जालौर का गौरव अमर वीरांगना हिरादे के सम्मान की जंग..जालौर की पदमावती कहानी
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विशेष कवरेज खबर : जालौर का गौरव अमर वीरांगना हिरादे के सम्मान की जंग..जालौर की पदमावती कहानी
जालोर ( 26 अगस्त 2023 ) राजस्थान की धरा का इतिहास वीरों और वीरांगनाओं की अमर गाथाओं से भरा पड़ा हैं। यहां पर पग पग पर इतिहास की अद्भुत बलिदानी गाथाऐं गूंजती रहती हैं। जिस धरा के क कण में गौरवपूर्ण इतिहास का समावेश हो । उस धरती को केवल वंदन ही नहीं बल्कि बारम्बार माथे पर लगा कर पूरखों के बलिदान को याद करने का मन करता हो। उस धरा को मैं तो आँखों से ओझल नही कर सकता हूँ। जो भोम वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप, राणा सांगा, मालदेव, हम्मीर देव, वीरमदेव, कान्हड़देव, वीर दुर्गादास, नागभट्ट प्रथम, बप्पा रावल, पृथ्वीराज चौहान तृतीय, गोरा, बादल, राव कूंपा और जेता जैसे वीर शूरमाओं की जन्मभोम हो । वहाँ अपने आप क जन्म होना ही मेरे लिए गर्व का अनुभव है। इसी मिट्टी में रानी पद्मावती, पन्नाधाय, कालीबाई, मीराबाई, हाडी रानी, अमृता बाई जैसी वीरांगनाओं की हस्ती आज यहाँ के हर जन जन के मुँह से बलिदानी गाथाएं सुनाई दे देती हैं। हम इन सब को बडी श्रद्धा और गर्व से याद भी करते हैं। लेकिन इस मिट्टी की एक ऐसी वीरांगना जिनका बलिदान और त्याग तो सारा जग जानता है। लेकिन जब बात उनके यशोगान की आती हैं तो राजस्थान की धरा के साथ ही सोनगरा चौहानों की रियासत और मारवाड़ साम्राज्य का कभी सबसे अभेद गढ रहा जालोर रियासत भी भूला देता है। उनका त्याग और बलिदान भी इतना अभिमानी था कि जिसे सुनकर सारे जालौर वासियों के साथ साथ पूरे भारतवर्ष का सीना चौड़ा हो जाता है। आपके जैसा त्याग पूरे विश्व में अन्यत्र कही नहीं मिलता है। अब तक तो आप समझ ही गए होंगे कि मै किस वीरांगना की बात कर रहा हूँ? अगर आप समझ नहीं पा रहे हो तो अपना ऐतिहासिक ज्ञान जाँच ले। जी हाँ, मै बात कर रहा हूँ जालौर के सोनगरा चौहानों की बेटी और दहिया राजवंश की बहु और मेरे
लिए प्रात:स्मरणीय साक्षात देवी स्वरुपा वीरांगना माता हिरादे की। जो पूरे जालौर का गौरव हैं। हम सब के त्याग की प्रेरणा हैं। नारी शक्ति की प्रतीक है। इतिहास कैसे बनाया जाता है? इसका ज्वलंत उदाहरण हैं। जीवन में किसी वीरांगना से प्रेरणा लेनी हैं तो मेरा सुझाव रहेगा कि वो शख्सियत केवल और केवल माँ हिरादे ही थी । विशेषकर नारी शक्ति के लिए। आपके त्याग जैसे उदाहरण इतिहास में अन्यत्र कतई नहीं है। भारतीय इतिहास में पन्नाधाय को अपने पुत्र चंदन का बलिदान देकर महाराणा उदय सिंह को बचाने के लिए, हाडी रानी को अपने पति को युद्ध भूमि में प्रेम मोह से दूर रखकर वीरता दिखाने के लिए निशानी के रूप में अपना शीश भेट करने के लिए, रानी पद्मावती के सौंदर्य और युद्ध कौशल की कला के साथ जौहर के लिए, काली बाई को अपने गुरुजन पर अंग्रेजों की क्रूरता रोकने के लिए अपनी शहादत के लिए, अमृतादेवी को प्रकृति की सबसे बड़ी देन वनस्पति की रक्षा के लिए अपने बलिदान के लिए और मीराबाई को अपनी कृष्ण भक्ति के लिए इतिहास में याद करते हैं तो फिर इतिहास की सबसे बड़ी बलिदानी गाथा की अहम किरदार हिरादे को हम कैसे नजर अंदाज कर सकते हैं? वही माँ हिरादे जो चौहानवंशी बेटी के रूप में और दहियावंशी बहु के रुप में इतिहास को बदल कर रख दिया। एकमात्र ऐसी वीरांगना जिन्होंने निर्णायक युद्ध से पूर्व अलाउद्दीन खिलजी को अपने जालोर रियासत का भेद देकर आ रहे अपने ही पति बीका दहिया का शीश अपने तलवार के एक वार से धड़ अलग कर क्षत्राणी होने का धर्म निभाया। वो भी बिना इस झिझक के कि मैं अपना सिन्दूर अपने ही हाथों से मिटा रही हू। आपका वो कृत्य आपके अर्धांगिनी होने से कही ज्यादा आपका राष्ट्र प्रेम और रियासत की रक्षा के लिए आपका अर्पण था। एक ऐसी ऐतिहासिक घटना की आप किरदार थी। जिनके लिए पति, परिवार से कही ज्यादा राष्ट्र और आपकी रियासत थी। आपकी नजर में आपके पति का कृत्य राजद्रोही और आपको शर्मिंदगी का अहसास था। आपने इसी कलंक को पल भर में मिटा कर इतिहास को स्वर्ण नगरी की धरा से सुनहरे अक्षरों में लिख दिया। एक ऐसा विरले उदाहरण प्रस्तुत किया जैसा इतिहास में न तो पूर्व में था। नही इतनी शताब्दी गुजर जाने के बाद भी कोई इसे दोहरा पाया है। आपने राष्ट्र और रियासत को जीवंत रखने के लिए तथा एक क्षत्राणी के वास्तविक धर्म को निभाकर अपने असूलो पर चल कर अपने ही माथे के सिन्दूर को अपने ही हाथों से मिटाकर रियासत के शासक कान्हड़देव चौहान के सामने पेश हुई। आपके इस त्याग को स्थानीय शासक के साथ सम्पूर्ण प्रजा ने भी सराहा। क्योंकि आपने इतिहास को एक नया आईना दिखाया था कि जब जब किसी बेटे, भाई या बाप ने अपना क्षत्रिय धर्म न निभाया तब तो उनके शासकों ने उन्हें सजा दी थी। लेकिन आपने अपना क्षत्रिय धर्म न निभाने वाले पति को दंडित किया था। जो इतिहास का सबसे ज्यादा चर्चित त्याग था। ऐसी ही ऐतिहासिक मूर्त हिरादे को आज पूरा इतिहास भूल चुका है। विशेषकर जालोर वासी । इतिहास में जो स्थान पन्नाधाय, पद्मावती, हाडीरानी को मिला। वैसा स्थान माँ हिरादे को नही मिला। हम सब जालौर वासी प्रयास करके हिरादे को भी वही स्थान दिलाने के लिए और पाठ्यक्रम में सम्मिलित करने की मुहिम का हिस्सा बने। ताकि हम शानो शौकत से सामूहिक रुप से जो जय जालौर का उद्घोष करते हैं वो वास्तविक रूप से चरितार्थ हो सके। आप भी आइऐ मेरे साथ और हिरादे के सम्मान की आज मुहिम का हिस्सा बने। ताकि इतिहास हमारी शहादत को याद
रखे।
माँ हिरादे के शब्दों में उस घटना में उभरा उनका तार्किक चिंतन आपसे साझा कर रहा हूँ-
घटना संवत 1368 (ई.सन 1311) मंगलवार बैसाख सुदी 5 के दिन की है। विका द्वारा जालौर दुर्ग के गुप्त भेद अल्लाउद्दीन खिलजी को बताने के परिणाम स्वरूप मिली धन की गठरी लेकर बेहद खुश होकर अपने घर लौट रहा था। पहली बार इतना ज्यादा धन देख उनकी खुशी का कोई ठिकाना नहीं था।
चलते चलते रास्ते में सोच रहा था कि इतना धन देखकर उसकी पत्नी हिरादे बहुत खुश होगी। इस धन से वह अपनी पत्नी के लिए गहने बनवायेगा, युद्ध समाप्ति के बाद इस धन से एक आलिशान हवेली का निर्माण करवाएगा, हवेली के आगे घोड़े बंधे होंगे, नौकर चाकर होंगे, अलाउद्दीन द्वारा जालौर किले में तैनात सूबेदार के दरबार में उसकी बड़ी हैसियत समझी जायेगी ऐसी कल्पनाएँ करता हुआ वह घर पहुंचा और धन की गठरी कुटिल मुस्कान बिखेरते हुए अपनी पत्नी हिरादे को सौंपने हेतु बढाई। अपने पति के हाथों में इतना धन व पति के चेहरे व हावभाव को देखते ही हिरादे को अल्लाउद्दीन खिलजी की जालौर युद्ध से निराश होकर दिल्ली लौटती फौज का अचानक जालौर की तरफ वापस कूच करने का राज समझ आ गया। वह समझ गयी कि उसके पति विका ने जालौर दुर्ग के असुरक्षित हिस्से का राज अल्लाउद्दीन की फौज को बताकर अपने वतन जालौर व अपने पालक राजा कान्हड़ देव सोनगरा चौहान के साथ धोखा कर यह धन प्राप्त किया है। उसने तुरंत अपने पति से पुछा-
"क्या यह धन आपको अल्लाउद्दीन की सेना को जालौर किले का कोई गुप्त भेद देने के बदले मिला है?" हाँ सुनते ही हिरादे आग बबूला हो उठी और क्रोध से भरकर अपने पति को धिक्कारते हुए दहाड़ उठी-
“अरे ! तुम एक क्षत्रिय होने के बावजूद क्षत्रिय द्वारा निभाये जाने वाले स्वामिभक्ति धर्म के बारे में भूल गए थे? विका ने हिरादे को समझा कर शांत करने की कोशिश की पर हिरादे जैसी देशभक्त क्षत्रिय नारी उनके बहकावे में कैसे आ सकती थी? पति पत्नी के बीच इसी बात पर बहस बढ़ गयी। विका दहिया की हिरादे को समझाने की हर कोशिश ने उसके क्रोध की अग्नि में घी का ही कार्य ही किया।
हिरादे पति के इस कृत्य से बहुत दुखी व क्रोधित हुई। उसे अपने आपको ऐसे पति की पत्नी मानते हुए लज्जा महसूस होने लगी। उन्होंने मन में सोचा कि युद्ध के बाद उसे एक धोखेबाज व राजद्रोही की बीबी होने के ताने सुनने पड़ेंगे और उन जैसी देशभक्त ऐसा कैसे सह सकता थी? इन्ही विचारों के साथ किले की सुरक्षा की गोपनीयता दुश्मन को पता चलने के बाद युद्ध के होने वाले संभावित परिणाम और जालौर दुर्ग में युद्ध से पहले होने वाले जौहर के दृश्य उसके मन मष्तिष्क में चलचित्र की भांति चलने लगे। जालौर दुर्ग की राणियों व अन्य महिलाओं द्वारा युद्ध में हारने की आशंका के चलते अपने सतीत्व की रक्षा के लिए जौहर की धधकती ज्वाला में कूदने के दृश्य और छोटे छोटे बच्चों के रोने विलापने के दृश्य, उन दृश्यों में योद्धाओं के चेहरे के भाव जिनकी अर्धाग्नियाँ उनकी आँखों के सामने जौहर चिता पर चढ़ अपने आपको पवित्र अग्नि के हवाले करने वाली थी स्पष्ट दिख रहे थ। साथ ही दिख रहा था जालौर के रणबांकुरों द्वारा किया जाने वाले शाके का दृश्य जिसमें जालौर के रणबांकुरे दुश्मन से अपने रक्त के आखिरी कतरे तक लोहा लेते लेते कट मरते हुए मातृभूमि की रक्षार्थ शहीद हो रहे थे। एक तरफ उसे जालौर के राष्ट्रभक्त वीर स्वातंत्र्य की बलिवेदी पर अपने प्राणों की आहुति देकर स्वर्ग गमन करते नजर आ रहे थे तो दूसरी और उसकी आँखों के आगे उनका पति खड़ा था। ऐसे दृश्यों के मन आते ही हिरादे विचलित व व्यथित हो गई थी। उन विभत्स दृश्यों के पीछे सिर्फ उन्हें अपने पति का कृत्य नजर आ रहा था। उनकी नजर में सिर्फ और सिर्फ उसका पति ही इनका जिम्मेदार था। हिरादे की नजर में पति द्वारा किया गया यह एक ऐसा जघन्य अपराध था जिसका दंड उसी वक्त देना आवश्यक था। उन्होंने मन ही मन अपने पति को इस कृत्य का दंड देने का निश्चय किया। उनके सामने एक तरफ उनका सुहाग था तो दूसरी तरफ देश के साथ अपनी मातृभूमि के साथ धोखा करने वाला पति । उनके एक तरफ देश के विरूद्ध जाने दोषी को मारकर उसे सजा देने का कर्तव्य था तो दूसरी और उनका अपना उजड़ता
सजा देने का कर्तव्य था तो दूसरी और उनका अपना उजड़ता सुहाग। आखिर उस देशभक्त वीरांगना ने तय किया कि - "अपनी मातृभूमि की सुरक्षा के लिए यदि उसका सुहाग खतरा बना है और उसके पति ने देश के प्रति विश्वासघात किया है तो ऐसे अपराध व दरिंदगी के लिए उसकी भी हत्या कर देनी चाहिए। उनके लिए यही एकमात्र सजा है !" मन में उठते ऐसे अनेक विचारों ने हिरादे के रोष को और भड़का दिया। उनका शरीर क्रोध के मारे कांप रहा था। उनके हाथ पति को सजा देने के लिए तड़फ रहे थे और हीरादे ने आव देखा न ताव पास ही रखी तलवार उठा अपने पति का एक झटके में सिर काट डाला। हिरादे के एक ही वार से विका का सिर कट कर लुढक गया। हिरादे एक हाथ में नंगी तलवार व दुसरे हाथ में अपने पति का कटा मस्तक लेकर उन्होंने अपने राजा कान्हड़ देव को उसके एक सैनिक द्वारपाल द्वारा पति द्वारा किए कृत्य व उन्हें उचित सजा दिए जाने की जानकारी दी। कान्हड़ देव ने इस राष्ट्रभक्त वीरांगना को नमन किया और हिरादे जैसी वीरांगनाओं पर मन ही मन गर्व करते हुए अल्लाउद्दीन से युद्ध के लिए निकल पड़े। इस तरह एक देशभक्त वीरांगना अपने पति को भी राजद्रोह व अपनी मातृभूमि के साथ घात करने पर दंड देने से नहीं चूकी। देशभक्ति के ऐसे उदाहरण विरले ही मिलते है जब एक पत्नी ने अपने पति को राजद्रोह के लिए मौत के घाट उतार कर अपना सुहाग उजाड़ा हो पर अफसोस हिरादे के इतने बड़े त्याग व बलिदान को इतिहास में वो जगह नहीं मिली जिसकी वह हकदार थी। हिरादे क्यों जैसलमेर की माहेची व बलुन्दा ठिकाने की रानी बाघेली के बलिदान को भी इतिहासकारों ने जगह नहीं दी। जबकि इन वीरांगनाओं का बलिदान व त्याग भी पन्नाधाय के बलिदान से कम ना था। देश के ही क्या दुनिया के इतिहास में राष्ट्रभक्ति का ऐसा अतुलनीय अनूठा उदाहरण कहीं नहीं मिल सकता?
काश आज हमारे देश के बड़े अधिकारीयों, नेताओं व मंत्रियों की पत्नियाँ भी हिरादे जैसी देशभक्त नारी से सीख ले। अपने भ्रष्ट पतियों का भले सिर कलम ना करें पर उन्हें धिक्कार कर बुरे कर्मों से रोक तो सकती ही है।
नोट :- कुछ इतिहासकारों ने हीरादे द्वारा अपने पति की हत्या तलवार द्वारा न कर जहर देकर करने का जिक्र भी किया है। भले ही हिरादे ने कोई भी तरीका अपनाया हो पर उन्होंने अपने राजद्रोही पति को मौत के घाट उतार कर सजा जरुर दी।
खिलजी के कारण 18 साल में पांच जौहर Smiling, रणथम्भौर व जालोर के जौहर इतिहास
विदेशी आक्रांताओं का मुकाबला करने के लिए वीरभूमि राजस्थान के यौद्धाओं ने अंतिम समय तक लड़ाई लड़ी, लेकिन क्षत्राणियां भी पीछे नहीं हटी। इस वीर भूमि पर जालोर और चित्तौड़ ही नहीं बल्कि अनेक जौहर हुए हैं, जिन्हें जनता आज भी याद करती है और आने वाली पीढि़यों को सुनाती है। हजारों क्षत्राणियां आग में भस्म होकर वीर गति को प्राप्त हुईं। इनमें जैसलमेर , रणथम्भौर व जालोर के जौहर इतिहास में मुख्य रूप से अंकित हैं।
जौहर और सतीत्व जैसे शब्द इन दिनों पदमावती फिल्म को लेकर जन-जन की जुबान पर है। आपको बता दें कि तत्कालीन राजपूताने में साढ़े 11 बार जौहर हुए। इनमें से पांच अकेले अलाउद्दीन खिलजी के आक्रमणों के कारण हुए हैं। यह परम्परा ही खिलजी के समय ही शुरू हुई। ऐतिहासिक तथ्यों के अनुसार 1294 से शुरू हुए जौहर 1568 तक 274 साल तक चली। परन्तु इसमें से आधे जौहर मात्र 18 साल के समय में अलाउद्दीन खिलजी के समय ही हुए। जैसलमेर का अंतिम जौहर आधा माना जाता है।
जालोर का जौहर और शाका
अलाउद्दीन खिलजी के नेतृत्व में लम्बे अरसे तक जालोर दुर्ग पर घेरा रहा। 1311 में बीका दहिया द्वारा किले का भेद दिए जाने पर युद्ध प्रारंभ हुआ। कान्हड़देव और वीरमदेव की वीरगति के बाद जालोर दुर्ग में 1584 महिलाओं ने जौहर किया। जालोर गढ़ में जौहर शीर्षक से पुस्तक लिखने इतिहासकार हरिशंकर राजपुरोहित बताते हैं कि राजस्थान की युद्ध परम्परा में जौहर और शाकों का विशिष्ठ स्थान है। जहां पराधीनता के बजाय मृत्यु का आलिंगन करते हुए यह स्थिति आ जाती है कि अब ज्यादा दिन तक शत्रु के घेरे में रहकर जीवित नही रहा जा सकता तब जौहर और शाके करते थे। इतिहास के व्याख्याता डॉ. सुदर्शनसिंह राठौड़ बताते हैं कि उस समय स्वतंत्रता सबसे प्रमुख हुआ करती थी। दुश्मन के हाथ में पड़कर सतीत्व लुटाने अथवा कैद होकर रहने की चाह मृत्यु से भी बदतर थी। पुरुष शाका अर्थात मृत्यु से अंतिम युद्ध और महिलाएं जौहर करती थी।
राजपूताने के अन्य जौहर
चौदहवीं शताब्दी में जैसलमेर का दूसरा साका फिरोजशाह तुगलक के शासन के प्रारंभिक वर्षों में हुआ। योद्धाओं ने शाका किया और दुर्गस्थ वीरांगनाओं ने जौहर।
1423 में गागरोण में अचलदास खींची के शासनकाल में माण्डू के सुल्तान होशंगशाह के आक्रमण के दौरान जौहर हुआ।
1444 में गागरोण में माण्डू के सुल्तान महमूद खिलजी के आक्रमण पर।
1534 में गुजरात के शासक बहादुर शाह के आक्रमण पर राणा सांगा की रानी कर्मावती ने चित्तौड़ में 13 हजार महिलाओं के साथ जौहर किया।
1550 में जैसलमेर में तीसरा जौहर राव लूणकरण के राज में कंधार के शासक अमीर अली के समय में हुआ। इसे आधा जौहर कहा जाता है।
1565 में अकबर की ओर से मोटा राजा उदयसिंह ने सिवाणा पर आक्रमण किया। वीर कल्ला रायमलोत के नेतृत्व में सिवाणा में जौहर हुआ।
1568 में अकबर के चित्तौड़ पर आक्रमण के दौरान तीसरा जौहर हुआ।मेड़तिया जयमल राठौड़ की रानी फूलकुंवर के नेतृत्व में 32 हजार महिलाओं ने जौहर किया और हजारों पुरुषों ने शाका।
रणथम्भौर दुर्ग...
इतिहास का पहला जल जौहर
इतिहासकारों की माने तो रणथम्भौर दुर्ग में १३०१ ईस्वी में पहला जल जौहर हुआ था। हम्मीर देव की पत्नी रानी रंगादेवी ने रणथम्भौर दुर्ग स्थित पद्मला तालाब में कूदकर जल जौहर किया था। इतिहासकार इसे राजस्थान पहला एवं एकमात्र जल जौहर भी मानते हैं। रानी रंगा देवी ने ये जौहर खिलजी द्वारा रणथम्भौर दुर्ग पर किए आक्रमण के दौरान किया था। अभेद्य दुर्ग रणथम्भौर को आधीन करने में अलाउद्दीन खिलजी को 11 माह का वक्त लगा था।
जैसलमेर...
सतियों के हाथ के चिन्ह
जैसलमेर जिले के इतिहास के पन्नों के अनुसार रावल जैसल के वंशजों ने लगातार 770 वर्ष शासन किया। 1294 में अलाउद्दीन खिलजी के आक्रमण के समय भाटी शासक रावल मूलराज, कुंवर रतनसी सहित बड़ी संख्या में योद्धाओं ने असिधारा तीर्थ में स्नान किया और महिलाओं ने जौहर का अनुष्ठान किया। दूसरा जौहर फिरोज शाह तुगलक के शासन में घटित होना बताया जाता है। इस दौरान दुर्ग में वीरांगनाओं ने जौहर किया। 1550 ईस्वी में कंधार के शासक अमीर अली का आक्रमण हुआ था। वीरों ने युद्ध तो किया लेकिन जौहर नहीं हुआ।
चित्तौड़...
16,000 ने किया अग्नि स्नान
1303 में हुआ था चित्तौड़ का जौहर, खिलजी का लालच था इसकी वजह
चित्तौड़ में 1303 में अलाउद्दीन खिलजी ने आक्रमण किया। तब राणा रतन सिंह की पत्नी पद्मिनी ने चतुराई से शत्रु का सामना किया। अपनी मर्यादा व राजपूती स्वाभिमान की खातिर पद्मिनी ने विजय स्तम्भ के समीप 16 हजार रानियों, दासियों व बच्चों के साथ जौहर की अग्नि में स्नान किया था। उसके बाद १३०५ में खिलजी ने सिवाणा और जालोर का रुख किया था। यहां भी हजारों पुरुषों ने शाका किया और सैकड़ों वीरांगनाओं ने जौहर।
सिवाणा...
सिवाना गढ़ पर अकबर का हमला
बाड़मेर जिले के सिवाना गढ़ (दुर्ग) पर भी १३०८ में अलाउद्दीन खिलजी ने आक्रमण किया था। इस दौरान जौहर हुआ। अकबर के काल में इस दुर्ग में राव कल्ला की महारानी और उनकी बहन के जौहर के प्रमाण हैं। ईस्वी सन ११०० के आसपास परमार शासकों ने किले की नींव रखी थी। खिलजी के बाद ईस्वी सन १६०० के आसपास अकबर की सेना ने सिवाना दुर्ग पर आक्रमण किया। उसने दुर्ग का कई बार घेराव किया। वीरता से लड़ते हुए शासक राव कल्ला राठौड़ शहीद हुए। इस पर रानियों ने किले में जौहर किया।
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