Temple of Kshemankari Mata and Khimaj Mataji ka history क्षेमंकरी माताओं और खीमज माताजी का मंदिर का इतिहास जाने पीछे का रहस्य
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Temple of Kshemankari Mata and Khimaj Mataji ka history क्षेमंकरी माताओं और खीमज माताजी का मंदिर का इतिहास जाने पीछे का रहस्य
भीनमाल ( 24 जुलाई 2023 ) BHINMAL NEWS क्षेमाचर्या क्षेमंकारी देवी जिसे स्थानीय भाषाओं में क्षेमज, खीमज, खींवज आदि नामों से भी पुकारा व जाना जाता है। इस देवी का प्रसिद्ध व प्राचीन मंदिर राजस्थान के BHINMAL भीनमाल कस्बे से लगभग तीन किलोमीटर BHINMAL भीनमाल खारा मार्ग पर स्थित एक डेढ़ सौ फुट ऊँची पहाड़ी की शीर्ष छोटी पर बना हुआ है। मंदिर तक पहुँचने हेतु पक्की सीढियाँ बनी हुई है। BHINMAL भीनमाल की इस देवी को आदि देवी के नाम से भी जाना जाता है। भीनमाल के अतिरिक्त भी इस देवी के कई स्थानों पर प्राचीन मंदिर बने है जिनमें नागौर जिले में डीडवाना से 33 किलोमीटर दूर कठौती गांव में, कोटा बूंदी रेल्वे स्टेशन के नजदीक इंद्रगढ़ में व सिरोही जालोर सीमा पर बसंतपुर नामक जगह पर जोधपुर के पास ओसियां आदि प्रसिद्ध है। सोलंकी राजपूत राजवंश इस देवी की अपनी कुलदेवी के रूप में उपासना करता है|
देवी उपासना करने वाले भक्तों को दृढविश्वास है कि खीमज माता की उपासना करने से माता जल, अग्नि, जंगली जानवरों, शत्रु, भूत-प्रेत आदि से रक्षा करती है और इन कारणों से होने वाले भय का निवारण करती है। इसी तरह के शुभ फल देने के चलते भक्तगण देवी माँ को शंभुकरी भी कहते है। दुर्गा सप्तशती के एक श्लोक अनुसार-“पन्थानाम सुपथारू रक्षेन्मार्ग श्रेमकरी” अर्थात् मार्गों की रक्षा कर पथ को सुपथ बनाने वाली देवी क्षेमकरी देवी दुर्गा का ही अवतार है।
जनश्रुतियों के अनुसार किसी समय उस क्षेत्र में उत्तमौजा नामक एक दैत्य रहता था। जो रात्री के समय बड़ा आतंक मचाता था। राहगीरों को लूटने, मारने के साथ ही वह स्थानीय निवासियों के पशुओं को मार डालता, जलाशयों में मरे हुए मवेशी डालकर पानी दूषित कर देता, पेड़ पौधों को उखाड़ फैंकता, उसके आतंक से क्षेत्रवासी आतंकित थे। उससे मुक्ति पाने हेतु क्षेत्र के निवासी ब्राह्मणों के साथ ऋषि गौतम के आश्रम में सहायता हेतु पहुंचे और उस दैत्य के आतंक से बचाने हेतु ऋषि गौतम से याचना की। ऋषि ने उनकी याचना, प्रार्थना पर सावित्री मंत्र से अग्नि प्रज्ज्वलित की, जिसमें से देवी क्षेमकरी प्रकट हुई। ऋषि गौतम की प्रार्थना पर देवी ने क्षेत्रवासियों को उस दैत्य के आतंक से मुक्ति दिलाने हेतु पहाड़ को उखाड़कर उस दैत्य उत्तमौजा के ऊपर रख दिया। कहा जाता है कि उस दैत्य को वरदान मिला हुआ था वह कि किसी अस्त्र-शस्त्र से नहीं मरेगा। अतः देवी ने उसे पहाड़ के नीचे दबा दिया। लेकिन क्षेत्रवासी इतने से संतुष्ट नहीं थे, उन्हें दैत्य की पहाड़ के नीचे से निकल आने आशंका थी, सो क्षेत्रवासियों ने देवी से प्रार्थना की कि वह उस पर्वत पर बैठ जाये जहाँ वर्तमान में देवी का मंदिर बना हुआ है तथा उस पहाड़ी के नीचे नीचे दैत्य दबा हुआ है।
देवी की प्राचीन प्रतिमा के स्थान पर वर्तमान में जो प्रतिमा लगी है वह 1935 में स्थापित की गई है, जो चार भुजाओं से युक्त है। इन भुजाओं में अमर ज्योति, चक्र, त्रिशूल तथा खांडा धारण किया हुआ है। मंदिर के सामने व पीछे विश्राम शाला बनी हुई है। मंदिर में नगाड़े रखे होने के साथ भारी घंटा लगा है। मंदिर का प्रवेश द्वार मध्यकालीन वास्तुकला से सुसज्जित भव्य व सुन्दर दिखाई देता है। मंदिर में स्थापित देवी प्रतिमा के दार्इं और काला भैरव व गणेश जी तथा बाईं तरफ गोरा भैरूं और अम्बाजी की प्रतिमाएं स्थापित है। आसन पीठ के बीच में सूर्य भगवान विराजित है।
नागौर जिले के डीडवाना से 33 कि.मी. की दूरी पर कठौती गॉव में माता खीमज का एक मंदिर और बना है। यह मंदिर भी एक ऊँचे टीले पर निर्मित है ऐसा माना जाता है कि प्राचीन समय में यहा मंदिर था जो कालांतर में भूमिगत हो गया। वर्तमान मंदिर में माता की मूर्ति के स्तम्भ’ के रूप से मालुम चलता है कि यह मंदिर सन् 935 वर्ष पूर्व निर्मित हुआ था। मंदिर में स्तंभ उत्तकीर्ण माता की मूर्ति चतुर्भुज है। दाहिने हाथ में त्रिशूल एवं खड़ग है, तथा बायें हाथ में कमल एवं मुग्दर है, मूर्ति के पीछे पंचमुखी सर्प का छत्र है तथा त्रिशूल है।
क्षेंमकरी माता का एक मंदिर इंद्रगढ (कोटा-बूंदी ) स्टेशन से 5 मील की दूरी पर भी बना है। यहां पर माता का विशाल मेला लगता है। क्षेंमकरी माता का अन्य मंदिर बसंतपुर के पास पहाडी पर है, बसंतपुर एक प्राचीन स्थान है, जिसका विशेष ऐतिहासिक महत्व है। सिरोही, जालोर और मेवाड की सीमा पर स्थित यह कस्बा पर्वत मालाओ से आवृत्त है। इस मंदिर का निर्माण विक्रम संवत 682 में हुआ था। इस मंदिर का जीर्णोद्वार सिरोही के देवड़ा शासकों द्वारा करवाया गया था। एक मंदिर भीलवाड़ा जिला के राजसमंद में भी है। राजस्थान से बाहर गुजरात के रूपनगर में भी माता का मंदिर होने की जानकारी मिली है।
क्षेमंकरी माताओं और खीमज माताजी का मंदिर स्थापना कैसे हुई जाने -How the temple of Kshemankari Mata and Khimaj Mataji was established?
( 1)
भीनमाल BHINMAL के प्रतिहार शासकों की कुलदेवी हो गई. ऐसी मान्यता है कि कश्मीर के प्रतिहार शासक जग भयंकर कुष्ठ रोग से पीड़ित हो गए. वे तीर्थाटन करते हुए श्रीमाल पाटन लाये गए. जब वे श्रीमाल पाटन के दक्षिण में स्थित नागा बाबा की बगीची में विश्राम कर रहे थे उस समय संयोग से एक कुत्ता नागा बाबा की बगीची की नाड़ी के कीचड़ में लोटपोट होकर राजा के समीप आकर फड़फड़ाया. इससे गीली मिटटी के कुछ कण राजा के पांव पर पड़े तो देखा कि जहाँ-जहाँ कीचड़ गिरा वहां कुष्ठ रोग से मुक्त हो गया.
उस समय उस बावड़ी के कीचड़ से राजा को स्नान कराया गया तो राजा कुष्ठ रोग से मुक्त हो गया और उसकी काया कंचनवत हो गई. उस समय प्रतिहार शासक जग को BHINMAL भीनमाल का शासक स्वीकार कर लिया गया. तब से क्षेमंकरी माता प्रतिहारों की कुलदेवी हो गई, राजा जग ने तालाब का नवनिर्माण करवाया, नगर का विशाल और मजबूत परकोटा बनवाया. बारहवीं शताब्दी में देवड़ा चौहानों ने प्रतिहारों को परास्त कर खदेड़ा तब BHINMAL भीनमाल पर चौहान शासक ही बचे.क्षेमंकरी देवी जिसे स्थानीय भाषाओं में क्षेमज, खीमज, खींवज आदि नामों से भी पुकारा व जाना जाता है. इस देवी का प्रसिद्ध व प्राचीन मंदिर राजस्थान के BHINMAL भीनमाल कस्बे से लगभग तीन किलोमीटर भीनमाल खारा मार्ग पर स्थित एक डेढ़ सौ फुट ऊँची पहाड़ी की शीर्ष छोटी पर बना हुआ है,कहा जाता है कि किसी समय उस क्षेत्र में उत्तमौजा नामक एक दैत्य रहता था. जो रात्री के समय बड़ा आतंक मचाता था. उसके उत्पात से क्षेत्रवासी आतंकित थे. उससे मुक्ति पाने हेतु क्षेत्र के निवासी ब्राह्मणों के साथ ऋषि गौतम के आश्रम में सहायता हेतु पहुंचे और उस दैत्य के आतंक से बचाने हेतु ऋषि गौतम से याचना की. ऋषि ने उनकी याचना, प्रार्थना पर सावित्री मंत्र से अग्नि प्रज्ज्वलित की, जिसमें से देवी क्षेमंकरी प्रकट हुई.
(2)
क्षेमंकरी देवी को स्थानीय भाषाओं में पुकारा जाता है और क्षेमाज, खिमाज, खीनवाज आदि नामों से भी जाना जाता है। राजस्थान के भीनमाल से लगभग तीन किलोमीटर दूर भीनमाल खारा मार्ग पर स्थित 150 फीट ऊंची पहाड़ी की चोटी पर इस देवी का प्रसिद्ध और प्राचीन मंदिर बना हुआ है।
कहा जाता है कि एक समय उस क्षेत्र में उत्तमौजा नाम का एक राक्षस रहता था। जिसने रात में काफी आतंक मचा रखा था। उसकी इस शरारत से क्षेत्र के लोग दहशत में हैं। उससे छुटकारा पाने के लिए, क्षेत्र के निवासी ब्राह्मणों के साथ मदद के लिए ऋषि गौतमी के साधु के पास पहुँचे और ऋवषि गौतमी से उन्हें उस राक्षस के आतंक से बचाने की याचना की। उनके अनुरोध पर, ऋषि ने सावित्री के मंत्र के साथ एक आग जलाई, जिससे देवी क्षेमंकरी प्रकट हुईं।
ऋषि गौतम की प्रार्थना पर, देवी ने पहाड़ को उखाड़ दिया और उस क्षेत्र के लोगों को उस राक्षस के आतंक से मुक्त करने के लिए राक्षस उत्तमौजा के ऊपर रख दिया। कहा जाता है कि दैत्य को यह सौभाग्य प्राप्त था कि वह किसी भी अस्त्र-शस्त्र से नहीं मरेगा। इसलिए देवी ने उसे एक पहाड़ के नीचे दबा दिया। हालाँकि, क्षेत्र के निवासी इससे संतुष्ट नहीं थे, उन्हें डर था कि राक्षस पहाड़ के नीचे से निकलेगा, इसलिए क्षेत्र के निवासियों ने देवी से प्रार्थना की कि वे उस पहाड़ पर बैठ जाएँ जहाँ अब देवी का मंदिर है बनाना। और दुष्टात्मा दबा हुआ उस पहाड़ी के नीचे उतर गया।
देवी की प्राचीन मूर्ति के स्थान पर स्थापित वर्तमान मूर्ति 1935 में स्थापित की गई थी, जिसके चार पंख हैं। इस गोद में अमर ज्योति, चक्र, त्रिशूल और खंड रखा जाता है। मंदिर में ड्रम के साथ एक भारी घंटी रखी जाती है। मध्ययुगीन स्थापत्य कला से सजे मंदिर का प्रवेश द्वार शानदार और सुंदर दिखता है। मंदिर में स्थापित देवी की मूर्ति के दाहिनी ओर काल भैरव और गणेश की मूर्तियां हैं और बाईं ओर गोरा भैरू और अंबाजी की मूर्तियां हैं। सूर्य देव आसन के मध्य में विराजमान हैं। मंदिर के सामने और पीछे एक मनोरंजन विद्यालय है।
मंदिर का स्थान:
यह मंदिर राजस्थान के जालौर जिले के BHINMAL भीनमाल शहर में एक पहाड़ी की चोटी पर जालौर शहर से 72 किलोमीटर दक्षिण में स्थित है ।
खींवज माता का मंदिर :
माता का मंदिर एक ऊँचे टीले पर अवस्थित है ऐसा माना जाता है कि प्राचीन समय में यहा मंदिर था जो कालांतर में भूमिगत हो गया , वर्तमान मंदिर में माता की मूर्ति के स्थम्भ के रूप से मालुम चलता है कि यह मंदिर सन् 135 वर्ष पूर्व निर्मित हुआ था , मंदिर में स्थम्भ उत्तकीर्ण माता की मूर्ति चतुर्भुज है।
माता के दाहिने हाथ में त्रिशूल एवं खडग है , तथा बायें हाथ में कमल एवं मुग्दर है , मूर्ति के पीछे पंचमुखी सर्प का छत्र है , तथा त्रिशूल है , देवी उपासना करने वाले भक्तों को दृढविश्वास है कि खीमज माता की उपासना करने से माता जल, अग्नि, जंगली जानवरों, शत्रु, भूत-प्रेत आदि से रक्षा करती है और इन कारणों से होने वाले भय का निवारण करती है।
इसी तरह के शुभ फल देने के चलते भक्तगण देवी माँ को शंभुकरी भी कहते है। दुर्गा सप्तशती के एक श्लोक अनुसार-“पन्थानाम सुपथारू रक्षेन्मार्ग श्रेमकरी” अर्थात् मार्गों की रक्षा कर पथ को सुपथ बनाने वाली देवी क्षेमकरी देवी दुर्गा का ही अवतार है।
खीमज माता कौन है? (Who is Khimj Mata)
राजस्थान में खीमज माता को खीमजी माता के नाम से भी जाना जाता है। खीमजी माता राजस्थान की प्रसिद्ध देवी माता हैं और उन्हें राजस्थान के विभिन्न हिस्सों में पूजा जाती है। खीमजी माता को मां खीमजी देवी के रूप में भी जाना जाता है और उनकी पूजा का महत्वपूर्ण स्थान राजस्थानी जनता के धार्मिक और सांस्कृतिक जीवन में है। खीमजी माता के मंदिर राजस्थान के शहरों और गांवों में पाए जाते हैं और उनकी पूजा विशेष आंगनबाड़ी उत्सवों में की जाती है।
खीमजी माता को राजस्थानी जनता में विशेष आदर और प्रेम के साथ पूजा जाता है और उन्हें धन, सुख, समृद्धि और प्रगति की देवी माना जाता है। खीमजी माता का धार्मिक महत्व राजस्थान की स्थानीय सांस्कृतिक परंपराओं और लोक देवताओं के साथ जुड़ा हुआ है।
जालौर में कौन सी माता का मंदिर है? (Which mother's temple is there in Jalore)
जालौर शहर भारत के राजस्थान राज्य में स्थित है। जालौर में कई माता के मंदिर हैं, लेकिन सबसे प्रमुख मंदिर माता जवालाजी का है। यह मंदिर जालौर के किले के पास स्थित है और जालौर का प्रमुख धार्मिक और पर्यटन स्थल है। माता जवालाजी को समर्पित यह मंदिर भगवानी जवालाजी की महाशक्तियों का प्रतीक है और इसे श्रद्धालुओं के बीच बहुत लोकप्रिय माना जाता है।
भीनमाल क्यों प्रसिद्ध है? (Why is Bhinmal famous)
भीनमाल भारत के राजस्थान राज्य में स्थित एक प्रसिद्ध पर्यटन स्थल है। यह स्थान अपनी प्राकृतिक सौंदर्य, ऐतिहासिक महत्व और धार्मिक महत्व के लिए प्रसिद्ध है। यहां कुछ मुख्य कारण नीचे दिए गए हैं:
ऐतिहासिक महत्व: भीनमाल BHINMAL एक प्राचीन नगर है जिसका इतिहास 6वीं से 7वीं शताब्दी तक जाता है। यह स्थान गुप्त युग में राजस्थान की राजधानी रहा है और विभिन्न राजपूत राजवंशों का गढ़ था।
माता जवालाजी मंदिर: BHINMAL भीनमाल में माता जवालाजी का मंदिर है, जो भारत में अत्यंत प्रसिद्ध है। यह मंदिर माता जवालाजी के मात्र तीन मंदिरों में से एक है, दूसरे दो मंदिर हिमाचल प्रदेश में स्थित हैं। माता जवालाजी को यहां मास्टर देवी के रूप में पूजा जाता है और इसे लाखों श्रद्धालु आने के लिए जानते हैं।
प्राकृतिक सौंदर्य: भीनमाल BHINMAL एक प्राकृतिक आश्रय है और पहाड़ी इलाकों के बीच विस्तृत और प्रशांत वातावरण प्रदान करता है।
राजस्थान के जालोर जिले में भीनमाल BHINMAL नगर के पास क्षेमंकरी पहाड़ी पर क्षेमकारी माता का मंदिर है।
क्षेमकरी माताजी मंदिर परिक्रमा 25 जुलाई से बड़ी संख्या में पहुंचेंगे श्रद्धालु,
BHINMAL भीनमाल में क्षेमकरी माताजी मंदिर के चारों ओर की 14वीं परिक्रमा 25 जुलाई को आयोजित की जाएगी। परिक्रमा में शिवगंज सहित आसपास के गांवों से भारी संख्या में भक्तगण भाग लेंगे। भीरु ग्रुप के सचिव भंवरलाल सोलंकी ने बताया कि क्षेमकरी माता मंदिर परिसर से 24 जुलाई को शाम 7 बजे से सभी भक्त BHINMAL भीनमाल के लिए रवाना होंगे। जहां रात को विश्राम के बाद 25 जुलाई को सुबह 7 बजे परिक्रमा क्षेमकरी माताजी मंदिर के चारो ओर की परिक्रमा की जाएगी। भक्त सरसो देवी द्वारा आयोजित होने वाली 14वीं परिक्रमा को लेकर बैठक आयोजित की गई। बैठक में विभिन्न प्रकार की जिम्मेदारियां सौंपी गई।
खीमज माता की आरती (Aarti of Khimj Mata)खीमज माता की आरती निम्नलिखित रूप में हो सकती है:
आरती खीमज माता की करती जोगनी जाग दुःख दरिद्रता मिटावे देवी शरण लाग॥
जय खीमज माता, जय खीमज माता त्रिभुवन विजय करिणी, मान वरदाता॥
आरती उठे खीमज माता की प्रेम भक्ति सहित जो निश्चय से चरणों में धरे उनका हर कष्ट मिटाता॥
जय खीमज माता, जय खीमज माता त्रिभुवन विजय करिणी, मान वरदाता॥
दीपक जले वीराजे खीमजी का दिल में सुख समाता भक्ति भाव से चढ़ती जाये देवी को विश्राम दिलाता॥
जय खीमज माता, जय खीमज माता त्रिभुवन विजय करिणी, मान वरदाता॥
सोने चांदी की मूरत खीमजी की आरती उठाई जाए भक्ति जनों की मनोकामना पूरी कर दिखलाए॥
जय खीमज माता, जय खीमज माता त्रिभुवन विजय करिणी, मान वरदाता॥
आरती करते जोगनी खीमजी की जग में खुशहाली आए अनन्य भक्ति और निरंतर पूजा जनों को सुख दिलाए॥
जय खीमज माता, जय खीमज माता ||
JALORE NEWS
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