शहीद दिवस 20250 - भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु की शहादत: स्वतंत्रता संग्राम का अमर अध्याय - JALORE NEWS
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शहीद दिवस 20250 - भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु की शहादत: स्वतंत्रता संग्राम का अमर अध्याय - JALORE NEWS
दिल्ली ( 22 मार्च 2025 ) भारत की स्वतंत्रता में तीन ऐसे वीर सपूत हैं, जिनकी शहादत ने देश के नौजवानों में आजादी के लिए अभूतपूर्व जागृति का शंखनाद किया। देशभक्त सुखदेव, भगतसिंह और राजगुरु को अंग्रेज सरकार ने 23 मार्च को लाहौर षड्यंत्र केस में फांसी पर चढ़ा दिया था। इन बीरों को फांसी की सजा देकर अग्रेज सरकार समझती थी कि भारत की जनता डर जाएगी और स्वतंत्रता की भावना को भूलकर विद्रोह नहीं करेगी, लेकिन वास्तविकता में ऐसा नहीं हुआ,
बल्कि शहादत के बाद भारत की जनता पर स्वतंत्रता के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर करने का रंग इस तरह चढ़ा कि भारत माता के हजारों सपूतों ने सिर पर कफन बांध कर अंग्रेजों के खिलाफ जंग छेड़ दी। 1928 के प्रारंभ में ब्रिटिश सरकार की ओर से गठित साइमन कमिशन भारत आया था, जिसमें एक भी भारतीय नहीं थे। ऐसे में उसके विरोध में भारत के उन सभी शहरों में उसका बहिष्कार किया गया, जहां-जहां साइमन कमिशन गया था उसे काले झंडे दिखाए गए। साइमन कमिशन को व्यापक जन विरोधी आआंदोलन का सामना करना पडा।
इसी क्रम में जब साइमन कमिशन लाहौर पहुंचा तो वहां पंजाब केसरी लाला लाजपत राय के नेतृत्व में इस कमिशन का व्यापक रूप से बहिष्कार किया किया गया। अंग्रेज सैनिकों ने इस बहिष्कार को रोकने के लिए जनता पर लाठीचार्ज किया, जिसमें लाला लाजपत राय गंभीर रूप से घायल हो गए और कुछ दिनों बाद उनकी चोट के कारण मृत्यु हो गई। इस हादसे से पंजाब के नौजवान बेचैन हो गए। क्रांतिकारी संगठन 'हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिक आर्मी'
जिसके सर्वोच्च कमांडर चंद्रशेखर आजाद थे, उन्होंने इस राष्ट्रीय अपमान का बदला लेना का निर्णय लिया। जिस अंग्रेज अफसर (सांडर्स) की मार से लाला जी की मृत्यु हुई उसे मारने की योजना बनाई गई। इस योजना को कार्यान्वित करने के लिए क्रांतिकारियों एक दल गठित किया गया।
यह एक बड़े पुलिस अधिकारी की हत्या करने की योजना थी, इसलिए इस योजना के हर पहलु पर बारीकी से अध्ययन किया गया एवं किसको क्या कार्य करना है, इसके लिए उनका कार्यक्षेत्र निर्धारित किया गया। लाला जी की मृत्यु के एक महीने पश्चात अर्थात 17 दिसम्बर को इस योजना को व्यवहारिक रूप से अंजाम देने का दिन निश्चित किया गया।
पुलिस सुप्रीटेंडेंट सांडस को आफिस डिएवी कॉलेज के सामने था, अतः वहां योजना से जुड़े क्रांतिकारी तैनात कर दिए गए। राजगुरु को सांडर्स पर गोली चलाने का संकेत देने का कार्य सौंपा गया। जैसे ही सांडर्स ऑफिस से निकला तभी राजगुरु से संकेत मिलते ही भगतसिंह ने उस पर गोलियां चला दी जिससे वह वहीं ढेर हो गया। भगतसिंह को पकड़ने के लिए हैंड कांस्टेबल चाननसिंह ने उनका पीछा करने की कोशिश की
, लेकिन तभी चंद्रशेखर आजाद ने उस पर गोली चला दी, जिससे सभी क्रांतिकारी भागने में कामयाब हुए। इस हत्याकांड से पूरे देश में सनी फैल गई। सभी
अखबार ने इस खबर को प्रमुखता से प्रकाशित किया। अग्रेज सरकार की तरफ से इन क्रांतिकारियों को पकड़ने की व्यापक कोशिश की गई। कुछ समय पश्चात लाहौर केस के लगभग सभी क्रांतिकारी पकडे गए। तीन न्यायाधीशों की अदालत में देशभक्त क्रांतिकारियों पर केस चला। जेल से अदालत आते समय ये देशभक्त इंकलाब जिंदाबाद% और अंग्रेज मुदांबाद के नारे लगाते। सुखदेव और भगतसिंह की योजना थी कि इस तरह से वे अपनी कार्यशैली का प्रचार करेंगे और लोगों को
स्वतंत्रता के प्रति जागृत करेंगे। अदालती कार्यवाही को जनता तक पहुंचाने का कार्य समाचार पत्र करते थे, जिसे पूरे देश की जनता सुखदेव, भगत सिंह और राजगुरु एवं अन्य क्रांतिकारियों के पक्ष में थी। अदालती कार्यवाही के दौरान अपार जन समूह इकठा हो जाता था। अदालती कार्यवाही को बाधित देखकर भारत सरकार ने एक आर्डिनेंस जारी किया जिसके अनुसार उन लोगों की अनुपस्थिति में भी कार्यवाही जारी करते हुए मुकदमा समाप्त कर दिया गया। देशभक्तों ने काफी दिनों तक भूख हड़ताल भी की। 63 दिनों की भूख हड़ताल के दौरान जितेंद्र नाथ का निधन भी हो गया। जनाक्रोश के डर से अदालत की सजा जेल में ही सुनाई गई, जिसके अनुसार भगतसिंह, राजगुरु और सुखदेव को 23 मार्च को फांसी की सजा की सजा मुकर्रर की गई। कुछ लोगों को आजीवन काले पानी की सजा दी गई। इस फैसले के विरोध में देशभर में हड़तालें हुई। इस केस के विरोध में पी.वी. कौंसिल में अपील की गई परन्तु देशभक्तों ने वायसराय से माफी मांगने से इंकार कर दिया। इस पर राजगुरु, सुखदेव तथा भगतसिंह को 23 मार्च 1931 को शाम 7 बजे लाहौर जेल में फांसी दे दी गई, अमूमन फांसी का वक्त सुबह का होता है किंतु लोगों में भय व्याप्त करने के लिए इन्हें शाम को फांसी दी गई। उस दौरान जेल में हजारों कैदी थे, उन्होंने भी डरने के बजाय पूरे जोश के साथ इंकलाब जिंदाबाद, भारत माता की जय का आगाज किया। इंकलाब की गूंज पूरे लाहौर शहर में फैल गई। उनके शहादत की खबर से हजारों की संख्या में लोग जेल के बाहर जमा होने लगे तथा इंकलाब जिंदाबाद के नारे लगाने लगे। उग्र प्रदर्शन से बचने के लिए पुलिस ने शवों को रातों-रात फिरोजपुर शहर में सतलुज नदी के किनारे ले जाकर जला दिया। जब लाहौर के निवासियों को ये पता चला तो अनगिनत लोग इन भारत माता के वीर शहीदों को श्रद्धांजलि देने वहां पहुंच गये और लौटते समय इस पवित्र स्थल से स्मृति स्वरूप एक-एक मुट्ठी मिट्टी अपने साथ ले गये। वहां पर शहीदों की याद में एक विशाल स्मारक बनाया गया है, जहां प्रतिवर्ष 23 मार्च को लोग उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। ऐसे वीर सपूत जिन्होंने अपनी शहादत से स्वतंत्रता का आगाज किया उनके परिचय को शाब्दिक रूप देकर उनकी वीरता को नमन करने का प्रयास कर रहे हैं।
भगतसिंह-
भगत सिंह का जन्म 28 सितंबर 1907 को जिला लायलपुर के बंगा गांव में हुआ था। पिता सरदार किशन और चाचा भी महान क्रांतिकारी थे। अंग्रेज विरोधी गतिविधियों के कारण कई बार जेल गए थे। भगतसिंह के दादा भी स्वतंत्रता के पक्षधर थे। सिख होने के बावजूद वे आर्यसमाज की विचारधारा से प्रभावित थे। परिवार वाले भगत सिहं का विवाह करवाकर घर बसाना चाहते थे किंतु भगत सिहं का मुख्य उद्देश्य भारत माता को गुलामी की जंजीर से मुक्त कराना था। भगत सिंह ने बटुकेश्वर दत्त के साथ केंद्रीय असेम्बली में 2 बम फेंके थे, जिसके कारण उन्हें लाहौर केस के पूर्व कालेपानी की सजा भी मिली थी। प्रताप अखबार के कार्यालय में काम करते हुए वे सदा देश की स्वतंत्रता के लिए काम करते हुए हंसते-हंसते फांसी पर चढ़ गए।
सुखदेव सिंह -
सुखदेव का जन्म 15 मई 1907 को लुधियाना में हुआ था। पिता का नाम रामलाल और माता का नाम श्रीमती लल्ली देवी था। तीन वर्ष की अल्प आयु में ही पिता का साया सिर से उठ गया था। ताया श्री चितराम के राष्ट्रीय कांग्रेस से जुड़े हुए थे। जबकि सुखदेव क्रांतिकारी संघटन का संचालन करते थे। सुखदेव को बम बनाने की कला में महारथ हासिल थी । वे सदैव अपनी जरूरतों को दरकिनार करते हुए अपने साथियों की जरूरतों पर विशेष ध्यान देते थे।
राजगुरू -
क्रांतिकारीयों के गढ़, बनारस में जन्मे राजगुरू का पूरा नाम राजगुरु हरि था। चंद्रशेखर के सबसे विश्वसनीय राजगुरु का मन क्रांतिकारी विचारधारा से प्रभावित हो गया। राजगुरु निशानेबाजी में भी सिद्धहस्त थे। लाहौर केस में मुख्य अभियुक्त के रूप में उन्हें 30 सितंबर 1929 को पूना से गिरफ्तार किया गया था।
सुखदेव,
लिए राजगुरु और भगतसिंह की शहादत ने आजादी के जन-जन में जो जागृति का संचार किया वो इतिहास में अविस्मरणीय है। जनमानस के हृदय में इंकलाच की गूंज को पहुंचाने वाले देश के इन अमर वीर सपूतों को उनकी शहादत पर हम श्रद्धांजलि सुमन अर्पित करते हैं।
शहीद दिवस पर शायरी
आज ही के दिन 23 मार्च 1931 की रात भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु की देशभक्ति को अपराध की संज्ञा देकर अंग्रेजों द्वारा फांसी पर लटका दिया गया था. आज हम जिस आजादी के साथ सुख-चैन की जिन्दगी गुजार रहे हैं, वह असंख्य जाने-अनजाने देशभक्त शूरवीर क्रांतिकारियों के बलिदान एवं शहादतों की नींव पर खड़ी है.
शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले,
वतन पर मरने वालों का यही बाकी निशां होगा,
अमर शहीद भगत सिंह,
सुखदेव व राजगुरु के बलिदान दिवस पर,
कोटि-कोटि नमन
फांसी का फंदा भी फूलो से कम न था
वो भी डूब सकते थे इश्क में किसी के
पर, वतन उनके लिए माशूक के प्यार से कम न था
ऐ वतन ऐ वतन हमको तेरी कसम,
तेरी राहों में जान तक लुटा जायेंगे
फूल क्या चीज है, तेरे कदमो में हम,
भेंट अपने सरो की चढ़ा जायेंगे
इतनी सी बात हवाओं को बताये रखना,
रौशनी होगी चिरागों को जलाये रखना,
लहूँ देकर की है जिसकी हिफाजत हमने,
ऐसे तिरंगे को हमेशा अपने दिल में बसाये रखना
जब तुम शहीद हुए थे
तो ना जाने कैसे तुम्हारी माँ सोई होगी
एक बात तो तय है
तुम्हे लगने वाली गोली भी सौ बार रोई होगी
फौजियों के लिए शहीद दिवस पर शायरी
मेरी जिंदगी में सरहद की कोई शाम आए
काश मेरी जिंदगी मेरे वतन के काम आए
ना खौफ है मौत का ना आरजू है जन्नत की
ख्वाईश बस इतनी सी है जब भी
जिक्र हो शहीदों का तो मेरा भी नाम आए
इतनी सी बात हवाओ को बताए रखना
रोशनी होगी चिरागों को जलाए रखना
लहू देकर की है जिसकी हिफाजत हमने
ऐसे तिरंगे को हमेशा अपने दिल में बसाए रखना
दे सलामी इस तिरंगे को जिस से तेरी शान हैं,
सर हमेशा ऊँचा रखना इसका जब तक दिल में जान हैं
लिख रहा हूं मैं अजांम जिसका कल आगाज आयेगा, मेरे लहू का हर एक कतरा इकंलाब लाऐगा मैं रहूँ या ना रहूँ पर ये वादा है तुमसे मेरा कि, मेरे बाद वतन पर मरने वालों का सैलाब आयेगा
इतनी सी बात हवाओ को बताए रखना
रोशनी होगी चिरागों को जलाए रखना
लहू देकर की है जिसकी हिफाजत हमने
ऐसे तिरंगे को हमेशा अपने दिल में बसाए रखना
लिख रहा हूं मैं अजांम जिसका कल आगाज आयेगा,
मेरे लहू का हर एक कतरा इकंलाब लाऐगा मैं रहूँ या ना रहूँ पर ये वादा है तुमसे मेरा कि,
मेरे बाद वतन पर मरने वालों का सैलाब आयेगा
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