रविंद्र सिंह भाटी अगर जीते लोकसभा चुनाव… तो टूट जाएंगे ये सभी रिकॉर्ड जाने क्या है
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रविंद्र सिंह भाटी अगर जीते लोकसभा चुनाव… तो टूट जाएंगे ये सभी रिकॉर्ड जाने क्या है
बाड़मेर ( 4 मई 2024 ) Ravindra Singh Bhati News: विधानसभा चुनावों में कई बार से निर्दलीय प्रत्याशी चुनाव जीतकर अपना दमखम दिखा रहे हों लेकिन लोकसभा चुनाव में निर्दलीय प्रत्याशियों की राह आसान नहीं है। फिर भी लोकसभा चुनाव में कई प्रत्याशी अपनी किस्मत आजमाते हैं। विधानसभा की तरह लोकसभा में जीत उन्हें हासिल नहीं हो पाती। राजस्थान में 1952 से अब तक करीब 11 सांसद ही भाग्यशाली रहे हैं जो लोकसभा तक पहुंच पाए।
इस बार प्रदेश में बाड़मेर लोकसभा सीट काफी चर्चाओं में रही है। जिसका कारण चुनाव में निर्दलीय तौर पर रविंद्र सिंह भाटी का मैदान उतरना है। अगर भाटी लोकसभा चुनाव जीतते है तो वे 12वें ऐसे सांसद होंगे, जो राजस्थान से इस बार निर्दलीय लोकसभा पहुंचेंगे।
बाड़मेर में मुकाबला त्रिकोणीय
राजस्थान की बाड़मेर सीट पर भाजपा से वर्तमान सांसद कैलाश चौधरी को टिकट दिया। कांग्रेस ने उम्मेदाराम बेनीवाल को चुनावी मैदान में उतारा। जबकि शिव से निर्दलीय विधायक रविंद्र सिंह भाटी ने निर्दलीय ताल ठोक कर मुकाबले को त्रिकोणीय बना दिया। राजनीतिक विश्लषकों का कहना है कि बाड़मेर से अगर रविंद्र सिंह भाटी चुनाव जीतते है तो यह को आश्चर्यजनक बात नहीं होगी। क्योंकि उन्होंने चुनाव पूरे दमखम से लड़ा है।
अब तक 11 निर्दलीय सांसद ही पहुंचे लोकसभा
Rajasthan में 1952 से लेकर 2019 तक हुए लोकसभा चुनाव में केवल 11 ही निर्दलीय प्रत्याशी लोकसभा सांसद चुने गए हैं। जिन सीटों पर निर्दलीय प्रत्याशी लोकसभा सांसद चुने गए हैं उनमें बीकानेर, जयपुर, दौसा, नागौर, जोधपुर, अलवर, भरतपुर, पाली और जालोर सीटें हैं। बाड़मेर से निर्दलीय प्रत्याशी का लोकसभा तक पहुंचने का इतिहास नहीं रहा है। निर्दलीय प्रत्याशी को अंतिम बार जीत 2009 के लोकसभा चुनाव में मिली जब भाजपा के वरिष्ठ नेता और मौजूदा कैबिनेट मंत्री किरोड़ी लाल मीणा दौसा से निर्दलीय चुनाव जीते थे।
करण सिंह पांच बार बने निर्दलीय सांसद
1952 में हुए पहले आम चुनाव में करणी सिंह बीकानेर, जसवंत राज मेहता जोधपुर, गिरिराज सिंह भरतपुर, भवानी सिंह जालोर और जनरल अजीत सिंह पाली से निर्दलीय लोकसभा सांसद चुने गए थे। बीकानेर राज परिवार के पूर्व करणी सिंह पांच बार बीकानेर से निर्दलीय सांसद रहे हैं। वे 1952 से लेकर 1971 तक लगातार चुनाव जीतकर संसद पहुंचे।
बूटा सिंह भी निर्दलीय सांसद रहे
पूर्व केंद्रीय गृहमंत्री और कांग्रेस के दिग्गज नेता रहे बूटा सिंह भी 1998 में टिकट कटने के बाद बागी होकर जालोर से निर्दलीय चुनाव लड़े और सांसद चुने गए थे।
अब तक ये चुने गए निर्दलीय सांसद
नाम———- वर्ष ———- लोकसभा सीट
करणी सिंह 1952 से 1971 बीकानेर
हरिश्चंद्र शर्मा———- 1957——– जयपुर
जीडी सोमानी——— 1957——– नागौर
जसवंत राज मेहता—- 1952——- जोधपुर
कृष्णा कुमारी——– 1971——- जोधपुर
काशीराम गुप्ता—— 1962——- अलवर
गिरिराज सिंह——- 1952——– भरतपुर
जनरल अजीत सिंह– 1952——- पाली
भवानी सिंह———- 1952—— जालौर
बूटा सिंह———- 1998——- जालौर
किरोड़ी लाल मीणा — 2009———दौसा
2014 से कैसा है रिकॉर्ड
साल 2014 और 2019 के चुनाव में निर्दलीय सांसदों की संख्या कम रही. 1991 को छोड़ दें तो इन दोनों चुनाव में निर्दलीय सांसदों की संख्या सबसे कम थी. 2014 में तीन निर्दलीय चुनाव जीतकर संसद पहुंचे तो वहीं 2019 में चार निर्दलीयों को जीत मिली थी. 2019 में महाराष्ट्र के अमरावती से नवनीत राणा, असम के कोकराझार से नबा कुमार सरानिया, दादरा और नगर हवेली से मोहनभाई सांजीभाई और कर्नाटक के मांड्या से सुमलता अंबरीश बतौर निर्दलीय जीतकर संसद पहुंचे थे.
कब जीते थे सबसे ज्यादा निर्दलीय
निर्दलीय उम्मीदवार पहले चुनाव से ही चुनाव मैदान में उतरते आए हैं. 1951-52 के आम चुनाव में 37 निर्दलीय सांसद निर्वाचित हुए थे. दूसरे चुनाव में भी यह संख्या बढ़ी लेकिन तीसरे चुनाव में कुछ कमी आई. कभी कम तो कभी अधिक, हर चुनाव में निर्दलीय संसद पहुंचते रहे हैं. 1957 के चुनाव में 42 निर्दलीय संसद पहुंचे थे. दूसरी लोकसभा में निर्दलीय जीत का यह आंकड़ा अब तक सबसे अधिक रहा है।
कब जीते कितने निर्दलीय
साल 1962 के तीसरे लोकसभा चुनाव में 20, 1967 में 35, 1971 में 14 निर्दलीय संसद पहुंचे थे. इमरजेंसी के बाद हुए 1977 और 1980 के चुनाव में नौ-नौ, 1984 में 13, 1989 में 12 निर्दलीय उम्मीदवार जीते थे. 1991 में केवल एक निर्दलीय जीत सका था जो किसी लोकसभा में निर्दलीयों का अब तक का सबसे कम प्रतिनिधित्व भी है. साल 1996 के चुनाव में नौ, 1998 और 1999 में छह-छह, 2004 में पांच, 2009 में नौ निर्दलीय चुनाव जीते थे.
क्यों होती रही निर्दलीयों के लड़ने पर रोक की बात?
निर्दलीय उम्मीदवारों के चुनाव लड़ने पर रोक की मांग को लेकर भी स्वर उठते रहे हैं. विधि आयोग ने भी 2015 में सरकार से जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा चार और पांच में संशोधन की सिफारिश करते हुए यह कहा था कि सिर्फ पंजीकृत राजनीतिक दल के उम्मीदवारों को ही लोकसभा और विधानसभा चुनाव लड़ने की इजाजत दी जाए. विधि आयोग का कहना था कि ज्यादातर निर्दलीय या तो डमी कैंडिडेट होते हैं या फिर गंभीरता से चुनाव नहीं लड़ते.
JALORE NEWS
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