JALORE NEWS देव झूलनी एकादशी पर सुंदेलाव तालाब पर पहुंचे विभिन्न मंदिरों से ठाकुरजी
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JALORE NEWS देव झूलनी एकादशी पर सुंदेलाव तालाब पर पहुंचे विभिन्न मंदिरों से ठाकुरजी
जालोर ( 25 सितम्बर 2023 ) JALORE NEWS जालोर मुख्यालय पर पालकी में विराजमान ठाकुरजी, भक्तिमय माहौल में जोश के साथ नृत्य करते भक्तगण और सुंदेलाव तालाब पर ठाकुरजी के दर्शन के लिए उमड़ा भक्तों का सागर। यह दृश्य था देव झूलनी एकादशी का, जब पूरे शहर में ठाकुरजी के दर्शन के लिए लोगों की भीड़ उमड़ रही थी, वहीं मंदिरों से पालकी में विराजमान ठाकुरजी शोभायात्रा के रूप में सुंदेलाव पहुंचे। वहां पर ठाकुर को सुंदेलाव तालाब के जल स्नान करवाया गया। बाद में पालकी में विराजमान कर फिर से मंदिर लाया गया और पूजार्चना की गई।
देव झूलनी एकादशी पर सोमवार को शहर में ठाकुर जी के विभिन्न मंदिरों से भगवान श्रीकृष्ण की पालकी निकाली गई। पालकी तिलक द्वार होते हुए ढोल धमाके वह डीजे के साथ हरिदेव जोशी सर्कल, बागोड़ा रोड, पंचायत समिति होते हुए सुन्देलाव तालाब पहुंची, जहां पर पालकी पर सुन्देलाव तालाब के पानी से छीटें लगाए गए। उसके बाद लोगों की भीड़ ने पालकी के दर्शन किए व प्रसाद भी चढ़ाया जिसमें केले, बाजरे के छीटे, कालिंगा का प्रसाद भी चढ़ाया। इस दौरान काफी संख्या में महिलाएं, पुरुष युवा व बच्चे मौजूद थे। जयकारों के साथ गुलाल उड़ाकर हाथी घोड़ा पालकी, जय कन्हैया लाल की के जयकारे भी लगाए। पालकी के नीचे से होकर भी श्रद्धालुु निकले। मान्यता है कि पालकी के नीचे से होकर गुजरने पर बीमार नहीं होते हैं। इसी वजह से पालकी के नीचे से होकर श्रद्धालु निकलते हैं। इस दौरान डीजे की धुन पर कई जगह महिलाओं व युवतियां द्वारा नृत्य भी किया गया। डीजे की धुन पर महिलाएं नाचती हुई सुन्देलाव तालाब पहुंची, जहा पर श्रद्धालुओं का मेला सा नजर आया। उसके बाद शाम को महाआरती के बाद पुन: पालकी अपने अपने मंदिरों में भक्तगण लेकर पहुंचे।
यह है पूजन का विधान
शिशु के जन्म के बाद जलवा पूजन, सूरज पूजन या कुआं पूजन का विधान है। उसी के बाद अन्य संस्कारों की शुरूआत होती है। यह पर्व उसी का एक रूप माना जाता है। शाम के वक्त भगवान श्रीकृष्ण की प्रतिमा को झांकी के रूप में मन्दिर के नजदीक किसी पवित्र जलस्रोत पर ले जाया जाता है और वहां उन्हें स्नान कराते है एवं वस्त्र धोते है और फिर वापस आकर उनकी पूजा की जाती है।
व्रत रखा और ठाकुरजी की झांकी देख व्रत खोला
शहर में भक्तों ने इस दिन व्रत किया। कई जगह भगवान की इस झांकी को देखने के बाद व्रत खोलने की परम्परा है। झांकी में भगवान को पालकी यानि डोली में ले जाया गया। इसलिए इसे डोल एकादशी भी कहते है। एक मान्यता यह भी है कि भगवान विष्णु इस दिन करवट बदलते है। इस बदलाव के कारण इसे परिवर्तिनी एकादशी भी कहते है। देखा जाए तो यह मौसम में बदलाव का भी सूचक होता है। इस दिन भगवान विष्णु के वामन रूप की पूजा होती है इसलिए वामन एकादशी भी कहा जाता है।
देव झुलनी एकादशी क्यों मनाया जाती है
शिशु के जन्म के बाद जलवा पूजन, सूरज पूजन या कुआं पूजन का विधान है। उसी के बाद अन्य संस्कारों की शुरूआत होती है। यह पर्व उसी का एक रूप माना जा सकता है। शाम के वक्त भगवान श्रीकृष्ण की प्रतिमा को झांकी के रूप में मन्दिर के नजदीक किसी पवित्र जलस्रोत पर ले जाया जाता है और वहां उन्हें स्नान कराते है एवं वस्त्र धोते है और फिर वापस आकर उनकी पूजा की जाती है। इस दिन व्रत किया जाता है। कई जगह भगवान की इस झांकी को देखने के बाद व्रत खोलने की परम्परा है। झांकी में भगवान को पालकी यानि डोली में ले जाया जाता है इसलिए इसे डोल एकादशी भी कहते है। एक मान्यता यह भी है कि भगवान विष्णु इस दिन करवट बदलते है। इस बदलाव के कारण इसे परिवर्तिनी एकादशी कहते है। देखा जाए तो यह मौसम में बदलाव का भी सूचक होता है। इस दिन भगवान विष्णु के वामन रूप की पूजा होती है इसलिए वामन एकादशी भी कहा जाता है।
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