बार माघ ने अपनी संपूर्ण संपत्ति दान कर दी थी। निर्धन स्थिति में उन्होंने एक श्लोक की रचना की, जिसे उन्होंने राजा भोज के सभा में भेजा था। यह श्लोक इस प्रकार है।
कुमुदवनमपश्रि श्रीमदम्भोजखण्डे,
मुदति मुद मूलूकः प्रीतिमार्चक्रवाकः।
उदयमहिमरश्मिर्याति शीतांशुरस्तं,
हतविधिलीसतानां ही विचित्रो विपाकः।।
अर्थ- कुमुदवन श्रीहीन हो रहा है, कमल-समूह शोभायुक्त हो रहा है। उल्लू ( दिन में नहीं देख सकने के कारण ) प्रसन्नता को तज रहा है । जबकि चकवा ( दिन में प्रिया का संग होने के कारण ) प्रेममग्न हो रहा है। सूर्य उदित हो रहा है, तो चंद्रमा अस्त हो रहा है। दुर्देव की चेष्टाओं का परिणाम विचित्र होता है, कितना आश्चर्यजनक है। जब राज सभा में उक्त श्लोक को पढ़कर सुनाया गया तो भोज अत्यंत प्रसन्न हुए ।उन्होंने माघ की पत्नी को बहुत सा धन देकर विदा किया । माघ की पत्नी जब वापस लौट रही थी, तो रास्ते में याचक माघ की दानशीलता की प्रशंसा करते हुए उससे भी मांगने लगे। माघ की पत्नी ने सारा धन याचकों में बांट दिया। जब पत्नी रिक्तहस्त घर पहुंची तो माघ को चिन्ता हुई कि अब कोई याचक आया तो उसे क्या देंगे ?
माघ की यह चिन्ताजनक स्थिति को देखकर याचक ने यह कहा था-
आश्वास्य पर्वतकुलं तपनोष्ण तप्त,
मुद्यामदामविधुराणि च काननानि।
नानानदीनदशतानि च पुरयित्वा,
रिक्तोऽसि यज्जलद सैव तवोत्तमा श्री ।।
अर्थ यह है कि ग्रीष्म से तप्त पर्वत समूह का संताप हरने हेतु दावाग्नि से जलते वन की तपन बुझाने में तथा सैकड़ों नदी, नद, नालों को भरने में बादल स्वयं रिक्त हो जाता है, यही उसकी श्रेष्ठ आभा है।
संस्कृत साहित्यकोश में महाकवि माघ एक जाज्वल्यमान के समान है । जिन्होंने अपनी काव्य प्रतिभा से संस्कृत जगत् को चमत्कृत किया है। ये एक ओर कालिदास के समान रसवादी कवि है, तो दूसरी ओर भारवि सदृश विचित्रमार्ग के पोषक भी। कवियों के मध्य महाकवि कालिदास सुप्रसिद्ध है, तो काव्यों में माघ अपना एक विशिष्ट स्थान रखते है।
काव्येषु माघः कवि कालिदासः।
माघ अलंकृत शैली के पण्डित माने जाते है। इनकी एकमात्र कृति ‘शिशुपालवधम्’ जिसे महाकाव्य भी कहा जाता है, वृहत्त्रयी में महत्वपूर्ण स्थान रखती है। इस महाकवि के आलोडन के पश्चात् किसी विद्वान ने इसकी महत्वा के विषय में कहा है - ‘मेघे माघे गतं वयः।’
‘एकश्चंद्रस्तमोहन्ति’ उक्ति के अनुसार महाकवि माघ की कीर्ति उनके एक मात्र उपलब्ध महाकाव्य ‘शिशुपालवधम्’ पर आधारित है, जिसका बृहत्रयी और पंचमहाकाव्य में विशिष्ट स्थान है।
शिशुपालवधम् महाकाव्य 20 सर्गों में विभक्त है । जिसमें 1650 पद्य है। माघ की माता का नाम ब्राह्मी को संस्कृत में सरस्वती भी कहते है । इसलिए माघ को सरस्वती पुत्र भी कहा जा सकता है। माघ का जन्म माघ सुदी पूर्णिमा को होने से इनका नाम माघ रखा गया। माघ का विवाह माल्हणा नामक कन्या के साथ हुआ जो सुंदर एवं गुणवती थी।
● संकलनकर्ता
■ शास्त्री प्रवीण त्रिवेदी, ■
माणकमल भंडारी, भीनमाल ।
JALORE NEWS
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