सरस्वती नदी का रहस्य सुलझाने जुटे वैज्ञानिक, बड़ा प्रोजेक्ट शुरू, जयपुर में हुई ऐतिहासिक बैठक
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सरस्वती नदी का रहस्य सुलझाने जुटे वैज्ञानिक, बड़ा प्रोजेक्ट शुरू, जयपुर में हुई ऐतिहासिक बैठक
जयपुर ( 28 अप्रैल 2025 ) पाकिस्तान से सिंधु जल समझौता स्थगित होने के बाद राजस्थान की बल्ले-बल्ले होने की उम्मीद है। सिंधु जल समझौता रद्द होने के बाद पश्चिमी राजस्थान के रेतीले धोरों के लिए भी नई उम्मीद जगी है। सिंधु जल पाने की लालसा में अब पश्चिमी राजस्थान के सांसद व विधायक सक्रिय हो गए हैं। जोधपुर में ओसियां विधायक भैराराम सियोल ने सिंधु जल समझौता स्थगन करने के निर्णय पर केंद्र की मोदी सरकार का आभार जताया। साथ ही नदियों के पानी की डिमांड को लेकर ओसियां विधायक भैराराम सियोल ने पश्चिमी राजस्थान के सांसदों और विधायकों के हस्ताक्षर वाला एक पत्र पीएम नरेन्द्र मोदी को भेजा है। वैदिक काल की पौराणिक सरस्वती नदी, जिसे अब लुप्त मान लिया गया है, को पुनर्जीवित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल हुई है। इसी क्रम में सरस्वती हेरिटेज बोर्ड हरियाणा, वैज्ञानिक विशेषज्ञों और विभिन्न संस्थानों के प्रतिनिधियों की एक महत्वपूर्ण बैठक बिरला विज्ञान अनुसंधान संस्थान, जयपुर में आयोजित हुई। बैठक में राजस्थान के जल संसाधन मंत्री सुरेश रावत, सरस्वती बोर्ड हरियाणा के डिप्टी चेयरमैन धूमन सिंह कीरमिच, बीएसआरआई के सुदूर संवेदन विभाग प्रमुख डॉ. महावीर पूनिया और जल संसाधन विभाग राजस्थान के मुख्य अभियंता भुवन भास्कर प्रमुख रूप से मौजूद रहे। इसरो के पूर्व निदेशक डॉ. जे. आर. शर्मा और डॉ. बी. के. भद्रा भी वर्चुअल माध्यम से बैठक में शामिल हुए और अपने अनुभव साझा किए।
बैठक में धूमन सिंह कीरमिच ने हरियाणा में वैदिक सरस्वती नदी के पुनर्जीवन पर किए जा रहे कार्यों की प्रस्तुति दी। वहीं, जल संसाधन मंत्री सुरेश रावत ने बताया कि सरस्वती नदी युगों से राजस्थान के पश्चिमी क्षेत्रों में भूमिगत रूप से बह रही है और अब इसे पुनर्जीवित कर धरातल पर लाने का कार्य प्रारंभ हो चुका है। मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा के नेतृत्व में इस दिशा में हरियाणा सरकार के साथ मिलकर ठोस कदम उठाए जा रहे हैं। मंत्री ने कहा कि इस परियोजना से राजस्थान के सूखे क्षेत्रों को हराभरा बनाने में बड़ी मदद मिलेगी।
राज्य सरकार ने इस दिशा में अंतरराष्ट्रीय सहयोग को भी मजबूत किया है। ‘राइजिंग राजस्थान’ कार्यक्रम के तहत 9 दिसंबर 2024 को राजस्थान सरकार और डेनमार्क दूतावास के बीच सरस्वती नदी के पेलियोचैनल्स के पुनरुद्धार के लिए एक महत्वपूर्ण एमओयू (समझौता ज्ञापन) पर हस्ताक्षर हुए। यह सहयोग राजस्थान के जल सुरक्षा और पर्यावरणीय स्थिरता के लक्ष्यों में भी योगदान देगा। इस दिशा में डेनमार्क दूतावास के प्रतिनिधियों के साथ आगामी 29 अप्रैल को एक और बैठक प्रस्तावित है।
इसके अतिरिक्त, केंद्रीय और राज्य भूजल विभागों को भी इस महत्वाकांक्षी परियोजना से जोड़ने की प्रक्रिया चल रही है। केंद्रीय शुष्क क्षेत्र अनुसंधान संस्थान (CAZRI) जोधपुर और आईआईटी बीएचयू ने इस परियोजना में भागीदारी के लिए अपनी सहमति दे दी है।
बैठक के दौरान स्पष्ट किया गया कि राज्य सरकार अंतर्राज्यीय जल संसाधनों के विषय में पूरी तरह सजग है और सरस्वती नदी के पुनर्जीवन के इस ऐतिहासिक कार्य को पूर्ण गंभीरता से आगे बढ़ा रही है।
सिंधु जल समझौते में भारत खेल सकता है नया रणनीतिक दांव
भारत ने पाकिस्तान के साथ हुए सिंधु जल समझौते को स्थगित करने का जो फैसला किया है, उस पर बहस लगातार गरमा रही है। कुछ जानकार तो अब यह कहने लगे हैं कि भारत को सिंधु जल समझौता पूरी तरह से रद्द कर देना चाहिए क्योंकि इसमें पाकिस्तान को जितना पानी दिया गया वह अनुपातिक रूप से बहुत अधिक है और भारत के साथ अन्याय हुआ या भारत ने उस वक्त संधि में पाकिस्तान के साथ ठीक से मोल-तोल नहीं किया।
पहलगाम हमले के बाद भारत ने सिंधु जल समझौता स्थगित करने का जो फैसला किया है, उसके तहत वह फौरी तौर पर न केवल पाकिस्तान के साथ सूचना और डाटा को साझा करना बंद कर सकता है, बल्कि संधि के तहत पाकिस्तान के हिस्से में आने वाली नदियों झेलम, चिनाब और सिंधु पर परियाजनाएं शुरू कर सकता है, इन पर अपनी रुकी हुई परियोजनाओं को बनाना फिर शुरू कर सकता है, अनुमति से ज्यादा जल संग्रहण की क्षमता विकसित कर सकता है और इन नदियों से पानी के इस्तेमाल को लगातार बढ़ा सकता है।
यह कदम पाकिस्तान की ओर जाने वाले पानी को पूरी तरह भले न रोकें लेकिन पाकिस्तान के लिए इससे समस्या जरूर खड़ी होगी। यह दूसरी बात है कि पाकिस्तान को जाने वाले पानी को इस हद तक रोकने के लिए जिससे वहां बड़ा जल संकट खड़ा हो, भारत को व्यापक स्तर पर इंफ्रास्ट्रक्चर खड़ा करना होगा। साथ ही भारत को यह भी ध्यान देना होगा कि सिंधु, झेलम और चिनाब के पानी को रोकने से भारत के हिस्से में जो कश्मीर है उसका बहुत बड़ा हिस्सा जलमग्न हो जाएगा। ऐसी स्थिति से निपटने के लिए क्या कदम उठाए जाएंगे, वो सबमर्जेंस एरिया कौन से होंगे, यह भारत को तय करना होगा। अगर भारत कुछ पानी को डायवर्ट कर दूसरी जगह भेजना चाहे तो उसके लिए भी व्यापक तैयारियों और आधुनिक हेडवर्क और नई नहरों का निर्माण करना होगा। जाहिर है इसमें कई साल का वक्त लगेगा। लेकिन जो नई चर्चा का विषय है वह यह कि 1960 में हुई संधि के तहत पाकिस्तान को सिंधु जल बेसिन के कुल पानी का 80 प्रतिशत मिला और केवल 20 प्रतिशत ही भारत के हिस्से आया। हालांकि यह सही है कि भारत अपने हिस्से की नदियों का पूरा दोहन कर सकता है और पाकिस्तान की नदियों पर भी कुछ सीमित अधिकार दिए गए हैं, लेकिन यह सवाल गरमा रहा है कि भारत को पाकिस्तान की नस दबाने के लिए संधि को नए सिरे से करना चाहिए।
भारत पिछले कुछ समय से यह मांग कर भी रहा है और उसने पाकिस्तान को 2023 और 2024 में इसका नोटिस भी दिया। असल में 1960 में जब यह संधि हुई तो जल बंटवारे के लिए सिंधु बेसिन के उस कृषि पैटर्न को आधार बनाया गया जो 1947 में वजूद में था। तब ज्यादातर कृषि उस हिस्से में होती थी जो पाकिस्तान में चला गया था। कई जानकार मानते हैं कि यह समझौता भविष्य में भारत की जरूरतों को ध्यान में रखकर नहीं हुआ और अपस्ट्रीन देश होने के बाद भी भारत ने पाकिस्तान को इतना पानी देकर भूल की या ठीक से मोलतोल नहीं किया। यह भी माना जाता है कि पाकिस्तान को अमरीका की शह थी, वल्र्ड बैंक ने भारत को आर्थिक मदद देने के बदले संधि में 80-20 के अनुपात पर जोर दिया।
यह महत्त्वपूर्ण है कि सिंधु बेसिन के पानी का बड़ा हिस्सा मिलने के बाद भी पाकिस्तान ने 1965 में भारत पर हमला किया और कश्मीर पर कब्जे की कोशिश की। हालांकि उसके मंसूबे पूरे नहीं हुए। वैसे कुल पानी का 80 प्रतिशत पाकिस्तान को जाने से भारत के हिस्से वाले कश्मीर को नुकसान हुआ और वहां की अवाम और राज्य सरकारों में भी इसे लेकर नाराजगी रही है। यह सच है कि भारत पाकिस्तान की ओर जाने वाला पानी कम कर सकता है लेकिन पूरी तरह रोकना अगर असंभव न भी हो तो उसमें बहुत समय और संसाधन लगेंगे। इसलिए भविष्य में जब हालात सामान्य हों तो भारत को संधि नए सिरे से करने पर जोर देना चाहिए।
भारत को कुल पानी का 20 प्रतिशत नहीं बल्कि इससे बहुत अधिक मिलना चाहिए। लेकिन इसके लिए भारत को अंतरराष्ट्रीय बिरादरी को अपने साथ लेना होगा। उसे पहले विश्व बैंक, संयुक्त राष्ट्र, अमरीका, रूस और चीन के साथ राजनीतिक वार्ता शुरू करनी होगी और अपने पक्ष में माहौल बनाना होगा और यह आंकड़े और बातें उन्हें समझानी होंगी। तभी भारत कानूनी रूप से पानी के कहीं बड़े हिस्से का हकदार होगा जो पाकिस्तान की बड़ी हार होगी।
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