JALORE TOPKHANA जालोर शहर में पाठशालाएं से कैसे पडा गया जालोर शहर तोपखाना नाम जाने - JALORE NEWS
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JALORE TOPKHANA जालोर शहर में पाठशालाएं से कैसे पडा गया जालोर शहर तोपखाना नाम जाने - JALORE NEWS
जालोर ( 4 फरवरी 2024 ) JALORE CITY TOPKHANA कैसे है आप लोग तो दोस्तों आज हम उस स्थान के बारे में जानेंगे जिसे संस्कृत के महान विद्वान राजा भोज ने अपने काल में निर्मित करवाया। जिस तरह अजमेर कि पाठशाला को ढाई दिन के झोपडी के नाम से पहचानते है वैसे ही इस पाठशाला को वर्तमान में तोपखाने के नाम से जाना जाता है ।
अगर आपकी जालौर घूमने की योजना है तो आपको तोपखाना जरूर ही देखना चाहिए। यहां पर आने का मार्ग है इसे देखने के लिए पंचायत समिति कार्यालय से सीधी वाली सड़क जो कि बड़ी पोल से होकर जाती है से जाया जा सकत सकता है। इसे तिलक पुर से होकर भी तोपखाना JALORE CITY TOPKHANA तक सीधा रास्ता जाता है। चलिए इसके इतिहास के बारे में आपको बता देते हैं, जो करीब 800 साल पुराना है।
( जालोर न्यूज़ चैनल पर जालौर के इतिहास की जानकारी फ्री में देखा सकता है नीचे दिए गए लिंक पर जाकर क्लिक करें एक बार देखिए जालोर के बारे में विडियो
👎👎 https://youtu.be/SpFisGWFmRE?si=GUwriXyi8pfRkvsK )
जाने इसके बारे में जालोर नगर के मध्य में परमार राजा भोज के काल में निर्मित एक भव्य संस्कृत पाठशाला एवम् देवालय के अवशेष मौजूद है जो शताब्दी बीत जाने पर भी अपनी पूरी भव्यता को संजोये हुए ही भोज संस्कृत साहित्य का अधिकारी विद्वान था। उसने शिक्षा के प्रचार-प्रसार के लिये अनेक शालायें बनवाई जिनमें भोज की राजधानी धार, अजमेर तथा जालोर में बनवाई गई तीनो पाठशालाये एक ही आकृति की है। आजकल धार की संस्कृत पाठशाला एवम् देवालय दाई दिन का झोपड़ा के नाम से तथा जालोर की पाठशाला तोपखाना JALORE CITY TOPKHANA नाम के नाम से जानी जाती है। राठौड़ के राजाओं के शासनकाल में इसमें तोप रखी जाती थी इस कारण तोपखाना कहां जाने लगा। परन्तु आज भी इस पाठशाला के प्रांगण में कुछ, तोपों रखी हुई है जिसे देखा जा सकता है।
आजादी के बाद रसद विभाग ने इसी अनाज का भार बनाया था। यह पुरातत्व विभाग की धरोधर है
जालोर स्थित पाठशालाओं में पत्थरों पर अत्यन्त बारीक एवम् सुन्दर कारीगरी की गई है। दोनो मोर के पारवों में छोटे-छोटे देवालय बने हुए ही जिनमे अब कोई प्रतिभा स्थापित नहीं है। प्रवेश आरके ठीक सामने मुख्य आहता बना हुआ है जिसके विशाल स्तंभों पर छत्त टिकी हुई है। प्रत्येक स्तम्भ अपनी बारीक कारीगरी से दर्शक को घन्टों बान्धे रखा बसकता होइन पर उत्कीर्ण पुष्प, घन्टें , जंजीरे,
लता, हाथी तथा ज्यामितीय आकृतियों माध्यकालीन कला वैभव का मुँह बोलता उदाहरण है। इस मुख्य प्रांगण के दाहिने. कौने में एक वृक्ष भुमि से लगभग 10 फीट ऊपर बना है। जिस पर जाने के लिये सीदियों बनी है। यहां संभवत: आचार्य के बैठने की व्यवस्था थी जहाँ से वे बड़ी संख्या में उपस्थित शिष्यों को एक साथ सम्बोधित कर करते थे। इस स्मारक में आज भी 276 खम्भे है जो कि इसकी समुदत्ता का प्रतीक है। मुख्य द्वार से प्रवेश करते समय बाई और को एक भग्न देवालय अलग से बना हुआ है। जहां संभवतः शिवलिंग स्थापित था। अब यहां विभिन्न देव देवताओं की मुर्तियाँ खण्डित अवस्था में पड़ी है।
जिनमें विष्णु, शिव-पार्वती, गणेश तथा वाराह अवतार की मुर्तियों विशिष्ट है। शाला में स्थित दाहिनी ओर का पार्श्व अधुरी कला से सज्जित है। ऐसा प्रतीत होता है कि इसका निर्माण कार्य निरन्तर चल रहा था किन्तु किसी कारण वंश। संभवतः किसी मुस्लिम आक्रान्ता के आक्रमण के कारण इसका निर्माण कार्य अधुरा छोड देना पडा लगभग यही स्थिति मुख्य मण्डल के बाहर की ओर स्थित आर्च' की है जो बनते-बनते अचानक अधुरे छोड दिये गये है।
जालोर न्यूज़ चैनल पर जालौर के इतिहास की जानकारी फ्री में देखा सकता है नीचे दिए गए लिंक पर जाकर क्लिक करें एक बार देखिए जालोर के बारे में विडियो https://youtu.be/UfSrBRDgxw0?feature=shared
मन्दिर मौजुद है -
इनमें सबसे पुराना मन्दिर आदिनाथ का है जोकि आठवी शताब्दी में जैनतीर्थ काल है । "मंदिर में मौजुद मण्डप का निर्माण 1182 4.1. ए डी में एक श्रीमाली वैश्या यासोविरा ने करवाया था । किला गहरी किला की दीवारो और चहानों के बीच स्थित है। इस संरचना का निर्माण संगमरमर से किया गया था।
पारर्वनाथ मन्दिर का निर्माण जालोर के शासकों ने करवाया था और उसके पाश्चात सं० 1785 AD में इस मन्दिर का विनिर्माण करवाया गया था। इस मन्दिर में शानदार तोरण और सुनहरी छतरी है। इस मन्दिर का निर्माण बाल पोल के निकट किया गया है जो किला की उत्तर-पश्चिमी दिशा में स्थित है।
महावीर के मन्दिर का चन्दनविहार नाहादराव के नाम से भी जाना जाता है । इस मन्दिर का नाम प्रतिहार शासक ने रखा गया था जो जैन परम्परा के नायक थे जिन्होंने 24वी सताब्दी के दौरान इस मन्दिर का निर्माण करवाया था। ऐसा माना जाता है शान्तिनाथ और अष्टपद का निर्माण 13 वी शताब्दी के दौरान करवाया गया था।
पाठशालाओं में इसके तीन द्वारा में से उत्तर के द्वार पर पारसी लिपि में एक लेख खुद है जिनमें सुल्तान मुहम्मद बिन तुगलक का नाम ही इसके परिसर से छः उल्लेखनीय लेख प्राप्त हुए है।
महावीर के मन्दिर का चन्दनविहार नाहादराव के नाम से भी जाना जाता है । इस मन्दिर का नाम प्रतिहार शासक ने रखा गया था जो जैन परम्परा के नायक थे जिन्होंने 24वी सताब्दी के दौरान इस मन्दिर का निर्माण करवाया था। ऐसा माना जाता है शान्तिनाथ और अष्टपद का निर्माण 13 वी शताब्दी के दौरान करवाया गया था।
पाठशालाओं में इसके तीन द्वारा में से उत्तर के द्वार पर पारसी लिपि में एक लेख खुद है जिनमें सुल्तान मुहम्मद बिन तुगलक का नाम ही इसके परिसर से छः उल्लेखनीय लेख प्राप्त हुए है।
यहां लिखा हुआ शिलेख पर जाने
खंभे नंबर 1 पर लिखा हुआ है
पारमार राजा वीसल का विक्रम संवत् 1174 (चैत्राहि 1175) आषाढ़ सुदी 5 [ई. 1118, 25 जुन] मंगलवार का लेख जिसमें वीसल की रानी मेलर रानी द्वारा सिन्धुराजेशवर के मन्दिर पर स्वर्ण, कलर चढ़ाये जाने तथा वीसल के पूर्वजों की नामावली का उल्लेख मौजूद है।
लौह स्तंभ पर लिखी प्राचीन शैली |
खंभे नंबर 2 पर लिखा हुआ है
चौहान राजा कीर्तिपाल किन्तु के पुत्र समरसिंह के समय का विक्रम संवत् 1239 [ चैत्रादि 1240) वैशाख [दितीय] सुदि 5 [
तदनुसार 28: अप्रैल 1183 गुरुवार का लेख जिसमें आदिनाथ के मन्दिर का सभा मण्डल बनवाये जाने का उल्लेख मौजूद हैं।
खंभे नंबर 3 पर लिखा हुआ है
चार - खण्डों का एक लेख जिसमें वि.सं. •स० 1221, 1242, 1256 ; और,, 1286, ई. 1165,1186, 1200, तथा 1212 में पार्श्वनाथ मंदिर बनवाये जाने तथा जीर्णोद्धार करने सम्बन्धी उल्लेख है। यह मंदिर वि.सं. 1221 में चौलुक्य राजकुमार पाल ने बनवाया था तथा चौहान राजा समर सिंह देव की आज्ञा से इसका जीर्णोद्वार करवाया गया।
खंभे नंबर 4 पर लिखा हुआ है
विक्रम संवत 1320 चैत्रादि 1321 माघ (सुदि सुर 2 तदनुसार तद्नुसार 19 जनवरी 1265 सोमवार का एक • लेख जिसमें
भट्टारक रावल लक्ष्मीधर द्वारा चन्दन विहार के महावीर स्वामी की पुजा के लिये दान दिये जाने का उल्लेख है।
खंभे नंबर 5 पर लिखा हुआ है
चौहान राजा चाचिगदेव के समय का वि.सं. 1323 मार्गशीर्ष सुर्दि 5[ तदनुसार 3 नवम्बर 1266) बुधवार का एक लेख जिसमें महावीर स्वामी के भण्डार के लिये दान देने का उल्लेख है।
खंभे नंबर 6 पर लिखा हुआ है
विक्रम संवत 1353 [ अमांत) वैशाख (पुर्णिमात ज्येष्ठ] वादे 5[ तदनुसार 23 अप्रैल 1296] सोमवार का लेख। जो स्वर्णगिरी सोनलगद के राजा महाराजा कूल [महारावल) समन्तासिंह और उसके पुत्र कान्हड़देव के समय का रहे । जिसमें पार्श्वनाथ मन्दिर के लिये दान दिये जाने का उल्लेख है। इस पुरे मन्दिर को देखने से लगता है कि यह बनते-बनते अधुरा छोड़ा गया। परमारों के बाद चौहान, मुसलमान तथा राठौड़ शासकों के काल में भी यह पुरा नहीं करवाया गया। इस कारण किसी विशेष उपयोग में नहीं आ सका । राठौड़ों के काल में तापे रखी जाती थी इसका कारण JALORE CITY TOPKHANA तोपखाना कहलाने लगा। आजादी के बाद इसे जिला प्रशासन ने रसद विभाग के भण्डार में बदल दिया अनुमान होता है। कि इसके मुल आकर व आकृति में भी पिछली शताब्दीयों में बड़ा भारी किया गया है।
जालौर तोपखाना JALORE CITY TOPKHANA का पिलर पर लिखे गए वहां इतिहास अब देखने को नहीं मिल रहा है जहां पर कुछ सालों पहले जालौर में जिला प्रशासन के द्वारा जालौर की तोपखाना JALORE CITY TOPKHANA की मरम्मत को लेकर लाखों रुपए खर्च करके विकसित और सुंदर बनाने में प्रयास किया गया है परंतु प्रयास के चक्कर में प्रशासन विभाग द्वारा वहां पर शिल्पा लेखा लिखा हुआ था वहां सभी को हटाया दिया गया है। अब चार - पांच खंभे पर लिखा हुआ है। बाकी सभी जगहों पर मिटा दिया गया है। आने वाले समय में बस एक नाम मात्र बंद कर रह गया है। कहने को तो इतिहास धरोहर का आन बान और शान होती है परंतु कुछ सालों बाद में यहां सभी कहीं पर नज़र नहीं आएंगे। मेरे विडियो बनाने का मुख्य उद्देश्य यही था कि इस पर ध्यान देना कष्ट करें जिला प्रशासन से इसकी ओर आकर्षित करने का विचार था हमारे जालोर न्यूज़ चैनल के माध्यम से अपनी ओर आकर्षित करने के लिए बना गया था विडियो।
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