जालोर में पराक्रम पर्व : "कभी शिक्षा का सबसे बड़ा केंद्र था जालोर, आज कमजोर" — इतिहासकार राजवीर चलकोई - JALORE NEWS
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जालोर में गूंजा पराक्रम पर्व : वीरता, बलिदान और शिक्षा की गौरवगाथा का जीवंत चित्रण - Parakram festival resonated in Jalore: A live depiction of the glorious saga of valor, sacrifice and education
पत्रकार श्रवण कुमार ओड़ जालोर
जालोर ( 28 अप्रैल 2025 ) JALORE NEWS इतिहास, संस्कृति और स्वाभिमान की धरती जालोर में रविवार रात ऐतिहासिक पराक्रम पर्व का भव्य आयोजन किया गया। शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास, इतिहास संकलन समिति और संस्कृति शोध परिषद के संयुक्त तत्वावधान में भगतसिंह स्टेडियम में आयोजित इस समारोह ने शहरवासियों में देशभक्ति और स्वाभिमान का संचार कर दिया।
कार्यक्रम में मुख्य वक्ता के रूप में मंच से संबोधित करते हुए प्रसिद्ध इतिहासकार और शिक्षक राजवीर चलकोई ने जालोर के स्वर्णिम इतिहास के गौरवशाली पन्ने खोले और युवाओं से अपनी विरासत पर गर्व करने का आह्वान किया।
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शाम सिंह का संबोधन : "इतिहास पढ़ना जरूरी है ताकि भविष्य सुधर सके"
कार्यक्रम में वक्ता शाम सिंह ने अपने उद्बोधन में कहा —
"आज हमारी सामाजिक स्थिति क्या हो गई है, इस पर हमें गंभीरता से विचार करना चाहिए। इतिहास पढ़ने का उद्देश्य केवल गौरवगान करना नहीं है, बल्कि वर्तमान को सुधारना और भविष्य को बेहतर बनाना है। आज गांवों में चर्चा का विषय केवल नरेगा, बिजली और पानी तक सीमित रह गया है। अधिकांश लोग सिर्फ सरकार से अपेक्षा करते हैं कि वह सब कुछ कर दे। लेकिन हमें यह समझना होगा कि शिक्षा कभी सरकार का विषय नहीं रहा, यह समाज का, व्यक्ति का विषय होता है।"
उन्होंने कहा, "वीरमदेव की तस्वीरें लगाने और उनके गीत गाने से कुछ नहीं होगा, अगर हम उनके आदर्शों को अपने जीवन में नहीं अपनाते। समाज यदि पूरी तरह से सरकारी निर्भरता पर टिक जाएगा तो वह अपनी रक्षा नहीं कर पाएगा। आज स्थिति यह है कि दिन के 24 घंटे में कोई भी व्यक्ति अपनी सुरक्षा के बारे में गंभीरता से नहीं सोचता। एक अच्छा मोबाइल, एक अच्छी नौकरी या बिजनेस भी सुरक्षा की गारंटी नहीं है।"
शाम सिंह ने आगे कहा,
"जिनके बलिदान से आज हम आजाद हैं, क्या वे लोग केवल बिजली, पानी और जॉब कार्ड जैसी समस्याओं के लिए शहीद हुए थे?
क्या सुभाष चंद्र बोस ने आईसीएस की शानदार नौकरी केवल इसलिए छोड़ी थी? क्या भगत सिंह ने अपने माता-पिता की चिंता छोड़ी थी सिर्फ एक छोटा मकान बनवाने के लिए? नहीं! उन्होंने देश और समाज के बड़े स्वप्न के लिए अपने जीवन का बलिदान दिया।"
उन्होंने चेताया,
"अगर हम केवल अपने छोटे स्वार्थों में उलझे रहेंगे और इतिहास से प्रेरणा नहीं लेंगे, तो आने वाली पीढ़ियों के लिए गर्व करने योग्य कुछ नहीं बच पाएगा। जैसे इजरायल ने चारों तरफ मुस्लिम राष्ट्रों से घिरे होने के बावजूद अपनी नई पीढ़ी को इतिहास से जोड़ा और आत्मरक्षा को सर्वोपरि बनाया, हमें भी अपनी भावी पीढ़ी को इतिहास सिखाना होगा और उन्हें तैयार करना होगा।"
शाम सिंह ने कार्यक्रम में उपस्थित युवाओं से आग्रह किया —
"आज यहां बड़ी संख्या में जालोर के युवा एकत्रित हुए हैं। यह एक शुभ संकेत है। हमें अपने इतिहास से सीख लेकर अपनी कमजोरियों को पहचानना और उन्हें दूर करना चाहिए। अगर हम अपनी स्थिति का आत्ममंथन नहीं करेंगे और सुधार की दिशा में कदम नहीं उठाएंगे, तो आने वाला समय और कठिन हो सकता है।"
उन्होंने अपने संबोधन के अंत में कहा,
"यह समय केवल आंख मूंदकर बैठने का नहीं है। हमें इतिहास को याद कर, वर्तमान को सुधारना होगा और भविष्य को सुरक्षित बनाना होगा।"
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714 साल पहले का पराक्रम आज भी अमर
राजवीर चलकोई ने अपने संबोधन में कहा कि आज से 714 वर्ष पूर्व जालोर की वीरभूमि पर महाराजा कान्हड़देव और सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी के मध्य हुए ऐतिहासिक युद्ध की याद में 'जस जालोर रो' कार्यक्रम का आयोजन किया गया है।
यह आयोजन जालोर की उस अदम्य वीरता और स्वाभिमान को नमन करने के लिए है, जिसने विदेशी आक्रांताओं के सामने भी सिर नहीं झुकाया।
कार्यक्रम के दौरान महाराजा कान्हड़देव, वीरमदेव और क्षत्राणी हीरा-दे की प्रतिमाओं के समक्ष श्रद्धा-सुमन अर्पित कर उनके बलिदान को नमन किया गया।
जालोर : शिक्षा और संस्कृति का प्राचीन केंद्र
इतिहासकार चलकोई ने बताया कि प्राचीन काल में जालोर शिक्षा का एक महान केंद्र था। उन्होंने कहा कि जाबाली ऋषि के कारण जालोर का प्राचीन नाम जाबालीपुर पड़ा था, जो बाद में जलंधरनाथ महाराज के प्रभाव से 'जालोर' कहलाया।
रामायण काल का उल्लेख करते हुए उन्होंने बताया कि भगवान राम के अयोध्या लौटने पर जिस स्थान को विश्राम हेतु चुना गया, वह आज का रामसीन गांव है।
महाभारतकालीन संदर्भों का हवाला देते हुए चलकोई ने कहा कि अर्जुन और सुभद्रा के विवाह की कथा आज भी भाद्राजून और शंखवाली गांवों में जीवित है।
भीनमाल : विश्व का शिक्षा महाकेंद्र
भीनमाल के गौरवशाली अतीत का वर्णन करते हुए चलकोई ने बताया कि भीनमाल प्राचीन समय में राजस्थान ही नहीं, पूरे भारत का सबसे बड़ा शिक्षा केंद्र था।
कान्हड़देव प्रबंध ग्रंथ के अनुसार, यहां 14 विद्याओं और 18 विधानों का अध्ययन कराया जाता था।
उन्होंने दुख प्रकट किया कि आक्रमणकारियों ने जालोर और भीनमाल के शिक्षा केंद्रों को तहस-नहस कर दिया, जिससे आज जालोर शिक्षा के क्षेत्र में पिछड़ गया है।
चलकोई ने प्रधानमंत्री मोदी द्वारा नालंदा विश्वविद्यालय के पुनर्निर्माण की पहल का उदाहरण देते हुए आग्रह किया कि भीनमाल और जालोर की संस्कृत पाठशालाओं का भी पुनरुद्धार होना चाहिए।
सोमनाथ शिवलिंग की रक्षा में जालोर की भूमिका
चलकोई ने इतिहास के एक महत्वपूर्ण प्रसंग का उल्लेख करते हुए बताया कि जब अलाउद्दीन खिलजी की सेना सोमनाथ मंदिर को लूटकर दिल्ली ले जा रही थी, तब जालोर के वीरों ने आक्रमणकारियों को परास्त कर सोमनाथ के शिवलिंग को मुक्त कराया और उसे जालोर में दो स्थानों पर प्रतिष्ठित किया।
यह घटना जालोर के वीरत्व और धर्मरक्षा के अद्वितीय उदाहरणों में से एक है।
विशिष्ट अतिथियों की गरिमामयी उपस्थिति
कार्यक्रम में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के विभाग प्रचारक संजीव कुमार, पाथेय कण के सह-संपादक श्याम सिंह, तथा भैरूनाथ अखाड़े के संत ईश्वरनाथ महाराज विशिष्ट अतिथि के रूप में मंचासीन रहे।
सभी अतिथियों ने अपने उद्बोधन में जालोर के ऐतिहासिक योगदान को रेखांकित करते हुए युवाओं से अपनी संस्कृति और स्वाभिमान की रक्षा का संकल्प लेने का आह्वान किया।
देशभक्ति से सराबोर रहा माहौल
रविवार रात का पूरा भगतसिंह स्टेडियम देशभक्ति गीतों, जयकारों और वीरगाथाओं की गूंज से सराबोर रहा।
बड़ी संख्या में नागरिक, इतिहास प्रेमी, छात्र-छात्राएं तथा विभिन्न सामाजिक संगठनों के प्रतिनिधि इस भव्य आयोजन में उपस्थित रहे।
आयोजकों ने कहा कि ऐसे कार्यक्रम नई पीढ़ी में अपने गौरवशाली अतीत के प्रति गर्व और राष्ट्रभक्ति की भावना को प्रोत्साहित करते हैं।
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