शादी के अवसर पर फालतू खर्चा करने से बचे: टीलाराम सिंघल बिबलसर - JALORE NEWS
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शादी के अवसर पर फालतू खर्चा करने से बचे: टीलाराम सिंघल बिबलसर - JALORE NEWS
जालौर ( 8 जुन 2022 ) निकटवर्ती गांव बिबलसर के निवासी सामाजिक कार्यकर्ता, स्वतंत्र तथा निष्पक्ष पत्रकार तथा मेघवाल समाज चेतना संस्थान जालौर के जिलाध्यक्ष टीलाराम सिंघल बिबलसर ने बताया।कि ग्राम पंचायत बिबलसर में पंच कंटीली नाडी खुदाई नरेगा कार्य मे नरेगा के मजदूरों को विवाह के अवसर पर फालतू खर्चा करने से बचने के लिए अपील की गयी। डिजे फ्लॉवर महंगी गाड़ी में बारात शेरवाली ड्रेश मतलब एक दिन डीजे बजेगा अगले दिन डीजे वाला खर्चा पूरा करने के लिए मजदूरी पर चला जायेगा ।एक दिन बारात महंगी गाड़ी में जाएगी अगले दिन बस में लटक के ससुराल जाएंगे ।
आज कल ग्रामीण परिवेश में होने वाली शादियों में एक नई रस्म का जन्म हुआ है डी.जे फ्लॉवर। डी.जे फ्लॉवर व डांस प्रोग्राम के दौरान हजारों रूपये खर्च कर के उस दिन नई नवेली दुल्हन को जो लक्ष्मी का रूप होती हैं उसको पहले दिन ही अंगुली पकड़ कर सबके सामने ऐसे गानो पर नचाया जाता हैं जो सभ्यसमाज के लायक नही होते पर इस देखा-देखी के दौर में सभी आँखे मूँदकर खड़े हैं यह प्रचलन पश्चिमी राजस्थान के ग्रामीण क्षेत्रों में तो ना के बराबर था लेकिन पिछले साल दो साल से इसका प्रचलन बढ़ा है।
पुराने जमाने में मुकलावा बधाया जाता था और मंगल-गीत गये जाते थे खुशियां मनाई जाती थी गुड़ बाटे जाता था व मांगलिक कार्यक्रम(जागरण) का आयोजन हुआ करता था पर यह प्रचलन धीरे धीरे अपने अंतिम पड़ाव पर है ।आजकल देखने में आ रहा है कि आर्थिक रूप से असक्षम परिवार के लड़के भी इस लोक दिखावा में शामिल होकर परिवार को कर्ज के बोझ में धकेल रहे है। क्योंकि उन्हें अपने नेताओं, नाम के दोस्तों को अपना ठरका दिखाना होता है। Insta, फेसबुक, आदि के लिए रील बनानी होती है। बेटे के रील बनाते बनाते बाप बिचारा रेल बन जाता है।
ऐसे ऐसे घरों में फिजूल खर्ची में पैसा पानी की तरह बहाया जाता है जिन घरों में घर के नाम पर छप्पर है, घर की किवाड़ी नहीं है, बाप ने पसीने की पाई पाई जोड़ कर मकान का ढांचा खड़ा किया तो छत नहीं है, छत है तो प्लास्टर नहीं, प्लास्टर है तो दरवाजा नहीं है, बाप के पहनने के चप्पल नहीं है मां के ओढ़ने के लिए ढंग की चुनरी नहीं है लेकिन 10 वीं 12 वीं मरते डूबते पास करने वाले छिछोरे मां बाप की हैसियत से विपरीत जाकर अनावश्यक खर्चा जरूर करते हैं।
ऐसे लड़के 1 रुपए की मजदूरी करना नहीं चाहते और सूखे दिखावे के चक्कर में मां बाप को कर्ज में धकेल देते हैं। ऐसे लड़कों के सैकड़ों ऐसे ही दोस्त होते हैं जिन्हें ये लोग प्यार से ब्रो कहते है। शादी विवाह में अपना स्टेटस बनाने के लिए जिसको ढंग से जानते तक भी नहीं उन्हें भी शादी में इन्वाइट करेंगे। किसी से सिफारिश लगाकर प्रधान, विधायक और नेताओं को बुलाते हैं ताकि गांव में इनका ठरका जमे। बहुत सारी गाडियां घर के आगे खड़ी देखने की उत्कंठा रखते हैं। किसी को बुलाए कोई आपत्ति नहीं लेकिन उन बड़े लोगों के साथ फोटो सेल्फी लेने में और उनके आगे पीछे घूमने में इतने मशगूल हो जाते है कि घर आए जीजा, फूफा, नाना, नानी, बहन , बुआ अड़ोसी पड़ोसी को चाय पानी का भी पूछना उचित नहीं समझते। अपने रिश्तेदारों की इस तरह की नाकद्री ठीक नहीं है। जरूरत पड़ने पर यही लोग सबसे आगे खड़े होते हैं जिन्हें आप हाशिए पर धकेल देते हो।
अन्य बहुत सारी फिजूलखर्ची जैसे लाइट डेकोरेशन करना, वीडियो शूट व ड्रोन कैमरा मंगाना, 5- 7 जोड़ी ड्रेस मंगवाना, 3-4 साफे ,शेरवानी, घोड़ी, पाइप पांडाल, स्टेज, पटाखे , एक वो झाग वाला डबिया (नाम तो मुझे आता नहीं। जिन परिवारों की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं हो उन परिवारों के बच्चों को मां बाप से जिद्द करके इस तरह की फिजूल खर्ची नहीं करवानी चाहिए। आजकल काफी जगह यह भी देखने को मिलता है कि बेटे मां - बाप से कहते है आप कुछ नहीं समझते। उन्हें उपमा देते हैं 'घोना, धण।' मैं जब भी यह सुनता हूं पांवों के नीचे जमीन खिसक जाती हैं। बड़ी चिंता होती हैं कि हमारा समाज किस दिशा में जा रहा है। यह किसी व्यक्ति विशेष पर नही है उचित लगे तो समर्थन करना बुरा लगें तो विचार जरूर करना क्या यह सब फिजूल नही है देखादेखी कहा तक उचित है ।
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