How the Bhatt clan originated, भट्ट कुल की उत्पति कैसे हुई जाने इतिहास के साथ में पढें
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How the Bhatt clan originated, भट्ट कुल की उत्पति कैसे हुई जाने इतिहास के साथ में पढें
JALORE ( 9 जुलाई 2023 ) How the Bhatt clan originated भट्ट कुल की उत्पति ब्रहमा के यज्ञ कुंड से हुई। यज्ञ के अंगारो से अंगिरा ऋषि उत्पन्न हुये और यज्ञ की ज्वाला से एक तेजस्वी बालक सोने (श्रवण) की यज्ञोपवित धारण किये प्रगट हुआ प्रगट होते ही उस बालक ने उच्च स्वर में ब्रहमा की स्तुति करना प्रारम्भ किया ब्रहमा ने प्रसन्न होकर कहा मेरी (ब्रहमा) स्तुति करने वाले पुत्र तूं संसार में ब्रहम भट्ट नाम से विख्यात होगा और तेरी जिभ्या पर हमेशा सरस्वती का वास रहेगा तेरी वाणी हमेशा सत्य सिद्ध होगी। माँ सरस्वती ने उस बालक को गोद में लेकर अमृत के समान अपने स्तनों का दूध पिलाया जिससे वह (ब्रहम भट्ट) देवी पुत्र कहलाया।
उसे ब्रहमाजी ने
1 देवरूप
2. ब्रहमराव
3 भट्ट
4 स्तुति पाठक और
5 देवी पुत्र नाम दिये।
ब्रहमाजी ने वेदशिरा नाम के ऋषि की पत्नी तुषिता की कूख से उत्पन्न विद्या नाम की कन्या ब्रहम भट्ट को ब्याही जिसके तीन पुत्र हुये
1 सुत
2 मागध
3 बंदीजन ।
ब्रहमाजी ने तीनों की आजीविका अलग-अलग निर्धारित की।
(1) सुतजी को वेद पुराण पढ़ने की विद्या
(2) मागध को सुर्य वंश, चन्द्रवंश, ऋषिवंश के वर्णण की बुद्धि देकर तथा
(3) पुत्र बंदीजन को राजाओं का यश किर्ती करने की शक्ति प्रदान की। माँ सरस्वती ने गायत्री मंत्र दिया, शिवजी ने तारक मंत्र दिया तथा सावित्रीजी ने उत्तम मंत्र दिया। राजा पृथू ने एक महान यज्ञ किया सुत, मगध, बंदी ने राजा पृथू की स्तुति (किर्ती) की तो पृथू ने
1. सुतजी को यानत देश,
2. मागध को मगध देश,
3. बंदी को कोशल देश सम्मान पुर्वक भेंट किया तब से राजाओं ने किर्ती करने वाले भट्टो को सम्मान पुर्वक भेंट देना प्रारम्भ किया ।
ब्रहम भट्ट का मूल स्थान अमरापुर था बाद में ब्रहम भट्ट के वंशज जंबुद्विप में वास करने लगे। इसी वंश में सतयुग में ही पंनग राव हुआ तथा पनग राव का पुत्र पिंगल हुआ जिसने नाग पिंगल नाम का काव्य ग्रन्थ लिखा जिसमे पृथ्वी का समस्य विवरण है उस समय भट्ट कवि ये विद्या कंठस्थ याद रखते थे।
ऐसी मान्यता है कि चंडीदेवी के पास वलंगदेव और वलास देव नाम के भट्ट कवि थे वे चंडी माता के नाम से ही चंडिसा कहलाये। राजा बली के पास द्वितीय पींगल भट्ट तथा बुद्ध लोचन नाम के भट्ट थे।
त्रेतायुग में भगवान श्री राम के पास रंगपाल नाम के भट्ट कवि थे तो राजा जनक के पास सतानिकजी भट्ट थे, सीता स्वयंबर में सतानिकजी भट्ट राजा जनक की विरदावली बखाणते हैं। रामायण में लिखा है
(बासत भट्ट विरदावली बाँह उठाई उठाई)
( राम चरित्र मानस के बाल काण्ड में)
(बन्दीजनों द्वारा जनक प्रतिज्ञा की घोषणा ) (चौपाई) तब बंदीजन जनक बोलाए, विरदावली कहत चलि आए । कह नृपु जाई कह हुँ प्रण मोरा, चले माट हियँ हरषु न थोरा ।।
द्वापर युग में पांडवों, कोरवों के पास संजय भट्ट थे जिन्हें भगवान कृष्ण ने द्विय दृष्टि प्रदान की थी। ब्रहम भट्ट वंश में काली प्रसाद नाम के महान कवि हुये इनके दश पुत्र थे। जिनसे भट्टो की अलग-अलग शाखाऐं हुई। सबसे बड़े पुत्र कलरावजी
थे जिनसे कलाधी शाखा हुई।
इसी कलाधी वंश (कलरावजी के) में वेणी चन्दजी हुये। अग्नि वंशी (आदुसुर्य वंशी) इतिहास प्रसिद्ध अजमेर पनि विग्रह राज
चहुँआण (चतुर्थ) (राजा विसल) हुये। विसल याने विग्रह राज के पुत्र सोमेश्वर की राणी कपूर देवी की कूख से वि. स. 1209 की वैशाख सुदी दूज 2 को दिल्ली पति हिन्दुआ सम्राट पृथ्वी राज चहुँआण (तृतीय) का जन्म हुआ ।
इतिहास के पन्नों से स्पष्ट होता है कि विग्रहराज के पुत्र सोमेश्वर के कुल भाट (राव) दरबारी कवि वेणी चन्द की पत्नी श्रीयादेवी की कोख से उसी घड़ी पुल नक्षत्र में पृथूचन्द का जन्म हुआ।
पृथ्वीराज रासो के आदि समा छंद 92 पर लिखा हैं "इक्क दीह उपज, इक्क दीह समायकम् ।।"
पृथचन्द माँ जालन्धरी के उपासक थे माँ ने प्रशन्न होकर पृथूचन्द्र को वरदान दिया तो चन्द्रवरदाई कहलाये। जैसा कि चन्द्र वरदाई द्वारा कही गई स्तुति के अन्त में कहा है। प्रगट अम्बिका मुख क्यों, मांग चन्द वरदान" नोट चन्द के पुत्रों का विवरण पहले दे चुके है। चन्द भाट के - 12 पुत्रों में केहरी (केवलचन्द) हुये तथा केवलचन्द के वंशज अणहलजी (भोजराजजी) हुये। भोजराजजी के पुत्र कालूजी (केशाजी) हुये कालूजी के तीन विवाह हुये जिनसे 8 पुत्र और 3 पुत्रियाँ हुई।
पुत्र -
1 गेहाजी
2 वेलाजी
3 रायमलजी
4 कडवाजी
5 कितपालजी
6 सातलजी
7 पातलजी
8 अहवानजी (गोगाजी) सबसे छोटे पुत्र अहवानजी थे जो गायों की रक्षार्थ युद्ध में काम आये।
वि.स. 1484 में गाँव दाँतियां में वीर गति प्राप्त की जहां अहवानजी को गोगाजी नाम से आज भी पूजा जाता है।
इससे पहले गाँव दाँतिया राव वरजांगजी चहुँआण सांसोर के शासक द्वारा गेहाजी तथा वेलाजी को सांसण के रूप में जागीर में मिल गया था। वरजांगजी ने वि.स. 1470 की जेठ सुद 15 पूनम (पूर्णिमा) को दाँतिया गांव में मन्दिर बनाया तथा 7 गांव अपने कुल भाट गेहा वेला को दिये।
भट्ट कवि शंभूजी प्रभुजी तथा बलवन्तजी सुपुत्र पाबुदानजी राव द्वारा लिखिस पुस्तक "पृथ्वीराज चहुँआण" अने चन्द वरदाई के पुष्ठ संख्या 39-40 के मुताबिक सालमसिंह (साल्हा) सांचौर नरेश के सहयोग से अणहलजी (भोजराजजी) ने वि.स. 1442 की चैत्र सुदि 2 बीज बुधवार को आद सगती माँ हिंगलाज स्वरूपा का कलश लुवाणा ग्राम में स्थापित किया तथा कुल देवी के रूप में कुलेशवरी (कलेश हरणी) देवी के रूप में पूजा जाने लगा आज भी कलादी कुल के सेकड़ों भक्त माँ के दरबार में प्रति वर्ष आसोज सुदी 13-14 तैरस-चवदश को नमण (दर्शन) करने आते है।
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