जालोर कालकाजी की पहाड़ों के बीच में बनीं एक नटनी की छतरी , 500 मीटर ऊँचा यहाँ लगभग 400 वर्ष पूर्व छतरी - JALORE NEWS
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जालोर कालकाजी की पहाड़ों के बीच में बनीं एक नटनी की छतरी , 500 मीटर ऊँचा यहाँ लगभग 400 वर्ष पूर्व छतरी - JALORE NEWS
जालौर ( 22 अक्टूबर 2023 ) नमस्कार साथियों आज हम एक जालौर से जुड़े इतिहास से संबंधित जानकारी के साथ नया वीडियो लेकर आया हूं जालोर के इतिहास से जुड़ें कुछ किस्से हैं । अगर आप जालौर के रहने वाले हैं तो यहाँ आपके लिए खास संबंधित होगा। यहां वीडियो शुरू करने से पहले अगर आप हमारे चैनल पर अभी नया जुड़े है तो आप अभी चैनल को लाइक और शेयर करे देवें जैसे कि आप सभी को मालूम है कि जालोर के स्वर्णगिरी पर्वत के दक्षिण दिशा में कालकाजी की पहाड़ी पर एक नटनी की छतरी बनी हुई है। इस संबंध में किवदंती है कि पौराणिक कथाओं के अनुसार यहाँ कथा आज से लगभग 400 वर्ष पूर्व में यहाँ पर करतब दिखाने वाले नट समाज की एक शर्त लगी थी।
कि एक बार जालोर में राजा से नट की यह शर्त लगी कि नटनी रस्सी पर जालौर पहाड़ के पश्चिम में स्थित टेकरी से दूसरी तरफ कालकाजी से रस्सी बांध कर उस पर चल कर पार कर लेगी, इस पर राजा ने कहा कि ऐसा कर दिया तो आधा राज दे दूंगा। तय समय पर पूरे राज दरबार एवं ग्रामीणजनों की उपस्थिति में नटनी ने रस्सी पर चलना प्रारंभ कर दिया तथा लगभग 80 प्रतिशत चली और जालोर का आधा राज जाते-जाते बच गया। तभी कहते हैं कि नटनी ने आधा से ज्यादा दूरी तय कर ली। इस पर राजा को जल्दबाजी में दिए गए अपने वचन के परिणाम का अहसास हुआ।
इस चैनल को लाईक और शेयर जरूर करे https://youtu.be/EebaLzyN258?feature=shared 👈👈 जालोर कालकाजी की पहाड़ों के बीच में बनीं एक नटनी की छतरी 500 मीटर ऊँचा और लगभग 400 वर्ष पूर्व छतरी जाने पीछे की कहानी
उनके इशारे पर किसी ने राजा के मंत्री व सिपहसलाहकारों ने कहा कि महाराज आधा राज चला जाएगा, तो महाराज ने कहा कि क्या किया जाये, तभी किसी ने कहा कि रस्सी को तोड़ दिया जाए। इस पर रस्सी को दूसरी तरफ से तोड़ दिया गया। ओर नटनी के गिरने से मृत्यु हो गई। कहते है कि नटों ने उस घटना को लेकर यह शपथ ली कि आज से जालोर का असली नट पानी तक नहीं पीएगा तथा न ही यहां रहेगा तब से अब तक नटो का जालोर में गादोतरा (कसम) है तथा यह नटनी की छतरी उनकी स्मृति कराती है। वही लेकिन उसकी स्मृति में यह छतरी बनी हुई है। हालांकि कुछ लोग रस्सी की जगह कच्चे धागे पर चलने की शर्त बताते हैं. लेकिन यह प्रामाणिक नहीं है।
स्वर्णगिरी की टेकरी से कालकाजी की पहाड़ी तक रस्सी पर लगभग 500 मीटर चलने की शर्त थी । प्रमाण ऐसा नट समाज ने किया जालोर का बहिष्कार आज तक जारी प्रचलित है कि राजा के इस आचरण से दुखी होकर नट समाज ने उसी समय जालोर छोड़ दिया।समाज से जुड़े लोग बताते हैं कि आज भी पुराने परिवारों के लोग इस परंपरा को निभा रहे हैं। हालांकि कुछ इक्का-दुक्का परिवार यहां बाहर से आकर रह रहे हैं।
यहाँ कैसे पहुंचे
बताया जाता है कि ये छतरी 500 फिट की ऊँचाई पर है जिसमे पगडंडी के रास्ते व समतल चिकनी चट्टानों पर चढ़ कर इस छतरी तक पहुंचा जाता है। यहां पर पहुंचने पर जालोर की प्राकृतिक एवं सौंदर्यता को मन मोह देता है यहां का वातावरण भी शांत दिखाई देता है। और यहाँ पर पहुचने के लिए सबसे पहले नया बस स्टैंड पर से सिरे मंदिर रोड़ पर नागणेची मंदिर के पास से होकर एक पहाड़ों की ऊंचाइयों पर रास्ते जाता है वहाँ सीधे कलकाजी माता मंदिर और गुप्तेश्वर महादेव मंदिर के बीच रास्ते से होकर गुप्तेश्वर मंदिर के सामने से होकर उस पर पहुँच जाता है ।
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