वीर योद्धा श्री लखजी प्रतिहार (ठाकुर जी के परम भक्त थे ) ठाकुर मंदिर का कहाँ पर स्थित है
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वीर योद्धा श्री लखजी प्रतिहार (ठाकुर जी के परम भक्त थे ) ठाकुर मंदिर का कहाँ पर स्थित है
जालोर / जोधपुर ( 14 जुलाई 2023 ) Where is the temple of the brave warrior Shri Lakhji Pratihar Thakur situated प्रतिहार घराना प्राचीन काल में मंडोवर से उठकर जालोर गया और फिर मारवाड़ के भिन्न-भिन्न जगहों में जा बसा । यों गहलोत आदि वंशों ने राज्य की विकट समय में बड़ी-बड़ी सेवा की जैसा कि मारवाड़ राज्य के इतिहास व मर्दुमशुमारी की रिपोर्टों से ज्ञात होता है पर इस कुल के प्रतिष्ठित पूर्व पुरुषों ने आत्मत्याग के साथ अपनी जान तक की पर्वाह नहीं करके राजा प्रजा व देश की जो सेवा भी की है, वह प्रशंसनीय है इसी विचार से जालोर निवासी परिहार लखजी की कुछ सेवाओं को पाठकों की सेवा में प्रस्तुत करते हैं ।
जिस वक्त महाराजा भीमसिंहजी जोधपुर में राज करते थे और उनके चचेरे भाई महाराजा मानसिंहजी जालोर' के गढ़ में थे, उस समय लखजी वहीं अपनी खेतीबाड़ी का काम करते थे इनका परिचय महाराजा मानसिंह से हो गया और दिनोंदिन परस्पर प्रेमवात्सल्य इतना बढ़ा कि महाराजा साहब ने पेयजल आदि के प्रबन्ध का काम भी इनको विश्वासपात्र समझ कर दे दिया। महाराजा को विपत्ति के दिनों में जब भी विष दिये जाने का बहुत ही संदेह रहता था तो लखजी ऐसे कार्यों पर निगरानी रखते थे जो उनके बहुत ही प्रीतिपात्र होने का जीता जागता सबूत है ।
महाराजा भीमसिंह जी का घेरा 10 वर्ष तक जालोर पर रहा था और मानसिंहजी गढ़ ही में थे। उस समय खाने-पीने आदि की बहुत ही असुविधा तथा कष्ट होने पर हमारे चरितनायक लखजी और आहोर के जागीरदार अनाड़सिंह तथा विपत्ति में साथ देने वाले अन्य स्वामिभक्त सेवकों ने जो काम कर दिखाया,
वह इतिहास मे चिरस्मरणीय रहेगा। ऐसे समय में इन्होंने किसी तरह से खाना पीना पहुंचाना और शत्रु आदि के कार्यों की बातें बतलाना अपनी जान पर खेल कर किया इन्होंने किले के नीचे एक संन्यासी के स्थित समाचार कि “शीघ्र उनको राजगद्दी मिलेगी, कुछ दिन इंतजार करो" को आहोर ठाकुर तक पहुँचाया जिसने मानसिंहजी को सब हाल उनके आशापूर्ण भविष्य का कह सुनाया यही समाचार दैवयोग से महाराजा भीमसिंह जी की कार्तिक सुदी 4 सम्वत् 1860 वि. को अकस्मात् मृत्यु हो जाने का जब महाराजा मानसिंह जी के पास पहुँचा तो विश्वास की कमी होने के कारण इसकी सत्यता की खोज करने के वास्ते झारीबरदार लखजी परिहार और आहोर ठाकुर को जोधपुर भेजा।
जहां जाकर उन्होंने इस बात को सत्य पाया जोधपुर जाकर उन्होंने प्रजावर्गों में राज-मरण चिह्नों को स्वयं देखा । इसी मिशन को पूरा करके वे वापस गढ़ जालोर पहुंचे और मानसिंहजी को साही हाल बताया । जब मानसिंह जी ने मगसर बदी 10 सम्वत् 1860 को जोधपुर किले में प्रवेश
किया तब राजभक्त लखजी मय अपने भाइयों के जोधपुर चले आये महाराजा मानसिंह जी के माघ सुदी 5 संवत् 1860 वि. को राजसिंहासन पर बैठने के बाद जब उदयपुर (मेवाड़) की राजकुमारी कृष्णकुमारी के साथ विवाह का विवाद चला तब गांव गीगोली (मारवाड़ की घाटी में जो सेवा इन्होंने अपने स्वामी को दी उसके लिये स्वयं महाराजा साहब ने इनकी बड़ी प्रशंसा की इन्हें और जागीर आदि सम्मानसूचक चिन्ह देकर इनका और भी विशेष आदर किया। जयपुर और बीकानेर की एक लाख फौज जब परगने मारोठ (मारवाड़) में पड़ी हुई थीं और जब महाराजा मानसिंह गींगोली घाटी पर उसको हटाने का उद्योग कर रहे थे कि कुछेक मारवाड़ के सरदार इनके खिलाफ बहकाने में आ गये श्री हजूर मय आहोर ठाकुर साहब के रातोंरात जोधपुर रवाने हो गये झाराबरदार लखजी परिहार उनके पीछे ही मय श्रीजी की पूजापाठ के अमूल्य सामान लेकर चले उन्होंने शत्रुओं द्वारा किये जाने पर भी अनेक मुसीबतें सहते हुए दूसरे रोज पीपाड़ की एक तलाई पर पहुँचकर श्रीहजूर के दर्शन किये। महाराजा मानसिंह जी को पूजापाठ व अपने धर्म का बड़ा इष्ट था। अपने पूजापाठ के सामान को पा कर वे अत्यन्त हर्षित हुए और इस प्रकार बोले । “तूं यह सामान क्या लाया है मानो लड़ाई का नाक ले आया । नाथजी सब अच्छा करेंगे । तू विश्वास रख कि मैं तुझ से बहुत खुश हुआ हूँ ।"
इस प्रकार जोधपुर पहुँचने पर श्री दरबार ने अपने पूर्व वचन का पालन करते हुए इनको झाराबरदारी की सामंत प्रदान की और जागीर में गांव पूंदला, धिमाना, सुखवासी आदि के अलावा सात बेरे (कूप) दिये । एक बात और स्मरण रखने योग्य है कि स्वामीभक्त लखजी का स्वार्थत्याग इतना अधिक बढ़ा हुआ था कि जब महाराजा मानसिंह का स्वर्गवास भादो सुदी 12 संवत् 1900 वि. को हुआ तब आपने जागीर के गांव पूंदला (जोधपुर) में से 15 खेत गायों के चराने के वास्ते धर्मार्थ छोड़ दिये ।
उस समय हुए किसी बड़े झगड़े में लख जी के गर्दन पर इतना गहरा घाव हुआ फिर भी लख जी अपने घोड़े पे सवार होकर घर तक पहुँचे और उनका सिर धड़ से अलग होकर, उनके रावला बेरा, जहां निवास स्थान था, वहां गिरा। इस स्थान पर आज भी देवली बनी हुई है इनकी पूजा परिहार परिवार द्वारा भोमिया जी के रूप में की जाती है। भोमिया लख जी के साथ उनकी पत्नी पूंजला नाडी मगरा, मण्डोर पर सती हुई। वहां पर तीन छततियां बनी हुई हैं; जिसमें एक इनके कुलदेवी सुंधा माता की दूसरी लखजी की व तीसरा सती स्थल है। इन छतरियों का जीर्णोद्धार हाल ही में इनके वंशजों द्वारा किया गया |
JALORE NEWS
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