जालोर में फागोत्सव का हुआ आगाज: होली महोत्सव को लेकर रोपणी का रोपा डांडा पटवारी संजय कुमार - JALORE NEWS
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एक माह बाद मनाया जाएगी होली दहन कार्यक्रम 24 मार्च को
जालोर ( 25 फरवरी 2024 ) हिन्दू धर्म में होली का त्योहार एक प्रमुख त्योहार है. देशभर में होली दहन से एक महीने पहले होली का डांडा रोपने की परंपरा है. ऐसे में राजस्थान के जालौर में माघ मास की पूर्णिमा को होली का डंडा रोप दिया गया. हालांकि, बहुत सी जगह यह डांडा होलिका दहन के एक दिन पहले रोपा जाता है, जबकि असल में यह डांडा होली से ठीक एक महीने पहले ‘माघ पूर्णिमा’ को रोपा जाता है.
होली पर्व को लेकर माघ मास के अंत में हर वर्ष की भांति इस वर्ष भी होली पावन पर्व से 1 माह पूर्व जालौर शहर के होलिका दहन स्थल पर रोपणी का डंडा रोपा गया। वहीं इस वर्ष भी होली दिनाक 24 मार्च 2024 को मनाया जाएगी । बड़ी धुम- धमाके साथ में मनाया जाएगी।
जालोर शहर के भक्त प्रह्लाद चौक में शनिवार रात 9 बजे होली का डांडा रोपा गया। भक्त प्रह्लाद सेवा समिति के साथ पटवारी ढोल नगाड़ों के साथ जुलूस के रूप में भक्त प्रह्लाद चौक पहुंचे। जहां पंडित महेशचन्द्र दवे के द्वारा मन्त्रोच्चार के बीच पटवारी संजय कुमार व सेवा समिति के द्वारा रोपण स्थापित की गई। एक माह बाद इसी जगह होली दहन किया जाएगा। आज से फागोत्सव की शुरुआत के साथ ही मंदिरों व गांवों में होली के गीतों की धुन सनाई देगी।
जालोर के सूरजपोल के बाहर पटवार भवन से भक्त प्रह्लाद सेवा समिति के साथ जालोर पटवारी संजय कुमार ढोल नगाड़ों के साथ रवाना होकर गांधी चौक, सदर बाजार, घांचीयों की पिलानी व बड़ी पोल होते हुए भक्त प्रह्लाद चौक पहुंचे।
जहां मन्त्रोच्चार के बीच रोपणी व प्रह्लाद चौक की पूजा कर पटवारी के द्वारा रोपणी का डांडा रोपा गया। जिसके साथ फागोत्सव की शुरुआत हो जाती है। एक माह तक प्रतिदिन मंदिरों व गांवों में होली गीत व संग की थाप पर गैर महोत्सव का आयोजन होंगे।
इस दौरान खसाराम सांखला, सादुलाराम घांची, मकसा मेवाडा, हिरालाल घांची, मोहनलाल घांची, अम्बालाल माली, धीरज सांखला, मोहनलाल प्रजापत, हरीश सोनी, जोगाराम घांची, मुकेश सांखला व गमनाराम माली सहित कई शहरवासी मौजूद रहे।
इनका कहना है कि
जालौर में होली का डांडा भक्त प्रहलाद चौक पर रोपा जाता है मंदिरों में धार्मिक संस्थाओं गांवों-शहरों में फागोत्सव शुरू हो जाता है. फाल्गुन के साथ मंदिरों में श्रद्धालु अबीर, गुलाल व फूलों के साथ ठाकुरजी के संग होली खेलना शुरू कर देते हैं, जो पूरे महीने चलता है. मंदिरों में भजन कीर्तन के कार्यक्रम शुरू हो जाते है. पटवारी संजय कुमार बताते हैं कि यह डांडा भक्त प्रहलाद का प्रतीक होता है, होलिका दहन के दौरान इसे सुरक्षित निकाल लिया जाता है. यह कार्यक्रम होली के 1 महीने पहले किया जाता है और एक महीने तक बहुत धूमधाम से इस त्यौहार को मानते हैं और बहुत ही हंसी मजाक का माहौल पूरे 1 महीने तक रहता है.
इस पौधे का होता है डंडा पटवारी संजय कुमार बताता कि होली के त्यौहार का पहला काम होली का डांडा चौराहे पर गाड़ना होता है. होली का डंडा एक प्रकार का पौधा होता है, जिसे सेम का पौधा कहते हैं. हालांकि, कई जगहों पर एक स्थान पर दो डांडे स्थापित किए जाते हैं, जिनमें से एक डांडा होलिका का प्रतीक तो दूसरा डांडा प्रहलाद का प्रतीक माना जाता है. इसके बाद इन डंडों को गंगाजल से शुद्ध करने के बाद इन डंडों के आस-पास गोबर के उपले, लकड़ियां, घास और जलाने वाली और चीजें भी इकट्ठा की जाती है और अंत में होलिका दहन वाले दिन उसे जला दिया जाता है.
डांडा रोपण की परंपरा
होली की शुरूआत के साथ ही डांडा रोपण की परंपरा शुरू हुई थी। (Holi ka Danda 2024) होली के एक महीने पहले इसकी शुरुआत होती है। एक महीने बाद होली का दहलन और धुलंडी का त्योहार मनाया जाता है। इस बार फाल्गुन माह की शुरूआत 25 फरवरी से होगी और प्रदेश के सभी मंदिरों में श्रद्धालु गुलाल व फूलों के साथ ठाकुरजी के संग होली खेलेंगे और भजन कीर्तन करेंगे।
डांडा प्रहलाद का प्रतीक
परम्पनुसार होलिका दहन वाले स्थान पर डांडा रोपा जाता है। होलिका दहन वाले स्थान पर डांडा रोपा जाता है और इसे भक्त प्रहलाद का प्रतीक मानते है। (Holi ka Danda 2024) होलिका दहन के दौरान इसे सुरक्षित निकालने का प्रयास किया जाता है।
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