JALORE NEWS सकल संघ के लिए संकटमोचक के साथ सच्चे आचार्य बनने के गुण बताये -जैनाचार्य
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JALORE NEWS सकल संघ के लिए संकटमोचक के साथ सच्चे आचार्य बनने के गुण बताये -जैनाचार्य
जालोर ( 26 अगस्त 2023 ) JALORE NEWS नंदीश्वर जैन तीर्थ में भंडारी परिवार की ओर से आयोजित आध्यात्मिक चातुर्मास के तहत शनिवार को आचार्य श्री हार्दिक रत्न सुरीश्वर जी आचार्य पद की महिमा बताई।
आध्यात्मिक चातुर्मास के मीडिया संयोजक हीराचंद भंडारी ने बताया कि आचार्य श्री ने आचार्य पद की योग्यता के बारे में विस्तार से चर्चा की। आचार्य श्री ने कहा कि जो स्वयं आचारों का पालन करें और सबको प्रेरित करें। जिस शिष्य ने अपने गुरु के सानिध्य में रहकर समस्त आगमों का विस्तृत अध्ययन किया हो। वह आचार्य बनने के काबिल होता है। जिसके मन में जिन शासन को सदैव आगे बढ़ाने का भाव हो और इस हेतु प्रयत्नशील रहे। जो सूरिमंत्र की आराधना करते हो ।
छत्तीस गुणों से युक्त हो। वह शिष्य आचार्य बनने के योग्य होता है।
जैन शासन के आगम सूत्रों के मुताबिक जिस शिष्य ने अपने गुरु की अंतिम सांस तक अनवरत सेवा की हो वह आचार्य बन सकता है। जिसके भीतर पराघात पुण्य का उदय हो यानि जो अच्छा भी लगे और साथ ही जिसका भय भी बना रहे। जिसके आदेय नाम कर्म का उदय हो। अर्थात् जो जन-जन में प्रिय हो। श्रावक -श्राविकाओं के मन में जिसके लिए शुभ भावना हो। ऐसे शिष्य को आचार्य पद पर आरुढ़ किया जाता है।
उपाध्याय पद की विवेचना करते हुए आचार्य श्री ने कहा कि उपाध्याय पद के लिए 45 आगमों का 36 वर्ष तक विस्तृत अध्ययन सूत्र,अर्थ एवं अनुभव से आवश्यक होता है।यानि बारह वर्ष तक सूत्र अध्ययन,बारह वर्ष तक अर्थ अध्ययन और बारह वर्ष तक देशाटन के माध्यम से अनुभव आवश्यक होता है।इस लंबी प्रक्रिया के बाद उपाध्याय पर किसी शिष्य को आरुढ किया जाता है।
धर्म सभा को संबोधित करते हुए मुनिराज श्री स्वर्ण कलश विजय जी महाराज ने सुपात्रदान के महत्व पर विस्तार से प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि यदि कोई दरिद्र एवं कृपण व्यक्ति भी शुभ भावना से सुपात्र दान करें तो उसकी दरिद्रता दूर हो जाती है। सुपात्र दान करते-करते तीर्थंकर नामकरण का बंध होता है। योग्य समय में यदि अल्प मात्रा भी सुपात्र दान किया जाए तो उसका फल कई गुना मिलता है। प्रथम तीर्थंकर श्री आदिनाथ भगवान ने अपने पहले भव धनसार्थवाह के जीव में सुपात्र दान किया। इसलिए वे तीर्थंकर बने। चौबीसवें तीर्थंकर श्री महावीर प्रभु जब 5 महीने और 25 दिन के उपवास के पारणे के निमित्त गौचरी के लिए जाते हैं ।तब तेले की तपस्वी चंदनबाला कैद में जंजीरों से बंधी थी। उसने वीर प्रभु को उड़द के बाकुले वोहराए और वीर प्रभु का अभिग्रह पूर्ण हुआ आज की धर्मसभा में आध्यात्मिक चार्तुमास के मीडिया प्रभारी व वरिष्ठ आर. टी. आई. कार्यकर्ता हीराचंद भण्डारी, चम्पालाल भण्डारी, ओसवाल सिंह सभा के अध्यक्ष सोहनलाल बोहरा, भैरूमल सेठ, कालूराज मेहता, डुंगरमल मुणोत, छोटमल भण्डारी , मुलराज भण्डारी , भलेचंद पारख, कालुचंद पारख, सपना भण्डारी , वीणा सोलंकी , मीना सोलंकी , धवनी पारख, विमला मेहता, मंजु बोहरा, बेबी भण्डारी , रिंकु सोलंकी , मंधु भण्डारी , लीला भण्डारी सहित सैकड़ों श्रावक श्राविकाएँ मौजूद थे।
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