Kanha and Valiya dacoits Story of Khukhal dacoits of Jalore district कोनिया और वेलियाडाकूओं जालोर जिले के खुखाल डाकूओं की कहानी जानें
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मारवाड़ के खुखार डाकु कोनिया और वेलिया तथा चम्पा भावडा की कहानी
पत्रकार श्रवण कुमार औड़
Kanha and Valiya dacoits Story of Khukhal dacoits of Jalore district मारवाड़ के खुखार डाकु कान्हा और वैलिया तथा चम्पा भावडा की कहानी : राजस्थान सुरवीर और युद्ध की भुर्मि रहीं है और यहाँ पर अनेक प्रकार के युध्द हुआ है और इतिहास में एक से बढकर एक ने अनेक पहचान बनाई है । आज हम ऐसे डाकूओं की बात करने वाले है जोकि मारवाड़ में दो भाई खुखाल डाकू हुआ करता था। और आज इन रोचक घटना दो भाई के बारे में यहाँ दो भाई से मारवाड़ नहीं बल्कि उतरी गुजरात भी डरता था। यहाँ दो भाई के ऊपर आज एक कहानी लिखाई गया है। उन दो भाई का नाम कोनिया और वेलिया ( kaanha aur vailiya daakooon ) था जिससे उतरी गुजरात मेडरमठ में भी खौफ फैदा कर दिया गया था। इन डाकूओं की कहानी भी बहुत रौचक और बहुत ही सुंदर है और अपने सुना भी होगाः इन इनकी आधारित यहाँ कहानी है जोकि
इसका जन्म भीनमाल के धन्नाजी के घर और दादालिया गाँव में हुआ था और रावण राजपूत समाज से जुड़े हुए था। दोनों गरीब परिवार से ताल्लुक रखते थे और जीवन यापन करते थे और बड़ा वैलिया काम पर भरोसा रखता था। मेहनत पर हकीन रखता था परंतु छोटा कान्हा रात - रातों अमीर बनाने की सोच रखता था। और पैसा कमाने का लालच रखता था। जिससे इसी कारण वहाँ कभी कभी रात को छोटी - मोटी चोरी भी क्या करता था ! कान्हा के साथ में लेकर वैलिया भी चोरी करना सिखा गया था और बाद में दोनों छोटी मोटी चोरी करने लगाया गया था। और कहीं बार पुलिस पकड़ कर जेल में भी डाल देतीं थी और छुट भी जातें था।
एक बार जब जेल के दौराना उनसे एक भीनमाल में खण्डर गाँव के ठाकुर लाल सिंह से मुलाकात होती है और ठाकुर लाल सिंह उन दोनों भाई को अपने साथ खण्डर गाँव में लेकर आता है और यहाँ दोनों भाई भी चाहता था कि पुलिस वालों से हमेशा के लिए पीछे छूट जाएगा। यहाँ सोचकर कोनिया और वेलिया ( kaanha aur vailiya daakooon ) उनके साथ में ठाकुर लालसिंह के साथ में चले जाते हैं। खण्डर गाँव में लालसिंह ठाकुर की एक दासिया थी।
उसका नाम रूपा था। वहाँ हमेशा कोनिया और वेलिया को खाने के लिए खाना देने आती थी । ठाकुर लालसिंह ने सोच किया अगर वैलिया की शादी करवा देते हैं तो यहाँ काम छोड़ कर जीवन यापन करेंगे। यहाँ सोच कर बडा़ वैलिया की शादी रूपा के साथ में करवाई गई थी। और ठाकुर लालसिंह ने रुपा को वैलिया के साथ पत्नी के रूप में मंजूरी भी दे दिया गयी थी। और वहाँ पर कुछ दिन तक ठीक ठात काम किया गया था जैसे कि खेती बड़ी करना और गाय को चारा खिला गया । आदि फिर भी छोटी मोटी चोरी जरूर करते थे। क्योंकि उनको हादत ऐसी पडीं की छूटने का नाम नहीं रहा थी।
मारवाड़ की उपराजधानी थी जसवतंतपुरा
एक बार फिर से चोरी के आरोप में पकडकर कर लेकर गए और जसवंतपुरा थाने में डाल दिया गया। उस जमाने में यहाँ पर एक हकीम बैठता था और बड़ा - बड़ा राजा और ठेकेदार भी यहाँ पर आकर बैठते था। यहाँ आप आसपास के मारवाड़ के क्षेत्र यहाँ पर मारवाड़ा की उपराजधानी भी जसवतंपूरा मानी जाती थी। मतलब कि साफ है कि उस समय यहाँ उपराजधानी भी जसवतंपूरा थी।
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कोनिया और वेलिया |
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ठाकुर साहब |
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कोनिया और वेलिया |
और आज भी वर्तमान में बड़ा - बडा़ पहाडों पर किला तथा महलों मौजूद है परन्तु वर्तमान में खंडित हो गया है। परन्तु पहाड़ आज भी मौजूद है। और पहाडों के नीचे एक वर्तमान में विघालय जिसका नाम पर आज वर्तमान में जवाहर नवोदय विघालय जसवतंपूरा में बगीचा भी बना हुआ है उस जमाने में वहाँ पर दरबार लगाता था। वहाँ पर जेल में दोनों भाई को डाल दिया गया था। और यहाँ पर दोनों भाई ने एक योजना बनाई कि रोज- रोज बिना कारण पुलिस हमेंशा पकडकर जेल में डालती है अगर चोरी नहीं भी करते हैं फिर भी पुलिस वाले हमें परेशान करता हैं और उन्होंने यहाँ सोच लिया कि हमें सच मुच एक बड़ा डाकूओं बना है। और उन्होंने यहाँ सोच कर तथा उन्होंने फैसला कर लिया था कि अब बडे़ डाकूओं बना है और वहां से फरार हो गए और सीधा गांव धनरा गाँव आए और वहां भीनमाल से 10 किलोमीटर दूर है।और वहां पर ठाकुर से बहुत परिचय था । क्योंकि भीनमाल में रहता था ।
बस पर भी फायरिंग किया थी
उस समय जान पहचान बना ली गई थी और वहां ठाकुर साहब के पास में पहुंचेंगे और बोला कि हमें बंदूक और गोलियां और बारूद चाहिए परंतु पहले ठाकुर साहब ने मना कर दिया था परंतु दोनों नहीं मानें और जिदा करने लगाया गया। बाद में उनको ठाकुर साहब ने बन्दूक और गोली दे दिया गई थी ।
उस समय में यहाँ पर एक बस भी चलती थी और उस बस में कंडक्टर का नाम अंबालाल था । और बस के मालिक का भी नाम अंबालाल था यहाँ बस खण्डर गाँव से भीनमाल के बीच में चलतीं थी। और उस जमाने में एक बस चलतीं थी और उस बस में कान्हा और वैलिया की माँ खण्डर गाँव से भीनमाल आ रही थी और उस बस में कोनिया और वेलिया ( kaanha aur vailiya daakooon ) के मां के पास में पैसे नहीं होने के कारण बस से कंडक्टर ने बस से नीचे ऊपर दिया गया गया था। बीच रास्ते में नीचे ऊपर दिया गया था और यहाँ बात कान्हा और वैलिया को जब पता चल तो उनको बहुत बुरा लगाया और बहुत दू:खी हुआ और वहाँ दोनों दूसरे दिन वहाँ बस के सामने जाकर बन्दूक लेकर खड़े हो गया और जैसे ही बस आती दिखाई दिए और बन्दूकों बस के सामने बदूंक तानकर खड़े हो गया और बाद में जैसे ही आए बस आई तो दोनों भाई ने बस के टायर फोड़ दिया गया और बस पर फायरिंग कर दिया और उसी बस में एक वकील साहब बैठा था वहाँ भी बार - बार बच गया क्योंकि उनके कान के पास से होकर बदूक की गोली निकाली थी। इसलिए और उसके बाद में लुटा मारा चालू कर दिया। और सबसे पहले भारूड़ी गाँव को लूटा गया था।
सबसे पहले भारूड़ी गाँव को लुटा गया था
यहाँ गाँव भीनमाल से 20 किलोमीटर दूर है और भीनमाल और रामसीन के बीच में पडता है और भारूड़ी गाँव को लुटने के बाद में हौसला बुलंद हो गया था। जिसके बाद में अनेक गाँव को लुटने शुरू किया और लूटने के बाद में सीधे सुंधा माता पहाडों में पहुंचे जाता थे। क्योंकि कोनिया और वेलिया ( kaanha aur vailiya daakooon ) को माता सुंधा का आर्शीवाद मिला हुआ था। जिसके कारण वहाँ पर पहुँचे जाता था। और सबसे खास बात यहाँ है कि आज भी बहुत बड़ा पहाडों बना हुआ है और यहाँ के पहाडों को बहुत ही सुंदर दृश्य आज भी देखने को मिलता है। और अधिक संख्या में भी बड़े - बड़े जानवरों रहता है इसलिए पुलिस वाले इसको पकडा नहीं सकतीं थीं और इसी कारण से पुलिस वाले के लिए भी मुश्किलें हो रही थी। यहाँ कारण था कि पुलिस वालों के लिए पकडा पनाह मुश्किल और टेंड काम हो गया था । और सबसे खास बात यहाँ थी कि वहाँ के सब ठाकुर साहब उनको सम्मान करते थे और क्यों ना विरोधियों भी एक बार सम्मान करते था। और उन्होंने के कारणों से सहायता से बन्दूक और गोली मिलती रहतीं थी । जिसके कारण से वहाँ पर गाँव को लुटतें था। परंतु कान्हा और वैलिया की एक जरूर खासियत थी ।
गरीब परिवारों को नहीं लूट था सेठ और जागीरदार को लुटतें था
वहाँ सेठ लोगों को और जागीरदारों को लुटतें था और यहाँ एक खास थी कि कान्हा और वैलिया कभी आज तक गरीब परिवारों को नहीं लूटा था और बल्कि गरीब परिवारों की मदद करता था । उन दोनों का रिकॉर्ड रहा है कि कभी गरीब परिवारों को नहीं सत्ता है। आज की तरह नहीं किया गरीब परिवारों को लुटने और बहिन - बेटियों के साथ अत्याचार करना पहले वहाँ कान्हा और वैलिया ऐसे कुछ नहीं करता था । वहाँ बहुत चरितवान था और वहाँ अपने डम पर लुटतें मारे करता था ।
मारवाड़ और उतरी गुजरात में खौफ पैदा कर दिया गया था
और बड़े लोगों की निंदा उड़ा रखी थी। वो जब भी रात्रि को सोकर उठता था तब उनका लगता था कि आज की रात अच्छी गया और दूसरे दिन वहीं हालत होती थीं और दूसरे दिन सुनने में आता था कि आज यहाँ पर लुटा गया है और सबसे पहले भरूडी लूटा गया था। और फिर फूलकों, मंदोत्री, मावल, चंद्रवती को लूटा था और चिरावा को भी लूटा वहाँ पर जैन था।
उनको लूटने के बाद में वहाँ से लुटा का सामान लेकर सुंधा माता पहाडों आ जाता था और इसी प्रकार से गुजरात पाटवाड़ा गाँव के आसपास में लुटा और इसी प्रकार से वहाँ आबूरोड के क्षेत्र को भी लुटा गया। तथा बीबर में रहता था ।
चम्पा भिवडआ मिलती है कान्हा और वैलिया से
तब चम्पा से मुलाकात होती है यहाँ चम्पा भावडा ( Champa Bhiwad ) कि रहने वाली लिया थीं। और पशुओं को चराने का काम करतीं थीं और चम्पा भावडा भी हमेशा गाँव में जब भी लडाई यहाँ अन्य छोटी मोटी परेशानी होती तो वहाँ खुद ही समस्या का समधन करती थी। और साथ में कभी - कभी छोटी मोटी वहाँ भी चोरी करती थी और वहाँ बडी़ मेहनती थी और चम्पा की भी बचपन से इच्छा थी कि कोनिया और वेलिया ( kaanha aur vailiya daakooon ) से मुलाकात करने की तथा मतलब कि मिलने की इच्छा थी। क्योंकि उन्हें कोनिया और वेलिया के किस्से हमेशा सुनती रहती थी। इसलिए और कान्हा और वैलिया के साथ मिलने जाती थी । तथा कान्हा और वैलिया दोनों चम्पा भावडा एक बार मिलता है तब चम्पा भावडा भी कान्हा और वैलिया के साथ में जाना की इच्छा प्रकट करती है उस कान्हा और वैलिया दोनों भाई मना कर देता है और कहते हैं
कि हमारे जान को खतरा है इसलिए हम आपको साथ में नहीं रखा सकता है और फिर भी चम्पा भावडा ( Champa Bhiwad ) नहीं मनती है तब कान्हा और वैलिया दोनों भाई अपने साथ में लेकर रवाना होते हैं और यहाँ बताया जा रहा है कि दोनों भाई ने चम्पा भावडा ( Champa Bhiwad ) को अपने धर्म की बहिन बना लिया गया था और बाद में साथ में मिली और साथ में लेकर चले जाता है और बाद में सीधे सुंधा माता पहाडों पहूँचा है क्योंकि सुंधा माता का अर्शिवाद मिला हुआ था कि आप दोनों तब तक मेरे चरणों में रहोगे तब तक में आपकी सुरक्षा कर सकती हुआ और भूलकर भी यहाँ पहाडों को छोड़कर कभी मत जाना अगर मेरे पहाडों छोड़कर चले गए तो मैं आपकी रक्षा नहीं कर पाऊँ गया और यहाँ पर आपका कोई भी बाल बाक भी नहीं कर सकेंगा। और उसे जमाने में सुंधा माता को बलि चढाये जाती थी। और यहां पर उस समय में खूब महफिल होती थी जिसके कारण उनकों यहाँ पर खाने पीने की कोई भी किसी प्रकार से दिक्कत नहीं होती थी और वहां पर कोई लोगों दर्शन करने भी आता था । और दूर - दूर से भी दर्शन करना के लिए आता था । तब साथ में जवाल और सुरमा भी साथ में लेकर लाता था क्योंकि सुंधा माता को चढाते था जिससे किसी प्रकार की कोई दिक्कत नहीं होती थी। और इधर पुलिस वालों के लिए कान्हा और वैलिया ( kaanha aur vailiya daakooon ) को पकड़ने पाने मुश्किल हो गया था। इधर राजस्थान का दबाव पडा़ और घेराव किया ।
निम्बा पहाडों में कान्हा और वैलिया तथा चम्पा भिवडआ ने फायरिंग किया
राजस्थान और गुजरात की पुलिस वाले के नाक में दम करके रखा हुआ था। जिससे राजस्थान और गुजरात पुलिस वाले ने जसवतंपूरा में डेरा लगाकर बैठा गया है और बहूत कोशिश की परंतु पकड़कर नहीं पाया और एक बार समाचार मिला कि निम्बा पहाडों में कान्हा और वैलिया ( kaanha aur vailiya daakooon ) आया हुआ है तब चम्पा भावडा के साथ में तब पुलिस वाले की टीम ने भी वहाँ पर पहुंचे गया और घेराव किया । उस समय एक पुलिस कस्टंबर राजपूत की फायरिंग में कान्हा और वैलिया ( kaanha aur vailiya daakooon ) के हाथों से मारा जाता है । और वहाँ से मौके से फरार हो जाता है । तथा कान्हा और वैलिया ( kaanha aur vailiya daakooon ) जिससे पुलिस वालों के हाथ नहीं लगाया। और सीधे सुंधा माता पहाडों और चरणों में पहुंच जाता हैं । और दबाव इतना बड़ा गया था । उस समय में राजस्थान के मुख्यमंत्री के पद पर मोहनलाल सुखाड़िया था। और यहाँ गृहमंत्री और राजनाथ मुख्यमंत्री तक पहुँच गया था। तब सोच किया इनको कैसे पकड़ जाए और एक योजना बनाई गई कि एक ऐसा आदमी की जरूरत है कि वहाँ बहादुर हो और इनका द्वारा पकडा जाएगा ।
डाकूओं बलवंत सिंह बाखासर
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi3gaWiVEv-CCjT8i9NRkdXW4NBO6gscGW6PCMj8HeKesJ9VfpgotwZdgjeNNu1MhW3RI23KoOfZYMtOVLw9oMSkfkmnPzJr3tz_6_twwtC4y2bsiQcojG9ROkhmCiF12WNW1JnXiC0d7OMvBMDypbJtvIJjEeJ_IHGJtFEGbJ_4TDe232vpwllWP1k/s320/FB_IMG_1685900904923.jpg)
डाकूओं बलवंत सिंह बाखासर
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तब एक देश भक्त डाकूओं बलवंत सिंह बाखासर नाम के डाकूओं को चुना गया था। कोनिया और वेलिया को पकडने के लिए इनकी सहायता से पकडा सकता है और यहाँ सुचना बलवंत सिंह बाखासर को भेजा गया थी। और कहाँ कि अगर आप कोनिया और वेलिया को पकडने में हमारी मदद करो गया तो आपके ऊपर जितना भी मुकदमा चले है वहाँ सब माफ़ कर दिया जाएगा और बलवंत सिंह बाखासर को लगा किया यहाँ दोनों भाई को बुलाने से नहीं आएगा तब बिशवाडी गाँव में हेड़ाती गाँव जोकि वर्तमान में साचौर जिला में आया हुआ है वहाँ के ठाकुर साहब सीन सिंह ठाकुर साहब से मिलता है सीने ठाकुर के द्वारा इनको लालच देते हुए और सीने सिंह ठाकुर साहब इस बात को जल्दी से माना भी जाता है। और बता है कि कान्हा और वैलिया दोनों सीने ठाकुर साहब पर बहुत भरोसा करता था। इसलिए कभी कोनिया और वेलिया इनकी बात कभी नहीं बदलेगा ।
कान्हा और वैलिया तथा चम्पा भिवडआ को पकड़ने के लिए सीने ठाकुर चुना गया
जिससे कारण बलवंत सिंह बाखासर ने सीने ठाकुर साहब को चुना गया था। सीने ठाकुर के माध्यम से कोनिया और वेलिया ( kaanha aur vailiya daakooon ) एक संदेश भेजा है और और कहता है कि यहाँ पर छोटी मोटी चोरी करने से क्या फायदा मिलेगा आप दोनों पाकिस्तान में जाकर बड़ी लुटा मारा करो मै एक ऐसा व्यक्ति से मिलता हुआ वहाँ बहुत बडा डाकूओं है उनका नाम बलवंत सिंह बाखासर डाकूओं से मिलता हुआ में तुम्हारे और बाद में दोनों मिलकर बहुत बड़ा हिरो बना जाऊँ गया और तुम्हारे बहुत बड़ा नाम भी हो जाएगा में उनसे जाकर मिलकर में आपको मिलता हुआ और वहाँ बहुत बड़ा डाकूओं है यहाँ सीने सिंह ठाकुर साहब पर भरोसा किया करते था इसलिए कान्हा और वैलिया दोनों इस बात के लिए माना भी गया था।
चम्पा भिवडआ ने बहुत समझ परंतु नहीं मानें
परंतु चम्पा भावडा ने मना कर दिया था क्योंकि चम्पा भावडा ( Champa Bhiwad ) बहुत समझदार थी और उसने रोकने का प्रयास भी बहुत किया गया परंतु कान्हा और वैलिया दोनों भाई इनके जाल में फांस गया था और उनको लालच हाथ लगाया गया था। इसलिए वहाँ दोनों खुश होगा और इस काम के लिए लाजी भी होगा और कहते हैं कि लालच बहुत बुरी बल है और वहाँ दोनों नहीं मानें।
चम्पा भावडा ( Champa Bhiwad ) ने बहुत समझाया परंतु दोनों नहीं मानें चम्पा भावडा ने यहाँ भी कहाँ था कि हमें यहाँ पहाडों छोड़कर कहीं नहीं जान चाहिए क्योंकि हमें सुंधा माता का आर्शीवाद मिला हुआ है इसलिए बहुत कोशिश की हमारा साथ में कभी भी धौखा हो सकता है। वहाँ दोनों भाई नहीं माना क्यों लालच बहुत बड़ा लालच हाथ लगाया गया था । चम्पा भावडा ( Champa Bhiwad ) ने बहुत रोकने का प्रयास किया गया परंतु नहीं मानें और दोनों भाई वहाँ से घोड़े पर बैठकर दोनों भाई के साथ में बाद में चम्पा भावडा ( Champa Bhiwad ) भी रवाना हो गया और बाखासर पहुंचे गए। सबसे खास बात यहाँ थी कि सूंधा माता और बाखासर की दूरी 150 किलोमीटर दूर होने के बावजूद भी और दोनों बाखासर घोड़े पर पहुँच जाते हैं और किसी को कान काना खबर तक नहीं होने देते हैं।
आखिरकार मौत के घाट उतार दिया
कोनिया और वेलिया ( kaanha aur vailiya daakooon ) को पुलिस पकड़ नहीं पातीं है और उस समय बलवंत सिंह बाखासर एक जाल बिच्छते है । और उन जाल में फंस जाते हैं और उनके लिए एक महफ़िल सजाएं जाती हैं और महफिल में शराब लाई जाती है जिसके अंदर जहर मिलीं जाती है और उसके सामने पेश करते हैं और दोनों भाई को पिलाया जाती है और उन शराब में जहर देकर धोखा से मौत के घाट उतार देता है इन दोनों भाई को इसी प्रकार से और उसके बाद में चम्पा भावडा ( Champa Bhiwad ) को भी उसी समय खत्म करके मौत के घाट उतार देता है। और बाद में पुलिस वाले को सुचना दिया जाती है और तीनों की लाशें को लेकर पुलिस वाले भीनमाल थाना लेकर आ जाती है।
यहाँ थाना आज भी भीनमाल के खारी रोड़ पर बना हुआ है। और भीनमाल अब तहसील बना गया है। और जब लाश लेकर भीनमाल लाया गया तब भीनमाल के आसपास के क्षेत्र के लोगों देखने के लिए आता है। फिर वहाँ पर उनका अंतिम संस्कार किया गया जाता है और उनका नाम आज भी अमर हो गया है। बाद में अनेक प्रकार इनके ऊपर गीत निकाले गए हैं।
कुछ महत्वपूर्ण सवाल कान्हा और वैलिया तथा चम्पा भावडा से जूडें
कान्हा और वैलिया की हत्या कैसे हुई थी
आज भी इनके चर्चे और किस्से पुरे जालोर जिले में सुनाई देते है । इनका एनकाउंटर धोखे से जहर देकर हुआ था। पोलिस द्वारा तीनो का एनकाउंटर करके भीनमाल स्थित पुलिस स्टेशन में इनकी लाश लायी गयी उस समय का यहाँ फोटो ऊपर मौजूद है ।
कान्हा और वैलिया के ऊपर किसका आर्शीवाद तथा वरदान स्वरूप मिला हुआ था
लोक गीतों की एक पंक्ति - माता रे भटियानी ठाणे जइयो रे का अर्थ माता भटियानी के पुत्र। इन्हे सुंधा माँ का भी आशीर्वाद प्राप्त था की वो हमेशा ही गरीब लोगो की मदद करेंगे एवं हमेशा सुंधा पर्वत जो माँ सुंधा का पाट स्थान है की पहाड़ियों में सुरक्षित रहेंगे और कोई उनका बाल भी बाका नही कर पाएगा, न इंसान न जीव जानवर ।
कान्हा और वैलिया कहा रहने वाले था
ये है सुंधा पर्वत में रहने वाले डाकू कोनिया और वेलिया और साथ इनकी धर्मेली बहिन चम्पाडी । दोनों भाइयो का जन्म स्थान भीनमाल का महेश्वरजी मंदिर के आस पास बताया जाता है अतः इन्होने भी दादेली तालाब का पानी पिया हुआ। इनको प्रत्यक्ष रूप से देखने वाले बुज़ुर्गो के अनुसार कोनिया और वेलिया दोनों ही शरीर से पुष्ट और ताकतवर थे जो तक़रीबन सात फुट लम्बे थे । इसका जन्म भीनमाल के धन्नाजी दादालिया गाँव में हुआ था और रावण राजपूत समाज यहाँ से जुड़े हुए था। दोनों गरीब परिवार से ताल्लुक रखते थे और जीवन यापन करते थे और बड़ा वैलिया काम पर भरोसा रखता था। मेहनत पर हकी रखता था परंतु छोटा कान्हा रात - रातों अमीर बनाने की सोच रखता था। और पैसा कमाने का लालच रखता था। जिससे इसी कारण वहाँ कभी कभी रात को छोटी - मोटी चोरी भी क्या करता था !
वैलिया की शादी किससे होती है
भीनमाल में से 10 किलोमीटर दूर खण्डर गाँव के ठाकुर साहब लाल सिंह की दासिया के साथ में और उनका नाम रुपा था जिसके साथ में शादी भी करवाई गई थी। और पत्नी के रूप में मंजूरी भी दे दिया थी।
पुलिस वाले क्यों नहीं पकडा पाती थी कान्हा और वैलिया को
क्योंकि सुंधा माँ का भी आशीर्वाद प्राप्त था की वो हमेशा ही कोनिया और वेलिया की मदद करूँगी तब यहाँ इस पहाडों में रहेगा तब तक और खास बात यहाँ थी कि यहाँ पहाडों भी बहुत बड़ा होने के कारण और पेड़ - पौधों सहित अन्य जीव जन्तूओं तथा बड़े बड़े जानवरों होने के कारण पुलिस वाले पकडा पनाह मुश्किलें हो गया था।
कान्हा और वैलिया कैसे डाकूओं था
यहाँ एक खास थी कि कोनिया और वेलिया कभी गरीब परिवारों को नहीं लूटते थे और बल्कि गरीब परिवारों की मदद करते थे। उन दोनों का रिकॉर्ड रहा है कि कभी गरीब परिवारों को नहीं सत्ता है। आज की तरह नहीं किया गरीब परिवारों को लुटने और बहिन - बेटियों के साथ अत्याचार करना पहले वहाँ कान्हा और वैलिया ऐसे कुछ नहीं करते थे । वहाँ बहुत चरितवान था और वहाँ अपने डम पर लुटतें मारे करते थे
चम्पा भावडा कौन थी और कैसे दिखाई देती थी
चम्पा भावडा कि रहने वाली लिया थीं। और पशुओं को चराने का काम करतीं थीं और चम्पा भावडा भी हमेशा गाँव में जबभी लडाई यहाँ अन्य छोटी मोटी परेशानी होती तो वहाँ खुद ही समस्या का समधन करते थी। छोटी मोटी वहाँ भी चोरी करती थी और वहाँ बडी़ मेहनती थी। वही चम्पादि को जीवित देखने वालो के अनुसार चम्पाडी इतनी गोरी और सुन्दर थी मनो कोई देवी हो । राजस्थान के प्रसिद्ध गीतकार चंपा और मेथी का भी एक गाना इस का एक शाक्ष्य है । इनके बारे में लिखित रूप में सर्वाधिक जानकारी शायद यही है
कान्हा और वैलिया दोनों भाई कौन- कौन सी जगह पर लुटा था
सबसे पहले भरूडी लूटा गया था। और फिर फूलकों, मंदोत्री, मावल, चंद्रवती को लूटा था और चिरावा को भी लूटा वहाँ पर जैन था। और इसी प्रकार से गुजरात पाटवाड़ा गाँव के आसपास में लुटा और इसी प्रकार से वहाँ आबूरोड के क्षेत्र को भी लुटा गया। तथा बीबर के गाँव को लुटा गया था। और इसी प्रकार से अन्य क्षेत्रों को लुटतें था
कान्हा और वैलिया को मारने में सबसे बड़ा सहयोग किसका था
कोनिया और वेलिया को मारने की सबसे बड़ा सहायता बलवंत सिंह बासासर डाकूओं का सबसे बड़ा सहयोग से मार गया था।
डाकू कान्हा और वैलिया के समय मुख्यमंत्री कौन था
उस समय एक पुलिस कस्टंबर राजपूत की फायरिंग में कान्हा और वैलिया के हाथों से मारा जाता है । तब यहाँ मामले राजस्थान के मुख्यमंत्री तक पहुँच जाता है और उस समय में मोहन लाल सुखाड़िया (31 जुलाई 1916 - 2 फरवरी 1982) एक भारतीय राजनीतिज्ञ थे, जिन्होंने 17 वर्षों (1954-1971) तक राजस्थान राज्य के मुख्यमंत्री के रूप में कार्य किया।
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