JALORE NEWS जालोर के राजा द्वारा सोमनाथ मन्दिर अलाउद्दीन खिलजी की सेना से छुडकर स्थापित किया , जाने पीछे का क्या है रहस्यऔ
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The-Somnath-temple-in-Jalore-was-established-after-breaking-away-from-the-army-of-Alauddin-Khilji. |
JALORE NEWS जालोर के राजा द्वारा सोमनाथ मन्दिर अलाउद्दीन खिलजी की सेना से छुडकर स्थापित किया , जाने पीछे का क्या है रहस्य
जालोर / सोमनाथ मन्दिर को खंडित कर गुजरात से लौटती अलाउद्दीन खिलजी की सेना पर जालौर JALORE के शासक कान्हड़ देव चौहान ने पवित्र शिवलिंग शाही सेना से छीन कर जालौर JALORE की भूमि पर स्थापित करने के उदेश्य से सरना गांव में डेरा डाली शाही सेना पर भीषण हमला कर पवित्र शिवलिंग प्राप्त कर लिया और शास्त्रोक्त रीती से सरना गांव में ही प्राण प्रतिष्ठित कर दिया
हता नैन्सी की ख्यात के अनुसार इस युद्ध में जालौर JALORE के राजकुमार विरमदेव की वीरता की कहानी सुन खिलजी ने उसे दिल्ली आमंत्रित किया | उसके पिता कान्हड़ देव ने अपने सरदारों से विचार विमर्श करने के बाद राजकुमार विरमदेव को खिलजी के पास दिल्ली भेज दिया जहाँ खिलजी ने उसकी वीरता से प्रभावित हो अपनी पुत्री फिरोजा के विवाह का प्रस्ताव राजकुमार विरमदेव के सामने रखा जिसे विरमदेव एकाएक ठुकराने की स्थिति में नही थे अतः वे JALORE जालौर JALORE से बारात लाने पर बहाना बना दिल्ली से निकल आए और जालौर JALOREपहुँच कर खिलजी का प्रस्ताव ठुकरा दिया |
मामो लाजे भाटिया, कुल लाजे चव्हान ।
हूँ पर तुरकड़ी तो उल्टो उगे भान ॥
शाही सेना पर गुजरात से लौटते समय हमला और अब विरमदेव द्वारा शहजादी फिरोजा के साथ विवाह का प्रस्ताव ठुकराने के कारण खिलजी जालौर JALORE रौंदने का निश्चय कर एक बड़ी सेना जालौर JALORE रवाना की जिस सेना पर सिवाना के पास जालौर JALORE के कान्हड़ देव और सिवाना के शासक सातलदेव ने मिलकर एक साथ आक्रमण कर परास्त कर दिया | इस हार के बाद भी खिलजी ने सेना की कई टुकडियाँ जालौर JALORE पर हमले के लिए रवाना की और यह क्रम पाँच वर्ष तक चलता रहा लेकिन खिलजी की सेना जालौर के राजपूत शासक को नही दबा पाई आख़िर जून १३१० ( 1310 ई ) में ख़ुद खिलजी एक बड़ी सेना के साथ जालौर JALORE के लिए रवाना हुआ और पहले उसने सिवाना पर हमला किया और एक विश्वासघाती के जरिये सिवाना दुर्ग के सुरक्षित जल भंडार में गौ-रक्त डलवा दिया जिससे वहां पीने के पानी की समस्या खड़ी हो गई अतः सिवाना के शासक सातलदेव ने अन्तिम युद्ध का ऐलान कर दिया जिसके तहत उसकी रानियों ने अन्य क्षत्रिय स्त्रियों के साथ जौहर किया व सातलदेव आदि वीरों ने शाका कर अन्तिम युद्ध में लड़ते हुए वीरगति प्राप्त की । इस युद्ध के बाद खिलजी अपनी सेना को जालौर JALORE दुर्ग रौंदने का हुक्म दे ख़ुद दिल्ली आ गया | उसकी सेना ने मारवाड़ में कई जगह लूटपाट व अत्याचार किए सांचोर के प्रसिद्ध जय मन्दिर के अलावा कई मंदिरों को खंडित किया |
इस अत्याचार के बदले कान्हड़ देव ने कई जगह शाही सेना पर आक्रमण कर उसे शिकस्त दी और दोनों सेनाओ के मध्य कई दिनों तक मुटभेडे चलती रही आखिर खिलजी ने जालौर JALORE जीतने के लिए अपने बेहतरीन सेनानायक कमालुद्दीन को एक विशाल सेना के साथ जालौर JALORE भेजा जिसने जालौर दुर्ग के चारों और सुद्रढ़ घेरा डाल युद्ध किया लेकिन अथक प्रयासों के बाद भी कमालुद्दीन जालौर दुर्ग नही जीत सका और अपनी सेना ले वापस लौटने लगा तभी कान्हड़ देव का अपने एक सरदार विका से कुछ मतभेद हो गया और विका ने जालौर से लौटती खिलजी की सेना को जालौर JALORE दुर्ग के असुरक्षित और बिना किलेबंदी वाले हिस्से का गुप्त भेद दे दिया । विका के इस विश्वासघात का पता जब उसकी पत्नी को लगा तब उसने अपने पति को जहर देकर मार डाला ।
इस तरह जो काम खिलजी की सेना कई वर्षो तक नही कर सकी वह एक विश्वासघाती की वजह से चुटकियों में ही हो गया और जालौर पर खिलजी की सेना का कब्जा हो गया। खिलजी की सेना को भारी पड़ते देख वि.स.१३६८ में कान्हड़ देव ने अपने पुत्र विरमदेव को गद्दी पर बैठा ख़ुद ने अन्तिम युद्ध करने का निश्चय किया । जालौर दुर्ग में उसकी रानियों के अलावा अन्य समाजों की औरतों ने १५८४ जगहों पर जौहर की ज्वाला प्रज्वलित कर जौहर किया तत्पश्चात कान्हड़ देव ने शाका कर अन्तिम दम तक युद्ध करते हुए वीर गति प्राप्त की | कान्हड़ देव के वीर गति प्राप्त करने के बाद विरमदेव ने युद्ध की बागडोर संभाली । विरमदेव का शासक के रूप में साढ़े तीन का कार्यकाल युद्ध में ही बिता | आख़िर विरमदेव की रानियाँ भी जालौर दुर्ग को अन्तिम प्रणाम कर जौहर की ज्वाला में कूद पड़ी और विरमदेव ने भी शाका करने हेतु दुर्ग के दरवाजे खुलवा शत्रु सेना पर टूट पड़ा और भीषण युद्ध करते हुए वीर गति को प्राप्त हुआ । विरमदेव के वीरगति को प्राप्त होने के बाद शाहजादी फिरोजा की धाय सनावर जो इस युद्ध में सेना के साथ आई थी विरमदेव का मस्तक काट कर सुगन्धित पदार्थों में रख कर दिल्ली ले गई। कहते है विरमदेव का मस्तक जब स्वर्ण थाल में रखकर फिरोजा के सम्मुख लाया गया तो मस्तक उल्टा घूम गया तब फिरोजा ने अपने पूर्व जन्म की कथा
सुनाई.. तज तुरकाणी चाल हिंदूआणी हुई हमें । भो-भो रा भरतार, शीश न धूण सोनीगरा ||
फिरोजा ने उनके मस्तक का अग्नि संस्कार कर ख़ुद अपनी माँ से आज्ञा प्राप्त कर यमुना नदी के जल में प्रविष्ट हो जगाई ।... खम्मा घणी सा...पधारो म्हारे देश { कण कण सु गुँजे जय जय राजस्थान }
सोमनाथ मन्दिर को खंडित कर गुजरात से लौटती अलाउद्दीन खिलजी की सेना पर जालौर के शासक कान्हड़ देव चौहान ने पवित्र शिवलिंग शाही सेना से छीन कर जालौर की भूमि पर स्थापित करने के उदेश्य से सरना गांव में डेरा डाली शाही सेना पर भीषण हमला कर पवित्र शिवलिंग प्राप्त कर लिया और शास्त्रोक्त रीती से सरना गांव में ही प्राण प्रतिष्ठित कर दिया ।
मुंहता नैन्सी की ख्यात के अनुसार इस युद्ध में जालौर के राजकुमार विरमदेव की वीरता की कहानी सुन खिलजी ने उसे दिल्ली आमंत्रित किया | उसके पिता कान्हड़ देव ने अपने सरदारों से विचार विमर्श करने के बाद राजकुमार विरमदेव को खिलजी के पास दिल्ली भेज दिया जहाँ खिलजी ने उसकी वीरता से प्रभावित हो अपनी पुत्री फिरोजा के विवाह का प्रस्ताव राजकुमार विरमदेव के सामने रखा जिसे विरमदेव एकाएक ठुकराने की स्थिति में नही थे अतः वे जालौर से बारात लाने का बहाना बना दिल्ली से निकल आए और जालौर पहुँच कर खिलजी का प्रस्ताव ठुकरा दिया ।
मामो लाजे भाटिया, कुल लाजे चव्हान ।
हूँ पर तुरकड़ी तो उल्टो उगे भान ||
शाही सेना पर गुजरात से लौटते समय हमला और अब विरमदेव द्वारा शहजादी फिरोजा के साथ विवाह का प्रस्ताव ठुकराने के कारण खिलजी ने JALORE जालौर रोंदने का निश्चय कर एक बड़ी सेना जालौर रवाना की जिस सेना पर सिवाना के पास जालौर JALORE के कान्हड़ देव और सिवाना के शासक सातलदेव ने मिलकर एक साथ आक्रमण कर परास्त कर दिया । इस हार के बाद भी खिलजी ने सेना की कई टुकडियाँ जालौर पर हमले के लिए रवाना की और यह क्रम पाँच वर्ष तक चलता रहा लेकिन खिलजी की सेना जालौर के राजपूत शासक को ही दबा पाई आख़िर जून १३१० में ख़ुद खिलजी एक बड़ी सेना के साथ जालौर JALORE के लिए रवाना हुआ और पहले उसने सिवाना पर हमला किया और एक विश्वासघाती के जरिये सिवाना दुर्ग के सुरक्षित जल भंडार में गौ-रक्त डलवा दिया जिससे वहां पीने के पानी की समस्या खड़ी हो गई अतः सिवाना के शासक सातलदेव ने अन्तिम युद्ध का ऐलान कर दिया जिसके तहत उसकी रानियों ने अन्य क्षत्रिय स्त्रियों के साथ जौहर किया व सातलदेव आदि वीरों ने शाका कर अन्तिम युद्ध में लड़ते हुए वीरगति प्राप्त की । इस युद्ध के बाद खिलजी अपनी सेना को जालौर JALORE दुर्ग रौंदने का हुक्म दे ख़ुद दिल्ली आ गया | उसकी सेना ने मारवाड़ में कई जगह लूटपाट
व अत्याचार किए सांचोर के प्रसिद्ध जय मन्दिर के अलावा कई इस युद्ध के बाद खिलजी अपनी सेना से JALORE जालौर दुर्ग रौंदने का हुक्म दे ख़ुद दिल्ली आ गया | उसकी सेना ने मारवाड़ में कई जगह लूटपाट व अत्याचार किए सांचोर के प्रसिद्ध जय मन्दिर के अलावा कई मंदिरों को खंडित किया । इस अत्याचार के बदले कान्हड़ देव ने कई जगह शाही सेना पर आक्रमण कर उसे शिकस्त दी और दोनों सेनाओ मध्य कई दिनों तक मुटभेडे चलती रही आखिर खिलजी ने JALORE जालौर जीतने के लिए अपने बेहतरीन सेनानायक कमालुद्दीन को एक विशाल सेना के साथ JALORE जालौर भेजा जिसने JALORE जालौर दुर्ग के चारों और सुद्रढ़ घेरा डाल युद्ध किया।
लेकिन अथक प्रयासों के बाद भी कमालुद्दीन JALORE जालौर दुर्ग नही जीत सका और अपनी सेना ले वापस लौटने लगा तभी कान्हड़ देव का अपने एक सरदार विका से कुछ मतभेद हो गया और विका ने जालौर से लौटती खिलजी की सेना को जालौर दुर्ग के असुरक्षित और बिना किलेबंदी वाले हिस्से का गुप्त भेद दे दिया | विका के इस विश्वासघात का पता जब उसकी पत्नी को लगा तब उसने अपने पति को जहर देकर मार डाला | इस तरह जो काम खिलजी की सेना कई वर्षो तक नही कर सकी वह एक विश्वासघाती की वजह से चुटकियों में ही हो गया और जालौर JALORE पर खिलजी की सेना का कब्जा हो गया। खिलजी की सेना को भारी पड़ते देख वि.स.१३६८ में कान्हड़ देव ने अपने पुत्र विरमदेव को गद्दी पर बैठा ख़ुद ने अन्तिम युद्ध करने का निश्चय किया | JALORE जालौर दुर्ग में उसकी रानियों के अलावा अन्य समाजों की औरतों ने १५८४ जगहों पर जौहर की ज्वाला प्रज्वलित कर जौहर किया तत्पश्चात कान्हड़ देव ने शाका कर अन्तिम दम तक युद्ध करते हुए वीर गति प्राप्त की । कान्हड़ देव के वीर गति प्राप्त करने के बाद विरमदेव ने युद्ध की बागडोर संभाली |
विरमदेव का शासक के रूप में साढ़े तीन का कार्यकाल युद्ध में ही बिता | आख़िर विरमदेव की रानियाँ भी JALORE जालौर दुर्ग को अन्तिम प्रणाम कर जौहर की ज्वाला में कूद पड़ी और विरमदेव ने भी शाका करने हेतु दुर्ग के दरवाजे खुलवा शत्रु सेना पर टूट पड़ा और भीषण युद्ध करते हुए वीर गति को प्राप्त हुआ । विरमदेव के वीरगति को प्राप्त होने के बाद शाहजादी फिरोजा की धाय सनावर जो इस युद्ध में सेना के साथ आई थी विरमदेव का मस्तक काट कर सुगन्धित पदार्थों में रख कर दिल्ली ले गई। कहते विरमदेव का मस्तक जब स्वर्ण थाल में रखकर फिरोजा के सम्मुख लाया गया तो मस्तक उल्टा घूम गया तब फिरोजा ने अपने पूर्व जन्म की कथा सुनाई...
- तज तुरकाणी चाल हिंदूआणी हुई हमें ।
- भो भो रा भरतार, शीश न धूण सोनीगरा ||
फिरोजा ने उनके मस्तक का अग्नि संस्कार कर ख़ुद अपनी माँ से आज्ञा प्राप्त कर यमुना नदी के जल में प्रविष्ट हो जगाई ।... खम्मा घणी सा...पधारो म्हारे देश { कण कण सु गुँजे जय जय राजस्थान }
जालोर जुड़े कुछ किस्से है
प्राचीन काल में JALORE जालौर को जाबालिपुरा के नाम से जाना जाता था - जिसका नाम एक संत के नाम पर रखा गया था। इस शहर को सुवर्णगिरि या सोंगिर, गोल्डन माउंट, जिस पर किला खड़ा है, के नाम से भी जाना जाता था।
कुछ ऐतिहासिक स्रोतों के अनुसार, 8वीं-9वीं शताब्दी में, गुर्जर प्रतिहारों की एक शाखा जाबलीपुर (जालौर) में शासन कर रही थी।[1]
8वीं शताब्दी में यह एक समृद्ध शहर था। 10वीं शताब्दी में JALORE जालौर पर परमारों का शासन था। नाडोल के शासक अल्हाना का सबसे छोटा पुत्र कीर्तिपाल, चौहानों की जालौर वंश का संस्थापक था। उन्होंने 1181 में परमारों से इस पर कब्ज़ा कर लिया और इस स्थान के नाम पर अपने कबीले का नाम सोनगरा रख लिया। 1182 में उसका पुत्र समरसिम्हा उसका उत्तराधिकारी बना। उदयसिम्हा अगला शासक था जिसके अधीन जालौर का स्वर्णिम काल था। वह एक बड़े क्षेत्र पर शासन करने वाला एक शक्तिशाली और सक्षम शासक था। उसने नाडोल और मंडोर को मुसलमानों से पुनः प्राप्त कर लिया। 1228 में इल्तुतमिश ने JALORE जालौर की परिक्रमा की लेकिन उदयसिम्हा ने कड़ा प्रतिरोध किया। उनका उत्तराधिकारी चाचिगदेव और सामंतसिम्हा ने लिया। सामंतसिम्हा का उत्तराधिकारी उसका पुत्र कान्हड़देव हुआ।
कान्हड़ देव सोनगरा के शासनकाल के दौरान, 1311 में दिल्ली के सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी ने JALORE जालौर पर हमला किया और उसे नष्ट कर दिया। कान्हड़ देव सोनगरा और उनके पुत्र वीरमदेव सोनगिरा JALORE जालौर की रक्षा करते हुए मारे गए। 16वीं शताब्दी में गुजरात के पालनपुर के मुस्लिम शासकों ने कुछ समय के लिए JALORE जालोर पर शासन किया और यह मुगल साम्राज्य का हिस्सा बन गया। इसे 1704 में मारवाड़ में बहाल किया गया था, और 1947 में भारतीय स्वतंत्रता के कुछ समय बाद तक यह राज्य का हिस्सा बना रहा। अंबलियारा पूर्ववर्ती रियासत अंबलियारा (जिसे अमलियारा या अमलियारा भी कहा जाता है) की राजधानी थी, जिसकी स्थापना 1619 में वंशज महाराज कृष्णदासजी ने की थी। JALORE जालोर की रानी जालोर की रानी पोपदेवी की। यह राज्य माही कंथा एजेंसी के तहत एक तृतीय श्रेणी का राज्य था और 10 मार्च, 1948 को भारत संघ में विलय हो गया। परम पूज्य ठाकुर साहेब कमलराज सिंह और परम पूज्य ठाकुर साहेब देवेन्द्र सिंहजी धर्मेंद्र सिंहजी, वह अंबलियारा के वर्तमान ठाकुर साहब हैं।
यहाँ सोमनाथ महादेव का मंदिर
JALORE जालोर दुर्ग के महादेव मंदिर का शिवलिंग गुजरात के सोमनाथ महादेव शिवलिंग का अंश माना जाता है। इतिहासकारों के अनुसार सोमनाथ को लूटकर जा रही अलाउद्दीन खिलजी की सेना से वीर वीरमदेव ने छुड़वाया था। शिवलिंग के अंश को अलाउद्दीन खिलजी सोमनाथ से हाथी के पांवों में बांधकर घसीटते हुए ले जा रहा था। शिवलिंग के दो भाग थे। इसके एक भाग को जालोर JALORE के दुर्ग और दूसरे भाग को सराणा गांव में स्थापित किया था। स्वर्ण गिरी दुर्ग का महादेव मंदिर 13 वीं शताब्दी में स्थापित किया गया था।
पाषाण पुत्री हीरा दे के लेखक इतिहासकार पुरुषोत्तम पोमल के मुताबिक अलाउद्दीन ने सोमनाथ आक्रमण के बाद कई महादेव मंदिरों में लूट की। खिलजी सोमनाथ महादेव के विशालकाय शिवलिंग के चार भाग कर शिवलिंग को हाथी के पांव में बांध कर दिल्ली ले जा रहा था। वापसी में सेना श्रीमाल (भीनमाल ) के देव मंदिरों व ब्राह्मणों की संपत्ति लूटने लगी। यह देख राजा कान्हड़ देव ने वीर वीरमदेव के नेतृत्व में सेना का गठन किया। जिसने खिलजी की सेना को मार भगाया और सराणा गांव के निकट भीमकाय हाथी के पैरों में बंधे सोमनाथ महादेव के शिवलिंग के दोनों भागों को छुड़ा लिया। कान्हड़देव के आदेश पर सराणा व JALORE जालोर दुर्ग पर मंदिर बना कर दो हिस्सों को स्थापित किया। इनमें एक भाग दुर्ग स्थित सोमनाथ महादेव के रूप में पूजे जाते हैं।
भाग स्वरूप के अंदर के भाग में लिंग स्वरूप
प्राचीन महादेव मंदिर में पार्वती, गणेश व कार्तिकेय भगवान की पुरानी मूर्तियों के साथ एक अलग प्रकार के शिवलिंग के रूप में भगवान महादेव बिराजित हैं। दूसरे मंदिरों में भगवान महादेव की मूर्ति के रूप में विद्यमान शिवलिंग में भग स्वरुप के ऊपर लिंग स्वरूप विद्यमान होता है जबकि इस प्राचीन शिवलिंग में विशालकाय भग स्वरुप के अंदर के भाग में लिंग स्वरूप की पूजा होती है। इस प्रकार यहां सोमनाथ के अंश के रूप में सोमनाथ महादेव की पूजा की जाती है।
गुप्त रास्ते से पहुंचा था सोमनाथ लूटने
कान्हड़देव सोनगरा चौहान के शासनकाल में अलाउद्दीन खिलजी ने गुजरात पर आक्रमण करने के लिए जालोर से होकर रास्ता मांगा था। उन्होंने अलाउद्दीन खिलजी को रास्ता देने से मना कर दिया। लेकिन वह मेवाड़ के रास्ते गुप्त तरीके से गुजरात पहुंच गया और वहां लूट की थी।
( 2 )
जलंधरनाथ महादेव मंदिर: JALORE जालोर दुर्ग पर स्थित महादेव मंदिर में सोमनाथ के शिवलिंग का अंश को पूजा जाता है. इस मंदिर को सोमनाथ महादेव के नाम से भी जानते है. इतिहास के अनुसार 13वीं शताब्दी में JALORE जालोर में राजा कान्हडदेव सोनगरा के शासनकाल के समय अलाउद्दीन खिलजी सोमनाथ आक्रमण के बाद JALORE जालोर होकर गुजरा था. इस दौरान सोमनाथ महादेव के शिवलिंग का एक अंश यही पर छोड़ दिया. तो राजाओ ने मंदिर बनाकर प्राण प्रतिष्ठा की. इस प्राचीन शिवलिंग में विशालकाय भग स्वरुप के अंदर के भाग में लिंग स्वरुप की पूजा होती है.
प्राचीन काल से ऐतिहासिक और पौराणिक ग्रंथों में जालौर का उल्लेख सर्वत्र मिलता है। जिले के हर स्थान का नाम महादेव के नाम पर शिवोहम रखा गया है। वही पौराणिक ग्रन्थों में जबलपुर और इतिहास में स्वर्णगिरि इस जालौर JALORE को महादेव के नाम से जाना जाता है। जिले में कई प्राचीन मंदिर हैं जिनकी अपनी अलग विशेषताएं हैं। ऐसे ही एक प्राचीन शिवलिंग की पूजा जालौर के किले पर स्थित महादेव मंदिर में की जाती है। जालौर के इतिहास के अनुसार 13वीं शताब्दी में जालौर में राजा कान्हड़देव सोनगरा चौहान के शासनकाल में सोमनाथ के आक्रमण के बाद अलाउद्दीन खिलजी जालौर JALORE से होकर गुजरा था। खिलजी ने सोमनाथ में कई महादेव मंदिरों को लूटा। जिसके बाद खिलजी ने जालौर के किले पर भी हमला किया और इस बीच सोमनाथ महादेव के शिवलिंग का एक हिस्सा यहां छोड़ गया। उसी शिवलिंग की आज भी किले में स्थित जालंधरनाथ महादेव मंदिर के पीछे प्राचीन मंदिर में सोमनाथ महादेव के रूप में पूजा की जाती है। किले पर स्थित महादेव मंदिर में भगवान महादेव पार्वती, गणेश और कार्तिकेयन भगवान की पुरानी मूर्तियों के साथ एक अलग प्रकार के शिवलिंग के रूप में मौजूद हैं। अन्य मंदिरों में भगवान महादेव की मूर्ति के रूप में मौजूद शिवलिंग में भग रूप के ऊपर लिंग रूप मौजूद है। जबकि इस प्राचीन शिवलिंग में विशाल भग रूप के भीतरी भाग में लिंग रूप की पूजा की जाती है।
इस प्रकार सोमनाथ महादेव की यहां सोमनाथ के अंश के रूप में पूजा की जाती है। जिले के मोदरा के पास धंसा गांव में स्थित जालंधरनाथ महादेव मंदिर आसपास के दर्जनों गांवों में आस्था का केंद्र बन गया है. इस मंदिर का संबंध सीर मंदिर JALORE जालोर के सिद्ध योगी जालंधरनाथ महादेव के चमत्कार से जुड़ा है। ढांसा का यह महादेव मंदिर एक भक्त और भगवान के बीच आस्था और रिश्ते का प्रतीक है। सीर मंदिर के इतिहास के अनुसार 16वीं शताब्दी में जालंधरनाथ महादेव कनकचल की पहाड़ी पर स्थित सीर मंदिर में तपस्या किया करते थे। वहीं, ढांसा गांव में जालंधरनाथ महादेव के भक्त भाखर सिंह थे, जिनका हर सोमवार को मंदिर जाकर अपने भगवान के दर्शन करने और फिर व्रत तोड़ने की दिनचर्या थी। लेकिन एक बार बरसात के दिनों में खेत के काम में व्यस्त होने के कारण भाखर सिंह सोमवार को ध्यान नहीं लगा पाए और मंदिर नहीं जा सके। लेकिन जैसे ही बारिश का मौसम थमा और देर शाम घर से उनके लिए खाना आ गया और उन्हें व्रत की याद आ गई। अतः भाखरसिंह बिना देर किए उसी समय अपने इष्ट जालंधरनाथ महादेव के दर्शन के लिए सीर मंदिर के लिए निकल पड़े। लेकिन भक्त की भक्ति को देखकर भगवान ने भी इस बार स्वयं भक्त से मिलने जाने का निश्चय किया और बीच रास्ते में उन्होंने भाखर सिंह को साक्षात देखा। लेकिन भाखर सिंह ने भी भगवान की परीक्षा ली और अपने जालंधरनाथ होने का प्रमाण मांगा तो भगवान ने एक पेड़ की डाली तोड़ी और वहां लगा दी और कहा कि यह कल तक पेड़ बन जाएगा।
JALORE NEWS
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