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मुख्यपृष्ठ History पाषाण पुत्री क्षत्राणी हीरा-दे : राष्ट्रभक्ति और अपने पति का वध किया बलिदान की अमर गाथा जालोर इतिहास - JALORE NEWS
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पाषाण पुत्री क्षत्राणी हीरा-दे : राष्ट्रभक्ति और अपने पति का वध किया बलिदान की अमर गाथा जालोर इतिहास - JALORE NEWS

पाषाण पुत्री क्षत्राणी हीरा-दे : राष्ट्रभक्ति और अपने पति का वध किया बलिदान की अमर गाथा जालोर इतिहास - JALORE NEWS विवाह और जीवन , दोहे जन्म और पृष्ठभ
Shravan Kumar
Shravan Kumar
27 अप्रैल, 2025 0 0
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Stone daughter Kshatrani Heera-De: Immortal story of patriotism and sacrifice of killing her husband, Jalore history
Stone-daughter-Kshatrani-Heera-De-Immortal-story-of-patriotism-and-sacrifice-of-killing-her-husband-Jalore-history

पाषाण पुत्री क्षत्राणी हीरा-दे : राष्ट्रभक्ति और अपने पति का वध किया बलिदान की अमर गाथा जालोर इतिहास - JALORE NEWS 

जालौर ( 27 अप्रैल 2025 ) नमस्कार साथियों हम आज जालोर से जुड़ी इतिहास से संबंधित जानकारी के साथ नया वीडियो लेकर आया हूं जालोर के इतिहास से जुड़ा कुछ किस्से हैं । अगर आप भी जालोर से तालुक रखते हैं यहां फिर आप भी जालौर के रहने वाले हैं तो यहाँ आपके लिए कुछ खास संबंधित होगा। यहां वीडियो शुरू करने से पहले अगर आप हमारे चैनल पर अभी नया जुड़े हुए हैं तो आप अभी चैनल को लाइक और शेयर करे देवें जैसे कि आप सभी को मालूम है कि राजस्थान की वीरांगना और मातृभूमि की सच्ची साधिका "पाषाण पुत्री क्षत्राणी हीरा-दे" के शौर्य और बलिदान की गाथा आज भी देशवासियों के हृदय को गर्व और प्रेरणा से भर देती है। आज के दिन अपने राष्ट्रधर्म की रक्षा हेतु काली रात में माँ कालका का रूप धारण कर अपने पति का वध कर दिया गया था।

उनके अद्वितीय त्याग को श्रद्धांजलि देने के लिए वैशाख अमावस्या के दिन विशेष रूप से बलिदान दिवस मनाया जाता है।

जन्म और पृष्ठभूमि:

क्षत्राणी हीरा-दे का जन्म राजस्थान के एक प्रतिष्ठित क्षत्रिय कुल में हुआ था।

बचपन से ही उन्होंने धर्म, संस्कृति और मातृभूमि के प्रति गहरी श्रद्धा और कर्तव्यपरायणता विकसित की।

हीरा-दे अपने समय की अत्यंत साहसी, धर्मनिष्ठ और राष्ट्रभक्त महिला थीं, जिनकी शिक्षा-दीक्षा वीरता और त्याग के संस्कारों में रची-बसी थी।












विवाह और जीवन संग्राम:

हीरादे का विवाह बीका दहिया नामक क्षत्रिय योद्धा से हुआ था, जो एक प्रतिष्ठित वंश से सम्बद्ध थे।

परंतु दुर्भाग्यवश, बीका दहिया कालांतर में शत्रु पक्ष के संपर्क में आकर देशद्रोही गतिविधियों में लिप्त हो गया।

देशद्रोह का भंडाफोड़:

जब क्षत्राणी हीरादे को ज्ञात हुआ कि उनके पति बीका दहिया ने जालोर दुर्ग की महत्वपूर्ण जानकारी शत्रु को देकर मातृभूमि के साथ विश्वासघात किया है, तो उनके मन में गहरा द्वंद्व उत्पन्न हुआ।

पति धर्म और राष्ट्र धर्म के बीच चयन करना कठिन था, किंतु हीरादे ने राष्ट्रधर्म को सर्वोपरि मानते हुए कठोर निर्णय लिया।

काली रात में अमर निर्णय:

वैशाख अमावस्या के दिन, विक्रम संवत 1368 (सन् 1311 ईस्वी) में, क्षत्राणी हीरा-दे ने इतिहास में अद्वितीय शौर्य और राष्ट्रभक्ति का उदाहरण प्रस्तुत किया।

हीरादे ने अपने पति बीका दहिया के देशद्रोही आचरण की जानकारी मिलने पर, राष्ट्रधर्म की रक्षा हेतु काली रात में माँ कालका का रूप धारण कर उसका वध कर दिया।

इस साहसिक कार्य द्वारा उन्होंने अपने व्यक्तिगत जीवन से ऊपर उठकर मातृभूमि और धर्म की रक्षा को सर्वोपरि रखा।

हीरादे का यह बलिदान भारतीय इतिहास में अमर बन गया, और उन्हें "पाषाण पुत्री" की संज्ञा दी गई।

हीरादे का बलिदान और अमरता:

अपने अद्भुत साहस और राष्ट्रनिष्ठ कर्तव्यपालन के लिए हीरा-दे को "पाषाण पुत्री" की उपाधि दी गई — चट्टान की भांति अडिग, अटल और अचल।

उनका बलिदान भारतीय इतिहास में नारी शक्ति, राष्ट्रभक्ति और धर्मरक्षा का अनूठा प्रतीक बन गया।

साहित्यिक स्मरण:

साहित्यकार पुरुषोत्तम पोमल ने "पाषाण पुत्री क्षत्राणी हीरा-दे" शीर्षक से ऐतिहासिक उपन्यास लिखकर इस अद्वितीय गाथा को शब्दों में सजीव कर दिया है।

उनके बलिदान की स्मृति में हर वर्ष वैशाख अमावस्या को विचार गोष्ठियाँ एवं श्रद्धांजलि सभाएँ आयोजित की जाती हैं, ताकि आने वाली पीढ़ियाँ उनके अदम्य साहस से प्रेरणा ले सकें।

उनके जीवन पर आधारित ऐतिहासिक उपन्यास "पाषाण पुत्री क्षत्राणी हीरा-दे" के लेखक पुरुषोत्तम पोमल ने बताया कि हीरादे का यह निर्णय नारी शक्ति, राष्ट्रभक्ति और धर्म रक्षण का अद्वितीय उदाहरण है।

---

विशेष संदेश:

आज के समय में भी जब राष्ट्र पर संकट के बादल मंडराते हैं, तब हीरा-दे जैसी वीरांगनाओं के बलिदान से हमें यह सीख मिलती है कि राष्ट्र और धर्म की रक्षा हेतु हमें अपने सर्वस्व का बलिदान करने से भी पीछे नहीं हटना चाहिए।

दोहे और इतिहास 

राजस्थान की धरा का इतिहास वीरों और वीरांगनाओं की अमर गाथाओं से भरा है। यहां पग-पग पर इतिहास की अद्भुत बलिदानी गाथाऐं गूंजती हैं। विदेशी आक्रांताओं का मुकाबला करने के लिए वीरभूमि जालोर के यौद्धाओं ने भी अंतिम समय तक लड़ाई लड़ी, यहां की क्षत्राणियां भी पीछे नहीं हटी। हजारों क्षत्राणियों ने जौहर किया था। उनकी वीरगति की कहानियां इतिहास में आज भी जिंदा हैं।

सहणी सबरी हूँ सखी, दो उर उल्टी दाह ।

 दुध लजाणों पुत सम , बलय लजाणौ नाह ।।

हे सखी और सभी बातें मुझसे सहन हो सकती है किंतु 

यदि प्राणनाथ मेरी चुडियो को लजा दें और पुत्र मेरे दुध को तो ये दो बाते मेरे लिए समान रूप से दाहकारी एवं हृदय को उटल देने वाली है। हिरादे जैसी वीरांगना धरती पर कम ही पैदा होती है। जालोर के उज्जवल इतिहास में हिरादे का नाम स्वर्ण क्षरों में लिखा गया है और जालोर की मातृशक्ति में उत्कृष्ट कोटि के बलिदान कर अनुठा उदाहरण है।

 जालोर दुर्ग अन्य अभेध दुर्ग था । खिलजी अपने गुप्तचरों को धल-बल की शक्ति से काम लेने का जिम्मा सौंप दिया ताकि जालोर गढ़ में सेंधमारी की जा सकें । जालोर गढ़ में एक दिन बीका दहिया नामक सरदार किसी बात को लेकर सैनिकों से गढ़ में उलझ गया और सैनिकों को सबक सिखाने के लिए मन ही मन कुष्ठ सोचने लगा और इस बात की जानकारी जब खिलजी के गुप्तचरों को हुई और रातों - रात गुप्तचरों ने बीका दहिया को दुर्ग जीतने के बाद दुर्गपति बनाने का प्रलोभन दिया इस लालच में बीका दहिया ने गढ़ का भेद बता दिया। इसमें उसने अपने कुछ विश्वात साथियों को अपने साथ मिला लिया। दुर्ग जहाँ से कमजोर थी । उसकी जानकारी बीका दहिया ने खिलजी के गुप्तचरों को दे दी। जिसमें दुर्ग की अभेद्यता समाप्त हो गई, और दुर्ग खिलजी के कब्जे में आ गया। बीका दहिया की इस करतुत का जब हिरादे को पता चला तो वो उसके पति द्वारा मातृभूमि के साथ किये देशद्रोह से क्रोधित हो उठी। हिरादे शेरनी की तरह बीका दहिया पर झपटी और अपने कमर बंध की कटार से एक ही झटके में उसके प्राण ले लियो। इस तरह हिरादे राष्ट्र‌दोह के दोषी अपने ही सुहाग को अपने हाथों से उजाड़‌कर इतिहास में समर हो गये

आज के दिन हुए थे 1 हजार 584 जगहों पर जौहर









आज ही के दिन 710 साल पहले 1 हजार 584 जगहों पर जौहर हुए थे। उस समय सोमनाथ मन्दिर को खंडित कर गुजरात से लौटती अलाउद्दीन खिलजी की सेना पर जालौर के शासक कान्हड़ देव चौहान ने हमला कर शिवलिंग ले लिया था। इस शिवलिंग की सरना गांव में ही प्राण-प्रतिष्ठा कर दी थी। इतिहासकारों की मानें तो जालौर राजघराने की वीरता की कहानी सुनकर खिलजी ने दिल्ली आने का न्योता दिय। कान्हड़ देव चौहान ने विचार-विमर्श करने के बाद राजकुमार वीरमदेव को खिलजी के पास दिल्ली भेज दिया। जहां खिलजी ने उसकी वीरता से प्रभावित होकर अपनी बेटी फिरोजा के विवाह का प्रस्ताव राजकुमार वीरमदेव के सामने रखा था। वीरमदेव जालोर से बारात लाने का बहाना बनाकर जालोर पहुंचे और वहां आकर उन्होंने खिलजी का प्रस्ताव ठुकरा दिया था।

वीरागंनाओं के बलिदान पर फक्र

शाही सेना पर गुजरात से लौटते समय हमला और वीरमदेव की ओर से शहजादी फिरोजा के साथ विवाह का प्रस्ताव ठुकराने के कारण खिलजी ने जालौर पर आक्रमण की ठान ली। उसने एक बड़ी सेना भेजकर जालोर पर अक्रमण कर दिया था। जालोर के शासक कान्हड़ देव और सिवाना के शासक सातलदेव ने मिलकर खिलजी के इस आक्रमण को परास्त कर दिया था। खिलजी ने बदला लेने के लिए एक विश्वासघाती के जरिए सिवाना दुर्ग के सुरक्षित जल भंडार में गौ-रक्त डलवा दिया था। जिससे वहां पीने के पानी की समस्या खड़ी हो गई थी।

 सिवाना के शासक सातलदेव ने अन्तिम युद्ध का ऐलान कर दिया था। खिलजी की सेना को भारी पड़ता देखकर जालोर राजघराने की रानियों ने अन्य क्षत्रिय स्त्रियों के साथ जौहर किया था। इन वीरांगनाओं का बलिदान और त्याग सारा जग जानता है। उनका त्याग और बलिदान इतना अभिमानी था जिसे सुनकर सारे जालौर वासियों का सीना गर्व से चौड़ा हो जाता है।

इतिहास में लिखी है वीरांगनाओं की गाथा साढ़े पांच सौ साल पुराने ग्रन्थ कान्हड़ दे प्रबंध में भी इसका विस्तार से उल्लेख मिलता है। इतिहासविद हरिशंकर राजपुरोहित ने जालोर गढ़ में जौहर नाम से पुस्तक भी लिखी हैं। इसमें वीरांगनाओं के बलिदान की गाथा मिलती है। 

कान्हड़ दे प्रबन्ध के रचनाकार पद्मनाथ ने लिखा है कि सभी वर्गों की महिलाओं ने जौहर किय। कुछ जातियों ने नाम का उल्लेख भी हैं। ब्राह्मण, राजपूत महिलाओं के साथ दलित महिलाओं ने भी इस महायज्ञ में अपनी आहुति दी थी। इतिहासकारों ने लिखा है कि अमावस्या की अंधियारी रात में हीरा दे का प्रबल पराक्रम भी इतिहास ने देखा था जब उसने स्वधर्म और स्वराष्ट्र के लिए अपने गद्दार पति का वध करने में भी संकोच नही किया।

जौहर की याद में हर साल आयोजन

जालोर में आज ही के दिन जौहर के सम्मान में कार्यक्रम का आयोजन किया जाता है। अपनी माटी के सम्मान के लिए शहीद होने वाली वीरांगनाओं की याद में उनको नमन किया जाता है। आज भी जिले भर में कई कार्यक्रमों का आयोजन किया जा रहा है। जालोर के सम्मान में मर मिटने वाले वीरों, वीरांगनाओं के प्रति सम्मान व्यक्त किया जाता है।

पाषाण पुत्री क्षत्राणी हीरा-दे : राष्ट्रभक्ति और अपने पति का वध किया बलिदान की अमर गाथा जालोर इतिहास - JALORE NEWS निचे दिए गए लिंक पर क्लीक करे देखिए वीडियो - 👇👇 

https://youtu.be/d8XiOWTS6RE?si=nA4PtKLAVcFiqDxc

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