Installation of Jetaran history जेतारण की स्थापना,एव संस्थापक किसने की और कब किया गया जानें इतिहास
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Installation of Jetaran जेतारण की स्थापना,एव संस्थापक किसने की और कब किया गया जानें इतिहास
जेतारण ( 10 जुलाई 2023 ) Installation of Jetaran स्थापना जैतारण प्राचीन नगर राजस्थान के मानचित्र के मध्य में लगभग 70 डिग्री पूर्वी देशांतर और 26 पॉइंट 7 डिग्री उत्तरी अक्षांश रेखा पर जिला मुख्यालय पाली से 110 किलोमीटर सूर्य नगरी जोधपुर से 105 किलोमीटर पृथ्वीराज चौहान की राजधानी अजमेर शहर से 110 किलोमीटर एवं मीरा नगरी मेड़ता से 55 किलोमीटर की दूरी पर है इस नगर के पूर्व दिशा में गांव निम्बाज पर पश्चिम दिशा में गांव गरनिया 9 किलोमीटर पर उत्तर दिशा में गांव बलूंदा 12 किलोमीटर पर एवं दक्षिण दिशा में गांव आगेवा 6 किलोमीटर पर स्थित है।
जेतारण पर सिंधल राठौड़ के अधीकार विक्रम संवत 1343 में जैती नाम की गुजरी की झोपड़ी एवं गायों का बाड़ा ( गोर) था जेती के पिता का नाम श्री धोकलराम गुर्जर था श्री धोकल राम गुर्जर के दो लड़कियों का नाम जैति एवं खेती था धोकल रामजी का गांव रतनपुरा था जेती गुजरी के गांव के बारे में से मोर्ने चोर गाय चुरा कर ले गए उसी समय सिंध के पांच शहजादे जो आपस में सगे भाई थे पाली के पहलवानों से युद्ध में हराकर जंगल में भटकते हुए खेती गुजरी के बारे में पहुंच गए जेती गुजरी ने 5 शहजादो को शरण दीतब पांचों भाइयों ने जैती को अपनी धर्म बहन बना लिया एवं जैती की गायों को ढूंढने के लिए जंगल में निकल गए गिरी गांव के पास पहुंचकर मोर ने चोरों से युद्ध किया बड़ा भाई सईद अली युद्ध में मारा गया दूसरा भाई सईद मिर्जा घायल अवस्था में जैतारण व फुल मालगांव के बीच मर गया
उस जगह की आज भी मिर्जापुर की नाडी के नाम से जाना जाता है वहां पर सईद मिर्जा की मजार बनी हुई है उसके चारों और परकोटा खींचा हुआ है अतः प्रतिवर्ष मेला लगता है बाकी तीनों भाई घायल अवस्था में जैती की गाय सुपुर्द कर दी वहीं अपने प्राण त्याग दिए उनके बलिदान को देखकर जैती ने भी जिंदा ही समाधि लेने का निश्चय किया ।
उसी समय भाकर सिंह सिंधल राठौड़ उधर से गुजर रहे थे यहां दो नदियों का संगम देखकर जंगल में नगर बसाने का निश्चय किया और जैती गुजरी से इजाजत मांगी तब जैत्ती ने अपनी गायै भाकर सिह सिधल को दे दी और कहा कि इस गांव का नाम जैतारण रखना सवत 1354 में भाकर सिंह सिंघल ने जैतारण नगर की स्थापना की उसके बाद भाकर सिंह सिंघल की पांच पिडियो ने राज्य किया जैतारण में सिधल राठौड़ वंश का राज्य भाकर सिंह सिंधल की पांचवी पीढ़ी में खिवा(खीदा)सिंदल का जैतारण में आधिपत्य था। इनके पास 150 गांव की जागीरी थी ।सिंदल खीवा(खीदा) राव उदा सुजावत के मासा जी थे। |
सिंदल खीवा ने राव उदा को लाटोती गांव इनायत किया था। योगीराज रण धवल (रीघ रावल)के आशीर्वाद से धोखे से सिंदल खीवा से विक्रम संवत 1536 में युद्ध करके जैतारण छीन लिया। जेतारण के सिन्धल राठौडो की बारात मेवाड मे गई थी
पिछे से राव उदा जीने जोधपुर से सेना बुलाकर जेतारण पर धोखे से आक्रमण कर कब्जा कर लिया राव उदा को सिंदल खीदा की पत्नी ने श्राप दिया की तुझे कुष्ठ रोग होगा और जेतारण पर तुम्हारा राज नही रहेगा बाद में राव उदय का तिलक हुआ कुछ समय बाद राव उदा का पुत्र रतन सिंह का योगीराज से तालाब पीरनाडी का नाम रतन सागर रखने की चर्चा की बहस हो गयी। योगीराज ने क्रोध में रतन सिह को श्राप दिया की जैतारण मे तेरा राज नहीं रहेगा। जैतारण से उदावत राठौड़ों का राज चला गया। बाद में इसके आसपास बसने लगे।
इतिहास के अनुसार
यहां दो नदियों का संगम देखकर जंगल में नगर बसाने का निश्चय किया और जैती गुजरी से इजाजत मांगी तब जैत्ती ने अपनी गायै भाकर सिह सिधल को दे दी और कहा कि इस गांव का नाम जैतारण रखना सवत 1354 में भाकर सिंह सिंघल ने जैतारण नगर की स्थापना की उसके बाद बाकर सिंह सिंघल की पांच पिडियो ने राज्य किया जैतारण में सिधल राठौड़ वंश का राज्य भाकर सिंह सिंधल की पांचवी पीढ़ी में खिवाजी सिंदल का जैतारण में आधिपत्य था इतिहास जोधपुर नगर के निर्माता एवं मरुधराधीश राव जोधा जी राठौड़ के निधन के बाद आप की राजगद्दी पर राव सूजा जी आरुढ हुए इन्हीं राव सुजा जी कि तीसरे पुत्र उद्धव जी जो कि राव सूजा जी की तीसरी रानी मांगलिया नी से उदय जी प्रांगण जी एवं सांगा जी नेजन्मलिया राव सूजा जी ने उदय जी को आदेश दिया कि जैतारण के राजा खिवा जी सिंदल से बलपूर्वक राज्य छीन कर ले लो ऊदा जी ने अपने मासा खिवा जी को मारकर राज्य लेने से इंकार कर दिया
उनसे जाकर मिले कुछ दिन जैतारण रहे तथा खिवा जी ने ऊदा जी का स्वागत किया बाद में खिवा जी ने हाथ खर्च के लिए गांव लोटोती दिया उदा जी लोटोती में रहकर अपने पिता के नाम से सुजा सागर तालाब बनवाया उस समय ग्राम निम्बोल में वचन सिद्ध योगी राज रिदरावल जी रहते थे उन्हें लोग गूदड बाबा भी कहते थे ऊदा जी योगीराज की खूब सेवा की एवं उनके परम भक्त बन गए यहां तक कि प्रतिदिन ऊदाजी लोटोती से निम्बोल जाकर योगीराज के दर्शन करने के बाद ही भोजन किया करते थे योगीराज विद राहुल जी आघात भक्ति से प्रसन्न होकर उदाजी को कहा कि तुम्हें जैतारण का राज्य दिया एक बार तो उदाजी अपने मासाजी को मारकर राज्य लेने का घिनौना कार्य नहीं करना चाहते थे।
योगीराज के वचन एवं उनके डर से ऊदा जी से युद्ध किया जैतारण पर अपना राज्य जमा लिया विक्रम संवत 1539 वैशाख सुदी तीज को उदाजी जी जैतारण की गद्दी पर बैठे तथा उनका राज्य तिलक राजपुरोहित भोजराज जी ने किया उस के उपलक्ष में उन्हें तालिकीया ग्राम बख्शीश में दिया राव जी ने विक्रम संवत 1541 से 1542 तक ₹81000 में जैतारण का किला गढ़ बनवाया साथ में कृष्ण भगवान का मंदिर बनाकर गोपाल द्वारा की स्थापना की वैशाख सुदी पूर्णिमा को उदय जी का स्वर्गवास हो गया।
उदा जी के पांच रानी सती हो गई तथा उसके उनके 11 पुत्र थे उनमें से तीसरे पुत्र खिवकरण जी का जन्म विक्रम संवत 1537 भादवा सुदी ग्यारस को हुआ उदा जी के निधन के बाद 30 वर्ष की अवस्था में इनके पुत्र खिव करण जी जैतारण के स्वामी बने
JALORE NEWS
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