जालोर की जूतियों और हस्तशिल्प पर आईआईटी जोधपुर का शोध, मुख्य सचेतक से की चर्चा - JALORE NEWS
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जालोर की जूतियों और हस्तशिल्प पर आईआईटी जोधपुर का शोध, मुख्य सचेतक से की चर्चा - JALORE NEWS
पत्रकार श्रवण कुमार ओड़ जालोर
जालौर ( 9 अप्रैल 2025 ) भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) जोधपुर के शोधार्थी दल ने बुधवार को सर्किट हाउस जालोर में राजस्थान विधानसभा के मुख्य सचेतक जोगेश्वर गर्ग से पश्चिमी राजस्थान में व्यावसायिक कौशल, स्वदेशी हैंडीक्राफ्ट्स, जालोर जिले की जूती, चमड़े के उत्पादों व महिलाओं की आत्मनिर्भरता को लेकर चर्चा की।
इस दौरान राजस्थान विधानसभा के मुख्य सचेतक जोगेश्वर गर्ग ने दल के सदस्यों से जालोर जिले में दस्तकारों व हस्तशिल्पकारों द्वारा निर्मित जूतियाँ एवं चमड़े से निर्मित उत्पादों, लेटा के खेसले, हरजी के मिट्टी से निर्मित घोड़ों, व चरली में निर्मित लाख की चूडियों सहित विभिन्न शिल्प को लेकर पीढ़ी दर पीढ़ी किए जा रहे कार्यों एवं उनके संरक्षण को लेकर विस्तार से चर्चा की।
यह दल पश्चिम राजस्थान पारंपरिक व्यावसायिक कौशल के अंतरपीढ़ी हस्तांतरण पर सामाजिक आर्थिक प्रभाव विषय पर भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद के तहत सांस्कृतिक स्थिरता और सामाजिक-आर्थिक गतिशीलता पर शोध कर रहा है। इनकी यह पहल राजस्थान की समृद्ध हस्तशिल्प परंपराओं के संरक्षण एवं संवर्धन में सहायक होगी, जिससे यह कला भविष्य की पीढ़ियों तक पहुंचाई जा सकें। इस पहल से स्थानीय कारीगरों, विशेष रूप से महिलाओं को सशक्त बनाया जा सकेगा और इस क्षेत्र की पारंपरिक कला एवं शिल्प को राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिल सकेगी।
शोधार्थियों का यह दल सहायक आचार्य डॉ. आकांक्षा चौधरी के सुपरविजन में बुधवार को जालोर पहुँचा। दल में नेहा, ज्ञानचंद, श्वेता, वामा, जिकमिक, रिद्धि, मुकेश खारवाल व अरविंद शामिल रहे।
शोधार्थी दल ने भ्रमण कर हस्तशिल्प कार्यों व उत्पादों का किया अवलोकन
शोधार्थी दल ने भ्रमण के दौरान प्रथम दिन जालोर के गोडिजी स्थित चर्म दस्तकारों के घरों में पहुँच उनके हस्तशिल्प कार्यों व विभिन्न उत्पादों का बारीकी से अवलोकन किया।
इनका कहना है कि
मुख्य सचेतक जोगेश्वर गर्ग ने कहा कि “जालोर की कला परंपरा – चाहे वह लेटा के खेसले हों, हरजी के मिट्टी के घोड़े या चरली की लाख की चूड़ियाँ – पीढ़ियों से हमारी विरासत का हिस्सा रही हैं। इन्हें संरक्षित कर वैश्विक स्तर पर पहुँचाना समय की माँग है।”उन्होंने इन शिल्पों के संरक्षण, संवर्धन और कारीगरों को प्रोत्साहित करने की आवश्यकता पर बल दिया।
शोधार्थियों का यह दल “पश्चिमी राजस्थान में पारंपरिक व्यावसायिक कौशल के अंतरपीढ़ी हस्तांतरण का सामाजिक-आर्थिक प्रभाव” विषय पर अध्ययन कर रहा है, जो भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद के अंतर्गत किया जा रहा है।
शोधार्थी दल, सहायक आचार्य डॉ. आकांक्षा चौधरी के निर्देशन में पश्चिमी राजस्थान के पारंपरिक व्यावसायिक कौशल के अंतरपीढ़ी हस्तांतरण पर सामाजिक-आर्थिक प्रभाव विषय पर शोध कर रहा है। यह पहल क्षेत्रीय कारीगरों, विशेष रूप से महिलाओं को सशक्त बनाने और उनकी कला को राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय पहचान दिलाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
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