25 वर्षों से निःशुल्क भोजन सेवा: नरपतसिंह आर्य बने जनसेवा का प्रेरणास्रोत - BHINMAL NEWS
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25 वर्षों से निःशुल्क भोजन सेवा: नरपतसिंह आर्य बने जनसेवा का प्रेरणास्रोत - BHINMAL NEWS
रिपोर्टर: माणकमल भंडारी भीनमाल
भीनमाल ( 24 जनवरी 2025 ) BHINMAL NEWS स्थानीय सरकारी अस्पताल में मरीजों और उनके परिजनों को निःशुल्क भोजन सेवा प्रदान करने का 25 वर्षों का ऐतिहासिक पड़ाव इस 25 जनवरी को पूरा हो गया। राव नरपतसिंह आर्य, जो जनसेवा और करुणा के प्रतीक बन चुके हैं, पिछले 25 वर्षों से यह सेवा कार्य कर रहे हैं। इसके अतिरिक्त, वे पिछले 4 वर्षों से स्थानीय बस स्टैंड पर प्याऊ का संचालन कर जल सेवा भी कर रहे हैं।
राव नरपतसिंह आर्य ने बताया कि 25 वर्ष पहले, जब वे स्वयं अस्पताल में इलाज कराने पहुंचे थे, तो उन्होंने देखा कि दूसरे गांवों से आए मरीजों और उनके परिजनों को भोजन के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है। उनके मन में करुणा का भाव जागा और उन्होंने अपने पिता स्वर्गीय विरदसिंह से प्रेरणा लेकर निःशुल्क भोजन सेवा शुरू करने का संकल्प लिया।
राव ने बताया, "हम सिर्फ निमित्त हैं, असली शक्ति परमात्मा और माता-पिता की प्रेरणा है।" गीता में वर्णित लोक कल्याण के भाव को साकार करते हुए वे यह सेवा कार्य निरंतर करते आ रहे हैं।
जल सेवा और मंदिर निर्माण में भी निभाई भूमिका
जनसेवा के प्रति समर्पित राव ने न केवल अस्पताल में भोजन सेवा शुरू की, बल्कि स्थानीय बस स्टैंड पर यात्रियों के लिए प्याऊ की भी व्यवस्था की है। यह प्याऊ पिछले चार वर्षों से नि:शुल्क जल सेवा दे रही है।
राव के पैतृक गांव पुर में उनके पिता स्वर्गीय विरदसिंह द्वारा भगवान विष्णु के 24 अवतार, 12 ज्योतिर्लिंग, 9 दुर्गा, और प्रथम जैन तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव को समर्पित एक विशाल मंदिर का निर्माण किया गया है। इस मंदिर के निर्माण कार्य को पूरा करवाने में राव नरपतसिंह ने सक्रिय भूमिका निभाई।
राव का मानना है कि मानव सेवा ही सबसे बड़ा धर्म है। उनका जीवन गौ सेवा, गरीबों की मदद और शोषित व वंचित वर्ग के उत्थान के लिए समर्पित है।
फोटो विवरण:
1. 25 वर्ष पहले अस्पताल में निःशुल्क भोजन सेवा शुरू करते हुए राव नरपतसिंह आर्य।
2. राव के पिता स्वर्गीय विरदसिंह द्वारा पुर गांव में निर्मित विशाल मंदिर।
3. राव नरपतसिंह आर्य का चित्र।
इस प्रेरणादायक सेवा कार्य ने राव नरपतसिंह आर्य को भीनमाल क्षेत्र में मानव सेवा का प्रतीक बना दिया है। उनका मानना है कि सेवा के लिए किसी बड़े सामर्थ्य की आवश्यकता नहीं होती, बस भगवद् कृपा और सच्चे मन की जरूरत होती है।
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