History of Sivana Fort खिलजी और अकबर तक ने यहां खाई थी मात, वीरांगनाओं ने किया था जौहर
![]() |
Even-Khilji-and-Akbar-were-defeated-here-the-heroines-did-Jauhar |
History of Sivana Fort खिलजी और अकबर तक ने यहां खाई थी मात, वीरांगनाओं ने किया था जौहर
जालोर ( 11 जुलाई 2023 ) Glorious History of Garh Siwana Fort राजस्थान के रणबांकुरों के साथ ही यहां की वीरांगनाओं की गौरवगाथा से भी इतिहास भरा हुआ है। आरावली की पर्वतमाला में बसे गढ़ सिवाणा किले का गौरवमय इतिहास है। यह बाड़मेर जिले का ऐतिहासिक किला है,
जो गढ़ सिवाना के पर्वत शिखरों के मध्य अवस्थित है। सिवाना के इस प्राचीन दुर्ग का निर्माण वीरनारायण परमार ने दसवीं शताब्दी में करवाया था। वह प्रतापी परमार शासक राज भोज का पुत्र था। उस समय परमार बहुत शक्तिशाली थे और उनका एक विशाल क्षेत्र पर आधिपत्य था,
जिसमें मालवा, चंद्रावती, जालोर,किराड़ू, आबू सहित अनेक प्रदेश शामिल थे।
तदंतर सिवाना जालोर के सोनगरा चौहानों के अधिकार में आ गया। ये सोनगरा बहुत वीर और प्रतापी हुए तथा इन्होंने ऐबक और इल्तुतमिश जैसे शक्तिशाली गुलाम वंशी सुल्तानों का सफलतापूर्वक प्रतिरोध किया और अपनी स्वतंत्रता अक्षुण्ण बनाए रखी,
लेकिन सिवाना को सबसे प्रबल चुनौती मिली अलाउद्दीन खिलजी के आक्रमण के समय सिवाना पर अधिकार सातलदेव सोनगरा चौहान का था, जो जालोर के शासक कान्हड़देव का भतीजा था।
सिवाणा पर अलाउद्दीन की सेना का पहला आक्रमण 1305 ई. में हुआ। तब वीर सातल और सोम (संभवतः उसका पुत्र सोमेश्वर) ने कान्हड़देव की सहायता से खिलजी सेना का डटकर मुकाबला किया। विजय की कोई आशा न देखकर खिलजी की सेना को घेरा उठाने के लिए बाध्य होना पड़ा। राजपूतों की इस प्रारंभिक सफलता और अपनी पराजय के क्षुब्ध होकर
अलाउद्दीन खिलजी ने 1310 ई. के लगभग स्वयं एक विशाल सेना लेकर सिवाना पर चढ़ाई की और दुर्ग का घेरा। सातल देव ने बड़ी वीरता के साथ उनका मुकाबला किया तथा शत्रु शिविरों पर छापामार आक्रमणों के साथ किले पर से ढेंकुली यंत्रों के द्वारा निरंतर पत्थर बरसाने और शत्रु सेना के हौसले पस्त कर दिए, लेकिन इस बार अलाउद्दीन सिवाना पर अधिकार करने के लिए दृढ़प्रतिज्ञ था, अतः उसने हरसंभव उपाय का आश्रय लिया। उसने एक विशाल और ऊंची पाशीब (चबूतरा) बनाई, जिसके द्वारा खिलजी सेना दुर्ग तक पहुंचने में सफल हो गई। अलाउद्दीन ने वहां के प्रमुख पेयजल स्रोत भोडेलाव तालाब को गोमांस से दूषित करवा दिया। कहा जाता है कि इसमें पंवार नामक व्यक्ति ने विश्वासघात किया। दुर्ग की रक्षा का कोई उपाय न देख वीर सातल सोम सहित अन्य क्षत्रिय योद्धा केसरिया वस्त्र धारण कर शत्रु सेना पर टूट पड़े तथा वीर गति को प्राप्त हुए। 23वीं उल अव्वल मंगलवार को खिलजी सैनिकों ने सातल देव का क्षत-विक्षत शव अलाउद्दीन के सामने प्रस्तुत किया, जिसने दुर्ग को खैराबाद का नाम दिया। लेकिन अलाउदीन खिलजी की मृत्यु के साथ ही सिवाणा पर उसके वंश का आधिपत्य समाप्त हो गया।
तत्पश्चात सिवाना पर राव मल्लीनाथ राठौड़ के भाई जैतमाल और उसके वंशजों का आधिपत्य रहा। सन् 1538 में राव मालदेव ने सिवाना के तत्कालीन आधिपति राठौड़ डूंगरसी को पराजित कर इस दुर्ग पर अपना अधिकार कर लिया। मालदेव के आधिपत्य का सूचक एक शिलालेख वहां किले के भीतर आज भी विद्यमान है। राव मालदेव ने गिरी सुमेल के युद्ध के बाद शेरशाह की सेना द्वारा पीछा किए जाने पर सिवाना किले में आश्रय लिया था तदंतर उनके यशस्वी पुत्र चंद्रसेन ने सिवाना के किले को कंेद्र बनाकर शक्तिशाली मुगल बादशाह अकबर की सेनाओं का लंबे अरसे तक प्रतिरोध किया। मुगल आधिपत्य में आने के बाद अकबर ने राव मालदेव के एक पुत्र रायमल को सिवाना दिया,
लेकिन कुछ अरसे बाद ही रायमल की मृत्यु हो गई और सिवाना उसके पुत्र कल्याणदास (कल्ला) के अधिकार में आ गया।
इस राठौड़ वीर कल्ला रायमलोत की वीरता और पराक्रम से सिवाना को जो प्रसिद्धि और गौरव मिला, उससे इतिहास के पृष्ठ आलोकित है। उक्त अवसर उस समय उपस्थित हुआ, जब बादशाह अकबर कल्ला राठौड़ से नाराज हो गया और उसने जोधपुर के मोटा राजा उदयसिंह को आदेश दिया वह कल्ला को हटाकर सिवाना पर अधिकार कर ले। अकबर की नाराजगी का मामूली सी बात पर अप्रसन्न होकर बादशाह के एक छोटे मनसबदार को मार दिया था। वीर विनेद में इसका कारण दूसरा बताया गया है। उक्त ग्रंथ के अनुसार मोटा राजा उदयसिंह ने शहजादे सलीम के साथ अपनी पुत्री का विवाह कर दिया था। कल्ला इस विवाह संबंध को अनुचित मानता था और उदयसिंह से झगड़ा करता था। वास्तविक कारण चाहे जो भी रहा हो मोटा राजा उदयसिंह ने शाही सेना की सहायता से सिवाना पर आक्रमण किया। कल्ला राठौड़ ने स्वाभिमान और वीरता को उत्कृष्ट उदाहरण प्रस्तुत करते हुए मोटा राजा उदयसिंह की सेना के साथ भीषण युद्ध किया और लड़ते हुए वीरगति प्राप्त की। कल्ला की प|ी हाड़ी रानी (बूंदी के राव सुरजन हाड़ा की पुत्री) ने दुर्ग की ललनाओं के साथ जौहर का अनुष्ठान किया। कल्ला रायमलोत की वीरता और पराक्रम से संबंधित दोहे प्रसिद्ध हैं।
बालोतरा. सिवाना दुर्ग में बना भांडेलाव तालाब।
शाका एवं जौहर
सिवाना का पहला साका 1310 में हुआ। जब वीर सातल देव और (सोमेश्वर) ने अलाउद्दीन खिलजी के भीषण आक्रमण का प्रतिरोध करते हुए प्राणोत्सर्ग किया तथा वीरांगनाओं ने जौहर की ज्वाला प्रज्वलित की। विजयी के पश्चात दुर्ग का नाम खैराबाद रखा गया। दूसरा शाका अकबर के शासन काल में हुआ। जब मोटा राजा उदयसिंह ने शाही सेना की सहायता से सिवाना दुर्ग पर आक्रमण किया, वहां के स्वाभिमानी शासक वीर कल्ला राठौड़ ने भीषण युद्घ करते हुए वीरगति पाई और रानियों ने जौहर किया था।
अब शहरवासी मनाते हैं उत्सव
सिवाना के संस्थापक वीर नारायण परमार व शिव नारायण परमार थे। ये दोनों सगे भाई थे और राजा भोज के पुत्र थे। इन्होंने ने विक्रम संवत 1077 में सिवाणा की स्थापना कि थी। और वीर नारायण परमार सिवाना के प्रथम शासक थे। इसलिए सिवाना क्षेत्र के ग्रामीण पौष शुक्ला षष्ठमी को सिवाना उत्सव के रूप में मनाते है।
छल से जीता था खिलजी
अलाउद्दीन खिलजी की सेना ने जालोर और सिवाना पर आक्रमण कर दोनों को जीता था। क्षत्राणियों ने जौहर किया। यहां के योद्धा वीरता से लड़े और शहीद हो गए। गढ़ सिवाना मारवाड़ में वीरता का बड़ा प्रमाण है। खिलजी ने यहां कूटनीति से जीत दर्ज की थी। उसको लंबे समय तक किले के बाहर घेरा डालना पड़ा और फिर छल से कुछ लोगों को अपने साथ कर जीता था। -
इतिहास में दर्ज जैसलमेर के ढाई साके
कलात्मक सुन्दरता व गौरवपूर्ण संस्कृति के साक्षी जैसलमेर के इतिहास में ढाई साकों का उल्लेख है। जैसलमेर की स्थापना मध्यकाल के शुरूआत में 1178 ई. में यदुवंशी भाटी के वंशज रावल जैसल ने की थी। उनके वंशजों ने वंश क्रम के अनुसार लगातार 770 वर्ष सतत् शासन किया। जानकारों के मुताबिक प्रथम साका अलाउद्दीन खिलजी के आक्रमण के समय हुआ था। तब भाटी शासक रावल मूलराज, कुंवर रतनसी सहित बड़ी संख्या में वीर योद्धाओं ने असिधारा तीर्थ में स्नान किया और महिलाओं ने जौहर का अनुष्ठान किया। दूसरा साका फिरोज शाह तुगलक के शासन के शुरूआती वर्षों में होना बताया जाता है। जानकारों के अनुसार रावल दूदा, त्रिलोकसी व अन्य भाटी सरदारों और योद्धाओं ने दुश्मन की सेना का पराक्रम के साथ सामना किया, लेकिन युद्ध में वीर गति प्राप्त की। इस दौरान दुर्ग में वीरांगनाओं ने जौहर किया। इतिहासकारों के अनुसार तृतीय साके को आधा साका ही माना जाता है। 1550 ईस्वी में राव लूणकरण के शासन काल में कंधार के शासक अमीर अली का आक्रमण हुआ था। तीसरे साके को अद्र्ध साका इसलिए माना जाता है कि इस दौरान वीरों ने केसरिया बाना पहनकर युद्ध तो किया लेकिन जौहर नहीं हुआ। जैसलमेर में ढाई साके राजस्थान के जौहर व साके में उल्लेखित हैं।
प्रथम जौहर खिलजी और दूसरा अकबर के समय
सिवाना गढ़ पर 1308 में अलाउद्दीन खिलजी ने आक्रमण किया और इतिहासकार मानते हैं कि लंबे समय तक गढ़ के घेरा डालकर बैठे रहे अलाउद्दीन से यहां के परमार शासक ने डटकर मुकाबला किया। खिलजी ने सिवाना को जीतकर इसका नाम खैराबाद कर दिया था। उस समय पहला जौहर हुआ। खिलजी के सेनापति कमालुद्दीन ने यहां शासक सातनदेव के काल में किले को घेर लिया। इतिहासकार मोहनलाल गुप्ता की पुस्तक में तो उल्लेख है कि 1310 में खिलजी स्वयं यहां आया था। उसने करीब एक साल के घेरे बाद सिवाना गढ़ जीता।
कल्ला की महारानी, बहन और क्षत्राणियों ने किया जौहर
भीमगोड़ा मंदिर
Siwana Fort “The Emergency Capital of MARWAR”
JALORE NEWS
आपके पास में भी अगर कोई इतिहास से जुड़ी जानकारी है तो हमें भेजा सकता है इस नंबर पर
एक टिप्पणी भेजें