डॉ॰ मुखर्जी सच्चे अर्थों में मानवता के उपासक और सिद्धान्तवादी थे-एड़वोकेट सुरेश सोलंकी - JALORE NEWS
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श्यामा प्रसाद मुखर्जी की पुण्यतिथि पर किये पुष्प अर्पित - Flowers offered on the death anniversary of Shyama Prasad Mukherjee
जालोर ( 23 जून 2024 ) JALORE NEWS भाजपा प्रदेश नेतृत्व जिलाध्यक्ष राव श्रवणसिंह बोरली व मुख्य सचेतक विधानसभा राजस्थान जोगेश्वर गर्ग के निर्देशानुसार भाजपा नगर मंडल जालौर द्वारा श्यामा प्रसाद मुखर्जी की पुण्यतिथि पर पुष्पांजलि व संगोष्ठी कार्यक्रम का आयोजन किया गया।
कार्यक्रम संयोजक सुरेश चौधरी ने बताया कि भाजपा जिला कार्यालय में श्यामा प्रसाद मुखर्जी की पुण्यतिथि पर पुष्पांजलि व संगोष्ठी कार्यक्रम का आयोजन किया गया।कार्यक्रम नगर अध्यक्ष एडवोकेट सुरेश सोलंकी की अध्यक्षता में आयोजित हुआ।
सभी ने श्यामा प्रसाद मुखर्जी की तस्वीर के समक्ष पुष्पांजलि अर्पित की।
इस दौरान जिला कोषाध्यक्ष महेंद्र मुणोत,नगर महामंत्री व पार्षद दिनेश महावर,नगर उपाध्यक्ष रवि सोलंकी,ओबीसी मोर्चा जिलाउपाध्यक्ष दिलीप सोलंकी,पूर्व नगर अध्यक्ष छगनदास रामावत,प्रकाश नागर,अमन देवेंद्र मेहता,अचलसिंह परिहार,पार्षद हीराराम देवासी,दिनेश बारोट,नगर मंत्री गीता बारोट,महेंद्र राठोड़,मीडिया प्रभारी अर्जुनसिंह पंवार,धनपत मुथा,धीरज सुंदेशा,धरमपुरी गोस्वामी सहित कहि कार्यकर्ता उपस्थित थे।
नगर अध्यक्ष एड़वोकेट सुरेश सोलंकी ने डॉ॰ श्यामाप्रसाद मुखर्जी की जीवनी पर प्रकाश डालते हुए कहा कि उन्होंने स्वेच्छा से अलख जगाने के उद्देश्य से राजनीति में प्रवेश किया। डॉ॰ मुखर्जी सच्चे अर्थों में मानवता के उपासक और सिद्धान्तवादी थे। उन्होने बहुत से गैर कांग्रेसी हिन्दुओं की मदद से कृषक प्रजा पार्टी से मिलकर प्रगतिशील गठबन्धन का निर्माण किया। इस सरकार में वे वित्तमन्त्री बने। इसी समय वे सावरकर के राष्ट्रवाद के प्रति आकर्षित हुए और हिन्दू महासभा में सम्मिलित हुए।डॉ॰ मुखर्जी इस धारणा के प्रबल समर्थक थे कि सांस्कृतिक दृष्टि से हम सब एक हैं। इसलिए धर्म के आधार पर वे विभाजन के कट्टर विरोधी थे। वे मानते थे कि विभाजन सम्बन्धी उत्पन्न हुई परिस्थिति ऐतिहासिक और सामाजिक कारणों से थी। वे मानते थे कि आधारभूत सत्य यह है कि हम सब एक हैं। हममें कोई अन्तर नहीं है। हम सब एक ही रक्त के हैं। एक ही भाषा, एक ही संस्कृति और एक ही हमारी विरासत है। परन्तु उनके इन विचारों को अन्य राजनैतिक दल के तत्कालीन नेताओं ने अन्यथा रूप से प्रचारित-प्रसारित किया। बावजूद इसके लोगों के दिलों में उनके प्रति अथाह प्यार और समर्थन बढ़ता गया। अगस्त, 1946 में मुस्लिम लीग ने जंग की राह पकड़ ली और कलकत्ता में भयंकर बर्बरतापूर्वक अमानवीय मारकाट हुई। उस समय कांग्रेस का नेतृत्व सामूहिक रूप से आतंकित था।
जिला कोषाध्यक्ष महेंद्र मुणोत ने कहा कि जनसंघ की स्थापना के बारे में कहा कि ब्रिटिश सरकार की भारत विभाजन की गुप्त योजना और षड्यन्त्र को एक कांग्रेस के नेताओं ने अखण्ड भारत सम्बन्धी अपने वादों को ताक पर रखकर स्वीकार कर लिया। उस समय डॉ॰ मुखर्जी ने बंगाल और पंजाब के विभाजन की माँग उठाकर प्रस्तावित पाकिस्तान का विभाजन कराया और आधा बंगाल और आधा पंजाब खण्डित भारत के लिए बचा लिया। गान्धी जी और सरदार पटेल के अनुरोध पर वे भारत के पहले मन्त्रिमण्डल में शामिल हुए। उन्हें उद्योग जैसे महत्वपूर्ण विभाग की जिम्मेदारी सौंपी गयी। संविधान सभा और प्रान्तीय संसद के सदस्य और केन्द्रीय मन्त्री के नाते उन्होंने शीघ्र ही अपना विशिष्ट स्थान बना लिया। किन्तु उनके राष्ट्रवादी चिन्तन के चलते अन्य नेताओं से मतभेद बराबर बने रहे। फलत: राष्ट्रीय हितों की प्रतिबद्धता को अपनी सर्वोच्च प्राथमिकता मानने के कारण उन्होंने मन्त्रिमण्डल से त्यागपत्र दे दिया। उन्होंने एक नई पार्टी बनायी जो उस समय विरोधी पक्ष के रूप में सबसे बड़ा दल था। अक्टूबर, 1951 में भारतीय जनसंघ का उद्भव हुआ।
पूर्व नगर अध्यक्ष प्रकाश नागर के कहा कि 6 जुलाई 1901 को कलकत्ता के अत्यन्त प्रतिष्ठित परिवार में डॉ॰ श्यामाप्रसाद मुखर्जी जी का जन्म हुआ। उनके पिता सर आशुतोष मुखर्जी बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे एवं शिक्षाविद् के रूप में विख्यात थे। डॉ॰ मुखर्जी ने 1917 में मैट्रिक किया तथा 1921 में बी०ए० की उपाधि प्राप्त की। 1923 में लॉ की उपाधि अर्जित करने के पश्चात् वे विदेश चले गये और 1926 में इंग्लैण्ड से बैरिस्टर बनकर स्वदेश लौटे। अपने पिता का अनुसरण करते हुए उन्होंने भी अल्पायु में ही विद्याध्ययन के क्षेत्र में उल्लेखनीय सफलताएँ अर्जित कर ली थीं। 33 वर्ष की अल्पायु में वे कलकत्ता विश्वविद्यालय के कुलपति बने। इस पद पर नियुक्ति पाने वाले वे सबसे कम आयु के कुलपति थे। एक विचारक तथा प्रखर शिक्षाविद् के रूप में उनकी उपलब्धि तथा ख्याति निरन्तर आगे बढ़ती गयी।
नगर महामंत्री व पार्षद दिनेश महावर ने कहा कि मुस्लिम लीग की राजनीति से बंगाल का वातावरण दूषित हो रहा था। वहाँ साम्प्रदायिक विभाजन की नौबत आ रही थी। साम्प्रदायिक लोगों को ब्रिटिश सरकार प्रोत्साहित कर रही थी। ऐसी विषम परिस्थितियों में उन्होंने यह सुनिश्चित करने का बीड़ा उठाया कि बंगाल के हिन्दुओं की उपेक्षा न हो। अपनी विशिष्ट रणनीति से उन्होंने बंगाल के विभाजन के मुस्लिम लीग के प्रयासों को पूरी तरह से नाकाम कर दिया। 1942 में ब्रिटिश सरकार ने विभिन्न राजनैतिक दलों के छोटे-बड़े सभी नेताओं को जेलों में डाल दिया।
कार्यक्रम में उपस्थित सभी वक्ताओं ने अपने-अपने विचार व्यक्त किये।
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