चैत्र नवरात्रा विशेष : सर सुंधा, धड़ कोटड़ा, पगला पिछोला री पाल। आपो आप विराजौ आहोर में, गले फूलों री माल
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चैत्र नवरात्रा विशेष : सर सुंधा, धड़ कोटड़ा, पगला पिछोला री पाल। आपो आप विराजौ आहोर में, गले फूलों री माल
आहोर ( 15 अक्टूबर 2023 ) नमस्कार साथियों आज हम एक बार फिर से जालौर से जुड़े इतिहास से संबंधित जानकारी के साथ नया वीडियो लेकर आया हूं जालोर के इतिहास से जुड़ें कुछ किस्से हैं । अगर आप आहोर के रहने वाले हैं तो यहाँ आपके लिए खास संबंधित होगा। यहां वीडियो शुरू करने से पहले अगर आप हमारे चैनल पर अभी नया जुड़े है तो आप अभी चैनल को लाइक और शेयर करे देवें । जैसे कि आप सभी को मालूम है कि हमारे देश में अनेकों मंदिर हैं जहां देवी -देवताओं की प्रथम स्वरूप विधि व्रत पूजा अर्चना करने का महत्व है। तो वहीं कई ऐसे भी मंदिर हैं जहां पूजा अर्चना से जुडी विभिन्न प्रकार की मान्यताएं भी अपना स्थान रखती है, दरअसल हम बात कर रहे हैं, चामुण्डा माता मंदिर की जिससे जुड़ी मान्यता बेहद अनोखी है। जी हां,चामुण्डा माता मंदिर इस मंदिर में माता के सर सुंधा, धड़ कोटड़ा, पगला पिछोला री पाल। आपो आप विराजौ आहोर में, गले फूलों री माल की पुजा की जाती है।
अब जानते हैं इसके बारे में आहोर कस्बे के दक्षिण में विराजित चामुंडा माता पूरे कस्बे की रक्षा करती हुई प्रतीत होती है। कस्बे की अधिष्ठात्री देवी मां चामुंडा के बारे में पूरे मारवाड़ में सर सुंधा, धड़ कोटड़ा, पगला पिछोला री पाल। आपो आप विराजौ आहोर में, गले फूलों री माल यह दोहा जन-जन की जुबान पर है। चामुंडा माता का पूरा शरीर कस्बे में स्थित ऐतिहासिक मंदिर में विराजित है।
इस दोहे के अनुसार माताजी का सिर का भाग सुंधा पर्वत पर, धड़ का भाग कोटड़ा में, मां के चरण पिछौला में स्थित है। आहोर में विराजित पूरे शरीर के बारे में तो कोई मतभेद नहीं है। हालांकि कोटड़ा व पिछौला के बारे में मतान्तर है। प्रत्येक नवरात्रि में माता के दर्शनों के लिए दर्शनार्थियों की भारी भीड़ उमडती है। आहोर माताजी के परचे भी खूब प्रसिद्घ है। इस मंदिर की स्थापना सैकड़ों वर्षों पूर्व मानी गई है।
कस्बे के संस्थापक ठाकुर वैरिदास को मानते है। उन्होंने ही उस समय इस विशाल आहोर नगर की स्थापना छोटे से गांव आवरी के रूप में की थी। कस्बे की स्थापना के बाद एक समय तत्कालीन ठाकुर अनारसिंह को एक रात्रि में देवी ने स्वप्र में आकर कहा कि मैं तुम पर प्रसन्न हूं तथा शीघ्र ही मेरी उत्पत्ति होगी। जहां मेरी मूर्ति मिले वहां से एक बैलगाड़ी मेरी मूर्ति विराजमान कर गाजे-बाजे के साथ रवाना होना तथा जहां जाकर बैलगाडी अपने आप रूक जाए वही मुझे स्थापित कर मंदिर बनाना व पूजा-अर्चना करना। इस स्वप्र आने के दृष्टांत के दूसरे दिन सुबह ही कस्बे के डाकीनाड़ा तालाब में एक कुम्हार मिट्टी की खुदाई कर रहा था। अचानक खुदाई के दौरान उसका फावड़ा किसी पत्थर से टकराने की आवाज आई साथ ही मां के चिल्लाने की आवाज भी आई। इस कुम्हार ने पाया कि एक मूर्ति से उसका फावड़ा टकराया है। जिससे उस मूर्ति के गर्दन पर घाव होने से गर्दन झुक गई थी।
इस कुम्हार ने इसी वक्त इसकी सूचना गांव के ठाकुर अनारसिंह को दी। ठाकुर अनारसिंह देवी के परम भक्त थे। सूचना मिलते ही वे ग्रामीणों के साथ खुदाई स्थल पर पहुंचे तथा बैलगाडी पर देवी की मूर्ति विराजित कर बैलगाडी को गाजे-बाजे के साथ रवाना किया। जहां बैलगाडी रूकी व बैल टस से मस नहीं होने लगे उस स्थान पर देवी की मूर्ति विराजित कर भव्य मंदिर का निर्माण करवाया तथा मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा करवाई। इस मंदिर की स्थापत्य कला आज भी अपने आप में नायाब है। मां चामुंडा के आशीर्वाद से यह कस्बा खूब रोशन हुआ। ग्रामीण माताजी के परचे से ही सैकडों वर्षों तक होली के दूसरे दिन पत्थर मार होली भाटागैर खेलते रहे।
इन्ही परचों के कारण इस मंदिर में आने वाले प्रत्येक भक्त अपना शीश नवाकर खुशहाली की कामनाएं करता है। आसोज नवरात्रि के दौरान नौ दिनों तक मंदिर प्रांगण में महोत्सव का आयोजन किया जाता है। पहले दिन माता चामुण्डा माता की पूजा अर्चना किया गया। नवरात्र में आराधक माता के नौ अलग-अलग रूपों का पूजन कर खुशहाली की कामना की जाएगी । वहीं माता के मंदिरों में भक्तों का दिनभर तांता लगा रहा।
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कई जगह सजाए गरबा पांडाल
नवरात्र महोत्सव को लेकर शहर के साथ गांवों में गरबा पांडाल सजाए गए हैं। यहां माता का सुबह-शाम पूजन करने के साथ शाम को माता की भक्ति के गीतों पर भक्त डांडियां रास करेंगे। माता की प्रतिमाएं स्थापित करने के लिए रविवार सुबह से शहर के चौराहों व सड़कों के किनारे सजी माता की वही चामुण्डायै माता मन्दिर आहोर में प्रांगण भी सजा गया है। यहाँ आज से महिलाओं, बच्चों, लड़की सहित गरबा खेलें जाएगा और दर्शन करने के लिए जिसे देखने के लिए हजारों श्रद्धालुओं पहुंचेंगे।
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