दशमहाविद्याओं के उपासना का महापर्व है नवरात्रि 03 से 12 अक्टूम्बर तक मनाई जाएगी, 11 को होगी होमाष्टमी - BHINMAL NEWS
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दशमहाविद्याओं के उपासना का महापर्व है नवरात्रि 03 से 12 अक्टूम्बर तक मनाई जाएगी, 11 को होगी होमाष्टमी - BHINMAL NEWS
पत्रकार माणकमल भंडारी भीनमाल
भीनमाल ( 29 सितंबर 2024 ) BHINMAL NEWS श्रीदर्शन पंचांग के प्रधान सम्पादक शास्त्री प्रवीण त्रिवेदी ने बताया कि इस बार मां का आगमन 3 अक्टूम्बर गुरुवार को होगा, जो पालकी पर सवार होकर आयेगी। शास्त्र कहते है कि माता का वाहन शेर होता है, परन्तु अलग अलग वार के अनुसार गुरुवार को पालकी पर आती है । जिससे आने वाले वर्ष के संकेत अच्छे नहीं माने जाते।
त्रिवेदी ने बताया कि 03 अक्टूम्बर गुरुवार को घट स्थापना के साथ शुरू होने वाली नवरात्रि 12 अक्टूम्बर शनिवार तक रहेगी। इस वर्ष 11 अक्टूम्बर को होमाष्टमी व 12 को दशहरा होगा। शास्त्रों में कलश को सुख-समृद्धि, ऐश्वर्य और मंगल कामनाओं का प्रतीक माना गया है। बिना कलश स्थापना के कोई भी धार्मिक अनुष्ठान पूरा नहीं माना जाता है। कलश को पांच तरह के पत्तों से सजाया जाता है और उसमें हल्दी की गांठ, सुपारी, दूर्वा आदि रखी जाती है। कलश को स्थापित करने के लिए उसके नीचे बालू की वेदी बनाई जाती है और उसमें जौ बोये जाते हैं। कलश के मध्य में सभी मातृशक्तियां, समस्त सागर, सप्तद्वीपों सहित पृथ्वी, गायत्री, सावित्री, शांतिकारक तत्व, चारों वेद, सभी देव, आदित्य देव, विश्वदेव, सभी पितृदेव एकसाथ निवास करते हैं। कलश की पूजा मात्र से एक साथ सभी प्रसन्न होकर यज्ञ कर्म को सुचारु रूपेण संचालित करने की शक्ति प्रदान करते हैं।
त्रिवेदी ने बताया कि वर्ष में चार नवरात्रि आती है, जिसमें शारदीय नवरात्रि का विशेष महत्त्व है। यह नवरात्रि पर्व दो ऋतुओं के संधिकाल में आती हैं। नवरात्रि के नौ दिन तक मां के नव रूप शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चन्द्रघण्टा, कुण्माण्डा, स्कन्दमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी एवं सिद्धिदात्री की पूजा अर्चना की जाती हैं। इन दिनों मां दुर्गा के प्रति श्रद्धा भाव से व्रत, उपवास तथा शुद्ध उच्चारण वाले ब्राह्मण से मार्कण्डेश्वर ऋषि द्वारा रचित सप्तशती के पाठ, हवन आदि करानें से अक्षुण्ण पुण्य की प्राप्ति होती है। सप्तशती के प्रत्येक चरित्र में अलग-अलग सात महासतियों की शक्तियों को गुप्त रूप से बताया गया है। यथा लक्ष्मी, ललिता, काली, दुर्गा, गायत्री, अरून्धती एवं सरस्वती। साथ ही काली, तारा, छिन्नमस्ता, मातंगी, भुवनेश्वरी, बाला एवं कुब्जिका तथा नन्दा शताक्षी, शाकंभरी, भीमा, रक्त दंतिका, दुर्गा व भ्रामरी।
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